2. पैग़म्बर का उद्देश्य।

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            सृष्टिकर्ता ने मनुष्य कि सृष्टी की। और चाहा कि मनुषय अपने निर्माता का शुक्रिया अदा करें, (क़ु-51:56)। तथा नियम-कायदों का पालन करने का आदेश दिया। परन्तु मनुष्य ने आज्ञाओं को ठुकरा दिया। और बुरे कामों में लिप्त हो गया। अल्लाह इंसान से प्यार करता है, इसलिए उसने लोगों को सदमार्ग दिखाने के लिए प्रत्येक समुदाय के लोगों में से कुछ विशिष्ट लोगों को चुना। (कु०-35:24) और इन्हीं विशिष्ट लोगों को भविष्यद्वक्ता (नबी) या पैग़म्बर (ईश्वरिय दूत) कहा। नबियों का उद्देश्य भटके हुए लोगों को सदमार्ग पर लाना था।

           ईश्वर (अल्लाह) ने प्रकाशना (वह्यी) के माध्यम से पैग़म्बरों को आदेश भेजे। और पैग़म्बरों को आदेश दिया! कि वे लोगों को उनके निर्माता कि पहचान करायें। और उन्हें अत्याचार और अविश्वास से शुद्ध करें।

           प्रकाशना (वह्यी) के माध्यम से पैग़म्बरों को जो आदेश भेजे गये। उनसे कई लघु शास्त्र और चार पुस्तकें (तोराह, इंजील, ज़बूर और कुरान) अस्तित्व में आईं।

          अल्लाह ने सभी पैग़म्बरों से वचन लिया कि वे लोगों पर उन प्रमाणों और पुस्तकों को प्रकट करें जो उन पर अवतरित हुई हैं। (क़ु०-5: 67, 16: 44, 33: 7-8)। और आप मुहम्मद (स०) भी उसी का अनुसरण करें। जो उनकी ओर प्रकाशना की गई है। (क़ु०-6: 50 और 106)।

          प्रथम पैग़म्बर आदम (अ.स.) से लेकर आख़िरी पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) तक हर पैग़म्बर का यही लक्ष्य था। कि अन्य निर्जीव देवताओं के अलावा, लोगों को उस एक परमेश्वर की उपासना करने के लिए आमंत्रित करें (क़ु०-21:25)। कि जिसने छह दिनों में (पृथ्वी के छ: हजार वर्ष) इस ब्रह्मांड का निर्माण किया। तथा जिन्न (राक्षस) और मानव जाती का सृजन किया।

Contents

अल्लाह ने पैग़म्बरों को लोक व परलोक दोनों में नेतृत्व दिया।

सांसारिक नेतृत्व:-

  1. लोगों का मार्गदर्शन कर सद्मार्ग प्रसस्त करना। (क़ु०-13:30)।
  2. लोगों को उनके सच्चे एकेश्वर पहचान करना। (क़ु०-2: 255)।
  3. अल्लाह के आदेशों और नियमों को पहुंचाना। (क़ु०-13:30)।
  4. न्याय और निष्पक्षता स्थापित करना। (क़ु०-6:51)।

परलोक में नेतृत्व:-

  1. पैग़म्बरों के आने के बाद लोगों को खुदा पर इल्जाम लगाने का मौका न मिले।(क़ु०-04:165)। अथार्थ ईश्वरीय अदालत के दिन कोई नास्तिक या काफ़िर यह न कह सके कि हम परमेश्वर को नहीं जानते थे। नहीं तो हम भी एक परमेश्वर की पूजा करते। और शैतान को अपना मित्र नहीं बनाते।
  2. ईश्वरीय अदालत के दिन पैग़म्बर गवाह होगें। कि उन्होंने लोगों तक अल्लाह का पैग़ाम पहुंचाया था। (क़ु०-4: 41 से 42, 16: 89)।
  3. शिफ़ारिश करना। वो लोग कि जिनकी मृत्यू एकेश्वर के विश्वास पर होगी। उनके पापों को क्षमा करने और स्वर्ग में प्रवेश कराने के लिए, ईश्वर उन्हें पैग़म्बरों की शिफ़ारिश पाने वालों की श्रेणी में नियुक्त करेगा। अत: प्रत्येक पैग़म्बर को अपने उन अनुयायियों की सिफ़ारिश करने का हक़ होगा, कि जिन्हे ईश्वर (अल्लाह) सिफ़ारिश के लिए स्वीकार करेगा। (क़ु०-34: 23, 2: 255)।

शिफरिश एक ऐसा विषय है जो इंसान से जाने-अनजाने में शिर्क और कुफ्र करवा देता है। इसलिए, ईश्वर की इच्छा से, हम भविष्य में अलग से, शिफारिश अध्याय में इसके विवरण पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे।

           ईश्वर (अल्लाह) ने किसी पैग़म्बर पर यह अनिवार्य नहीं किया कि वह लोगों को सुपथ पर लाने के लिए मजबूर करें। (क़ु०-50: 45)। अपितु उनका कर्तव्य था कि जिस व्यक्ति तक वह पहुँच सकते हैं (क़ु-06:19)। उसे सत्य के लिए आमंत्रित करें। फिर भले वह सुपथ अपनाये या गुमराही में रहें। (क़ु०-27: 92, 6: 48)। क्योंकि अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है और जिसे चाहता है गुमराह कर देता है। (क़ु०-14:4)।

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رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔

आदम की संतानों के लिए पैग़म्बरों की आज्ञाएँ।

يٰبَنِىۡۤ اٰدَمَ اِمَّا يَاۡتِيَنَّكُمۡ رُسُلٌ مِّنۡكُمۡ يَقُصُّوۡنَ عَلَيۡكُمۡ اٰيٰتِىۡ‌ۙ فَمَنِ اتَّقٰى وَاَصۡلَحَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُوۡنَ‏ (۳۵)  وَالَّذِيۡنَ كَذَّبُوۡا بِاٰيٰتِنَا وَاسۡتَكۡبَرُوۡا عَنۡهَاۤ اُولٰۤٮِٕكَ اَصۡحٰبُ النَّارِ‌ۚ هُمۡ فِيۡهَا خٰلِدُوۡنَ‏ (۳۶)۔

[Q-07:35-36]

            हे आदम के पुत्रो! जब तुम्हारे पास तुम्हीं में से पैग़म्बर आ जायें जो तुम्हें मेरी आयतें सुना रहे हों, तो जो डरेगा और अपना सुधार कर लेगा, उसके लिए कोई डर नहीं होगा और न वे   उदासीन होंगे। और जो हमारी आयतें झुठलायेंगे और उनसे घमण्ड करेंगे वही नारकीय  होंगे और वो उसमें सदावासी होंगे।


يٰۤاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡۤا اٰمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَرَسُوۡلِهٖ وَالۡكِتٰبِ الَّذِىۡ نَزَّلَ عَلٰى رَسُوۡلِهٖ وَالۡكِتٰبِ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلَ مِنۡ قَبۡلُ‌ؕ وَمَنۡ يَّكۡفُرۡ بِاللّٰهِ وَمَلٰٓٮِٕكَتِهٖ وَكُتُبِهٖ وَرُسُلِهٖ وَالۡيَوۡمِ الۡاٰخِرِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلٰلًاۢ بَعِيۡدًا‏ (۱۳۶)۔

