2. क़ुरान

Read in…    URDU      ENGLISH

           अल्लाह कहता है कि: क़ुरान एक पूर्ण किताब है। जिसमें दुनिया और परलोक से जुड़े हर सवाल का जवाब है। यह उन लोगों का मार्गदर्शन करता है जो नरम दिल वाले हैं, जो सत्य की तलाश करते हैं, पापी गतिविधियों से दूर रहते हैं, और जो सोचते हैं।

             यह क़ुरान सही और गलत का फैसला करने वाली पुस्तक है। और रहस्यों से भरपूर है। जिनमें से कुछ को वैज्ञानिकों ने अल्लाह की मदद से सुलझा लिया है। जिससे हम स्वयं को विकसित और गोरान्वित समझते हैं।

             निःसंदेह आवश्यकता ही आविष्कार की कल्पना को जन्म देती है। और कल्पना आविष्कार की दृष्टि उपलब्ध कराती है। लेकिन क़ुरान आवश्यकता से पहले [अथार्थ 1500 साल पहले] यह दृष्टि प्रदान करता है। ईश्वर की इच्छा से! भविष्य मे विज्ञान नामक पोस्ट में इन अवधारणा को एकत्र करने का प्रयास करूंगा।

           यह महान क़ुरान अल्लाह की मुख्य पुस्तक “लौह-ए महफूज” में संरक्षित है। जो श्रेष्ठ और पवित्र है।

*********************

رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔

क़ुरान

ذٰ لِكَ الۡڪِتٰبُ لَا رَيۡبَ ۚ فِيۡهِ ۚ هُدًى لِّلۡمُتَّقِيۡنَۙ‏ ﴿۲﴾  الَّذِيۡنَ يُؤۡمِنُوۡنَ بِالۡغَيۡبِ وَ يُقِيۡمُوۡنَ الصَّلٰوةَ وَمِمَّا رَزَقۡنٰهُمۡ يُنۡفِقُوۡنَۙ‏ ﴿۳﴾  وَالَّذِيۡنَ يُؤۡمِنُوۡنَ بِمَۤا اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ وَمَاۤ اُنۡزِلَ مِنۡ قَبۡلِكَۚ وَبِالۡاٰخِرَةِ هُمۡ يُوۡقِنُوۡنَؕ‏ ﴿۴﴾  اُولٰٓٮِٕكَ عَلٰى هُدًى مِّنۡ رَّبِّهِمۡ‌  وَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُفۡلِحُوۡنَ‏ ﴿۵﴾۔

[Q-02:2-5]

ये पुस्तक (क़ुरान) है, इसमें कोई संदेह नहीं कि यह उन लोगों को सत्य मार्ग दर्शाती है।

  • जो (अल्लाहसे) डरते हैं। जो ग़ैब [परोक्ष] पर ईमान (विश्वास) रखते हैं तथा नमाज़ की स्थापना करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से दान करते हैं।
  • जो आप (नबी ﷺ) पर उतारी गयी (क़ुरान) तथा आपसे पूर्व उतारी गयी (पुस्तकों) पर ईमान रखते हैं तथा आख़िरत (परलोक) पर भी विश्वास रखते हैं।
  • जो अपने पालनहार की बताई सीधी डगर पर हैं और जो सफल होने वाले हैं। “2-5”

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

تَنۡزِيۡلٌ مِّنَ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِ‌ۚ‏ ﴿۲﴾  كِتٰبٌ فُصِّلَتۡ اٰيٰتُهٗ قُرۡاٰنًا عَرَبِيًّا لِّقَوۡمٍ يَّعۡلَمُوۡنَۙ‏ ﴿۳﴾  بَشِيۡرًا وَّنَذِيۡرًا‌ ۚ فَاَعۡرَضَ اَكۡثَرُهُمۡ فَهُمۡ لَا يَسۡمَعُوۡنَ‏ ﴿۴﴾۔

[Q-41:2-4]

           यह पुस्तक (क़ुरान ) अत्यंत कृपाशील, दयावान् की ओर से अवतरित है।2” अरबी  [भाषा में] है जिसकी आयतें सविस्तार वर्णित की गई हैं। उनके लिए, जो ज्ञान रखते हैं।3” यह शुभ सूचना देने वाला तथा सचेत करने वाला है फिर भी मुँह फेर लिया है उनमें से अधिक्तर ने और सुन नहीं रहे हैं।4”

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

الٓرٰ‌ ࣞ  كِتٰبٌ اُحۡكِمَتۡ اٰيٰـتُهٗ ثُمَّ فُصِّلَتۡ مِنۡ لَّدُنۡ حَكِيۡمٍ خَبِيۡرٍۙ‏ ﴿۱﴾  اَلَّا تَعۡبُدُوۡۤا اِلَّا اللّٰهَ‌ ؕ اِنَّنِىۡ لَـكُمۡ مِّنۡهُ نَذِيۡرٌ وَّبَشِيۡرٌ ۙ‏ ﴿۲﴾  وَّاَنِ اسۡتَغۡفِرُوۡا رَبَّكُمۡ ثُمَّ تُوۡبُوۡۤا اِلَيۡهِ يُمَتِّعۡكُمۡ مَّتَاعًا حَسَنًا اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّى وَ يُؤۡتِ كُلَّ ذِىۡ فَضۡلٍ فَضۡلَهٗ ‌ؕ وَاِنۡ تَوَلَّوۡا فَاِنِّىۡۤ اَخَافُ عَلَيۡكُمۡ عَذَابَ يَوۡمٍ كَبِيۡرٍ﴿۳﴾۔

