2. ईश्वरीय सुन्नत, हदीस और क़ुरान

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رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔ 

सभी स्वर्गीय पुस्तकों में दो प्रकार की आदेश हैं।

  1. पैग़ंबरों और उनके समुदायों के लिए विभिन्न आदेश और नियम (शरीयत )।
  2. प्रत्येक पैग़ंबर और उनके समुदायों के लिए एक समान आदेश (शब्द एकेश्वरवाद/ ईश्वरीय सुन्नत)।

 

Contents

1. पैगंबरों और उनके समुदायों के लिए विभिन्न आदेश और नियम (शरीयत)।

وَمَا كَانَ لِرَسُوۡلٍ اَنۡ يَّاۡتِىَ بِاٰيَةٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰهِ‌ ؕ لِكُلِّ اَجَلٍ كِتَابٌ‏ (۳۸)  يَمۡحُوۡا اللّٰهُ مَا يَشَآءُ وَيُثۡبِتُ ‌ۖ ‌ۚ وَعِنۡدَهٗۤ اُمُّ الۡكِتٰبِ‏ ﴿۳۹﴾۔

[Q-13:38-39]

              अल्लाह सभी पैगम्बरों पर नाज़िल किताबों और सहिफ़ों के लिए कहता है! और किसी रसूल के वश में नही था कि अल्लाह के हुक्म के बिना कोई आयत ला सके। अल्लाह ने हर ज़माने के लिए किताब उतारी है। अल्लाह (जो हुक्म मिटाना चाहता है) मिटा देता है और जो (हुक्म बाक़ी रखना चाहता है) बाक़ी रखता है और उसके पास असली किताब [लौह़े मह़फ़ूज़]।

              (अल्लाह सभी नबियों के लिए प्रकट की गई पुस्तकों और शास्त्रों के लिए फरमाता है)! और किसी रसूल के वश में नहीं था कि अल्लाह के आदेश के बिना कोई आयत ला सके। अल्लाह ने हर काल के लिए किताब अवतरित की है। अल्लाह जो (आदेश) मिटाना चाहता है उसे मिटा देता है, और जो (आदेश) सुरक्षित रखना चाहता है उसे सुरक्षित रखता है और मूल पुस्तक [लौह़े मह़फ़ूज़ (दिव्य ग्रंथ)] उसी के पास है।

              ईश्वर ने सभी पैगंबरों को एक आदेश यानी सच्चे रब का शब्द (एकेश्वर, जिस का कोई साझी नहीं) पर स्थिर रखने के साथ, समय व काल और जरूरतों के अनुसार शरीयत (नियम और क़ानून) को अपडेट किया, अत: सर्वशक्तिमान ईश्वर को जब आवश्यकता महसूस हुई, तो उसने पैग़ंबरों पर नये नियम और क़ानून के साथ शास्त्रों और पुस्तकों को अवतरित किया। यहाँ यह देखने वाली बात है कि प्रत्येक पैग़म्बर को शास्त्र या पुस्तक नहीं मिली, अपितु जब समयानुसार आवश्यकता पड़ी।

             समय के साथ आवश्यकतायें बदलती रहती है। लोगों के अपराध और अपराध के पैटर्न बदलते रहते हैं। दंड भी बदलते रहते हैं। नये-नये कानून बनते हैं। और इस सब के मध्य! आदि से अंत तक निर्णय करने का अधिकार न्यायालय (ईश्वर) के पास ही होता है। अंततः जो परिवर्तन को स्वीकार करता है वही सफल होता है अन्यथा उसका अस्तित्व मिट जाता है।

             अब यह स्पष्ट हो जाता है, कि प्रथम पैग़म्बर आदम (अ०स०) से लेकर अंतिम पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ तक के पैग़म्बरों की उम्मतों (समुदायों) पर अनिवार्य हैं कि ईश्वर की नई शरीयत (जो उस समय के अनुसार है) को खुशी-खुशी स्वीकार कर सफल गंतव्य प्राप्त करें। अन्यथा उस काल (ज़माने) से पहले पैग़म्बर पर अवतरित (नाज़िल) क़ानून, जो समय के साथ असहाय हो गया है, उन्हें ईश्वर के रास्ते से दूर कर देगा।

हालाँकि, अल्लाह फरमाता है कि!

          यदि पूर्व के समुदाय एकेश्वरवाद (ईश्वरीय सुन्नत) के साथ अपने समय की शरीयत (कानून व्यवस्था) का ईमानदारी के साथ पालन करते हैं, और अच्छे कर्म करते हैं। तो अंतिम अदालत के दिन उनका निर्णय उनकी शरीयत के अनुसार होगा।

اِنَّ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَالَّذِيۡنَ هَادُوۡا وَالصَّابِـُٔـوۡنَ وَالنَّصٰرٰى مَنۡ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَالۡيَوۡمِ الۡاٰخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًـا فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُوۡنَ‏ ﴿۶۹﴾۔

[Q-05:69]

                बेशक, जो ईमान लाये (मुस्लिम), तथा जो यहूदी या साईबी या ईसाई हैं, जो भी अल्लाह तथा क़यामत के दिन (सुन्नतुल्लाह) पर ईमान लायेगा, तथा नेक अमल (शरीयत के मुताबिक़) करेगा, तो उनके लिए कोई  खौफ़ नहीं और न वोह  ग़मगीन होंगे।

                  नि:संदेह, जो लोग मुस्लिम हैं, या यहूदी हैं, या सैबी हैं, या ईसाई हैं। जो कोई अल्लाह और अंतिम दिन (एकेश्वरवाद/ ईश्वरीय सुन्नत) पर विश्वास करता है और (शरीयत के अनुसार) नेक काम करता है, उन्हें कोई डर नहीं होगा, न ही वे शोक करेंगे।


اِنَّ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَالَّذِيۡنَ هَادُوۡا وَالنَّصٰرٰى وَالصّٰبِـِٕـيۡنَ مَنۡ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَالۡيَوۡمِ الۡاٰخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًـا فَلَهُمۡ اَجۡرُهُمۡ عِنۡدَ رَبِّهِمۡ ۚ  وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُوۡنَ‏ ﴿۶۲﴾۔

[Q-02:62]

             बेशक, जो लोग ईमान लाये (मुस्लिम) तथा जो यहूदी हैं या नसारा (ईसाई) तथा साबी हैं (यानि सभी अहले किताब)। जो भी अल्लाह तथा रोज़े क़यामत (सुन्नतुल्लाह) पर ईमान लायेगा, और नेक अमल (शरीयत के मुताबिक़) करेगा, उनका अज्र उनके रब के यहाँ मिलेगा। और न उन्हें कोई खौफ़ होगा और न ही वे ग़मगीन होंगे।

              नि:संदेह, जो लोग मुस्लिम या यहूदी या ईसाई या साइबी (स्टार उपासक)  हैं, (अर्थात वे सभी लोग जो किताबों से संबंधित हैं) जो अल्लाह और अंतिम दिन (एकेश्वरवाद/ ईश्वरीय सुन्नत) पर विश्वास करेंगे, और अच्छे कर्म (शरीयत के अनुसार), ऐसे लोगों को ईश्वर के यहाँ उनके (कर्मों का) प्रतिफल मिलेगा। और (प्रलय के दिन) उन्हें न कोई डर होगा और न वे शोक करेंगे।

              लेकिन शर्त यह है कि किताब वालों ने किसी को अल्लाह का साझीदार नहीं बनाया हो। यानी यह लोग कुफ़्र नहीं करते हों।


اِنَّ اللّٰهَ لَا يَغۡفِرُ اَنۡ يُّشۡرَكَ بِهٖ وَيَغۡفِرُ مَا دُوۡنَ ذٰ لِكَ لِمَنۡ يَّشَآءُ‌ ؕ وَمَنۡ يُّشۡرِكۡ بِاللّٰهِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلٰلًاۢ بَعِيۡدًا‏ ﴿۱۱۶﴾۔

[Q-04:116]

             बेशक, अल्लाह उसे माफ नहीं करेगा कि जिसने किसी दूसरे को उसका शरीक बनाया। और इसके अलावा वोह जिसे चाहेगा, माफ कर देगा, और जो अल्लाह का शरीक बनाता है, वोह बहुत दूर कि गुमराही मे जा गिरा।

               निस्संदेह, अल्लाह उस व्यक्ति को क्षमा नहीं करेगा जो किसी को उसका भागीदार बनाता है। इसके अलावा वह जिसे चाहेगा माफ कर देगा और जो अल्लाह का साझीदार बनाएगा , वह कुपथ में बहुत दूर चला गया।


وَقَالُوۡا لَنۡ يَّدۡخُلَ الۡجَـنَّةَ اِلَّا مَنۡ كَانَ هُوۡدًا اَوۡ نَصٰرٰى‌ؕ تِلۡكَ اَمَانِيُّهُمۡ‌ؕ قُلۡ هَاتُوۡا بُرۡهَانَکُمۡ اِنۡ کُنۡتُمۡ صٰدِقِيۡنَ‏ ﴿۱۱۱﴾  بَلٰى مَنۡ اَسۡلَمَ وَجۡهَهٗ لِلّٰهِ وَهُوَ مُحۡسِنٌ فَلَهٗۤ اَجۡرُهٗ عِنۡدَ رَبِّهٖ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُوۡنَ‏ ﴿۱۱۲﴾۔

[Q-02:111-112]

              और वे कहते हैं कि यहूदी या ईसाई के अलावा कोई भी जन्नत में नहीं जाएगा। यह उनकी ख्वाहिशी पुलाव हैं। कहो, अगर तुम सच्चे हो तो अपनी दलील पेश करो। (111) हाँ, जो कोई अल्लाह के सामने झुकेगा और नेक काम करेगा, उसका अज्र (बदला) उनके रब के पास है। और उनको कोई डर नहीं होगा, और न वोह ग़मग़ीन होंगे। (112)।

             और वे कहते हैं कि यहूदी या ईसाई के अतिरिक्त कोई भी स्वर्ग नहीं जाएगा। यह उनकी मनमर्जी सोच है। कहो, यदि तुम सच्चे हो तो अपना तर्क प्रस्तुत करो। (111) हाँ, जो कोई अल्लाह के सामने झुकेगा और अच्छे कर्म करेगा, उसका प्रतिफल उसके रब के पास है, और उन पर कोई भय नहीं होगा, और न वे शोक करेंगे (112)।

            निस्संदेह, अल्लाह उन लोगों से प्रेम करता है। जो अल्लाह की ओर प्रयास करते हैं।”। (क़ु-29:69)।

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2. प्रत्येक पैग़ंबर और उनके समुदायों के लिए एक समान आदेश (शब्द एकेश्वरवाद/ईश्वरीय सुन्नत)।

            “सभी नबियों को प्राप्त एक समान आदेश शब्द एकेश्वरवाद (ला-इलाहा ईल-लललाह) है। अथार्थ नहीं है कोई! ईश्वर (अल्लाह) के अतिरिक्त”। अल्लाह तक पहुँचने का रास्ता, पवित्र किताबों में दिए गए उन आदेशों और नियमों से होकर गुजरता है, जो नबियों को रहस्योद्घाटन (वहयी) के माध्यम से बताए गए थे। और उनमें से सबसे नवीनतम संस्करण कुरान है। जिसे परमात्मा ने आखिरी नबी हजरत मुहम्मद (ﷺ) पर प्रकट किया, “और जिसे परमात्मा ने पूरी दुनिया के लिए नसीहत (हिदायत) का स्रोत घोषित किया”। (क़ु-68: 52)। “और जिसमें परमात्मा ने आशीर्वाद रखा है।” (क़ु-6:155)।