[Q-04:136]

            हे ईमान वालो! अल्लाह, उसके रसूल विस्वास करो। और इस पुस्तक (क़ुर्आन) पर, जो उसने अपने रसूल पर उतारी है तथा उन पुस्तकों पर, जो इससे पहले उतारी हैं, ईमान लाओ। जो अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी पुस्तकों और अंतिम दिवस (प्रलय) को अस्वीकार करेगा, वह कुपथ (गुमराही) में बहुत दूर जा पड़ेगा।

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पैग़म्बरों को भेजने का उद्देश्य। 

اِنَّاۤ اَوۡحَيۡنَاۤ اِلَيۡكَ كَمَاۤ اَوۡحَيۡنَاۤ اِلٰى نُوۡحٍ وَّالنَّبِيّٖنَ مِنۡۢ بَعۡدِهٖ‌ۚ وَاَوۡحَيۡنَاۤ اِلٰٓى اِبۡرٰهِيۡمَ وَاِسۡمٰعِيۡلَ وَاِسۡحٰقَ وَيَعۡقُوۡبَ وَالۡاَسۡبَاطِ وَعِيۡسٰى وَ اَيُّوۡبَ وَيُوۡنُسَ وَهٰرُوۡنَ وَسُلَيۡمٰنَ‌  ۚ  وَاٰتَيۡنَا دَاوٗدَ زَبُوۡرًا  ۚ (۱۶۳)  وَرُسُلًا قَدۡ قَصَصۡنٰهُمۡ عَلَيۡكَ مِنۡ قَبۡلُ وَرُسُلًا لَّمۡ نَقۡصُصۡهُمۡ عَلَيۡكَ‌ۚ  وَكَلَّمَ اللّٰهُ مُوۡسٰى تَكۡلِيۡمًا  ۚ‏ (۱۶۴)  رُسُلًا مُّبَشِّرِيۡنَ وَمُنۡذِرِيۡنَ لِئَلَّا يَكُوۡنَ لِلنَّاسِ عَلَى اللّٰهِ حُجَّةٌ ۢ بَعۡدَ الرُّسُلِ‌ؕ وَكَانَ اللّٰهُ عَزِيۡزًا حَكِيۡمًا‏ (۱۶۵)۔

[Q-4:163-165]

             (हे पैग़म्बर!) हमने आपकी ओर वैसे ही वह़्यी भेजी है, जैसे नूह़ और उसके पश्चात के पैग़म्बरों के पास भेजी और इब्राहीम, और इस्माईल, और इस्ह़ाक़, और याक़ूब तथा उसकी संतान, और ईसा, और अय्यूब, और यूनुस, और हारून और सुलैमान के पास वह़्यी भेजी और हमने दाऊद को ज़बूर प्रदान की थी।(163) कुछ रसूल तो ऐसे हैं, जिनकी चर्चा हम इससे पहले आपसे कर चुके हैं और कुछ की चर्चा आपसे नहीं की है और अल्लाह ने मूसा से वास्तव में बात की।(164)

            ये सभी पैग़म्बर शुभ सूचना सुनाने वाले और डराने वाले थे, ताकि इन पैग़म्बरों के (आगमन के) पश्चात् लोगों के लिए अल्लाह पर कोई तर्क  (क्षमा) रह जाये और अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ (ग़ालिब हिकमत वाला) है।(165)


وَمَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ رَّسُوۡلٍ اِلَّا لِـيُـطَاعَ بِاِذۡنِ اللّٰهِ ‌ؕ۔

[Q-04:64]

           और हमने नहीं भेजा कोई पैग़म्बर, मगर इसलिए कि! अल्लाह की [आज्ञा] का पालन किया जाये। (64)


مَا عَلَى الرَّسُوۡلِ اِلَّا الۡبَلٰغُ‌ ؕ وَاللّٰهُ يَعۡلَمُ مَا تُبۡدُوۡنَ وَمَا تَكۡتُمُوۡنَ‏ ﴿۹۹﴾۔

[Q-05:99]

            पैग़म्बर का दायित्व इसके सिवा कुछ नहीं कि उपदेश पहुँचा दे, और जो तुम बोलते हो और जो मन में रखते हो, अल्लाह सब जानता है।(99)


وَمَا نُرۡسِلُ الۡمُرۡسَلِيۡنَ اِلَّا مُبَشِّرِيۡنَ وَمُنۡذِرِيۡنَ ۚ ﴿۵۶﴾۔

[Q-18:56]

          तथा हम पेग़म्बरों को नहीं भेजते, परन्तु [इसलिए कि] शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले बनाकर।


الٓرٰ‌ ࣞ  كِتٰبٌ اُحۡكِمَتۡ اٰيٰـتُهٗ ثُمَّ فُصِّلَتۡ مِنۡ لَّدُنۡ حَكِيۡمٍ خَبِيۡرٍۙ‏ (۱)  اَلَّا تَعۡبُدُوۡۤا اِلَّا اللّٰهَ‌ ؕ اِنَّنِىۡ لَـكُمۡ مِّنۡهُ نَذِيۡرٌ وَّبَشِيۡرٌ ۙ‏ (۲) ۔

[Q-11:1-2]

              अलिफ, लाम, रा। ये पुस्तक है, जिसकी आयतें सुदृढ़ की गयीं, फिर सविस्तार वर्णित की गयी हैं, उसकी ओर से, जो तत्वज्ञ, सर्वसूचित है।(1) कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करो। वास्तव में, मैं उसकी ओर से तुम्हें सचेत करने वाला तथा शुभ सूचना देने वाला हूँ।(2)


الۤرٰ ࣞ كِتٰبٌ اَنۡزَلۡنٰهُ اِلَيۡكَ لِـتُخۡرِجَ النَّاسَ مِنَ الظُّلُمٰتِ اِلَى النُّوۡرِ ۙ  بِاِذۡنِ رَبِّهِمۡ اِلٰى صِرَاطِ الۡعَزِيۡزِ الۡحَمِيۡدِۙ‏ (۱)  اللّٰهِ الَّذِىۡ لَهٗ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الۡاَرۡضِ‌ؕ (۲)۔

[Q-14:1-2]

          अलिफ़, लाम, रा। ये (क़ुर्आन) एक पुस्तक है, इस हमने आपकी ओर अवतरित (नाज़िल) किया है, ताकि आप लोगों को अंधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर लायें। उनके रब की अनुमति से, उस रब की राह की ओर, जो बड़ा प्रबल सराहा हुआ है।(1)वह रब जिसके अधिकार में आकाश और धरती का सब कुछ है (2)


قُلۡ سُبۡحَانَ رَبِّىۡ هَلۡ كُنۡتُ اِلَّا بَشَرًا رَّسُوۡلًا‏ (۹۳) ۔

[Q-17:93]

           आप कह दें कि मेरा पालनहार पवित्र है, मैं तो बस एक संदेशवाहक मनुष्य हूँ।(93)

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आप ﷺ और सभी पैग़म्बरों का साधन।