[Q-11:1-3]

           अलिफ, लाम, रा। ये पुस्तक है, जिसकी आयतें सुदृढ़ की गयीं, फिर सविस्तार वर्णित की गयी हैं, उसकी ओर से, जो तत्वज्ञ, सर्वसूचित है। (1) कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करो। वास्तव में, मैं उसकी ओर से तुम्हें सचेत करने वाला तथा शुभ सूचना देने वाला हूँ। (2) और ये है कि अपने पालनहार से क्षमा याचना करो, फिर उसी की ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वह तुम्हें एक निर्धारित अवधि तक अच्छा लाभ पहुँचाएगा, और प्रत्येक श्रेष्ठ को उसकी श्रेष्ठता प्रदान करेगा, और यदि तुम मुँह फेरोगे, तो मैं तुमपर एक बड़े दिन की यातना से डरता हूँ। (3)

~~~~~~~~~~~~~~~~~

اَفَمَنۡ يَّعۡلَمُ اَنَّمَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ الۡحَـقُّ كَمَنۡ هُوَ اَعۡمٰىؕ اِنَّمَا يَتَذَكَّرُ اُولُوا الۡاَلۡبَابِۙ‏ ﴿۱۹﴾۔

[Q-13:19]

           तो क्या, जो जानता है कि आपके रब की ओर से, जो (क़ुरान)  आप पर उतारा गया है, वह सत्य है, उस व्यक्ति के समान हो सकता है जो अन्धा है? वास्तव में, बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं। (19)

—————————–

क़ुरान का लेलातुल क़द्र मे नाज़िल होना।

وَالۡكِتٰبِ الۡمُبِيۡنِ ۙ ﴿۲﴾  اِنَّاۤ اَنۡزَلۡنٰهُ فِىۡ لَيۡلَةٍ مُّبٰـرَكَةٍ‌ اِنَّا كُنَّا مُنۡذِرِيۡنَ‏ ﴿۳﴾  فِيۡهَا يُفۡرَقُ كُلُّ اَمۡرٍ حَكِيۡمٍ ۙ‏ ﴿۴﴾  اَمۡرًا مِّنۡ عِنۡدِنَا‌ؕ اِنَّا كُنَّا مُرۡسِلِيۡنَ ‌ۚ‏ ﴿۵﴾  رَحۡمَةً مِّنۡ رَّبِّكَ‌ؕ اِنَّهٗ هُوَ السَّمِيۡعُ الۡعَلِيۡمُ ۙ‏ ﴿۶﴾۔

[Q-44:2-6]

       शपथ है इस खुली पुस्तक की। (2)  वास्तव मे हमने ही इसे  एक शुभ रात्रि [“लैलतुल क़द्र”] में उतारा है। वास्तव में, हम सावधान करने वाले हैं। (3) उसी (रात्रि) में निर्णय किया जाता है, प्रत्येक सुदृढ़ कर्म का। (4) ये आदेश हमारे पास से है। वास्तव मे हम ही [रसूलों को] भेजने वाले हैं। (5) जो  आपके रब की रहमत (दया) है।  वास्तव में, वह सब कुछ सुनने-जानने वाला है। (6)

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

اِنَّاۤ اَنۡزَلۡنٰهُ فِىۡ لَيۡلَةِ الۡقَدۡر ِۚ‏ (۱)  وَمَاۤ اَدۡرٰٮكَ مَا لَيۡلَةُ الۡقَدۡرِؕ‏ (۲)  لَيۡلَةُ الۡقَدۡرِ ۙ خَيۡرٌ مِّنۡ اَلۡفِ شَهۡرٍ ؕ‏ (۳)  تَنَزَّلُ الۡمَلٰٓٮِٕكَةُ وَالرُّوۡحُ فِيۡهَا بِاِذۡنِ رَبِّهِمۡ‌ۚ مِّنۡ كُلِّ اَمۡرٍ ۙ‏ (۴)  سَلٰمٌ ࣞ هِىَ حَتّٰى مَطۡلَعِ الۡفَجۡرِ‏ (۵) ۔

(Q-97:1-5).

         निःसंदेह, हमने इस (क़ुरान) को ‘लैलतुल क़द्र’ (सम्मानित रात्रि) में उतारा। (1) और तुम क्या जानो कि वह ‘लैलतुल क़द्र’ (सम्मानित रात्रि) क्या है? (2) लैलतुल क़द्र हज़ार मास से उत्तम है। (3) उसमें  फ़रिश्ते तथा रूह़ (जिब्रील) अपने पालनहार की आज्ञा से हर काम को पूर्ण करने के लिए उतरते हैं। (4) वह सलामती की रात्रि है, जो फज्र (भोर) होने तक रहती है। (5)

————————————

क़ुरान लौह़े मह़फ़ूज़ (दिव्य पुस्तक) में सुरक्षित।

بَلۡ هُوَ قُرۡاٰنٌ مَّجِيۡدٌ ۙ‏ ﴿۲۱﴾  فِىۡ لَوۡحٍ مَّحۡفُوۡظٍ ﴿۲۲﴾۔

[Q-85:21-22]

        बल्कि, यह वह गौरव वाला क़ुरान है। (21) जो लौह़े मह़फ़ूज़ (दिव्य पुस्तक) में सुरक्षित है। (22)