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मोहम्मद ﷺ और अन्य पैग़ंबरों को एकसमान आदेश।

مَا يُقَالُ لَـكَ اِلَّا مَا قَدۡ قِيۡلَ لِلرُّسُلِ مِنۡ قَبۡلِكَ ‌ؕ ﴿۴۳﴾۔

[Q-41:43]

         “हे मुहम्मद ﷺ! तुम पर भी वही बात दोहराई गई है जो तुमसे पहले रसूलों से कही गई थी।”।

             नि:संदेह, अल्लाह ने मुहम्मद ﷺ और उनके पहले के सभी रसूलों को जो एक समान आदेश वहीय किया। वह एकेश्वरवाद का आदेश है। बहुदेववादी हों या पाखंडी या नास्तिक सब जानते हैं। कि अल्लाह, ईश्वर, गॉड, भगवान, चाहे किसी भी नाम से बुलाओ, लेकिन वह एक ही है। इस ब्रह्मांड का निर्माता भी वही है। संसार के सभी मनुष्य एक ही माता-पिता की सन्तान हैं।

             लेकिन मानव! जिसे ईश्वर ने बुद्धि दी। कि वह ईश्वर की रचनाओं को देखकर, पहचानकर और समझकर चिंतन करता और उसकी पूजा करने का विचार करता। परंतु इंसान ने ईश्वर को विभाजित कर दिया। मुख से कहता है कि रचीयता एक है। लेकिन मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों और अन्य पूजा स्थलों में बैठकर, वह आपके भगवान और मेरे भगवान का आविष्कार करता है। “खुदाया खैर”

           दुनिया में जितने भी पैगम्बर आये, भले ही वे किसी भी देश से हों।  उनका सन्देश एक ही था, कि. . . . . ..

وَهُوَ اللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ؕ لَـهُ الۡحَمۡدُ فِى الۡاُوۡلٰى وَالۡاٰخِرَةِ وَلَـهُ الۡحُكۡمُ وَاِلَيۡهِ تُرۡجَعُوۡنَ‏ ﴿۷۰﴾۔

[Q-28:70]

            और वही एक अल्लाह है जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, उसकी तारीफ़ इब्तदा और आख़िरत (दोनों जहाँनो) में होती है। और उसके हुक्म का पालन किया जाता है. और तुम्हें उसी की ओर लौटना होगा।

             और वही एक ईश्वर है। जिसके सिवा कोई उपासक नहीं, उसकी तारीफ़ आदि और अंत (दोनों लोकों) में होती है। और उनके आदेश का पालन किया जाता है। और तुम्हें उसी की ओर लौटना होगा।


وَمَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ قَبۡلِكَ مِنۡ رَّسُوۡلٍ اِلَّا نُوۡحِىۡۤ اِلَيۡهِ اَنَّهٗ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّاۤ اَنَا فَاعۡبُدُوۡنِ‏ ﴿۲۵﴾۔

[Q-21:25]

             और हमने तुमसे पहले ऐसा कोई रसूल नहीं भेजा, जिस पर यह बात नाज़िल न हुई हो, कि मेरे सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, इसलिए सिर्फ मेरी ही इबादत करो।

           और हमने तुमसे पहले ऐसा कोई रसूल नहीं भेजा, जिस पर यह बात अवतरित न हुई हो, कि मेरे अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं, अतः मेरी ही उपासना करो।


وَمَا خَلَقۡتُ الۡجِنَّ وَالۡاِنۡسَ اِلَّا لِيَعۡبُدُوۡنِ‏ ﴿۵۶﴾۔

[Q-51:56]

            और हमने जिन्न और इंसान पैदा किये। ताकि वे मेरी इबादत करें।

            और हमने जिन्न और इंसान पैदा किये। ताकि वे मेरी उपासना करें।


قُلۡ اِنَّمَاۤ اُمِرۡتُ اَنۡ اَعۡبُدَ اللّٰهَ وَلَاۤ اُشۡرِكَ بِهٖؕ اِلَيۡهِ اَدۡعُوۡا وَاِلَيۡهِ مَاٰبِ‏ ﴿۳۶﴾۔

[Q-13:36]

           कहो, हे मुहम्मद! कि मुझे (अल्लाह का) यही हुक्म हुआ है, कि एक अल्लाह की इबादत करूं। और उसके साथ किसी को शरीक न बनाऊँ। में उसी (अल्लाह) की (तुम्हें) दावत देता हूँ। और उसी की ओर मुझे लौटना है।

           कहो, हे मुहम्मद! कि मुझे (ईश्वर द्वारा) एक ईश्वर की पूजा करने और उसके साथ किसी को साझी न बनाने का आदेश दिया गया है। उसी (ईश्वर) की ओर मैं (तुम्हें) बुलाता हूँ और उसी की ओर मुझे लौटना है।

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           ईसा मसीह ने शैतान पर लानत भेजी, और कहा! “क्योंकि (तोरात में) लिखा है, कि तू सिर्फ अपने खुदा को सज़्दा कर। और उसी की पूजा (वंदना) कर”। (मत्ती कि इंजील 4:10),

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धर्म कैसे अस्तित्व में आये?

              जब अल्लाह ने इस दुनिया में पहला आदमी भेजा तो धर्म नाम की कोई चीज नहीं थी। उस व्यक्ति ने जीवन की अनिवार्यताएं पूरी करने के साथ परमेश्वर का धन्यवाद किया। और बस। लेकिन समय के साथ, जब परिवार बढ़ता है, तब शैतान मनुष्य के विचारों में हस्तक्षेप करता है। फलस्वरूप अपराध उत्पन्न होते हैं। परमेश्वर यह देखकर अपने जलाल में आता है। और आदम के बाद वह एक और नबी चुनता है और नबुव्वत का सिलसिला शुरू करता है। और शास्त्र के रूप में संविधान (वही प्रकट) करता है। 

             अब समय बीतने के साथ जनसंख्या में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप लोगों के विरोधी विचारों में वृद्धि होती है। लोग ईश्वर को धन्यवाद देना बंद कर देते हैं और अविश्वास (कुफ्र) करने लगते हैं। फिर ईश्वर / अल्लाह, एक नये रसूल (देवदूत) के साथ एक नया संविधान प्रकट करता है। यहीं से धर्म अस्तित्व में आता है। क्योंकि लोग अल्लाह के नये संविधान को स्वीकार नहीं करते हैं, अपितु बहुत कम लोग। और यहां जो नया धर्म अस्तित्व में आता है, वह उस समय के पुराने संविधान के विपरीत 100% सत्य के पथ पर होता है।

كَانَ النَّاسُ اُمَّةً وَّاحِدَةً فَبَعَثَ اللّٰهُ النَّبِيّٖنَ مُبَشِّرِيۡنَ وَمُنۡذِرِيۡنَ وَاَنۡزَلَ مَعَهُمُ الۡكِتٰبَ بِالۡحَـقِّ لِيَحۡكُمَ بَيۡنَ النَّاسِ فِيۡمَا اخۡتَلَفُوۡا فِيۡهِ ‌ؕ وَمَا اخۡتَلَفَ فِيۡهِ اِلَّا الَّذِيۡنَ اُوۡتُوۡهُ مِنۡۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡهُمُ الۡبَيِّنٰتُ بَغۡيًا ۢ بَيۡنَهُمۡ‌ۚ فَهَدَى اللّٰهُ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا لِمَا اخۡتَلَفُوۡا فِيۡهِ مِنَ الۡحَـقِّ بِاِذۡنِهٖ‌﯀ وَاللّٰهُ يَهۡدِىۡ مَنۡ يَّشَآءُ اِلٰى صِرَاطٍ مُّسۡتَقِيۡمٍ‏ ﴿۲۱۳﴾۔

[Q-02:213]

पहले, लोग एक राष्ट्र थे, लेकिन जब उनमें मतभेद होने लगा। तब ईश्वर ने पैगम्बरों को शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले बनाकर भेजा, और उनके साथ लोगों के बीच निर्णय करने के लिए सत्य पर आधारित किताब भेजी। और किताब के बारे में किसी ने मतभेद नहीं किया, सिवाय उन लोगों के जिनको यह दी गई थी। बाद में जो पैगम्बर आये वे उन विद्रोहियों के बीच स्पष्ट निशानियाँ (चमत्कार) लेकर आये। अतः ईश्वर ने ईमानवालों को उन लोगों के विरूद्ध मार्गदर्शन दिया, जो ईश्वर के आदेश और सत्य से असहमत थे। और ईश्वर जिसे चाहता है मार्ग दिखाता है। (213).

             दुनिया जानती है कि समय और प्रगति का दामन चौली का साथ है। लेकिन यह संसार आदिकाल से ही धार्मिक मामलों में प्रगतिशील नहीं रहा है, जबकि मनुष्य को चाहिये! कि वह इस ब्रह्मांड में संकेतों पर ध्यान करे, तत्पश्चात (ईश्वर का) अनुसरण करे

निस्संदेह, अल्लाह उन लोगों से प्रेम करता है। जो अल्लाह की ओर प्रयास करते हैं।” (क़ु-29:69)।

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सुन्नत।

             इस शब्द “सुन्नत” में बड़ी जटिलता उत्पन्न हो गई है। सुन्नत अर्बिक शब्द है। जिसका मूल अर्थ ‘तरीका, संविधान, प्रथा या कानून’ है। लेकिन सामान्य तौर पर, जब सुन्नत शब्द बोला जाता है, तो यह अल्लाह के रसूल ﷺ के लिए जिम्मेदार कथनों और कार्यों को संदर्भित करता है।

  1. शब्दकोश के अनुसार सुन्नत का अर्थ। “वह तरीका कि जिसका! अल्लाह के रसूल मुहम्मद (ﷺ) और उनके खलीफाओं व साथियों ने पालन किया”।
  2. आज के विद्वानों और आम लोगों की नज़र में ‘सुन्नत’ का अर्थ। “जिस तरीक़े से अल्लाह के रसूल मुहम्मद (ﷺ) ने अपना जीवन व्यतीत किया या जीवन के मामलों को अंजाम दिया”।

            दोनों इच्छित अर्थों में बाल बराबर अंतर प्रतीत होता है। लेकिन यह अंतर फुलसीरात (वह पतली पगडंडी कि जिस के दोनों और गहरी खाई हो) पर चलने के बराबर है। मतलब अगर आप गिरे तो सीधे बिना दरवाजे के नर्क में जाएंगे। सुन्नत और हदीस में बड़ी संख्या में मुसलमान भ्रमित हैं।

  1. कुरान के अनुसार ‘सुन्नत’ का अर्थ कुछ इस प्रकार है . . . . .