وَلَقَدۡ اَرۡسَلۡنَا رُسُلًا مِّنۡ قَبۡلِكَ وَ جَعَلۡنَا لَهُمۡ اَزۡوَاجًا وَّذُرِّيَّةً ‌ ؕ وَمَا كَانَ لِرَسُوۡلٍ اَنۡ يَّاۡتِىَ بِاٰيَةٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰهِ‌ ؕ لِكُلِّ اَجَلٍ كِتَابٌ‏ (۳۸)  يَمۡحُوۡا اللّٰهُ مَا يَشَآءُ وَيُثۡبِتُ ‌ۖ ‌ۚ وَعِنۡدَهٗۤ اُمُّ الۡكِتٰبِ‏ ﴿۳۹﴾۔

[Q-13:38-39]

              और हमने आपसे पहले बहुत-से पैग़म्बरों को भेजा है और उनकी पत्नियाँ तथा बाल-बच्चे भी  बनाये। तथा किसी पैग़म्बर के बस में नहीं था, कि अल्लाह की अनुमति बिना कोई एक आयत भी ले आयें। तथा हर दौर (समय) के लिए एक पुस्तक (आदेश) है।(38) ईश्वर  जिस (आदेश) को  मिटाना चाहता है,  मिटा देता है। और जो  शेष (साबित) रखना चाहता है, शेष रखता है। उसी के पास मूल  पुस्तक (लोहे महफ़ूज) है।(39)


الۤرٰ ࣞ كِتٰبٌ اَنۡزَلۡنٰهُ اِلَيۡكَ لِـتُخۡرِجَ النَّاسَ مِنَ الظُّلُمٰتِ اِلَى النُّوۡرِ ۙ  بِاِذۡنِ رَبِّهِمۡ اِلٰى صِرَاطِ الۡعَزِيۡزِ الۡحَمِيۡدِۙ‏ (۱)  اللّٰهِ الَّذِىۡ لَهٗ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الۡاَرۡضِ‌ؕ ﴿۲﴾۔

[Q-14:1-2]

             अलिफ़, लाम, रा। ये (क़ुर्आन) एक पुस्तक है, जिसे हमने आपकी ओर अवतरित (नाज़िल) किया है, ताकि आप [इस के माध्यम से] लोगों को अंधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर लायें। उनके रब की अनुमति से, उस रब की राह की ओर, जो बड़ा प्रबल सराहा हुआ है।(1) वह रब जिसके अधिकार में आकाश और धरती का सब कुछ है (2)


بِالۡبَيِّنٰتِ وَالزُّبُرِ‌ؕ وَاَنۡزَلۡنَاۤ اِلَيۡكَ الذِّكۡرَ لِتُبَيِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ اِلَيۡهِمۡ وَلَعَلَّهُمۡ يَتَفَكَّرُوۡنَ‏ ﴿۴۴﴾۔

[Q-16:44]

            [और आप से पहले रसूलों को] प्रत्यक्ष (खुले) प्रमाणों तथा पुस्तकों के साथ भेजा। और आपकी ओर ये शिक्षा (क़ुर्आन) अवतरित की, ताकि आप उसे सर्वमानव के लिए उजागर कर दें, जो कुछ उनके लिए उतारा (नाज़िल किया) गया है, ताकि वे सोच-विचार करें।(44)


كِتٰبٌ اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ فَلَا يَكُنۡ فِىۡ صَدۡرِكَ حَرَجٌ مِّنۡهُ لِتُنۡذِرَ بِهٖ وَذِكۡرٰى لِلۡمُؤۡمِنِيۡنَ‏ ﴿۲﴾۔

[Q-07:02]

              ये पुस्तक है, जो आपकी ओर उतारी गयी है। अतः (हे नबी!) आपके मन में इससे कोई संकोच न हो, ताकि आप इसके द्वारा सावधान करें और (यह) ईमान वालों के लिए उपदेश (नसीहत) है।(2)


كَذٰلِكَ اَرۡسَلۡنٰكَ فِىۡۤ اُمَّةٍ قَدۡ خَلَتۡ مِنۡ قَبۡلِهَاۤ اُمَمٌ لِّـتَتۡلُوَا۟ عَلَيۡهِمُ الَّذِىۡۤ اَوۡحَيۡنَاۤ اِلَيۡكَ﴿۳۰﴾۔

[Q-13:30]

               इसी प्रकार, हमने आपको एक समुदाय (उम्मत) में जिससे पहले बहुत-से समुदाय (उम्मत) गुज़र चुके हैं पैग़म्बर बनाकर भेजा है, ताकि आप उन्हें वो संदेश सुनाएँ, जो हमने आपकी ओर वह़्यी द्वारा भेजा है।(30)


وَبِالۡحَـقِّ اَنۡزَلۡنٰهُ وَبِالۡحَـقِّ نَزَلَ‌ ؕ وَمَاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ اِلَّا مُبَشِّرًا وَّنَذِيۡرًا ‌ۘ‏ ﴿۱۰۵﴾۔

[Q-17:105]

          और हमने सत्य के साथ ही इस (क़ुर्आन) को उतारा है तथा ये सत्य के साथ ही उतरा है और हमने आपको बस शुभ सूचना देने तथा सावधान करने वाला बनाकर भेजा है।(105)

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अल्लाह पैग़म्बर को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का आदेश देता है।

قُلْ لَّاۤ اَقُوۡلُ لَـكُمۡ عِنۡدِىۡ خَزَآٮِٕنُ اللّٰهِ وَلَاۤ اَعۡلَمُ الۡغَيۡبَ وَلَاۤ اَقُوۡلُ لَـكُمۡ اِنِّىۡ مَلَكٌ‌ ۚ اِنۡ اَتَّبِعُ اِلَّا مَا يُوۡحٰٓى اِلَىَّ‌ ؕ قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِى الۡاَعۡمٰى وَالۡبَصِيۡرُ‌ ؕ اَفَلَا تَتَفَكَّرُوۡنَ ﴿۵۰﴾۔

[Q-06:50]

            (हे नबी!) आप कह दें कि मेरे पास अल्लाह का कोष (खज़ाना) नहीं है, न मैं परोक्ष (ग़ैब) का ज्ञान रखता हूँ। और न मैं ये कहता हूँ कि मैं कोई फ़रिश्ता हूँ। मैं तो केवल उसी पर चल रहा हूँ, जो मेरी ओर वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है। आप ﷺ कहें कि क्या अंधा तथा आँख वाला बराबर हो जायेंगे? क्या तुम सोच विचार नहीं करते?

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निश्चय ही पैग़म्बर विशेष हैं। लेकिन वे इंसान ही थे।

قُلۡ سُبۡحَانَ رَبِّىۡ هَلۡ كُنۡتُ اِلَّا بَشَرًا رَّسُوۡلًا‏ (۹۳)  وَمَا مَنَعَ النَّاسَ اَنۡ يُّؤۡمِنُوۡۤا اِذۡ جَآءَهُمُ الۡهُدٰٓى اِلَّاۤ اَنۡ قَالُـوۡۤا اَبَعَثَ اللّٰهُ بَشَرًا رَّسُوۡلًا‏ ﴿۹۴﴾  قُلْ لَّوۡ كَانَ فِى الۡاَرۡضِ مَلٰۤٮِٕكَةٌ يَّمۡشُوۡنَ مُطۡمَٮِٕنِّيۡنَ لَـنَزَّلۡنَا عَلَيۡهِمۡ مِّنَ السَّمَآءِ مَلَـكًا رَّسُوۡلًا‏ ﴿۹۵﴾۔

[Q-17:93-95]