~~~~~~~~~~~~~~~~~~

 فَلَاۤ اُقۡسِمُ بِمَوٰقِعِ النُّجُوۡمِۙ‏‏ ﴿۷۵﴾    وَاِنَّهٗ لَقَسَمٌ لَّوۡ تَعۡلَمُوۡنَ عَظِيۡمٌۙ‏ ﴿۷۶﴾  اِنَّهٗ لَـقُرۡاٰنٌ كَرِيۡمٌۙ‏ (۷۷)  فِىۡ كِتٰبٍ مَّكۡنُوۡنٍۙ‏ ﴿۷۸﴾    لَّا يَمَسُّهٗۤ اِلَّا الۡمُطَهَّرُوۡنَؕ‏ ﴿۷۹﴾    تَنۡزِيۡلٌ مِّنۡ رَّبِّ الۡعٰلَمِيۡنَ‏ ﴿۸۰﴾۔  

[Q-56:75-80]

           मैं शपथ लेता हूँ सितारों के स्थानों की!(75) और ये निश्चय एक बड़ी शपथ है, यदि तुम समझो। (76) वास्तव में, ये आदरणीय क़ुरान है। (77) सुरक्षित पुस्तक [‘लौह़े मह़फ़ूज़’] में सुरक्षित है। (78) इसे पवित्र लोग (फ़रिश्तें) ही छूते हैं ।(79) अवतरित किया गया है सर्वलोक के पालनहार की ओर से। (80)

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

كَلَّاۤ اِنَّهَا تَذۡكِرَةٌ ۚ‏ ﴿۱۱﴾  فَمَنۡ شَآءَ ذَكَرَهٗ‌ۘ‏ ﴿۱۲﴾  فِىۡ صُحُفٍ مُّكَرَّمَةٍۙ‏ ﴿۱۳﴾ مَّرۡفُوۡعَةٍ مُّطَهَّرَةٍ ۭۙ‏ ﴿۱۴﴾  بِاَيۡدِىۡ سَفَرَةٍۙ‏ ﴿۱۵﴾  كِرَامٍۢ بَرَرَةٍؕ‏ ﴿۱۶﴾۔

[Q-80:11-16]

           कदापि नही, ये (क़ुरान) एक शिक्षा है। (11) अतः, जो चाहे स्मरण (ग्रहण)  करे। (12) माननीय शास्त्र में (लूहे महफ़ूज मे लिखा हुआ) है। (13) जो ऊँचे किरदार तथा पवित्र (14) लेखकों (फ़रिश्तों) के हाथों में है। (15) जो सम्मानित और आदरणीय हैं। (16)

इन आयतों में क़ुरान की महानता को बताया गया है कि यह एक स्मृति (याद दहानी) है। किसी पर थोपने के लिये नहीं आया है। बल्कि वह तो फ़रिश्तों के हाथों में स्वर्ग में एक पवित्र शास्त्र के अन्दर सूरक्षित है। और वहीं से वह (क़ुरान) इस संसार में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतारा जा रहा है।

——————————-

क़ुरान का प्रभाव एंवम लक्ष्य।

اِنَّا عَرَضۡنَا الۡاَمَانَةَ عَلَى السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ وَالۡجِبَالِ فَاَبَيۡنَ اَنۡ يَّحۡمِلۡنَهَا وَاَشۡفَقۡنَ مِنۡهَا وَ حَمَلَهَا الۡاِنۡسَانُ ؕ  اِنَّهٗ كَانَ ظَلُوۡمًا جَهُوۡلًا ۙ‏ ﴿۷۲﴾  لِّيُعَذِّبَ اللّٰهُ الۡمُنٰفِقِيۡنَ وَالۡمُنٰفِقٰتِ وَالۡمُشۡرِكِيۡنَ وَالۡمُشۡرِكٰتِ وَيَتُوۡبَ اللّٰهُ عَلَى الۡمُؤۡمِنِيۡنَ وَالۡمُؤۡمِنٰتِؕ وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوۡرًا رَّحِيۡمًا ﴿۷۳﴾۔

[Q-33:72-73]