سُنَّةَ مَنۡ قَدۡ اَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ مِنۡ رُّسُلِنَا‌ وَلَا تَجِدُ لِسُنَّتِنَا تَحۡوِيۡلًا‏ ﴿۷۷﴾۔

[Q-17:77]

           हमने आप (ﷺ) पहले जो पैगम्बर भेजे थे, उनके साथ भी (हमारी) यही सुन्नत थी। और आप हमारी सुन्नत में कोई बदलाव नहीं पाएंगे।

           हमने आप (ﷺ) पहले जो पैगम्बर भेजे थे, उनके साथ भी (हमारी) यही रीति थी। और आप हमारी रीति में कोई बदलाव नहीं पाएंगे।


مَا كَانَ عَلَى النَّبِىِّ مِنۡ حَرَجٍ فِيۡمَا فَرَضَ اللّٰهُ لهٗ ؕ سُنَّةَ اللّٰهِ فِى الَّذِيۡنَ خَلَوۡا مِنۡ قَبۡلُ ؕ وَكَانَ اَمۡرُ اللّٰهِ قَدَرًا مَّقۡدُوۡرَا  ۙ‏ ﴿۳۸﴾ ۔

[Q-33:38]

          नबी पर उस काम में कोई मुश्किल नहीं होती है जो अल्लाह ने उन पर फर्ज़ कर दिया है। और अल्लाह की सुन्नत (कलमा ए तोहीद) उन (अंमबिया) के लिए भी समान थी जो आप ﷺ पहले गुजर चुके हैं। और अल्लाह का आदेश हतमी होता है।

          पैग़ंबर पर उस बात मे कोई तंगी नहीं है कि जिसका अल्लाह ने उन्हे आदेश दिया है। और ईश्वरीय सुन्नत (एकेश्वरवाद क वचन)  उन पैग़ंबरों के लिए भी यही थी जो आप ﷺ पहले गुजर चुके हैं। तथा ईश्वर का निश्चित किया आदेश अंतिम होता है।


سُنَّةَ اللّٰهِ فِى الَّذِيۡنَ خَلَوۡا مِنۡ قَبۡلُۚ وَلَنۡ تَجِدَ لِسُنَّةِ اللّٰهِ تَبۡدِيۡلًا‏ ﴿۶۲﴾۔

[Q-33:62] 

           जो (लोग) आपसे पहले गुज़र गये, बेशक उनके लिए भी ख़ुदा की सुन्नत (कलमा ए तोहीद) थी। और आप खुदा की सुन्नत में कोई तबदीली नहीं पाएंगे।

            जो (लोग) आपसे पूर्व गुज़रे, नि:सन्देह उनके लिए भी ईश्वरीय सुन्नत (एकेश्वरवाद का शब्द) थी। और आप ईश्वरीय सुन्नत में कोई परिवर्तन नहीं पाएंगे।


سُنَّةَ اللّٰهِ الَّتِىۡ قَدۡ خَلَتۡ مِنۡ قَبۡلُ ۖۚ وَلَنۡ تَجِدَ لِسُنَّةِ اللّٰهِ تَبۡدِيۡلًا‏ ﴿۲۳﴾۔

[Q-48:23]

            जो (लोग) गुज़र गए, बेशक उनके लिए भी ख़ुदा की सुन्नत थी। और आप खुदा की सुन्नत में कोई परिवर्तन नहीं पाएंगे।

           जो (लोग) गुज़र गये, नि:सन्देह उनके लिए भी ईश्वरीय सुन्नत थी। और आप ईश्वरीय सुन्नत में कोई परिवर्तन नहीं पाएंगे।

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ईश्वरीय सुन्नत का अर्थ।

             ईश्वरीय सुन्नत का अर्थ है ईश्वरीय कानून अथवा ईश्वरीय पथ (रास्ता) अथवा ईश्वरीय तरीक़ा अथवा ईश्वरीय संविधान। और वो है “ला-इलाहा ईल लल लाह” (नहीं है कोई पूजा/इबादत के योग्य ईश्वर के अतिरिक्त) 

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मुहम्मद ﷺ ने अपने अंतिम हज के एतिहासिक उपदेश में वसीयत की है कि ! . . . .

           “और मैं तुम्हारे मध्य ऐसी चीज छोड़ जाता हूं, कि यदि तुम उस पर स्थिर रहे, तो फिर कभी न भटकोगे! और वोह अल्लाह की किताब कुरान और सुन्नते नबवी है।

             यहाँ, पैगंबर की सुन्नत नबवी का तात्पर्य एकेश्वरवाद / ईश्वरीय सुन्नत है। और इसी सुन्नत का  सारे संसार को उपदेश देने का आदेश हुआ। और स्वयं पैगम्बर को भी इसी सुन्नत पर चलने का आदेश दिया गया।


كَذٰلِكَ اَرۡسَلۡنٰكَ فِىۡۤ اُمَّةٍ قَدۡ خَلَتۡ مِنۡ قَبۡلِهَاۤ اُمَمٌ لِّـتَتۡلُوَا۟ عَلَيۡهِمُ الَّذِىۡۤ اَوۡحَيۡنَاۤ اِلَيۡكَ ؕ ﴿۳۰﴾۔

[Q-13:30]

             इसी तरह, हमने आपको इस उम्मत  में जिससे पहले बहुत-सी  उम्मतें गुज़र चुकी हैं, रसूल बनाकर भेजा है, ताकि आप उन्हें वो पैग़ाम सुनाएँ, जो हमने आपकी ओर वह़्यी द्वारा भेजा है।

            इसी प्रकार हमने तुम्हें इस समुदाय में भेजा है जिससे पहले कई समुदाय गुजर चुके हैं। ताकि तुम उन्हें वह संदेश सुनाओ जो हमने तुम्हारी ओर अवतरित किया है।

             पैगंबर के समय में अल्लाह सर्वशक्तिमान ने जो कुछ भी प्रकट किया वह सब कुरान नहीं है क्योंकि उस समय हर दिन नई कठिनाइयाँ थीं। लोगों और उनके पूर्वजों द्वारा पालन की जाने वाली शैतानी परंपराओं को तब तक बदलना संभव नहीं था, जब तक कि उनके दिल विश्वास के प्रकाश से पूरी तरह प्रकाशित न हो जायें। इस कारण से, अल्लाह एक उपयुक्त आदेश भेजता। जो कुछ समय के लिए आरक्षित था। इसके बाद नया आदेश पहले के आदेश को निलंबित कर देता था।

परिणाम स्वरूप जो कुरान अस्तित्व में आया। उसके लिए अल्लाह फरमाता है;

وَلَقَدۡ جِئۡنٰهُمۡ بِكِتٰبٍ فَصَّلۡنٰهُ عَلٰى عِلۡمٍ هُدًى وَّرَحۡمَةً لِّـقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۵۲﴾۔

[Q-07:52]

            और हम उन के पास एक किताब लाए, जिसे हमने अपने इल्म कि बिना पर तफ़सील से बयान किया है, यह ईमानवालों के लिए हिदायत और रहमत है।

             और हमने उन्हे एक ऐसी पुस्तक दी है, जिसे हमने अपने ज्ञान के आधार पर सविस्तार वर्णित कर दिया है, जो मार्गदर्शन तथा दया है, उन लोगों के लिए, जो ईमान (विश्वास) रखते हैं।

         दुनिया का हर बुद्धिमान व्यक्ति जिसने दुनिया के धर्मों के बारे में थोड़ा भी अध्ययन किया है वह जानता है कि प्रत्येक धर्म के पैगम्बरों ने एक ही ईश्वर की पूजा सिखाई है। लेकिन फिर भी, इन नबियों कि मृत्यु के बाद, मूर्तिपूजा शुरू होने में देर नहीं लगी। उदाहरण के लिए, भूतकाल में यहूदियों में बुतपरस्ती, गिरजाघरों में यीशु की मूर्ति की उपस्थिति, भारत में आने वाले सभी पैगम्बरों की मूर्तिपूजा उदाहरण हैं।

         अब ऐसी स्थिति में अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ जो पूरी दुनिया के लिए रहमत बनकर आए। क्या वे ऐसा कह सकते थे? कि मेरे बाद मेरा अनुसरण करना। नाऊज़ू बिलाह (ईश्वर की स्तुति हो)। कभी नहीँ। खुदा के रसूल मुहम्मद साहब की तस्वीर का न होना इस बात का सबूत है, कि वह इस मसले पर कितने गंभीर थे। आज्ञाकारिता अल्लाह की है, और अल्लाह की उस किताब की है, जिसका अनुसरण स्वंम पैगंबर मुहम्मद ﷺ करते थे।

          हमारे भारत में एक कहावत है कि मूलधन से अधिक प्रिय ब्याज होता है। लेकिन यह उदाहरण काफिरों और अत्याचारियों का है। जबकि मोमिनों के लिए अल्लाह ने ब्याज को हराम ठहराया है। और इस्लाम का मूलधन क़ुरआन है। तथा क़ुरआन में अगर कुछ जोड़ा जाए तो वह ब्याज है।

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सुन्नते-नबवी।

              शब्दकोश के अनुसार सुन्नत का अर्थ सही है। “वह तरीका कि जिसका! अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ और उनके खलीफा व साथियों ने पालन किया”।

            वास्तव में, अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ और उनके खलीफा व साथियों और सभी नबियों ने लोगों को अज्ञानता और मूर्तिपूजा को छोड़कर एकेश्वरवाद (ईश्वर/परमात्मा के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है) का आमंत्रण दिया। और स्वंम भी अल्लाह की सुन्नतों (आदेशों) का अनुसरण किया। उद्देश्य यह है कि हम उस सुन्नते नबवी को थामे रहें! कि जिसको अल्लाह के रसूल ﷺ ने थामा हुआ था।

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प्रश्न?

जब किसी विषय विशेष पर चर्चा होती है तो प्रश्न भी जन्म लेते हैं।

  1. कुरान के अनुसार मोहम्मद ﷺ की जीवन शैली सबसे अच्छा उदाहरण है। तो क्यों न पैगंबर के जीवन का अनुसरण करें?
  2. कुरान में अल्लाह रसूल की बात मानने का हुक्म देता है। इस का अर्थ क्या है?
  3. हदीस क्या है? हदीस का पालन करना कैसा है?
  4. क्या शिक्षक की सहायता के बिना कुरान पढ़ सकते हैं, क्या कुरान समझना आसान है?

इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने से पहले, एक श्लोक (आयत) पर विचार करना आवश्यक है।

وَاِذَا قَرَاۡتَ الۡقُرۡاٰنَ جَعَلۡنَا بَيۡنَكَ وَبَيۡنَ الَّذِيۡنَ لَا يُؤۡمِنُوۡنَ بِالۡاٰخِرَةِ حِجَابًا مَّسۡتُوۡرًا ۙ‏ ﴿۴۵﴾ وَّجَعَلۡنَا عَلٰى قُلُوۡبِهِمۡ اَكِنَّةً اَنۡ يَّفۡقَهُوۡهُ وَفِىۡۤ اٰذَانِهِمۡ وَقۡرًا‌ ؕ وَاِذَا ذَكَرۡتَ رَبَّكَ فِى الۡقُرۡاٰنِ وَحۡدَهٗ وَلَّوۡا عَلٰٓى اَدۡبَارِهِمۡ نُفُوۡرًا‏ ﴿۴۶﴾ ۔

[Q-17:45-46]

            “और जब तुम क़ुरान पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के दरम्यान जो आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, एक हिजाब डाल देते हैं। और हम उनके दिलों पर मुहर लगा देते हैं, और उनके कानों में भारीपन, ताकि वे इस (कुरान को) न समझ सकें। और जब तुम क़ुरआन में अपने वाहिद रब का ज़िक्र करते हो, तो वे नफरत से मुँह मोड़ लेते हैं।”

            “और जब तुम क़ुरान पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के मध्य जो प्रलोक पर विश्वास नहीं रखते, एक गुप्त पर्दा डाल देते हैं। और हम उनके दिलों पर मुहर (सील) लगा देते हैं, और उनके कानों में भारीपन, ताकि वे इस (कुरान को) न समझें। और जब तुम क़ुरआन में अपने एकमात्र ईश्वर का ज़िक्र करते हो, तो वे घृणा से मुँह मोड़ लेते हैं।”

            अर्थात प्रलोक (आखिरत) पर ईमान न लाने का यही स्वभाविक परिणाम है कि क़ुर्आन को समझने की योग्यता खो जाती है। अब आप सोचेंगे, कि परलोक पर तो सबको यकीन है, क्योंकि परलोक तो संसार के प्रत्येक धर्म का एक स्तंभ है।

             अगर ऐसा है तो बताएं? क्या परलोक पर यकीन होने का अर्थ ईश्वर के सामने हिसाब देना नहीं है। और अगर इंसान को परलोक के हिसाब का खौफ है, तो फिर! कैसे एक भाई दूसरे भाई की समृद्धि पर नज़र रखता है? कैसे झूटी गवाही देता है? कैसे चोरी कर लेता है? कैसे मापतोल मे गड़ बड़ कर लेता है? कैसे माँ बाप के हक भूल जाता है? कैसे हराम और हलाल के अंतर को भूल जाता है? क्यों बहन बेटियों को शर्मशार किया जाता है? क्यों इंसान गुनाह करने से पहले यह नहीं सोचता कि ईश्वर सब कुछ देख रहा है और फ़रिश्ते हमारे कर्मों को लिख रहे हैं।

            कुरआन एक ऐसी पवित्र किताब है जिसे अगर कोई व्यक्ति संतुलित मन मस्तिष्क से पढ़े तो उसे मार्गदर्शन मिलता है। और कुरआन को समझना आसान हो जाता है। (अल-हम्दू लिल्लाह। इस तुच्छ का भी यही अनुभव है)। और अगर कोई मन में बुराई रखकर पढ़ता है, तो उसे वही मिलता है जो वह चाहता है।

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प्रश्न-1 कुरान के अनुसार मोहम्मद ﷺ की जीवन शैली सबसे अच्छा उदाहरण है?