           आप कह दें कि मेरा पालनहार पवित्र है, मैं तो बस एक पैग़म्बर (संदेशवाहक) मनुष्य हूँ।(93) और लोगों के पास मार्गदर्शन (क़ुरान) आने के बाद ईमान लाने से किसने रोका है? परंतु यह कि उन्होंने [अहंकार मे] कहाः क्या अल्लाह ने एक मनुष्य को पैग़म्बर बनाकर भेजा है?(94) (हे नबी!) आप कह दें कि यदि धरती में फ़रिश्ते निश्चिन्त होकर चलते-फिरते होते, तो हम अवश्य उनपर आकाश से कोई फ़रिश्ता पैग़म्बर बनाकर उतारते। (95)

اَللّٰهُ يَصۡطَفِىۡ مِنَ الۡمَلٰٓٮِٕكَةِ رُسُلًا وَّمِنَ النَّاسِ‌ؕ اِنَّ اللّٰهَ سَمِيۡعٌۢ بَصِيۡرٌ ۚ‏ (۷۵)  يَعۡلَمُ مَا بَيۡنَ اَيۡدِيۡهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ‌ؕ وَاِلَى اللّٰهِ تُرۡجَعُ الۡاُمُوۡرُ‏ ﴿۷۶﴾۔

[Q-22:75-76]

            अल्लाह ही निर्वाचित (चुनाव) करता है फ़रिश्तों में से तथा मनुष्यों में से दूत / पैग़म्बर (संदेशवाहक) को। वास्तव में, वह सुनने तथा देखने  वाला है।75.

अर्थात ईश्वर ही जानता है कि पैग़म्बर (संदेशवाहक) बनाये जाने के योग्य कौन है।

           वह जानता है, जो उनके सामने है और जो कुछ उनसे ओझल है और उसी की ओर सबकाम फेरे जाते हैं।76.


وَلَقَدۡ اَرۡسَلۡنَا رُسُلًا مِّنۡ قَبۡلِكَ وَ جَعَلۡنَا لَهُمۡ اَزۡوَاجًا وَّذُرِّيَّةً ‌ ؕ وَمَا كَانَ لِرَسُوۡلٍ اَنۡ يَّاۡتِىَ بِاٰيَةٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰهِ‌ ؕ (۳۸) ۔

[Q-13:38]

            और हमने आपसे पहले बहुत-से पैग़म्बरों को भेजा है और उनकी पत्नियाँ तथा बाल-बच्चे  बनाये। किसी रसूल के बस में नहीं था। कि अल्लाह की अनुमति बिना कोई आयत ले आये।


قَالَتۡ لَهُمۡ رُسُلُهُمۡ اِنۡ نَّحۡنُ اِلَّا بَشَرٌ مِّثۡلُكُمۡ وَلٰـكِنَّ اللّٰهَ يَمُنُّ عَلٰى مَنۡ يَّشَآءُ مِنۡ عِبَادِهٖ ؕ وَمَا كَانَ لَنَاۤ اَنۡ نَّاۡتِيَكُمۡ بِسُلۡطٰنٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰهِ ؕ وَعَلَى اللّٰهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ الۡمُؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۱۱﴾۔

[Q-14:11]

             उनसे उनके पैग़म्बरों ने कहाः हम तुम्हारे जैसे मानव पुरुष ही हैं, परन्तु अल्लाह अपने भक्तों में से जिसपर चाहे, [नब्वत का] उपकार करता है और हमारे बस में नहीं कि अल्लाह की अनुमति के बिना कोई प्रमाण [मोज़्ज़ा/चमत्कार] ले आयें और अल्लाह ही पर ईमान वालों को भरोसा करना चाहिए।(11)


وَلَٮِٕنۡ شِئۡنَا لَنَذۡهَبَنَّ بِالَّذِىۡۤ اَوۡحَيۡنَاۤ اِلَيۡكَ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَـكَ بِهٖ عَلَيۡنَا وَكِيۡلًا ۙ‏ (۸۶)  اِلَّا رَحۡمَةً مِّنۡ رَّبِّكَ ؕ اِنَّ فَضۡلَهٗ كَانَ عَلَيۡكَ كَبِيۡرًا‏ ﴿۸۷﴾۔

[Q-17:86-87]

            और यदि हम चाहें, तो वह सब कुछ [वापस] ले जायें, जो आपकी ओर हमने वह़्यी किया है, फिर आप हमपर अपना कोई सहायक नहीं पायेंगे। (86) किन्तु आपके रब की दया के कारण (ये आपको प्राप्त है)। वास्तव में, आपपर उसकी बहुत बड़ी इनायत (क्रपा) है।(87)

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पैग़म्बरों को उनकी राष्ट्रीय भाषा में ही चुना गया।

وَمَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ رَّسُوۡلٍ اِلَّا بِلِسَانِ قَوۡمِهٖ لِيُبَيِّنَ لَهُمۡ‌ؕ فَيُضِلُّ اللّٰهُ مَنۡ يَّشَآءُ وَيَهۡدِىۡ مَنۡ يَّشَآءُ‌ ؕ وَهُوَ الۡعَزِيۡزُ الۡحَكِيۡمُ‏ ﴿۴﴾۔

[Q-14:04]

             और हमने प्रत्येक  पैग़म्बर को उसके समुदाय की भाषा में ही भेजा, ताकि वह उनके लिए बात [सरलता से] समझा सके। फिर अल्लाह जिसे चाहता है, कुपथ करता है और जिसे चाहता है, सुपथ दर्शा देता है और वही प्रभुत्वशाली और ह़िक्मत वाला है।(4)

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पैग़म्बरों ने अल्लाह का सन्देश संसार के प्रत्येक समुदाय तक पहुँचाया।

وَكَذٰلِكَ مَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ قَبۡلِكَ فِىۡ قَرۡيَةٍ مِّنۡ نَّذِيۡرٍ اِلَّا قَالَ مُتۡرَفُوۡهَاۤ اِنَّا وَجَدۡنَاۤ اٰبَآءَنَا عَلٰٓى اُمَّةٍ وَّاِنَّا عَلٰٓى اٰثٰرِهِمۡ مُّقۡتَدُوۡنَ‏ (۲۳)  قٰلَ اَوَلَوۡ جِئۡتُكُمۡ بِاَهۡدٰى مِمَّا وَجَدْتُّمۡ عَلَيۡهِ اٰبَآءَكُمۡ‌ ؕ قَالُوۡۤا اِنَّا بِمَاۤ اُرۡسِلۡـتُمۡ بِهٖ كٰفِرُوۡنَ‏ (۲۴)  فَانْتَقَمۡنَا مِنۡهُمۡ‌ فَانْظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَاقِبَةُ الۡمُكَذِّبِيۡنَ (۲۵)۔

[Q-43:23-25]

              इसी प्रकार कोई बस्ती [नहीं] कि [जहाँ आप ﷺ] से पूर्व कोई सावधान करने वाला नहीं भेजा हो, परन्तु वहाँ के सुखी लोगों ने कहा हमने अपने पूर्वजों को एक रीति पर पाया है और हम निश्चय ही उन्हीं के पद्चिन्हों पर चल रहे हैं।(23) पैग़म्बरों ने कहाः क्या (तुम उन्हीं का अनुगमन करोगे) यद्पि मैं लाया हूँ तुम्हारे पास उससे अधिक सीधा मार्ग, कि जिसपर तुमने पाया है अपने पूर्वजों को? तो उन्होंने कहाः हम उसे मानने वाले नहीं है जिस (धर्म) के साथ तुम भेजे गये हो, ।(24) अन्ततः, हमने बदला चुका लिया उनसे। तो देखो कि कैसा रहा झुठलाने वालों का दुष्परिणाम।(25)