           हमने प्रस्तुत किया अमानत (क़ुरान और उसके नियम) को आकाशों, धरती एवं पर्वतों पर, तो उन सबने उसका भार उठाने से इन्कार कर दिया तथा उससे डर गये। किन्तु,  मनुष्य ने उसका भार ले लिया । वास्तव में, वह बड़ा अत्याचारी व अज्ञानी है। (72) ( ये अमानत का भार इसलिए दिया है) ताकि अल्लाह दण्ड दे मुनाफ़िक़ पुरुष तथा मुनाफ़िक़ स्त्रियों को और मुश्रिक पुरुष तथा स्त्रियों को तथा क्षमा कर दे अल्लाह ईमान वालों तथा ईमान वालियों को और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् (माफ करने वाला रहीम) है। (73)

~~~~~~~~~~~~~~~~~

لَوۡ اَنۡزَلۡنَا هٰذَا الۡقُرۡاٰنَ عَلٰى جَبَلٍ لَّرَاَيۡتَهٗ خَاشِعًا مُّتَصَدِّعًا مِّنۡ خَشۡيَةِ اللّٰهِ‌ؕ وَتِلۡكَ الۡاَمۡثَالُ نَضۡرِبُهَا لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ يَتَفَكَّرُوۡنَ‏ ﴿۲۱﴾۔

[Q-59:21]

           यदि हम इस क़ुरान को किसी पर्वत पर अवतरित करते, तो आप उसे देखते कि झुका जा रहा है तथा अल्लाह के भय से कण-कण होता जा रहा है, और इन उदाहरणों का वर्णन हम लोगों के लिए कर रहे हैं, ताकि वे सोच-विचार करें। (21)

——————————–

क़ुरान ह0 जिब्राइल द्वारा वहयी की गई पुस्तक। 

فَلَاۤ اُقۡسِمُ بِالۡخُنَّسِۙ‏ ﴿۱۵﴾  الۡجَوَارِ الۡكُنَّسِۙ‏ ﴿۱۶﴾  وَالَّيۡلِ اِذَا عَسۡعَسَۙ‏ ﴿۱۷﴾  وَالصُّبۡحِ اِذَا تَنَفَّسَۙ‏ ﴿۱۸﴾  اِنَّهٗ لَقَوۡلُ رَسُوۡلٍ كَرِيۡمٍۙ‏ ﴿۱۹﴾  ذِىۡ قُوَّةٍ عِنۡدَ ذِى الۡعَرۡشِ مَكِيۡنٍۙ‏ ﴿۲۰﴾  مُّطَاعٍ ثَمَّ اَمِيۡنٍؕ‏ ﴿۲۱﴾  وَ مَا صَاحِبُكُمۡ بِمَجۡنُوۡنٍ‌ۚ‏ ﴿۲۲﴾  وَلَقَدۡ رَاٰهُ بِالۡاُفُقِ الۡمُبِيۡنِ‌ۚ‏ ﴿۲۳﴾  وَمَا هُوَ عَلَى الۡغَيۡبِ بِضَنِيۡنٍ‌ۚ‏ ﴿۲۴﴾  وَمَا هُوَ بِقَوۡلِ شَيۡطٰنٍ رَّجِيۡمٍۙ‏ ﴿۲۵﴾  فَاَيۡنَ تَذۡهَبُوۡنَؕ‏ ﴿۲۶﴾  اِنۡ هُوَ اِلَّا ذِكۡرٌ لِّلۡعٰلَمِيۡنَۙ‏ ﴿۲۷﴾  لِمَنۡ شَآءَ مِنۡكُمۡ اَنۡ يَّسۡتَقِيۡمَؕ‏ ﴿۲۸﴾۔

 [Q-81:15-28].

          शपथ है उन तारों की, जो पीछे हट जाते हैं।(15) जो चलते-चलते छुप जाते हैं।(16) और रात की (शपथ), जब समाप्त होने लगती है।(17) तथा भोर की, जब उजाला होने लगता है।(18) ये (क़ुरान)  एक मान्यवर स्वर्ग दूत [जिब्राइल] का लाया हुआ कथन है।(19) जो शक्तिशाली, अर्श (सिंहासन) के मालिक के पास उच्च पद वाला है।(20) सरदार और बड़ा अमानतदार है।(21)और तुम्हारा साथी ﷺ उन्मत (दीवाना) नहीं है।(22) उसने उसे आकाश में खुले रूप से देखा है।(23) वह ﷺ परोक्ष (ग़ैब) की बात बताने में प्रलोभी नहीं है।(24) ये धिक्कारी शैतान का कथन नहीं है।(25) फिर तुम कहाँ जा रहे हो?(26) ये संसार वासियों के लिए एक नसीहत है।(27) तुममें से उसके लिए, जो सुधरना चाहता हो।(28)

~~~~~~~~~~~~~~~~~~

فَلَاۤ اُقۡسِمُ بِمَا تُبۡصِرُوۡنَۙ‏ ﴿۳۸﴾  وَمَا لَا تُبۡصِرُوۡنَۙ‏ ﴿۳۹﴾  اِنَّهٗ لَقَوۡلُ رَسُوۡلٍ كَرِيۡمٍۚ ۙ‏ ﴿۴۰﴾  وَّمَا هُوَ بِقَوۡلِ شَاعِرٍ‌ؕ قَلِيۡلًا مَّا تُؤۡمِنُوۡنَۙ‏ ﴿۴۱﴾  وَلَا بِقَوۡلِ كَاهِنٍ‌ؕ قَلِيۡلًا مَّا تَذَكَّرُوۡنَؕ‏ ﴿۴۲﴾  تَنۡزِيۡلٌ مِّنۡ رَّبِّ الۡعٰلَمِيۡنَ‏ ﴿۴۳﴾  وَلَوۡ تَقَوَّلَ عَلَيۡنَا بَعۡضَ الۡاَقَاوِيۡلِۙ‏ ﴿۴۴﴾  لَاَخَذۡنَا مِنۡهُ بِالۡيَمِيۡنِۙ‏ ﴿۴۵﴾  ثُمَّ لَقَطَعۡنَا مِنۡهُ الۡوَتِيۡنَ  ۖ‏ ﴿۴۶﴾  فَمَا مِنۡكُمۡ مِّنۡ اَحَدٍ عَنۡهُ حَاجِزِيۡنَ‏ ﴿۴۷﴾  وَاِنَّهٗ لَتَذۡكِرَةٌ لِّلۡمُتَّقِيۡنَ‏ ﴿۴۸﴾۔

[Q-69:38-48]