لَقَدۡ كَانَ لَكُمۡ فِىۡ رَسُوۡلِ اللّٰهِ اُسۡوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَنۡ كَانَ يَرۡجُوا اللّٰهَ وَالۡيَوۡمَ الۡاٰخِرَ وَذَكَرَ اللّٰهَ كَثِيۡرًا ؕ‏ ﴿۲۱﴾۔

[Q-33:21]

            बेशक, तुम्हारे लिए सबसे बेहतरीन नमूना अल्लाह के रसूल ﷺ में है, उस शख्स के लिए कि जिसको अल्लाह और आखिरत के दिन पर यक़ीन हो। और वह कसरत से अल्लाह को याद भी करता हो।

             निसन्देह, तुम्हारे लिए ईश्वर के दूत में उत्तम आदर्श है, उस व्यक्ति के लिए, जो ईश्वर और अन्तिम दिन (प्रलय) में विस्वास करता हो, तथा ईश्वर को अत्यधिक याद करता हो।

             वास्तव में, मुहम्मद ﷺ का जीवन सारी दुनिया के लिए एक मिसाल है। क्योंकि उन्होंने अपना जीवन ईश्वरीय सुन्नत {एकेश्वरवाद} और कुरान के आदेशों के अनुसार व्यतीत किया। अमेरिकी लेखक माइकल एच. हार्ट की पुस्तक द 100: ए रैंकिंग ऑफ द मोस्ट इन्फ्लुएंशियल पर्सन्स इन हिस्ट्री में, मुहम्मद ﷺ को दुनिया में आने वाले पहले इंसान आदम (अ०स०) से वर्तमान तक सबसे प्रसिद्ध एंवम सफल लोगों में नंबर एक स्थान दिया गया। जबकि धार्मिक रूप से वह स्वंम ईसाई हैं।

            तो क्या! तमाम मुस्लिमों को भी ईश्वरीय सुन्नत और कुरान के आदेशों के अनुसार जीवन व्यतित नहीं करना चाहिए?


اِتَّبِعُوۡا مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكُمۡ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ وَلَا تَتَّبِعُوۡا مِنۡ دُوۡنِهٖۤ اَوۡلِيَآءَ‌ ؕ قَلِيۡلًا مَّا تَذَكَّرُوۡنَ ﴿۳﴾۔

[Q-07:03]

             (ऐ लोगो)! उस (किताब) की अताअत करो जो तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर नाज़िल हुई है। और अल्लाह के सिवा दूसरे ओलिया कि ताबेदारी न करो। बहुत कम लोग हैं जो नसीहत लेते हैं।

             (हे लोगों)! उस (पुस्तक) का अनुसरण करो जो तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुई है। और ईश्वर के अतिरक्त दूसरे सन्तों की आज्ञा न मानो। बहुत कम लोग हैं जो सलाह लेते हैं.

             अल्लाह सर्वशक्तिमान स्पष्ट रूप से आदेश देता है कि तुम उस बात का पालन करो। जो तुम्हारे रब की ओर से रसूलों के द्वारा तुम्हारी ओर पहुँचाई गई है। न कि! पहुँचाने वाले का पालन करो।

उदाहरणत:

          1- एक विनम्र और प्रतिष्ठित व्यक्ति शून्यता की भूमि से आपके लिए आपके किसी अपने का पत्र लाता है, तो बतायें? आपके लिए पत्र महत्वपूर्ण है या पत्र लाने वाला?? निसन्देह पत्र महत्वपूर्ण होगा। हाँ पत्र लाने वाला आदरणीय अवश्य होगा। इसीलिये अल्लाह पेग़म्बरों पर दुरूद भेजने और उनका सम्मान करने का हुक्म देता है।

         2-  हज़रत जिब्राइल (अ०स०) अल्लाह का पैगाम (वह्यी) तमाम पैग़ंबरों तक लाते रहे। स्वंम से प्रश्न करें कि पैग़ंबरों के लिए वह्यी महत्वपूर्ण थी या जिब्राइल (अ०स०)? उत्तर मिल जाएगा। 

             अब सवाल यह उठता है। कि जो लोग पैगंबर ﷺ के जीवन को आदर्श मानकर अपना जीवन जीना चाहते हैं। क्या उन लोगों के लिए यह अच्छा फैसला है? अथवा यह कि आप अपना जीवन ईश्वर के वचन, कुरान पर जींये, जिस पर स्वयं मुहम्मद ﷺ ने अपना जीवन व्यतीत किया। आप स्वयं निर्णय लें!

             क्या प्रकाश और छाया बराबर हो सकते हैं? कुरान पैगंबर से है या पैगंबर कुरान से? नि:संदेह, पैगंबर कुरान से हैं, क्योंकि अगर अल्लाह चाहता तो अवश्य किसी अन्य इंसान को कुरान नाज़िल करने के लिए चुन लेता। ऐसी कितनी ही घटनाएं हम आज देख रहे हैं। कि इस्लाम के दुश्मन कुरान पढ़ते हैं। परिणामस्वरूप, वे इस्लाम स्वीकार कर लेते हैं [यहां यह स्पष्ट होना चाहिए कि ये लोग कुरान पढ़ते हैं, हदीस नहीं، क्योंकि इनकी दुश्मनी 1400 साल से केवल कुरान से है]।  क्या किसी अन्य प्रमाणपत्र की आवश्यकता है? कुरान सब कुछ स्पष्ट रूप से बताता है, लेकिन निर्णय लेने का अधिकार आपका है क्योंकि अल्लाह कहता है।

وَالَّذِيۡنَ جَاهَدُوۡا فِيۡنَا لَنَهۡدِيَنَّهُمۡ سُبُلَنَا ؕ وَاِنَّ اللّٰهَ لَمَعَ الۡمُحۡسِنِيۡنَ‏ ﴿۶۹﴾۔

[Q-29:69]

           और जिन लोगों ने हमारे लिए कोशिश की। हम उन्हें हिदायत के राहे जरूर समझा देंगे। और बेशक अल्लाह नेक लोगों के साथ है।

            और जिन लोगों ने हमारे लिए प्रयास किया! हम उन्हें मार्गदर्शन के तरीके अवश्य समझाएँगे और निस्संदेह अल्लाह अच्छे लोगों के साथ है।

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प्रश्न-2 कुरान में अल्लाह रसूल की बात मानने का हुक्म देता है। इस का अर्थ क्या है?

وَمَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ رَّسُوۡلٍ اِلَّا لِـيُـطَاعَ بِاِذۡنِ اللّٰهِ ‌ؕ﴿۶۴﴾۔

[Q-04:64]

               और हम कोई रसूल नहीं भेजते,मगर इसलिए कि अल्लाह की इजाज़त से उसकी अताअत की जाए।64

               और हम कोई दूत नहीं भेजते, मगर इसलिए कि अल्लाह की अनुमति से उसका पालन किया जाए।64


وَمَا نُرۡسِلُ الۡمُرۡسَلِيۡنَ اِلَّا مُبَشِّرِيۡنَ وَمُنۡذِرِيۡنَ‌ ۚ ﴿۵۶﴾۔

[Q-18:56]

            और हम रसूलों को सिर्फ (लोगों को अल्लाह की नेमतों की) खुसखबरी देने और उन्हें (अज़ाब से) डराने के लिए भेजते हैं।    

            और हम रसूलों को केवल (लोगों को ईश्वर की आशीर्वाद/नेमतों की) शुभ सूचना देने और उन्हें (यातना से) सावधान करने के लिए भेजते हैं। 


وَاَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَالرَّسُوۡلَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُوۡنَ‌ۚ‏ ﴿۱۳۲﴾۔

[Q-03:132]

           और अताअत करो! अल्लाह और उसके रसूल की। ताकि तुम पर रहमत की जाए।

           और आज्ञा मानो! ईश्वर और उसके दूत की। ताकि तुम धन्य हो जाओ।


وَاَقِيۡمُوا الصَّلٰوةَ وَ اٰ تُوا الزَّكٰوةَ وَاَطِيۡـعُوا الرَّسُوۡلَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُوۡنَ‏ ﴿۵۶﴾۔

[Q-24:56]

           और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और अल्लाह के रसूल की अताअत करो। ताकि तुम पर रहमत की जाए।

           तथा नमाज़ की स्थापना करो, और ज़कात दो, तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो। ताकि तुम धन्य हो जाओ।


مَنۡ يُّطِعِ الرَّسُوۡلَ فَقَدۡ اَطَاعَ اللّٰهَ ‌ۚ وَمَنۡ تَوَلّٰى فَمَاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ عَلَيۡهِمۡ حَفِيۡظًا ؕ‏ ﴿۸۰﴾۔

[Q-04:80]

         वह जिसने रसूल के हुक्मों की अताअत की। बेशक उसने अल्लाह के हुक्मों कि अताअत की।” और जिस ने आप ﷺ से मूँह मोड़ा, तो हमने आप को उनका निगहबान बनाकर नहीं भेजा।

          वह जिसने रसूल की आज्ञा का पालन किया। निस्संदेह, उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया। और जो लोग आप ﷺ से विमुख हुए, तो हमने आप को उनका संरक्षक बनाकर नहीं भेजा।


وَاَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَاَطِيۡعُوا الرَّسُوۡلَ وَاحۡذَرُوۡا‌ ۚ فَاِنۡ تَوَلَّيۡتُمۡ فَاعۡلَمُوۡۤا اَنَّمَا عَلٰى رَسُوۡلِنَا الۡبَلٰغُ الۡمُبِيۡنُ‏ ﴿۹۲﴾۔

[Q-05:92]

           और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो। और डरो, फिर अगर तुम मुँह फेरोगे, तो याद रखो, कि हमारे पैगंबर केवल संदेश को स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है।

             और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञापालन करो। और डरो, तो अगर तुम विमुख हो जाओ तो जन लो कि हमारे दूत (पैगंबर) पर केवल संदेश को स्पष्ट रूप से पहुंचाने की जिम्मेदारी है।