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पैग़म्बरी केवल मर्दों को प्रदान की गई।

وَمَاۤ اَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ اِلَّا رِجَالًا نُّوۡحِىۡۤ اِلَيۡهِمۡ‌ فَسۡـــَٔلُوۡۤا اَهۡلَ الذِّكۡرِ اِنۡ كُنۡتُمۡ لَا تَعۡلَمُوۡنَ‏ (۷)  وَمَا جَعَلۡنٰهُمۡ جَسَدًا لَّا يَاۡكُلُوۡنَ الطَّعَامَ وَمَا كَانُوۡا خٰلِدِيۡنَ‏ ﴿۸﴾۔

[Q-21:7-8]

             और [हे नबी]! हमने आपसे पहले पुरुषों को ही पैग़म्बर बनाकर भेजा, जिनकी ओर हम वह़्यी भेजते थे। फिर तुम अहले किताब  से पूछ लो, यदि तुम (स्वयं) नहीं  जानते हो।(7) तथा हमने उनके ऐसे शरीर भी नहीं बनाये थे जो कि भोजन न करते हों और न वे हमेशा रहने वाले (अमर) थे।(8)


وَمَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ قَبۡلِكَ اِلَّا رِجَالًا نُّوۡحِىۡۤ اِلَيۡهِمۡ‌ فَسۡـــَٔلُوۡۤا اَهۡلَ الذِّكۡرِ اِنۡ كُنۡتُمۡ لَا تَعۡلَمُوۡنَۙ‏ (۴۳)۔

[Q-16:43]

             और (हे नबी!) हमने आपसे पहले जो भी रसूल भेजे, वे सभी मानव-पुरुष थे। जिनकी ओर हम वह़्यी (प्रकाशना) करते रहे। तो तुम ज्ञानियों से (अहले किताब से) पूछ लो? यदि [स्वंय] नहीं जानते। (43)


وَمَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ قَبۡلِكَ اِلَّا رِجَالًا نُّوۡحِىۡۤ اِلَيۡهِمۡ مِّنۡ اَهۡلِ الۡقُرٰى‌ؕ ﴿۱۰۹﴾۔

[Q-12:109]

            और हमने आपसे पहले मानव  पुरुषों ही को नबी बनाकर भेजा, जिनकी ओर प्रकाशना (वह्यी) भेजते रहे। (109)

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पैग़म्बरों को भी उनपर प्रकट रहस्योद्घाटन (वह्यी) का पालन करने का आदेश।

اِتَّبِعۡ مَاۤ اُوۡحِىَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ‌‌ۚ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ۚ وَاَعۡرِضۡ عَنِ الۡمُشۡرِكِيۡنَ‏ (۱۰۶) ۔

[Q-06:106]

            [हे नबी] आप उसपर चलें, जो आपपर आपके रब की ओर से वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है। उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुश्रिकों की बातों पर ध्यान न दें।(106)

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पैग़म्बर अपने समुदाय के ज़िम्मेदार नहीं होते।

وَلَوۡ شَآءَ اللّٰهُ مَاۤ اَشۡرَكُوۡا ‌ؕ وَمَا جَعَلۡنٰكَ عَلَيۡهِمۡ حَفِيۡظًا‌ ۚ وَمَاۤ اَنۡتَ عَلَيۡهِمۡ بِوَكِيۡلٍ‏ ﴿۱۰۷﴾۔

[Q-06:107]

              और यदि अल्लाह चाहता, तो वो लोग अल्लाह के अतिरिक्त किसी को साझी न बनाते और हमने आप को उनपर निरीक्षक नहीं बनाया है और न ही आप उनपर अधिकारी हैं।(107)


قَدۡ جَآءَكُمۡ بَصَآٮِٕرُ مِنۡ رَّبِّكُمۡ  ۚ  فَمَنۡ اَبۡصَرَ فَلِنَفۡسِهٖ‌ ۚ وَمَنۡ عَمِىَ فَعَلَيۡهَا‌ ؕ وَمَاۤ اَنَا عَلَيۡكُمۡ بِحَفِيۡظٍ‏ ﴿۱۰۴﴾۔

[Q-06:104]

             [हे नबी कह दो कि] तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ से निशानियाँ आ चुकी हैं। तो जिसने समझ-बूझ से काम लिया, उसका लाभ उसी के लिए है और जो अन्धा हो गया, तो उसकी हानी उसी पर है और मैं तुमपर संरक्षक नहीं हूँ।(104)


وَاَنۡ اَتۡلُوَا الۡقُرۡاٰنَ‌ۚ فَمَنِ اهۡتَدٰى فَاِنَّمَا يَهۡتَدِىۡ لِنَفۡسِهٖ‌ۚ وَمَنۡ ضَلَّ فَقُلۡ اِنَّمَاۤ اَنَا مِنَ الۡمُنۡذِرِيۡنَ‏ ﴿۹۲﴾۔

[Q-27:92]

            तथा क़ुर्आन पढ़ते रहो, तो जिस इंसान ने [क़ुरान पढ़कर] सुपथ अपनाया, तो उसने अपने ही लाभ के लिए सुपथ अपनाया। और जो कुपथ हो जाये, तो आप कह दें कि वास्तव में, मैं तो बस सावधान करने वालों में से हूँ।(1)


وَاِنۡ مَّا نُرِيَـنَّكَ بَعۡضَ الَّذِىۡ نَعِدُهُمۡ اَوۡ نَـتَوَفَّيَنَّكَ فَاِنَّمَا عَلَيۡكَ الۡبَلٰغُ وَعَلَيۡنَا الۡحِسَابُ‏ ﴿۴۰﴾۔

[Q-13:40]

              और जो वादे हम इनसे करते हैं। उनमें से कुछ को आपकी ज़िंदगी में पूरा करदें। या फिर आप को उठा लें, यक़ीनन आप का काम पैग़ाम पहुंचाना है। और हमारा काम हिसाब लेना है।

             और जो वादे हम इनसे करते हैं। उनमें से कुछ को आपके जीवन काल में पूरा करदें। या आप को उठा लें। वास्तव में आप का दायित्व संदेश पहुंचाना है। और हमारा कार्य हिसाब लेना है।

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(अ) पैग़म्बरों का सांसारिक नेतृत्व।

1. लोगों का मार्गदर्शन करना और सदमार्ग दिखाना।

وَقَالُوۡا لَوۡلَاۤ اُنۡزِلَ عَلَيۡهِ اٰيٰتٌ مِّنۡ رَّبِّهٖ‌ؕ قُلۡ اِنَّمَا الۡاٰيٰتُ عِنۡدَ اللّٰه ِؕ وَاِنَّمَاۤ اَنَا۟ نَذِيۡرٌ مُّبِيۡنٌ‏ ﴿۵۰﴾۔

[Q-29:50]

             तथा (अत्याचारियों) ने कहाः आपपर आप के रब की ओर से निशानियाँ क्यों नहीं उतारी गयीं? आप कह दें कि निशानियाँ तो अल्लाह के पास  हैं और मैं तो खुला सावधान करने वाला हूँ।