          तो मैं शपथ लेता हूँ उसकी, जो तुम देखते हो।(38) तथा जो तुम नहीं देखते हो।(39) निःसंदेह, ये (क़ुरान) बुजुर्ग फ़रिश्ते (जिब्राइल) का लाया हुआ कलाम है।(40) और यह किसी कवि का कथन नहीं है। तुम लोग कम ही विश्वास करते हो।(41) और न वह किसी काहिन (पंडित) का कथन है, तुम कम ही शिक्षा ग्रहण करते हो।(42) सर्वलोक के पालनहार का उतारा हुआ है।(43) और यदि इसने (नबी ﷺ ने)  हमपर कोई बात बनाई  होती।(44) तो अवश्य हम उसका सीधा हाथ पकड़ लेते।(45) फिर अवश्य काट देते उसके गले की रग।(46) फिर तुममें से कोई (मुझे) उससे रोकने वाला न होता।(47) निःसंदेह, ये एक शिक्षा (नसीहत) है सदाचारियों (नेक लोगों) के लिए।(48)

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

وَاِنَّهٗ لَـتَنۡزِيۡلُ رَبِّ الۡعٰلَمِيۡنَؕ‏ ﴿۱۹۲﴾  نَزَلَ بِهِ الرُّوۡحُ الۡاَمِيۡنُۙ‏ ﴿۱۹۳﴾ عَلٰى قَلۡبِكَ لِتَكُوۡنَ مِنَ الۡمُنۡذِرِيۡنَۙ‏ ﴿۱۹۴﴾  بِلِسَانٍ عَرَبِىٍّ مُّبِيۡنٍؕ‏ ﴿۱۹۵﴾   وَاِنَّهٗ لَفِىۡ زُبُرِ الۡاَوَّلِيۡنَ‏ ﴿۱۹۶﴾۔

[Q-26:192-196].

           और निःसंदेह, ये (क़ुरान) पूरे विश्व के पालनहार का उतारा हुआ है। (192) इसे लेकर रूह़ुल अमीन [ह० जिब्राइल अलेहीस-सलाम] आए।(193) आपके दिल पर, ताकि आप सावधान करने वालों में से हों।(194) खुली अरबी भाषा में।(195) तथा इसकी चर्चा अगले रसूलों की पुस्तकों में  [भी]  है।(196)

——————————-

क़ुरान का एक साथ नाज़िल होना।

وَقَالَ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا لَوۡلَا نُزِّلَ عَلَيۡهِ الۡـقُرۡاٰنُ جُمۡلَةً وَّاحِدَةً‌  ‌ۚ كَذٰلِكَ ‌ۚ لِنُثَبِّتَ بِهٖ فُـؤَادَكَ‌ وَرَتَّلۡنٰهُ تَرۡتِيۡلًا‏ ﴿۳۲﴾  وَلَا يَاۡتُوۡنَكَ بِمَثَلٍ اِلَّا جِئۡنٰكَ بِالۡحَـقِّ وَاَحۡسَنَ تَفۡسِيۡرًا ؕ‏ ﴿۳۳﴾۔

[Q-25:32-33]

          तथा काफ़िरों ने कहाः क्यों नहीं आपपर पूरा क़ुरान एक ही बार  मे उतार दिया गया? इस प्रकार इसलिए किया गया ताकि हम आपके दिल को दृढ़ता प्रदान करें और इसीलिए हमने इसे क्रमशः प्रस्तुत किया है।(32) [और इसलिए भी कि] वे लोग जब आपके पास कोई उदाहरण (प्रश्न) लायें, तो हम आपके पास उसका सही उत्तर उत्तम व्याख्या भेज दें।(33)

—————————–

क़ुरान पूरे संसार के लिये शिक्षा।

وَمَا هُوَ اِلَّا ذِكۡرٌ لِّلۡعٰلَمِيۡنَ‏ ﴿۵۲﴾۔

[Q-68:52]

           जबकि ये क़ुरान पूरे संसार वासियों के लिए नसीहत (शिक्षा) है।(52)

~~~~~~~~~~~~~~~~

وَهٰذَا كِتٰبٌ اَنۡزَلۡنٰهُ مُبٰرَكٌ مُّصَدِّقُ الَّذِىۡ بَيۡنَ يَدَيۡهِ وَلِتُنۡذِرَ اُمَّ الۡقُرٰى وَمَنۡ حَوۡلَهَا‌ ؕ وَالَّذِيۡنَ يُؤۡمِنُوۡنَ بِالۡاٰخِرَةِ يُؤۡمِنُوۡنَ بِهٖ‌ وَهُمۡ عَلٰى صَلَاتِهِمۡ يُحَافِظُوۡنَ‏ ﴿۹۲﴾۔

[Q-06:92]

         तथा ये (क़ुरान) एक पुस्तक है, जिसे हमने  उतारा है। जो शुभ तथा अपने से पूर्व (की पुस्तकों) को सच बताने वाली है, ताकि आप “उम्मुल क़ुरा” (मक्का नगर) तथा उसके चतुर्दिक (आस-पास) के निवासियों को सचेत  करें तथा जो परलोक के प्रति विश्वास रखते हैं, वही इसपर ईमान लाते हैं और वही अपनी नमाज़ों का पालन करते  हैं।92. 

~~~~~~~~~~~~~~~~~~

 قُلۡ اَىُّ شَىۡءٍ اَكۡبَرُ شَهَادَةً ؕ  قُلِ اللّٰهُ ࣞ  شَهِيۡدٌ ۢ بَيۡنِىۡ وَبَيۡنَكُمۡ‌ ۚ وَاُوۡحِىَ اِلَىَّ هٰذَا الۡـقُرۡاٰنُ لِاُنۡذِرَكُمۡ بِهٖ وَمَنۡۢ بَلَغَ‌ ؕ ﴿۱۹﴾۔

[Q-06:19].