قُلۡ اَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَاَطِيۡعُوا الرَّسُوۡلَ‌ۚ فَاِنۡ تَوَلَّوۡا فَاِنَّمَا عَلَيۡهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَيۡكُمۡ مَّا حُمِّلۡتُمۡ‌ؕ وَاِنۡ تُطِيۡعُوۡهُ تَهۡتَدُوۡا‌ؕ وَمَا عَلَى الرَّسُوۡلِ اِلَّا الۡبَلٰغُ الۡمُبِيۡنُ‏ ﴿۵۴﴾۔

[Q-24:54]

            (हे नबी!) कहो, अल्लाह और उसके रसूल की अताअत करो। और अगर तुम मुँह फेर लो (यानि राहे हक छोड़ दो)। तो रसूल पर जो ज़िम्मेदारी है, वह उसके लिए ज़िम्मेदार है। और आपकी जिम्मेदारी वोह है, जो आप पर लाज़िम है। और अगर तुम रसूल की फरमाबरदारी करोगे तो तुम हिदायत पाओगे। और रसूल की ज़िम्मेदारी [अल्लाह का हुक्म यानी कुरान को] स्पष्ट रूप से पहुंचाना है।

          (हे नबी!) कहो, अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो। फिर यदि तुम मुँह फेर लो (अर्थात् सत्य का मार्ग छोड़ दो)। तो रसूल पर जो ज़िम्मेदारी है, वह उसके लिए ज़िम्मेदार है। और आपकी जिम्मेदारी वोह है, जो आपसे अपेक्षित है। और यदि तुम रसूल की आज्ञा मानोगे तो तुम्हें मार्ग दिया जाएगा। और रसूल की ज़िम्मेदारी [ईश्वर के आदेश, यानी कुरान को] स्पष्ट रूप से पहुंचाना है।


كَمَآ اَرۡسَلۡنَا فِيۡکُمۡ رَسُوۡلًا مِّنۡکُمۡ يَتۡلُوۡا عَلَيۡكُمۡ اٰيٰتِنَا وَيُزَكِّيۡکُمۡ وَيُعَلِّمُکُمُ الۡكِتٰبَ وَالۡحِکۡمَةَ وَيُعَلِّمُكُمۡ مَّا لَمۡ تَكُوۡنُوۡا تَعۡلَمُوۡنَ ؕ‌ۛ‏ ﴿۱۵۱﴾۔

[Q-02:151]

             जिस तरह हमने तुम्हारे बीच तुम्हीं में से एक रसूल भेजा। जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता हैं। और तुम्हें पाक करता है। और तुम्हें हमारी किताब और हिकमत सिखाता है। और तुम्हें वोह सिखाता है। जो तुम नहीं जानते थे।

            जिस प्रकार हमने तुम्हारे मध्य तुम्हीं में से एक रसूल भेजा। जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता हैं। और तुम्हें शुद्ध करता है। और तुम्हें हमारी पुस्तक और बुद्धिमता सिखाता है। और तुम्हें वोह सिखाता है। जो तुम नहीं जानते थे।


يٰۤاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡۤا اٰمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَرَسُوۡلِهٖ وَالۡكِتٰبِ الَّذِىۡ نَزَّلَ عَلٰى رَسُوۡلِهٖ وَالۡكِتٰبِ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلَ مِنۡ قَبۡلُ‌ؕ وَمَنۡ يَّكۡفُرۡ بِاللّٰهِ وَمَلٰٓٮِٕكَتِهٖ وَكُتُبِهٖ وَرُسُلِهٖ وَالۡيَوۡمِ الۡاٰخِرِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلٰلًاۢ بَعِيۡدًا‏ ﴿۱۳۶﴾۔

[Q-04:136]

          हे ईमान वालो! अल्लाह, और उसके रसूल पर ईमान लाओ। तथा उस किताब (क़ुर्आन) पर, जो उसने अपने रसूल पर उतारी है। तथा उन किताबों पर भी ईमान लाओ, जो इससे पहले उतारी हैं। जो अल्लाह, और उसके फ़रिश्तों, और उसकी किताबों और आखिरत का इनकार करेगा, तो वह शख्स बड़ी दूर की गुमराही में जा पड़ा।

         हे विश्वासियों! अल्लाह और उसके रसूल पर विश्वास करो। और उस पुस्तक पर भी जो उसने अपने रसूल पर अवतरित की। और उन पुस्तकों पर भी जो पहले अवतरित हुई थीं। और जिसने अल्लाह, और उसके फ़रिश्तों, और उसके पैग़म्बरों, और उसकी किताबों और क़यामत (प्रलय) के दिन को झुठलाया, तो वह बहुत दूर तक भटक गया।


يٰبَنِىۡۤ اٰدَمَ اِمَّا يَاۡتِيَنَّكُمۡ رُسُلٌ مِّنۡكُمۡ يَقُصُّوۡنَ عَلَيۡكُمۡ اٰيٰتِىۡ‌ۙ فَمَنِ اتَّقٰى وَاَصۡلَحَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُوۡنَ‏ ﴿۳۵﴾۔

[Q-07:35]

           ऐ आदम के औलादों! जब तुम्हारे दरम्यान तुम्हीं में से रसूल आ जायें। जो तुम्हें मेरी आयतें सुनायें, तो जो डरेगा और अपना इसलाह कर लेगा, उसके लिए कोई खौफ नहीं होगा और न वे ग़मगीन होंगे।

          हे आदम की सन्तान! यदि तुम्हारे पास तुम्हारे बीच से सन्देशवाहक आयें। जो तुम्हें मेरी आयतें सुनाए, फिर जो अपने को सुधार लेगा, उस मनुष्य को कोई भय न रहेगा। और वे दुखी नहीं होंगे।

             बेशक रसूलों का हुक्म अल्लाह का हुक्म होता है। क्योंकि संदेशवाहक (रसूल) वही प्रचार करता है जो ईश्वर उसे वह्यी के माध्यम से आदेश देता है। वे अपनी ओर से एक आयत भी नहीं ला सकते । अथार्थ, यह निर्धारित हुआ। कि रसूलों के आदेश का पालन करके, वास्तव में हम अल्लाह के आदेश का पालन करते हैं। क्योंकि रसूल लोगों के लिए केवल एक रसूल [संदेशवाहक] होता है। जैसे जिब्राइल (अ०स०) तमाम पैग़ंबरों के लिए रसूल [संदेशवाहक] हैं। और स्वंम रसूलों को भी उसी वह्यी के अनुपालन का आदेश होता है, कि जिसका वह उपदेश दे रहे हैं।


وَّاتَّبِعۡ مَا يُوۡحٰٓى اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ‌ ؕ اِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُوۡنَ خَبِيۡرًا ۙ‏ ﴿۲﴾۔

[Q-33: 2]

            हे पैगम्बर! और जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर नाज़िल किया गया है, उसका पैरवी करो। बैशक, अल्लाह तुम्हारे सभी अमलों से अवगत है।            

           हे पैगम्बर! और जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर उतारा गया है, उसका पालन करो। निस्संदेह, अल्लाह तुम्हारे सभी कार्यों से अवगत है।


اِتَّبِعۡ مَاۤ اُوۡحِىَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ‌‌ۚ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ۚ وَاَعۡرِضۡ عَنِ الۡمُشۡرِكِيۡنَ‏ ﴿۱۰۶﴾۔

[Q-06:106]

            (हे नबी) आप उसपर चलें, जो आपपर आपके रब की ओर से वहयी की जा रही है। उसके सिवा कोई मआबूद नहीं है। और मुश्रिकों की बातों पर ध्यान न दें।

         हे नबी! जो कुछ तुम्हारे रब ने तुम पर उतारा है। उसका पालन करो। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, और मुश्रिकों से दूर हो जाओ।


قُلۡ هٰذِهٖ سَبِيۡلِىۡۤ اَدۡعُوۡۤا اِلَى اللّٰهِ  ࣞ عَلٰى بَصِيۡرَةٍ اَنَا وَمَنِ اتَّبَعَنِىۡ‌ؕ وَسُبۡحٰنَ اللّٰهِ وَمَاۤ اَنَا مِنَ الۡمُشۡرِكِيۡنَ‏ ﴿۱۰۸﴾۔

[Q-12:108]

             हे पैगम्बर कहो! यह मेरा तरीक़ा है कि मैं लोगों को अल्लाह की तरफ बुलाता हूँ। मैं और जो मेरी अताअत करते हैं वे सब बसीरत (हक) पर हैं। अल्लाह पवित्र पाक है. और मैं मुश्रिकों में से नहीं हूँ।

            हे पैगम्बर कहो! यही मेरी डगर है, कि मैं अल्लाह की ओर बुला रहा हूँ। मैं और जिसने मेरा अनुसरण किया, वे पूरे विश्वास और सत्य पर हैं। तथा अल्लाह पवित्र है और मैं मुश्रिकों (मिश्रणवादियों) में से नहीं हूँ।


             जब कुरान कहता है, “अल्लाह और उसके रसूल का पालन करो।” तब अल्लाह / ईश्वर कहना चाहता है कि पालन करो अल्लाह का, और उस ईश्वरीय सुन्नत “ला इलाहा इल-लल लाह” का, जो हर नबी की विरासत है। और उन आदेशों (शरीयत) का जो अल्लाह तआला ने हमें अपने नबी के ज़रिये पहुँचाए।


يٰۤـاَيُّهَا النَّاسُ قَدۡ جَآءَكُمُ الرَّسُوۡلُ بِالۡحَـقِّ مِنۡ رَّبِّكُمۡ فَاٰمِنُوۡا خَيۡرًا لَّـكُمۡ‌ ؕ وَاِنۡ تَكۡفُرُوۡا فَاِنَّ لِلّٰهِ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ‌ ؕ وَكَانَ اللّٰهُ عَلِيۡمًا حَكِيۡمًا‏ ﴿۱۷۰﴾۔

[Q-04:170]

             ऐ लोगों! अल्लाह का रसूल तुम्हारे रब की ओर से हक़ लेकर तुम्हारे पास आया है। तो (उन पर) यक़ीन करो, यही तुम्हारे लिए बेहतर है। और अगर तुम इनकार करते हो, तो (याद रखो कि) जो कुछ ज़मीन और आसमानों में है, वह अल्लाह का है। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हिकमत वाला है (170)।

             हे मानवजाति! ईश्वर का दूत तुम्हारे रब की ओर से सत्य लेकर तुम्हारे पास आया है। तो (उन पर) विश्वास करो, यही तुम्हारे लिए बेहतर है। और यदि तुम इनकार करते हो, तो (जान लो कि) जो कुछ आकाशों और धरती में है, वह ईश्वर का है। और ईश्वर सर्वज्ञ और तत्वदर्शी है (170)।


يٰۤـاَيُّهَا النَّاسُ قَدۡ جَآءَكُمۡ بُرۡهَانٌ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ وَاَنۡزَلۡنَاۤ اِلَيۡكُمۡ نُوۡرًا مُّبِيۡنًا‏ ﴿۱۷۴﴾  فَاَمَّا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا بِاللّٰهِ وَاعۡتَصَمُوۡا بِهٖ فَسَيُدۡخِلُهُمۡ فِىۡ رَحۡمَةٍ مِّنۡهُ وَفَضۡلٍۙ وَّيَهۡدِيۡهِمۡ اِلَيۡهِ صِرَاطًا مُّسۡتَقِيۡمًا ؕ‏ ﴿۱۷۵﴾۔