قُلۡ اِنۡ ضَلَلۡتُ فَاِنَّمَاۤ اَضِلُّ عَلٰى نَـفۡسِىۡ ۚ وَاِنِ اهۡتَدَيۡتُ فَبِمَا يُوۡحِىۡۤ اِلَىَّ رَبِّىۡ ؕ اِنَّهٗ سَمِيۡعٌ قَرِيۡبٌ‏ ﴿۵۰﴾۔

[Q-34:50]

            कहो, “यदि मैं पथभ्रष्ट हो जाऊँ तो पथभ्रष्ट होकर मैं अपना ही बुरा करूँगा, और यदि मैं सीधे मार्ग पर हूँ, तो इसका कारण वह प्रकाशना [क़ुरान] है जो मेरा रब मेरी ओर करता है। निस्संदेह वह सब कुछ सुनता है, (और) निकट है।” (50)


كَذٰلِكَ اَرۡسَلۡنٰكَ فِىۡۤ اُمَّةٍ قَدۡ خَلَتۡ مِنۡ قَبۡلِهَاۤ اُمَمٌ لِّـتَتۡلُوَا۟ عَلَيۡهِمُ الَّذِىۡۤ اَوۡحَيۡنَاۤ اِلَيۡكَ وَ هُمۡ يَكۡفُرُوۡنَ بِالرَّحۡمٰنِ‌ؕ قُلۡ هُوَ رَبِّىۡ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ ۚ عَلَيۡهِ تَوَكَّلۡتُ وَاِلَيۡهِ مَتَابِ‏ ﴿۳۰﴾۔

[Q-13:30]

             इसी प्रकार, हमने आपको एक समुदाय में जिससे पहले बहुत-से समुदाय गुज़र चुके हैं पैग़म्बर बनाकर भेजा है, ताकि आप उन्हें वो संदेश सुनाएँ, जो हमने आपकी ओर वह़्यी द्वारा भेजा है और वे रहमान (अत्यंत कृपाशील) को अस्वीकार करते हैं? आप कह दें वही मेरा रब है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। मैंने उसीपर भरोसा किया है और उसी की ओर मुझे जाना है। “30”


وَمَا نُرۡسِلُ الۡمُرۡسَلِيۡنَ اِلَّا مُبَشِّرِيۡنَ وَمُنۡذِرِيۡنَ‌ۚ فَمَنۡ اٰمَنَ وَاَصۡلَحَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُوۡنَ﴿۴۸﴾۔

[Q-06:48]

             और हम पैग़म्बरों को नहीं भेजते हैं मगर [केवल इसलिए कि] वे (आज्ञाकारियों को) शुभ सूचना दें तथा (अवज्ञाकारियों को) डरायें। तो जो ईमान लाये तथा अपने कर्म सुधार लें, उनके लिए कोई भय नहीं और वह उदासीन भी नहीं होंगे।(48)


وَمَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ رَّسُوۡلٍ اِلَّا لِـيُـطَاعَ بِاِذۡنِ اللّٰهِ ‌ؕ۔

[Q-04:64]

          और हमने जो भी पैग़म्बर भेजा, वो इसलिए, ताकि अल्लाह की अनुमति से, उसकी आज्ञा का पालन किया जाये।


هٰذَا نَذِيۡرٌ مِّنَ النُّذُرِ الۡاُوۡلٰٓى‏ ﴿۵۶﴾۔

[Q-53:56]

            ये  ﷺ भी एक सचेतकर्ता है, प्रथम सचेतकर्ताओं के जैसे। (56)

अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) भी एक रसूल हैं प्रथम रसूलों के समान।

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2. लोगों को उनके सच्चे रब! एकेश्वर की पहचान करना।

اللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الۡحَـىُّ الۡقَيُّوۡمُ ۚ  لَا تَاۡخُذُهٗ سِنَةٌ وَّلَا نَوۡمٌ‌ؕ لَهٗ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الۡاَرۡضِ‌ؕ مَنۡ ذَا الَّذِىۡ يَشۡفَعُ عِنۡدَهٗۤ اِلَّا بِاِذۡنِهٖ‌ؕ يَعۡلَمُ مَا بَيۡنَ اَيۡدِيۡهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ‌ۚ وَلَا يُحِيۡطُوۡنَ بِشَىۡءٍ مِّنۡ عِلۡمِهٖۤ اِلَّا بِمَا شَآءَ ۚ وَسِعَ كُرۡسِيُّهُ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضَ‌‌ۚ وَلَا يَـــُٔوۡدُهٗ حِفۡظُهُمَا ‌ۚ وَ هُوَ الۡعَلِىُّ الۡعَظِيۡمُ‏ ﴿۲۵۵﴾۔

[Q-02:255]

             अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह जीवित तथा नित्य स्थायी है, उसे ऊँघ तथा निद्रा नहीं आती। आकाश और धरती में जो कुछ है, सब उसी का है। कौन है, जो उसके पास उसकी अनुमति के बिना अनुशंसा (सिफ़ारिश) कर सके? जो कुछ इन लोगों के समक्ष और जो कुछ उनसे ओझल है, वह सब जानता है। उसके ज्ञान में से यह उतना ही जान सकते हैं, कि जितना वह चाहे। उसकी कुर्सी आकाश तथा धरती को समाय हुए है। तथा उन की रक्षा उसे नहीं थकाती। वही सर्वोच्च एंवम महान है।


لِـتَتۡلُوَا۟ عَلَيۡهِمُ الَّذِىۡۤ اَوۡحَيۡنَاۤ اِلَيۡكَ وَ هُمۡ يَكۡفُرُوۡنَ بِالرَّحۡمٰنِ‌ؕ قُلۡ هُوَ رَبِّىۡ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَۚ عَلَيۡهِ تَوَكَّلۡتُ وَاِلَيۡهِ مَتَابِ‏ ﴿۳۰﴾۔

[Q-13:30]

          आप उन्हें वो संदेश सुनाएँ, जो हमने आपकी ओर वह़्यी द्वारा भेजा है और वे अत्यंत कृपाशील (रहमान) को अस्वीकार करते हैं? आप कह दें वही मेरा पालनहार है, उसके अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। स्वंम मैंने उसी पर भरोसा किया है और उसी की ओर मुझे जाना है।


قُلۡ اِنَّمَاۤ اَنَا بَشَرٌ مِّثۡلُكُمۡ يُوۡحٰٓى اِلَىَّ اَنَّمَاۤ اِلٰهُكُمۡ اِلٰـهٌ وَّاحِدٌ ۚ  فَمَنۡ كَانَ يَرۡجُوۡالِقَآءَ رَبِّهٖ فَلۡيَـعۡمَلۡ عَمَلًا صَالِحًـاوَّلَايُشۡرِكۡ بِعِبَادَةِ رَبِّهٖۤ اَحَدًا ﴿۱۱۰﴾۔

[Q-18:110]

            आप कह देः मैं केवल तुम जैसा एक मनुष्य पुरुष हूँ, मेरी ओर प्रकाशना (वह़्यी) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य एक ही पूज्य है। अतः, जो अपने पालनहार से मिलने की आशा रखता हो, उसे चाहिए कि सदाचार करे और अपने रब की इबादत (वंदना) में किसी को साझी न बनाये। (110)