          (हे नबी!) इन मुश्रिकों से पूछो कि किसकी गवाही सबसे बढ़ कर है? आप कह दें कि अल्लाह मेरे तथा तुम्हारे बीच गवाह है तथा मेरी ओर ये क़ुरान वह़्यी  (प्रकाशना)  द्वारा भेजा गया है, ताकि मैं तुम्हें सावधान करूँ  तथा उसे, जिस तक ये पहुँचे। 19.

———————————-

क़ुरान अल्लाह की निर्णायक पुस्तक।

وَالسَّمَآءِ ذَاتِ الرَّجۡعِۙ‏ ﴿۱۱﴾  وَالۡاَرۡضِ ذَاتِ الصَّدۡعِۙ‏ ﴿۱۲﴾   اِنَّهٗ لَقَوۡلٌ فَصۡلٌۙ‏ ﴿۱۳﴾  وَّمَا هُوَ بِالۡهَزۡلِؕ‏ ﴿۱۴﴾۔

[Q-86:11-14]

           शपथ है आकाश की, जो बरसता है!(11) तथा फटने वाली धरती की।(12) वास्तव में, ये (क़ुरान) दो-टूक निर्णय (फ़ैसला) करने वाला है।(13)और यह  हँसी की बात नहीं।(14)

~~~~~~~~~~~~~~~~~~

حٰمٓ‌ ۚ‏ ﴿۱﴾  تَنۡزِيۡلُ الۡكِتٰبِ مِنَ اللّٰهِ الۡعَزِيۡزِ الۡعَلِيۡمِۙ‏ ﴿۲﴾  غَافِرِ الذَّنۡۢبِ وَقَابِلِ التَّوۡبِ شَدِيۡدِ الۡعِقَابِ ذِى الطَّوۡلِؕ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَؕ اِلَيۡهِ الۡمَصِيۡرُ‏ ﴿۳﴾  مَا يُجَادِلُ فِىۡۤ اٰيٰتِ اللّٰهِ اِلَّا الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا فَلَا يَغۡرُرۡكَ تَقَلُّبُهُمۡ فِى الۡبِلَادِ‏ ﴿۴﴾۔

[Q-40:1-4].

             ह़ा मीम।(1) इस पुस्तक का उतरना अल्लाह की ओर से है, जो सब चीज़ों और गुणों को जानने वाला है।(2) पाप क्षमा करने वाला, तौबा स्वीकार करने वाला, क्षमायाचना का स्वीकारी, कड़ी यातना देने वाला, क़ुदरत वाला, जिसके सिवा कोई ( सच्चा) वंदनीय (पूज्य) नहीं। उसी की ओर (सबको)  जाना है।(3)  [सुशिक्षित] अल्लाह की आयतों में नहीं झगड़ते हैं सिवाय उन लोगों के, जो काफ़िर हो गये। अतः देशों में उनकी यातायात आपको धोखे में न डाल दे।(4)

~~~~~~~~~~~~~~~~~

 اِلَّا تَذۡكِرَةً لِّمَنۡ يَّخۡشٰى ۙ‏ ﴿۳﴾  تَنۡزِيۡلًا مِّمَّنۡ خَلَقَ الۡاَرۡضَ وَالسَّمٰوٰتِ الۡعُلَى ؕ‏ ﴿۴﴾  اَلرَّحۡمٰنُ عَلَى الۡعَرۡشِ اسۡتَوٰى‏ ﴿۵﴾۔

 [Q-20:3-5].

            [क़ुरान] उस मनुष्य के लिए शिक्षा है, जो डरता हो। [3] उस की ओर से नाज़िल (उतरा) हुआ है, जिसने धरती तथा उच्च आकाशों की उत्पत्ति की है । [4] जो अत्यंत रहमान (कृपाशील) व  अर्श पर स्थिर है। [5]

~~~~~~~~~~~~~~~~~

وَيَرَى الَّذِيۡنَ اُوۡتُوا الۡعِلۡمَ الَّذِىۡۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ هُوَ الۡحَـقَّ ۙ وَيَهۡدِىۡۤ اِلٰى صِرَاطِ الۡعَزِيۡزِ الۡحَمِيۡدِ‏ ﴿۶﴾۔

[Q-34:06] 

            तथा जिन लोगों को ज्ञान दिया गया है, वोह जानते हैं कि जो आपके पालनहार की ओर से आपकी ओर अवतरित किया गया है। वह [क़ुरान] सत्य है तथा अति प्रभुत्वशाली, प्रशंसित (ईश्वर)का सुपथ दर्शाता है।06”

~~~~~~~~~~~~~~~~~

اِنَّ هٰذِهٖ تَذۡكِرَةٌ ‌ ۚ فَمَنۡ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰى رَۖبِّهٖ سَبِيۡلًا ﴿۱۹﴾۔

[Q-73:19].