[Q-04:174-175]

              ऐ लोगों! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक दलील (यानि क़ुरआन) आ गया है। और हमने तुम्हारे पास यह चमकता हुआ नूर (कुफ्र के अँधेरे को दूर करने के लिए) भेजा है। (174) तो जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और इस (कुरआन) पर क़ायम रहे। तो अल्लाह उन्हें (अपनी रहमत और फ़ज़ल से) जन्नत में दाखिल करेगा। और वह उन्हें अपनी तरफ सीधी राह दिखायेगा (175)।

             हे मानवजाति! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक प्रमाण (अर्थात क़ुरआन) आ गया है। और हमने तुम्हारे पास यह चमकती हुई रोशनी (अविश्वास के अँधेरे को दूर करने के लिए) भेजी है। (174) तो जो लोग ईश्वर पर ईमान लाए और इस (कुरान) पर अडिग रहे। तो ईश्वर उन्हें (अपनी दया और कृपा से) स्वर्ग में प्रवेश देगा। और वह उन्हें अपनी ओर सीधा रास्ता दिखायेगा (175)।


            अल्लाह सर्वशक्तिमान कभी भी पैगंबर के जीवन का पालन करने का आदेश नहीं देता है। अपितु उसके जीवन का लक्ष्य अल्लाह के संदेश को लोगों तक पहुंचाना एंवम स्वंम उसे चरितार्थ कर दिखाना होता है। इसीलिए अल्लाह सर्वशक्तिमान कुरान में पैगंबर पर दुरूद व सलाम (आशीर्वाद और शांति) भेजने और उनका सम्मान करने का आदेश देता है।


اِنَّ اللّٰهَ وَمَلٰٓٮِٕكَتَهٗ يُصَلُّوۡنَ عَلَى النَّبِىِّ ؕ يٰۤـاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا صَلُّوۡا عَلَيۡهِ وَسَلِّمُوۡا تَسۡلِيۡمًا‏ ﴿۵۶﴾۔

[Q-33:56]

            निसंदेह, अल्लाह तथा उसके फ़रिश्ते नबी पर दरूद  भेजते हैं। ऐ ईमान वालो! तुम भी उनपर दरूद तथा दुआएं व सलाम भेजो।

            निसंदेह, अल्लाह और उसके फ़रिश्ते पैगम्बर पर आशीर्वाद भेजते हैं। हे ईमान वालो तुम भी, उन पर आशीर्वाद भेजो, और नमस्कार और धन्यवाद भेजो।


اِنَّاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ شَاهِدًا وَّمُبَشِّرًا وَّنَذِيۡرًا (۸) لِّـتُؤۡمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَ رَسُوۡلِهٖ وَتُعَزِّرُوۡهُ وَتُوَقِّرُوۡهُ ؕ وَتُسَبِّحُوۡهُ بُكۡرَةً وَّاَصِيۡلًا‏ ﴿۹﴾۔

[Q-48:8-9]

             (हे नबी!) बैशक हमने आपको गवाह बनाकर भेजा है, तथा खुसखबरी देने एवं डराने वाला बनाकर भेजा है। ताकि (ऐ लोगों) तुम अल्लाह एवं उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसकी हिमायत करो, तथा उनकी ताज़ीम व तोक़ीर करो। तथा सुबह व शाम अल्लाह की तसबीह करते रहो।

(हे नबी!) निस्संदेह, हमने तुम्हें गवाह, शुभ सूचना देने वाला और सचेत करने वाला बनाकर भेजा है। (8) ताकि (ऐ लोगों) तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ। और उसका समर्थन करो, उसका सम्मान करो। और प्रात: व संध्या [अल्लाह] की तसबीह करो।


 अल्लाह की इन बातों को समझने के लिए हम फिर से समीक्षा करते हैं।

  • तथा हम रसूलों को (किसी और उद्देश्य से) नहीं भेजते, परन्तु केवल शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले बनाकर (भेजते हैं)
  • रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाये।
  • जिसने रसूल की आज्ञा का अनुपालन किया, (वास्तव में) उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया। तथा जिसने मुँह फेर लिया, तो (हे नबी!) हमने आपको उनका प्रहरी (रक्षक) बनाकर नहीं भेजा है।
  • जान लो कि हमारे रसूल पर केवल खुला उपदेश पहुँचा देना है।
  • अगर रसूल की आज्ञाकारिता करोगे, तो हिदायत (सदमार्ग) पाओगे। और रसूल का दायित्व केवल खुला आदेश पहुँचा देना है।
  • और रसूल तुम्हें पुस्तक(कुर्आन) तथा ह़िक्मत (बुद्धिमत्ता) सिखाता है तथा तुम्हें वो बातें सिखाता है, जो तुम नहीं जानते थे।
  • हे ईमान वालो! अल्लाह, और उसके रसूल तथा उस पुस्तक (क़ुर्आन) पर, जो उसने अपने रसूल पर उतारी है।ईमान लाओ।
  • हे आदम के पुत्रो! जब तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल जायें। जो तुम्हें मेरी आयतें सुनायें, तो जो डरेगा और अपना सुधार कर लेगा, उसके लिए कोई डर नहीं होगा।
  • हे नबी! आपके रब की और से जो वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है, उसका पालन करो।  निश्चय ही अल्लाह उससे सूचित है। जो तुम कर रहे हो।
  • है नबी! आप उसपर चलें, जो आपपर आपके रब की ओर से वहयी की जा रही है। उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है।
  • हेनबी!निश्चय ही हमने आपको गवाह बनाकर भेजा है, तथा शुभ सूचना देने एवं सावधान करने वाला बनाकर। ताकि तुम अल्लाह एवं उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसकी सहायता करो, तथा उनका आदर करो।
  • नि:संदेह, अल्लाह तथा उसके फ़रिश्ते नबी पर दरूद भेजते हैं। हे ईमान वालो! तुम भी उनपर दरूद तथा बहुत सलाम भेजो।

             अब जबकि अल्लाह के रसूल हमारे मध्य नहीं है। कि हमें कुरान की शिक्षा दें। लेकिन अल्लाह का शुक्र है कि! हमारे पास कुरान अपने मूल रूप में उपलब्ध है जिसका पालन स्वंम अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ ने किया था। तो अब क्या करे?  निर्णय लेने का अधिकार आपका है।

           क्योंकि अल्लाह कहता है। तथा जिन्होंने हमारी राह में प्रयास किया, तो हम अवश्य उन्हें अपनी राह दिखा देंगे”। (क़ु-29:69)।

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प्रश्न-3 हदीस क्या है? हदीस का पालन करना कैसा है?

           शरिया शब्द में, हदीस अल्लाह के रसूल ﷺ के लिए जिम्मेदार कथनों और कार्यों को संदर्भित करता है, यह ऐसा है जैसे हदीस शब्द कुरान के सापेक्ष बोला गया हो, क्योंकि कुरान प्राचीन है और हदीस इसकी तुलना में आधुनिक।

          हदीस कुरान के अवतरित होने के लगभग 200 साल बाद लिखी गयीं थी। जो सुनी-सुनाई बातों पर निर्भर थीं।  जब से हदीसें लिखी गई हैं, कमजोर और मजबूत हदीसों की चर्चा आम रही है। हदीस की नींव का श्रेय संदर्भों (Reference) को दिया जाता है। उदाहरण के लिए, उक्त व्यक्ति ने अपने पिता या दादा या किसी मित्र को यह कहते सुना कि उसने अमुक व्यक्ति के पिता या दादा या मित्र को अल्लाह के रसूल से कहते सुना था कि . . .

           हदीस का पालन करें या नहीं। उसके लिए प्रश्न संख्या 1 और प्रश्न संख्या 2 के विवरण को समझना आवश्यक है, साथ ही अल्लाह क्या कहता है। यह जानना भी जरूरी है।

اَللّٰہُ نَزَّلَ اَحۡسَنَ الۡحَدِیۡثِ کِتٰبًا مُّتَشَابِہًا مَّثَانِیَ ٭ۖ تَقۡشَعِرُّ مِنۡہُ جُلُوۡدُ الَّذِیۡنَ یَخۡشَوۡنَ رَبَّہُمۡ ۚ ثُمَّ تَلِیۡنُ جُلُوۡدُہُمۡ وَ قُلُوۡبُہُمۡ اِلٰی ذِکۡرِ اللّٰہِ ؕ ذٰلِکَ ہُدَی اللّٰہِ یَہۡدِیۡ بِہٖ مَنۡ یَّشَآءُ ؕ وَ مَنۡ یُّضۡلِلِ اللّٰہُ فَمَا لَہٗ مِنۡ ہَادٍ (۲۳)۔

[Q-39:23]

              अल्लाह ने बेहतरीन ह़दीस (क़ुर्आन) को नाज़िल किया है। ऐसी किताब जिसकी आयतें (पहली किताबों से) मिलती-जुलती हैं, बार-बार दुहराई जाने वाली हैं। जिन्हे (सुनकर) उनके रूँगटे खड़े हो जाते हैं जो खुदा से डरते हैं। फिर उनकी जिल्द (खाल) नरम हो जाती हैं। और उनके दिल और उनकी जिल्दें याद ऐ इलाही कि तरफ राग़िब (आकर्षित) होते हैं। यही अल्लाह की हिदायत है, इस कुरान के ज़रिये वह जिसे चाहता है हिदायत देता है, और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, तो उसे कोई हिदायत पर लाने वाला नहीं है।       

              अल्लाह ने सर्वोत्तम ह़दीस (क़ुर्आन) को अवतरित किया है। ऐसी पुस्तक, जिसकी आयतें (पहली पुस्तकों से) मिलती-जुलती हैं, बार-बार दुहराई जाने वाली हैं। जिसे (सुनकर) उनके रूँगटे खड़े हो जाते हैं जो खुदा से डरते हैं। फिर उनकी चमड़ी कोमल हो जाती हैं उनके दिल और उनकी चमड़ियाँ  अल्लाह के स्मरण की और आकर्षित होते हैं। यही अल्लाह का मार्गदर्शन (हिदायत) है, इसके द्वारा वह जिसे चाहता है संमार्ग अथार्थ सत्य के राह पर लगा देता है, और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो उसका कोई पथदर्शक नहीं है।


اَوَلَمۡ يَنۡظُرُوۡا فِىۡ مَلَـكُوۡتِ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ وَمَا خَلَقَ اللّٰهُ مِنۡ شَىۡءٍ ۙ وَّاَنۡ عَسٰٓى اَنۡ يَّكُوۡنَ قَدِ اقۡتَرَبَ اَجَلُهُمۡ‌ ۚ فَبِاَىِّ حَدِيۡثٍۢ بَعۡدَهٗ يُؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۱۸۵﴾۔

[Q-07:185]

            क्या उन्होंने नहीं देखा? कि ईश्वर ने जमीन व आसमान की बादशाहत में और जो कुछ पैदा किया है। (और इस बात पर भी ग़ौर नहीं करते कि) हो सकता है कि उनकी मौत का मुकर्रर वक़्त करीब आ गया हो? तो फिर इस हदीस के बाद वह किस बात पर ईमान लायेंगे?

            क्या उन्होंने आकाशों तथा धरती के राज्य को और जो कुछ अल्लाह ने पैदा किया है, उसे नहीं देखा? और (ये भी नहीं सोचा कि) हो सकता है कि उनकी मौत का निर्धारित समय समीप आ गया हो। तो फिर इस हदीस के पश्चात वह किस बात पर विश्वास लायेंगे?