الٓرٰ‌ ࣞ  كِتٰبٌ اُحۡكِمَتۡ اٰيٰـتُهٗ ثُمَّ فُصِّلَتۡ مِنۡ لَّدُنۡ حَكِيۡمٍ خَبِيۡرٍۙ‏ (۱)  اَلَّا تَعۡبُدُوۡۤا اِلَّا اللّٰهَ‌ ؕ اِنَّنِىۡ لَـكُمۡ مِّنۡهُ نَذِيۡرٌ وَّبَشِيۡرٌ ۙ‏ (۲)  وَّاَنِ اسۡتَغۡفِرُوۡا رَبَّكُمۡ ثُمَّ تُوۡبُوۡۤا اِلَيۡهِ يُمَتِّعۡكُمۡ مَّتَاعًا حَسَنًا اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّى وَ يُؤۡتِ كُلَّ ذِىۡ فَضۡلٍ فَضۡلَهٗ ‌ؕ وَاِنۡ تَوَلَّوۡا فَاِنِّىۡۤ اَخَافُ عَلَيۡكُمۡ عَذَابَ يَوۡمٍ كَبِيۡرٍ‏ ﴿۳﴾۔

[Q-11:1-2]

            अलिफ, लाम, रा। ये पुस्तक है, जिसकी आयतें सुदृढ़ की गयीं, फिर सविस्तार वर्णित की गयी हैं, उसकी ओर से, जो तत्वज्ञ, सर्वसूचित है।(1) कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करो। वास्तव में, मैं उसकी ओर से तुम्हें सचेत करने वाला तथा शुभ सूचना देने वाला हूँ।(2)

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3. अल्लाह के आदेशों और नियमों को वितरित करना।

يٰۤـاَيُّهَا الرَّسُوۡلُ بَلِّغۡ مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ‌ ؕ وَاِنۡ لَّمۡ تَفۡعَلۡ فَمَا بَلَّغۡتَ رِسٰلَـتَهٗ ؕ‌﴿۶۷﴾۔

[Q-5:67]

               हे पैग़म्बर!  जो कुछ आप पर आपके रब की ओर से उतारा गया है, उसे (सबको) पहुँचा दें और यदि ऐसा नहीं किया, तो (समझें) कि आपने उसका एक भी उपदेश नहीं पहुँचाया। (67)

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4. न्याय और निष्पक्षता स्थापित करना।

لَـقَدۡ اَرۡسَلۡنَا رُسُلَنَا بِالۡبَيِّنٰتِ وَاَنۡزَلۡنَا مَعَهُمُ الۡكِتٰبَ وَالۡمِيۡزَانَ لِيَقُوۡمَ النَّاسُ بِالۡقِسۡطِ ۚ  ﴿۲۵﴾۔

[Q-57:25]

             निःसंदेह, हमने अपने पैग़म्बरों को खुले प्रमाणों के साथ भेजा, तथा उनके साथ पुस्तक तथा तुला (न्याय के नियम), उतारी। ताकि लोग न्याय पर स्थित रहें।“25”

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(ब) पैग़म्बरों का परलोक नेतृत्व।

1. अदालत के दिन इस्लाम की अज्ञानता का बहाना नहीं होगा।

اِنَّاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ بِالۡحَـقِّ بَشِيۡرًا وَّنَذِيۡرًاؕ وَاِنۡ مِّنۡ اُمَّةٍ اِلَّا خَلَا فِيۡهَا نَذِيۡرٌ‏ (۲۴)  وَاِنۡ يُّكَذِّبُوۡكَ فَقَدۡ كَذَّبَ الَّذِيۡنَ مِنۡ قَبۡلِهِمۡ‌ۚ جَآءَتۡهُمۡ رُسُلُهُمۡ بِالۡبَيِّنٰتِ وَبِالزُّبُرِ وَبِالۡكِتٰبِ الۡمُنِيۡرِ‏ ﴿۲۵﴾۔

[Q-35:24-25]

            वास्तव में, हमने आप को सत्य के साथ शुभ सूचक तथा सचेतकर्ता बनाकर भेजा है और कोई ऐसा समुदाय (उम्मत) नहीं, जिसमें कोई सचेतकर्ता न आया हो।(24) और यदि ये आप को झुठलायें, तो इनसे पूर्व के लोगों ने भी झुठलाया है, जिनके पास हमारे पैग़म्बर खुले प्रमाण तथा ग्रंथ और प्रकाशित पुस्तकें लाये।(25)


اِذۡ جَآءَتۡهُمُ الرُّسُلُ مِنۡۢ بَيۡنِ اَيۡدِيۡهِمۡ وَمِنۡ خَلۡفِهِمۡ اَلَّا تَعۡبُدُوۡۤا اِلَّا اللّٰهَ‌ؕ قَالُوۡا لَوۡ شَآءَ رَبُّنَا لَاَنۡزَلَ مَلٰٓٮِٕكَةً فَاِنَّا بِمَاۤ اُرۡسِلۡتُمۡ بِهٖ كٰفِرُوۡنَ‏ ﴿۱۴﴾۔

[Q-41:14]

             जब उनके पास, उनके रसूल, उनके आगे तथा उनके पीछे से आये। [और कहा ] कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (पूजा) न करो। तो उन्होंने कहाः यदि हमारा पालनहार चाहता, तो किसी फ़रिश्ते को उतार देता। अतः, तुम जिस बात के साथ भेजे गये हो, हम उसे नहीं मानते।

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2. लोगों तक अल्लाह का पैगाम पहुंचाने के गवाह पैग़म्बर।

وَاِذۡ اَخَذۡنَا مِنَ النَّبِيّٖنَ مِيۡثَاقَهُمۡ وَمِنۡكَ وَمِنۡ نُّوۡحٍ وَّاِبۡرٰهِيۡمَ وَمُوۡسٰى وَعِيۡسَى ابۡنِ مَرۡيَمَ ࣕ وَاَخَذۡنَا مِنۡهُمۡ مِّيۡثاقًا غَلِيۡظًا ۙ‏ ﴿۷﴾  لِّيَسۡئَلَ الصّٰدِقِيۡنَ عَنۡ صِدۡقِهِمۡ‌ۚ  (۸)۔

[Q-33:7-8]

           तथा (याद करो) जब हमने पैग़म्बरों से उनका वचन लिया तथा आप से और नूह़, और  इब्रीम, और  मूसा, और मर्यम के पुत्र ईसा से, और हमने उनसे दृढ़ वचन लिया।(7) ताकि सचों से उनकी सच्चाई के संबन्ध में प्रश्न करे। (8)


فَكَيۡـفَ اِذَا جِئۡـنَا مِنۡ كُلِّ اُمَّةٍ ۭ بِشَهِيۡدٍ وَّجِئۡـنَا بِكَ عَلٰى هٰٓؤُلَاۤءِ شَهِيۡدًا ؕ‏ ﴿۴۱﴾  يَوۡمَٮِٕذٍ يَّوَدُّ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا وَعَصَوُا الرَّسُوۡلَ لَوۡ تُسَوّٰى بِهِمُ الۡاَرۡضُ ؕ وَلَا يَكۡتُمُوۡنَ اللّٰهَ حَدِيۡـثًا‏ ﴿۴۲﴾۔

[Q-04:41-42]