          वास्तव में, ये (क़ुरान ) एक नसीहत (शिक्षा) है। तो जो चाहे, अपने रब की ओर आने की राह बना ले। [19]

———————————

क़ुरान जैसी दूसरी प्रतिलिपि नहीं।

قُلْ لَّٮِٕنِ اجۡتَمَعَتِ الۡاِنۡسُ وَالۡجِنُّ عَلٰٓى اَنۡ يَّاۡتُوۡا بِمِثۡلِ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ لَا يَاۡتُوۡنَ بِمِثۡلِهٖ وَلَوۡ كَانَ بَعۡضُهُمۡ لِبَعۡضٍ ظَهِيۡرًا‏ ﴿۸۸﴾  وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا لِلنَّاسِ فِىۡ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ مِنۡ كُلِّ مَثَلٍ ؗ فَاَبٰٓى اَكۡثَرُ النَّاسِ اِلَّا كُفُوۡرًا‏ ﴿۸۹﴾۔

[Q-17:88-89]

           आप कह दें: यदि सब मनुष्य तथा जिन्न इसपर एकत्र हो जायें कि इस क़ुरान के समान ले आयेंगे, तो इसके समान नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे के समर्थक ही क्यों न हो जायें!(88) और हमने लोगों के लिए इस क़ुरान में प्रत्येक उदाहरण विविध शैली में वर्णित किया है, फिर भी अधिक्तर लोग अस्वीकार किये बिना न रहे। (89)

——————————

क़ुरान जीवित लोगों के लिये है।

وَمَا عَلَّمۡنٰهُ الشِّعۡرَ وَمَا يَنۡۢبَغِىۡ لَهٗؕ اِنۡ هُوَ اِلَّا ذِكۡرٌ وَّقُرۡاٰنٌ مُّبِيۡنٌۙ‏ ﴿۶۹﴾   لِّيُنۡذِرَ مَنۡ كَانَ حَيًّا وَّيَحِقَّ الۡقَوۡلُ عَلَى الۡكٰفِرِيۡنَ‏ ﴿۷۰﴾۔

[Q-36:69-70]

           और हमने नबी को काव्य नहीं सिखाया और न ये उनके लिए योग्य है। ये तो मात्र, एक शिक्षा तथा खुला क़ुरान है।69”  ताकि वो जो जीवित है उसे इससे सचेत करें,  तथा काफ़िरों पर यातना की बात सिध्द हो जाये।70”

——————————

क़ुरान की शिक्षाएं। 

يٰۤـاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا كُوۡنُوۡا قَوَّا امِيۡنَ لِلّٰهِ شُهَدَآءَ بِالۡقِسۡطِ‌ ؗ وَلَا يَجۡرِمَنَّكُمۡ شَنَاٰنُ قَوۡمٍ عَلٰٓى اَ لَّا تَعۡدِلُوۡا‌ ؕ اِعۡدِلُوۡا  ࣞ هُوَ اَقۡرَبُ لِلتَّقۡوٰى‌ ؗ وَاتَّقُوا اللّٰهَ‌ ؕ اِنَّ اللّٰهَ خَبِيۡرٌۢ بِمَا تَعۡمَلُوۡنَ‏ (۸) وَعَدَ اللّٰهُ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ‌ ۙ لَهُمۡ مَّغۡفِرَةٌ وَّاَجۡرٌ عَظِيۡمٌ‏ ﴿۹﴾۔

[Q-05:8-9].

           हे ईमान वालो! अल्लाह के लिए न्याय के साथ साक्ष्य देने के लिये खड़े रहो तथा किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इसपर न उभार दे कि न्याय न करो। इंसाफ करो। यह बात अल्लाह से अधिक समीप है। निःसंदेह तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उससे भली-भाँति सूचित है।(8) जो लोग ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, तो उनसे अल्लाह का वचन है कि उनके लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।(9)

~~~~~~~~~~~~~~~~~

الٓمّٓۚ‏ (۱)  ذٰلِكَ الۡڪِتٰبُ لَا رَيۡبَۛ ۚ فِيۡهِۛ ۚ هُدًى لِّلۡمُتَّقِيۡنَۙ‏ (۲)  الَّذِيۡنَ يُؤۡمِنُوۡنَ بِالۡغَيۡبِ وَ يُقِيۡمُوۡنَ الصَّلٰوةَ وَمِمَّا رَزَقۡنٰهُمۡ يُنۡفِقُوۡنَۙ‏ (۳)  وَالَّذِيۡنَ يُؤۡمِنُوۡنَ بِمَۤا اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ وَمَاۤ اُنۡزِلَ مِنۡ قَبۡلِكَۚ وَبِالۡاٰخِرَةِ هُمۡ يُوۡقِنُوۡنَؕ‏ (۴)  اُولٰٓٮِٕكَ عَلٰى هُدًى مِّنۡ رَّبِّهِمۡ‌ ۖ وَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُفۡلِحُوۡنَ‏ (۵)

[Q-02:2-5].

            ये पुस्तक है, जिसमें कोई संशय (संदेह) नहीं, सीधी राह (डगर) दिखाने के लिए है, उनको जो (अल्लाह से) डरते हैं। [2] जो ग़ैब (परोक्ष) पर ईमान (विश्वास) रखते हैं तथा नमाज़ की स्थापना करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से दान करते हैं। [3] तथा जो आप  पर उतारी गयी (पुस्तक क़ुरान) तथा आपसे पूर्व उतारी गयी (पुस्तकों)  पर ईमान रखते हैं तथा आख़िरत (परलोक)  पर भी विश्वास रखते हैं। [4] वही अपने पालनहार की बताई सीधी डगर पर हैं तथा वही सफल होंगे। [5]