وَمِنَ النَّاسِ مَنۡ يَّشۡتَرِىۡ لَهۡوَ الۡحَدِيۡثِ لِيُضِلَّ عَنۡ سَبِيۡلِ اللّٰهِ بِغَيۡرِ عِلۡمٍ‌ۖ وَّيَتَّخِذَهَا هُزُوًا ‌ؕ اُولٰٓٮِٕكَ لَهُمۡ عَذَابٌ مُّهِيۡنٌ‏ ﴿۶﴾۔

[Q-31:06]

             और कुछ लोग ऐसे हैं; जो बकवास हदीसें खरीदते हैं। ताकि लोगों को बिना ज्ञान (अर्थात वह ज्ञान जो कुरान से नहीं है) के माध्यम से अल्लाह के मार्ग से गुमराह किया जा सके। और इसे (यानी कुरान को) एक मजाक बना दें। ये वो लोग हैं जिनके लिए जिल्लत भरा अज़ाब है (6)।

             और कुछ लोग ऐसे हैं; जो अशिष्ट हदीसें खरीदते हैं। ताकि लोगों को बिना ज्ञान (अर्थात वह ज्ञान जो कुरान से नहीं है) के माध्यम से अल्लाह के मार्ग से कुपथ कर दें। और इसे (यानी कुरान को) एक उपहास बना दें। ये वो लोग हैं जिनके लिए अपमानजनक सज़ा होगी (6)।


لَـقَدۡ كَانَ فِىۡ قَصَصِهِمۡ عِبۡرَةٌ لِّاُولِى الۡاَلۡبَابِ‌ؕ مَا كَانَ حَدِيۡثًا يُّفۡتَـرٰى وَلٰـكِنۡ تَصۡدِيۡقَ الَّذِىۡ بَيۡنَ يَدَيۡهِ وَتَفۡصِيۡلَ كُلِّ شَىۡءٍ وَّهُدًى وَّرَحۡمَةً لِّـقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۱۱۱﴾۔

[Q-12:111]

             (वे पहली क़ौमें कि जिन पर अज़ाब नाज़िल किया गया)। उनके तारीखी किस्सों में अक्लमंदों के लिए इबरत है। यह हदीस (यानी कुरान) ऐसी (किताब) नहीं है जो (अपने दिल से) बनाई गई हो, बल्कि हर उस चीज़ या बात कि तसदीक़ करती है जो इसके पहले नाज़िल हुई थी। और जो लोग ईमान लाये उनके लिए हिदायत और रहमत है। (111)

            (वे प्रथम राष्ट्र (समुदाय) जिन्हें दण्ड दिया गया)। उनकी ऐतिहासिक कहानियों में बुद्धिमानों के लिए अवश्य एक शिक्षा है। यह हदीस (यानी कुरान) ऐसी कोई (किताब) नहीं है जो (अपने दिल से) बनाई गई हो, बल्कि यह उन सभी विवरण की पुष्टि करती है जो इसके पहले प्रकट हुए थे। और जो लोग ईमान लाये उनके लिए मार्गदर्शन और दया है (111)


فَبِاَىِّ حَدِيۡثٍۢ بَعۡدَهٗ يُؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۵۰﴾۔

[Q-77:50]

               तो इस (कुरान) के बाद वे और किस हदीस पर ईमान लाएंगे?

               तो इस (कुरान) के पश्चात वे और किस हदीस पर विश्वास करेंगे?


تِلۡكَ اٰيٰتُ اللّٰهِ نَـتۡلُوۡهَا عَلَيۡكَ بِالۡحَقِّ‌ ‌ۚ فَبِاَىِّ حَدِيۡثٍۢ بَعۡدَ اللّٰهِ وَاٰيٰتِهٖ يُؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۶﴾۔

[Q-45:06]

            ये अल्लाह की आयतें हैं, जो हम तुम्हें हक़ के साथ सुना रहे हैं। अत: अल्लाह तथा उसकी आयतों के बाद यह किस हदीस पर ईमान लायेंगे?

             ये ईश्वर के श्लोक हैं जो हम तुम्हें सच्चाई के साथ सुनाते हैं। तो ईश्वर और उसकी आयतों के बाद वे किस हदीस पर विश्वास करेंगे?


وَمَا هُوَ اِلَّا ذِكۡرٌ لِّلۡعٰلَمِيۡنَ‏ ﴿۵۲﴾۔

[Q-68:52]

            और (कुछ नहीं) सिवाय इसके! कि यह [कुरान] सारी दुनिया के लिए नसीहत  है।

            और ये (क़ुर्आन) पूरे संसार वासियों के लिए शिक्षा के अतिरिक्त कुछ नहीं।


بَلۡ هُوَ قُرۡاٰنٌ مَّجِيۡدٌ ۙ‏ ﴿۲۱﴾  فِىۡ لَوۡحٍ مَّحۡفُوۡظٍ ﴿۲۲﴾۔

[Q-85:21-22]

             बल्कि, यह अज़ीमुसशान क़ुर्आन है। जो लौह़े मह़फ़ूज़ (महान दिव्य पुस्तक) में दर्ज (लिखी) है।

             बल्कि, यह गौरव वाला क़ुर्आन है। जो लौह़े मह़फ़ूज़ (महान दिव्य पुस्तक) में सुरक्षित है।


اِنَّ هٰذِهٖ تَذۡكِرَةٌ ‌ ۚ فَمَنۡ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰى رَۖبِّهٖ سَبِيۡلًا ﴿۱۹﴾۔

[Q-73:19]

            बैशक यह (कुरान) एक नसीहत है। तो जिसे वह (रब) चाहता है। (इसके ज़रिये) वह तुम्हें अपने रब का रास्ता दिखा देता है। (19).

            निसन्देह यह (कुरान) एक मार्गदर्शन है। तो जिसे वह (प्रभु) चाहता है। (इसके द्वारा) वह तुम्हें अपने रब के मार्ग की ओर निर्देशित करता है। (19).


وَالسَّمَآءِ ذَاتِ الرَّجۡعِۙ‏ ﴿۱۱﴾  وَالۡاَرۡضِ ذَاتِ الصَّدۡعِۙ‏ ﴿۱۲﴾   اِنَّهٗ لَقَوۡلٌ فَصۡلٌۙ‏ ﴿۱۳﴾۔

[Q-86:11-13]

             आसमान की कसम, जो बरसता है। और (बीजों की नई कोंपलों से) फूटने वाली जमीन की कसम। बैशक यह (कुरान हक़ और बातिल में) फैसला करने वाला है।

              शपथ है आकाश की, जो बरसता है!  तथा (बीजों के अंकुरण से) फटने वाली धरती की। वास्तव में, ये (क़ुर्आन सत्य और असत्य में ) दो-टूक निर्णय करने वाला है।


فَمَا لَهُمۡ عَنِ التَّذۡكِرَةِ مُعۡرِضِيۡنَۙ‏ ﴿۴۹﴾  كَاَنَّهُمۡ حُمُرٌ مُّسۡتَنۡفِرَةٌ ۙ‏ ﴿۵۰﴾  فَرَّتۡ مِنۡ قَسۡوَرَةٍ  ؕ‏ ﴿۵۱﴾۔

[Q-74:49-51]

            उन्हे क्या हुआ है! जो इस हिदायत (यानी क़ुरआन) से मुँह मोड़ रहे हैं (49) (उनकी हालत ऐसी है) मानों वे बिदके हुए गधे हैं (50) जो एक शिकारी शेर के डर से भाग रहे हैं। (51).

           उन्हे क्या हुआ है! जो इस (क़ुरआन) से मुँह मोड़ रहे हैं (49) (उनकी हालत ऐसी है) मानों वे बिदके हुए गधे हैं (50) जो एक शिकारी शेर के डर से भाग रहे हैं। (51).

             अल्लाह सर्वशक्तिमान कहते हैं। कि बेहतरीन हदीस की किताब [क़ुरआन] है जिसके द्वारा वह जिसे चाहता है हिदायत देता है। और यह कि! कुरान पूरी दुनिया के लिए एक नसीहत है, और यह कि! यह महान है, यह लोह-ए-मफूज (वह पुस्तक जिसमें आदि से अंत तक का ज्ञान है) में संरक्षित है, और यह कि! प्रभु का द्वार खोलने वाली है, और यह कि! सच और झूठ को अलग करने वाली है,  और यह कि! जो लोग इस पुस्तक से दूरी बना लेते हैं, वे उन गधों के समान हैं, जो शिकारी सिंह से दूर भाग रहे हैं।

            कुरान में उपलब्ध कई आयात से यह सिद्ध है कि अल्लाह ने श्रेष्ट हदीस की किताब क़ुरआन नाज़िल की है, और दूसरी किताबों से इस्लाम सीखने और सिखाने की मनाही है। तो क्या इसके बाद भी दूसरी हदीसों पर ईमान लाओगे? अल्लाह हमें अपनी अमान में रखे। आमीन।


وَيَرَى الَّذِيۡنَ اُوۡتُوا الۡعِلۡمَ الَّذِىۡۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ هُوَ الۡحَـقَّ ۙ وَيَهۡدِىۡۤ اِلٰى صِرَاطِ الۡعَزِيۡزِ الۡحَمِيۡدِ‏ ﴿۶﴾۔

[Q-34:06] 

           और जिन (अहले किताब को) इल्म अता किया गया है। वे जानते हैं कि आपके रब ने जो (कुरान) आप पर नाज़िल किया है, वह हक़ है। और यह (कुरान) ग़ालिब और क़ाबिले तारीफ रब की रहनुमाई करता है। (6).

और जिन (अहले किताब को) ज्ञान दिया गया है. वे जानते हैं कि आपके रब ने जो (कुरान) आप पर प्रकट किया है, वह सत्य है। और यह (कुरान) शक्तिशाली और प्रशंसनीय भगवान का मार्गदर्शन करता है। (6).


قُلْ لَّٮِٕنِ اجۡتَمَعَتِ الۡاِنۡسُ وَالۡجِنُّ عَلٰٓى اَنۡ يَّاۡتُوۡا بِمِثۡلِ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ لَا يَاۡتُوۡنَ بِمِثۡلِهٖ وَلَوۡ كَانَ بَعۡضُهُمۡ لِبَعۡضٍ ظَهِيۡرًا‏ ﴿۸۸﴾  وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا لِلنَّاسِ فِىۡ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ مِنۡ كُلِّ مَثَلٍ ؗ فَاَبٰٓى اَكۡثَرُ النَّاسِ اِلَّا كُفُوۡرًا‏ ﴿۸۹﴾۔

[Q-17:88-89]

            आप कह दें! यदि सब इंसान व जिन्न इस बात पर इकट्ठा हो जायें, कि इस क़ुर्आन के जैसा बना लें। तो इसके जैसा नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे के मददगार ही क्यों न हो जायें! और यक़ीनन हमने लोगों के लिए इस क़ुर्आन में हर मिसाल फेर फेर कर बयान कर डी है। फिर भी अक्सर लोगों ने कुफ़्र ही किया है।

            आप कह दें! दि सब मनुष्य तथा जिन्न इस बात पर एकत्र हो जायें कि इस क़ुर्आन के समान ले आयेंगे, तो इसके समान नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे के समर्थक ही क्यों न हो जायें! और हमने लोगों के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण विविध शैली में वर्णित किया है, फिर भी अधिक्तर लोगों ने कुफ़्र ही स्वीकार किया है।


قُلۡ اِنَّمَاۤ اَتَّبِعُ مَا يُوۡحٰٓى اِلَىَّ مِنۡ رَّبِّىۡ ۚ  هٰذَا بَصَآٮِٕرُ مِنۡ رَّبِّكُمۡ وَهُدًى وَّ رَحۡمَةٌ لِّقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۲۰۳﴾۔

[Q-07:203]

             आप कह दें कि मैं केवल उसी की पैरवी करता हूँ, जो मेरे रब की और से मेरी ओर वह़्यी की जाती है। ये तुम्हारे रब की ओर से बसीरत की बातें हैं, और ईमान लाने वाले लोगों के लिए हिदायत और रहमत है। (203)

           आप! कहो कि मैं केवल उसका पालन करता हूँ, जो मेरा रब मुझ पर प्रकट करता है। ये तुम्हारे रब की ओर से सूक्ष्मर्दृष्टि के शब्द हैं, तथा मार्गदर्शन और दया हैं, उन लोगों के लिए जो ईमान (विश्वास) रखते हों। (203)


 

وَاَنۡ اَتۡلُوَا الۡقُرۡاٰنَ‌ ۚ ﴿۹۲﴾۔

[Q-27:92]

             “और यह कि! कुरान पढ़ा करो”।


وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا الۡقُرۡاٰنَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِنۡ مُّدَّكِرٍ‏ ﴿۱۷﴾۔

[Q-54:17/22/32/40]

           और यक़ीनन हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान बना दिया है। तो क्या कोई है, जो नसीहत हासिल कर सके? (17).