             तो क्या दशा होगी, जब हम प्रत्येक उम्मत (समुदाय) से एक साक्षी लायेंगे और (हे नबी!) आप को उन पर साक्षी (बनाकर) लाएंगे। उस दिन, जो काफ़िर तथा रसूल के अवज्ञाकारी हो गये, ये कामना करेंगे कि उनके सहित भूमि बराबर कर दी जाये और वे अल्लाह से कोई बात छुपा नहीं सकेंगे।


وَيَوۡمَ نَـبۡعَثُ فِىۡ كُلِّ اُمَّةٍ شَهِيۡدًا عَلَيۡهِمۡ مِّنۡ اَنۡفُسِهِمۡ‌ وَجِئۡنَا بِكَ شَهِيۡدًا عَلٰى هٰٓؤُلَاۤءِ ‌ؕ وَنَزَّلۡنَا عَلَيۡكَ الۡـكِتٰبَ تِبۡيَانًا لِّـكُلِّ شَىۡءٍ وَّ هُدًى وَّرَحۡمَةً وَّبُشۡرٰى لِلۡمُسۡلِمِيۡنَ﴿۸۹﴾۔

[Q-16:89]

            और जिस दिन, हम प्रत्येक समुदाय से एक साक्षी उनके विरुध्द उन्हीं में से खड़ा कर देंगे और (हे नबी!) हम आप को उनपर साक्षी (गवाह) बनायेंगे और हमने आप पर ये पुस्तक (क़ुर्आन) अवतरित की है, जो प्रत्येक विषय का खुला विवरण है, तथा मुस्लिम के लिए मार्गदर्शन, दया तथा शुभ सूचना है।


وَكَذٰلِكَ جَعَلۡنٰكُمۡ اُمَّةً وَّسَطًا لِّتَکُوۡنُوۡا شُهَدَآءَ عَلَى النَّاسِ وَيَكُوۡنَ الرَّسُوۡلُ عَلَيۡكُمۡ شَهِيۡدًا ﴿۱۴۳﴾۔

[Q-02: 143]

             और इसी प्रकार हमने तुम्हें मध्यवर्ती उम्मत (समुदाय) बना दिया; ताकि तुम, सबपर साक्षी  बनो और रसूल  तुमपर साक्षी हों।

ईश्वर नबियों से सवाल करेगा। कि उनसे जो वचन लिया गया था। क्या उसके मुताबिक मेरा संदेश लोगों तक पहुंचाया गया। और पैग़म्बर गवाही देंगे, वास्तव में (बेशक) हमने पहुंचा दिया था। और पूर्व पैग़म्बरों के गवाह अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ तथा उनकी उम्मत होगी। क्योंकि आप ﷺ तथा उम्मत मोहम्मदीया कुरान से पैग़ंबरों के लिए अल्लाह के आदेशों की पुष्टि करेंगे। और धरती पर आखिरी नबी व उम्मत (समुदाय) होने के कारण वह तमाम पैग़ंबरों की उम्मत का अवलोकन करेंगे।


اِنَّاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ شَاهِدًا وَّمُبَشِّرًا وَّنَذِيۡرًا (۸) لِّـتُؤۡمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَ رَسُوۡلِهٖ وَتُعَزِّرُوۡهُ وَتُوَقِّرُوۡهُ ؕ ﴿۹﴾۔

[Q-48:8-9]

              (हे नबी!) हमने भेजा है आपको गवाह बनाकर तथा शुभ सूचना देने एवं सावधान करने वाला बनाकर।(8) ताकि तुम ईमान लाओ अल्लाह एवं उसके रसूल पर और उनकी सहायता करो तथा आदर करो।


اِنَّاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ بِالۡحَـقِّ بَشِيۡرًا وَّنَذِيۡرًاؕ وَاِنۡ مِّنۡ اُمَّةٍ اِلَّا خَلَا فِيۡهَا نَذِيۡرٌ‏ ﴿۲۴﴾۔

[Q-35:24]

            वास्तव में, हमने आपको सत्य के साथ शुभ सूचक तथा सचेतकर्ता बनाकर भेजा है और कोई ऐसी उम्मत (समुदाय) नहीं, कि जिसमें कोई सचेतकर्ता न आया हो।

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3. उम्मतों (समुदायों) के लिए पैग़म्बरों की शिफ़ारिश।

اللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الۡحَـىُّ الۡقَيُّوۡمُ ۚ  لَا تَاۡخُذُهٗ سِنَةٌ وَّلَا نَوۡمٌ‌ؕ لَهٗ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الۡاَرۡضِ‌ؕ مَنۡ ذَا الَّذِىۡ يَشۡفَعُ عِنۡدَهٗۤ اِلَّا بِاِذۡنِهٖ ﴿۲۵۵﴾۔

[Q-02:255]

             अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह जीवित तथा नित्य स्थायी है, उसे ऊँघ तथा निद्रा नहीं आती। आकाश और धरती में जो कुछ है, सब उसी का है। कौन है, जो उसके पास उसकी अनुमति के बिना अनुशंसा (सिफ़ारिश) कर सके?


وَلَا تَنۡفَعُ الشَّفَاعَةُ عِنۡدَهٗۤ اِلَّا لِمَنۡ اَذِنَ لَهٗ ؕ ﴿۲۳﴾۔

[Q-34:23]

तथा अल्लाह के पास (किसी के लिए) शिफ़ारिश लाभ नहीं देगी, परन्तु जिसके लिए वह अनुमति देगा।

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धर्म में बल का प्रयोग नहीं।

لَاۤ اِكۡرَاهَ فِى الدِّيۡنِ‌ ۙ  قَد تَّبَيَّنَ الرُّشۡدُ مِنَ الۡغَىِّ ‌ۚ  فَمَنۡ يَّكۡفُرۡ بِالطَّاغُوۡتِ وَيُؤۡمِنۡۢ بِاللّٰهِ فَقَدِ اسۡتَمۡسَكَ بِالۡعُرۡوَةِ الۡوُثۡقٰىࣗ لَا انْفِصَامَ لَهَا‌‌ ؕ وَاللّٰهُ سَمِيۡعٌ عَلِيۡمٌ‏ ﴿۲۵۶﴾۔

[Q-02:256]

            धर्म में बल का प्रयोग नहीं। सुपथ, कुपथ से अलग हो चुका है। अतः, अब जो अल्लाह के सिवा दूसरे मअबूदों को नकार दे तथा अल्लाह पर ईमान लाये, तो उसने ऐसी मजबूत रस्सी पकड़ ली, जो कभी खण्डित नहीं हो सकती  तथा अल्लाह सब कुछ सुनता-जानता है।


نَحۡنُ اَعۡلَمُ بِمَا يَقُوۡلُوۡنَ‌ وَمَاۤ اَنۡتَ عَلَيۡهِمۡ بِجَـبَّارٍ  ࣞ‌ فَذَكِّرۡ بِالۡقُرۡاٰنِ مَنۡ يَّخَافُ وَعِيۡدِ ﴿۴۵﴾۔

[Q-50:45]

           तथा हम भली-भाँति जानते हैं उसे, जो कुछ वे कह रहे हैं और आप उन्हें बलपूर्वक मनवाने के लिए नहीं हैं। तो आप उन्हे क़ुर्आन द्वारा शिक्षा (नसीहत) दें, जो मेरी यातना (अज़ाब) से डरता हो। (45)

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