~~~~~~~~~~~~~~~~~~

لَيۡسَ الۡبِرَّ اَنۡ تُوَلُّوۡا وُجُوۡهَكُمۡ قِبَلَ الۡمَشۡرِقِ وَ الۡمَغۡرِبِ وَلٰـكِنَّ الۡبِرَّ مَنۡ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَالۡيَوۡمِ الۡاٰخِرِ وَالۡمَلٰٓٮِٕکَةِ وَالۡكِتٰبِ وَالنَّبِيّٖنَ ‌ۚ وَاٰتَى الۡمَالَ عَلٰى حُبِّهٖ ذَوِى الۡقُرۡبٰى وَالۡيَتٰمٰى وَالۡمَسٰكِيۡنَ وَابۡنَ السَّبِيۡلِۙ وَالسَّآٮِٕلِيۡنَ وَفِى الرِّقَابِ‌ۚ وَاَقَامَ الصَّلٰوةَ وَاٰتَى الزَّکٰوةَ ۚ   وَالۡمُوۡفُوۡنَ بِعَهۡدِهِمۡ اِذَا عٰهَدُوۡا ۚ   وَالصّٰبِرِيۡنَ فِى الۡبَاۡسَآءِ وَالضَّرَّآءِ وَحِيۡنَ الۡبَاۡسِؕ اُولٰٓٮِٕكَ الَّذِيۡنَ صَدَقُوۡا  ؕ  وَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُتَّقُوۡنَ‏ ﴿۱۷۷﴾۔

[Q-02:177].

            भलाई ये नहीं है कि तुम अपना मुख पूर्व अथवा पश्चिम की ओर फेर लो! भला कर्म तो उसका है, जो अल्लाह और अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लाया तथा फ़रिश्तों, सब पुस्तकों, और  नबियों पर (भी ईमान लाया), धन का मोह रखते हुए, समीपवर्तियों, अनाथों, निर्धनों, यात्रियों तथा याचकों  (फकीरों)  को और दास मुक्ति के लिए दिया, नमाज़ की स्थापना की, ज़कात दी, अपने वचन को, जब भी वचन दिया, पूरा करते रहे एवं निर्धनता और रोग तथा युध्द की स्थिति में धैर्यवान रहे। यही लोग सच्चे हैं तथा यही (अल्लाह से) डरते हैं। [177]

——————————–

ईमान पर वक़्त की गर्द का पड़ना।

اَلَمۡ يَاۡنِ لِلَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡۤا اَنۡ تَخۡشَعَ قُلُوۡبُهُمۡ لِذِكۡرِ اللّٰهِ وَمَا نَزَلَ مِنَ الۡحَـقِّۙ وَلَا يَكُوۡنُوۡا كَالَّذِيۡنَ اُوۡتُوا الۡكِتٰبَ مِنۡ قَبۡلُ فَطَالَ عَلَيۡهِمُ الۡاَمَدُ فَقَسَتۡ قُلُوۡبُهُمۡ‌ ؕ وَكَثِيۡرٌ مِّنۡهُمۡ فٰسِقُوۡنَ‏ ﴿۱۶﴾۔

[Q-57:16]

             क्या ईमान वालों के लिए वह समय नहीं आया कि झुक जायें उनके दिल अल्लाह के स्मरण (याद) के लिए तथा उस सत्य (क़ुरान) के लिए जो उनपर नाज़िल हुआ (उतरा) है और न हो जायें उन लोगों के समान, जिन्हें प्रदान की गयीं पुस्तकें इससे पूर्व, फिर लम्बी अवधि व्यतीत हो गयी उनपर, तो कठोर हो गये उनके दिल तथा उनमें अधिक्तर अवज्ञाकारी (नाफ़रमान) हैं।(16)

—————————-

दुनियावी ज़िंदगी की हक़ीक़त।

اِعۡلَمُوۡۤا اَنَّمَا الۡحَيٰوةُ الدُّنۡيَا لَعِبٌ وَّلَهۡوٌ وَّزِيۡنَةٌ وَّتَفَاخُرٌۢ بَيۡنَكُمۡ وَتَكَاثُرٌ فِى الۡاَمۡوَالِ وَالۡاَوۡلَادِ‌ؕ كَمَثَلِ غَيۡثٍ اَعۡجَبَ الۡكُفَّارَ نَبَاتُهٗ ثُمَّ يَهِيۡجُ فَتَرٰٮهُ مُصۡفَرًّا ثُمَّ يَكُوۡنُ حُطٰمًا‌ ؕ وَفِى الۡاٰخِرَةِ عَذَابٌ شَدِيۡدٌ ۙ وَّمَغۡفِرَةٌ مِّنَ اللّٰهِ وَرِضۡوَانٌ‌ؕ وَمَا الۡحَيٰوةُ الدُّنۡيَاۤ اِلَّا مَتَاعُ الۡغُرُوۡرِ‏ (۲۰)

[Q-57:20]

            जान लो कि सांसारिक जीवन एक खेल, मनोरंजन, शोभा, आपस में गर्व तथा धन व संतान में एक-दूसरे से बढ़ जाने का प्रयास है। जेसै वर्षा के पश्चात  अच्छी फसल किसानों को भा जाती है। फिर वह लहलहाती है और पक जाने पर वह तुम्हें पीली दिखने लगती है, फिर वह चूर-चूर हो जाती है। और [इसी तरह] परलोक में कड़ी यातना है तथा अल्लाह की क्षमा और प्रसन्नता भी है। और सांसारिक जीवन तो बस धोखे का संसाधन है।(20)


Leave a Reply