وَاتَّبِعُوۡۤا اَحۡسَنَ مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكُمۡ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ مِّنۡ قَبۡلِ اَنۡ يَّاۡتِيَكُمُ الۡعَذَابُ بَغۡتَةً وَّاَنۡتُمۡ لَا تَشۡعُرُوۡنَۙ‏ ﴿۵۵﴾۔

[Q-39:55]

             और उस बेहतरीन किताब की पैरवी करो, जो तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर नाज़िल हुई है। इससे पहले कि अचानक कोई अज़ाब तुम पर आ पड़े। जिसके बारे में आपको इल्म नहीं है (55).

           और उस सर्वोत्तम किताब (कुरान) का अनुसरण करो, जो तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुई है। इससे पहले कि अचानक कोई यातना तुम पर आ पड़े। जिसके बारे में तुम्हें ज्ञान भी न हो। (55).


وَهٰذَا كِتٰبٌ اَنۡزَلۡنٰهُ مُبٰرَكٌ فَاتَّبِعُوۡهُ وَاتَّقُوۡا لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُوۡنَۙ ‏‏﴿۱۵۵﴾۔

[Q-06:155]

             और यह मुबारक किताब (कुरान) जो हमने नाज़िल की है, इसकी पैरवी करो। और परहेज़गारी (तक़वा) अपनाओ। ताकि तुम पर रहम किया जाए (155).

              और यह शुभकारी पुस्तक है, जो हमने अवतरित की है। अतः इस (कुरान) का पालन करो। और परहेज़गारी अपनाओ। ताकि तुम पर रहम किया जाए (155).


وَهٰذَا صِرَاطُ رَبِّكَ مُسۡتَقِيۡمًا‌  ؕ  قَدۡ فَصَّلۡنَا الۡاٰيٰتِ لِقَوۡمٍ يَّذَّكَّرُوۡنَ‏ ﴿۱۲۶﴾۔

[Q-06:126]

             और यह [कुरान] तुम्हारे रब तक जाने का सीधा रास्ता है। बेशक़ उन लोगों के लिए जो ग़ौर करते हैं, हमने अपनी आयतें साफ-साफ बयान कर दी हैं। (126).

             और यह [कुरान] तुम्हारे रब तक जाने का सीधा रास्ता है। निस्संदेह, उन लोगों के लिए जो विचार करते हैं, हमने अपनी आयतें स्पष्ट रूप से समझा दी हैं। (126).


اَفَغَيۡرَ اللّٰهِ اَبۡتَغِىۡ حَكَمًا وَّهُوَ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلَ اِلَيۡكُمُ الۡـكِتٰبَ مُفَصَّلاً ؕ ﴿۱۱۴﴾۔

[Q-06:114]

              हे नबी कहो! क्या मैं अल्लाह के अलावा किसी और को हाकिम बना दूँ? हालाँकि उस अल्लाह ने तुम्हारे पास एक किताब नाज़िल की है जिसमें तमाम तफ़सीलात बयान की गई हैं? (114)

              हे नबी कहो! क्या मैं अल्लाह के अतिरिक्त किसी और को शासक बना दूं? हालाँकि उस अल्लाह ने तुम्हारे पास एक पुस्तक उतारी है जिसमें सभी विवरण वर्णित हैं (114)?


           अल्लाह तआला फ़रमाता है कि तुम में से जो सच्चे विद्वान हैं वे जानते हैं कि यह क़ुरआन उनके रचीयता का भेजा हुआ मार्गदर्शन है। और यदि सारे जिन्न व इंसान आपस मिल भी जाएँ तो भी वे इस किताब की प्रति (बदल) नहीं ला सकते। मुहम्मद ﷺ अल्लाह के आदेश से घोषणा करते हैं कि मैं भी उसी वहयी का पालन करता हूँ। जो अल्लाह मुझ पर उतारता है। जो समझ (बुद्धिमत्ता) के शब्द हैं और मार्गदर्शन और दया का मार्ग खोलते हैं।

            अल्लाह फरमाता है कि हमने क़ुरआन में हर अहम बात को अलग-अलग तरीके से बयान किया है ताकि तुम समझ सको। अतः क़ुरआन पढ़ो (अपनी भाषा में ताकि तुम समझ सको)। और फिर अल्लाह ऐलान करता है कि इससे पहले कि मौत तुम पर आ जाए। है कोई हिदायत पाने वाला? जो इस किताब का पालन करे। तथा परहेज़गारी (धर्मनिष्ठता) को पसन्द करे। ताकि मैं तुम पर रहम करूँ।

             अब जबकि अल्लाह ने तमाम तर्कों के साथ सब कुछ स्पष्ट कर दिया है। तो क्या अब भी कोई शक बाक़ी है? आइए अतीत में झांक कर देखें।

             आदम (अ०स०) से नूह (अ०स०) की जलप्रलय तक की यात्रा लगभग 1600 वर्ष की है। और इन 1600 वर्षों में, मनुष्य शैतानवाद की ओर इतना झुक चुका था, कि पैगंबर नूह (अ०स०) और उनके कुछ साथियों के अतिरिक्त पृथ्वी पर अविस्वासियों (काफिरों) का बोलबाला था। तथा अल्लाह को हज़रत नूह (अ०स०) की बददुआ (श्राप) के कारण पानी की प्रलय के माध्यम से सब कुछ मिटा देना पड़ा।

            नूह (अ०स०) की जल प्रलय और अब्राहम (अ०स०) के समय का अंतराल लगभग 350 वर्षों का है, और उन 350 वर्षों में अब्राहम के अलावा इस पृथ्वी पर कोई भी विश्वासी (ईमान वाला) नहीं था। परिणामस्वरूप, यहाँ से ब्रहंमाण्ड के परमेश्वर को इब्राहीम का परमेश्वर कहा गया और वह एक परिवार या एक गोत्र का परमेश्वर ठहरा।

           इब्राहीम (अ०स०) के इस परिवार के कनान से मिस्र में स्थानांतरण होने और मूसा (अ०स०) के मिस्र से प्रस्थान के बीच का अंतराल लगभग 430 वर्ष है। इस अवधि में, बनी इस्राइल! इब्राहीम, इसहाक और याकूब के परमेश्वर का दम तो भरते हैं। लेकिन हजरत मूसा (अ०स०) के तमाम चमत्कारों और खुदा की रहमत और मेहरबानी को अपनी आंखों से देखने के उपरांत भी विश्वास नहीं रखते। और समय-समय पर हज़रत मूसा (अ०स०) से झगड़ते रहते हैं।

            अति तब होती है जब हजरत मूसा (अ.स.) की केवल 40 दिनों की अनुपस्थिति में बनी इस्राइल सोने के बछड़े की पूजा करके काफिर बन जाते हैं। खुदा माफ करे! और उसके बाद परमेश्वर के नबियों का विरोध करना और उन्हें मार डालना एक प्रथा बन जाती है। हजरत याह्या और जीसस की मिसाल मोजूद है।

           इस काल में ईश्वर से प्राप्त पवित्र ग्रन्थों और आदेशों को विकृत करना विद्वानों और राजनीतिज्ञों का शौक बन गया। प्राचीन तोराह और ज़बूर को छोड़ भी दें, फिर भी! आधुनिक समय की बाइबल के 100 से अधिक विभिन्न संस्करण उपलब्ध हैं। इसी तरह कुरान की व्याख्या के नाम पर, कभी मुहम्मद ﷺ के नाम पर, कभी खलीफाओं और सहाबियों के नाम पर, कभी कमजोर और मजबूत के नाम पर, विभिन्न हदीसें इस्लाम के आगमन के 200 वर्ष बाद अस्तित्व में आयीं।

            इस चर्चा का उद्देश्य यह है कि मैं डॉ. मंसूरी पाठकों के समक्ष कुछ प्रश्न रखना चाहता हूँ। दुनिया के सभी मुस्लिम फिरकों को एक तरफ रखकर स्वंम से उत्तर माँगिये।

           जब खुदा ने एक ऐसी किताब (कुरआन) हमें दी है, जो आज भी अपनी मूल नकल पर आधारित है, और जिसकी सुरक्षा कि जिम्मेदारी स्वंम खुदा ने ली है (कुरान 6:115), जिसमें तमाम हुक्म साफ साफ और भिन्न भिन्न शैली में सूचीबद्ध हैं। (Q-7:52), और आदेश दिया कि इस दिन से, इस्लाम पूरे संसार के लिए सत्य धर्म ठहरा। (क्यू-3: 85)। तथा इस्लाम का पालन करने वालों पर कुरान का पालन करना अनिवार्य है (कुरान 7:52)। तो क्या हम अब भी उन हदीसों का पालन करेंगे? जबकि . . . . . . .

  • ये हदीसें इस्लाम के 200 वर्ष बाद अस्तित्व में आयीं।
  • इन हदीसों के अलग-अलग लेखक हैं और जो कि इंसान हैं।
  • क्या खुदा या मुहम्मद ﷺ ने भविष्यवाणी की थी कि इस्लाम के 200 साल बाद विद्वान (आलिम) हदीसें लिखेंगे। और तुम ईमान वालों उनका पालन करना।
  • क्या ईश्वर का वचन (क़ुरआन) पूर्ण नहीं है?
  • क्या अल्लाह सर्वशक्तिमान ने क़यामत के दिन तक क़ुरआन को मार्गदर्शन (हिदायत) का स्रोत नहीं बनाया है?
  • क्या यह हदीसें स्वंम आपस में बहस का मुद्दा नहीं हैं?
  • क्या इन सुन्नतों और हदीसों की रोशनी ने इस्लाम को सैकड़ों फिरकों में बाँट नहीं दिया?
  • क्या इस्लाम में संप्रदायों (फिरकों) का अस्तित्व वैध (हलाल) है? अल्लाह सर्वशक्तिमान कहता है।

اِنَّ الَّذِيۡنَ فَرَّقُوۡا دِيۡنَهُمۡ وَكَانُوۡا شِيَـعًا لَّسۡتَ مِنۡهُمۡ فِىۡ شَىۡءٍ‌ ؕ اِنَّمَاۤ اَمۡرُهُمۡ اِلَى اللّٰهِ ثُمَّ يُنَـبِّـئُـهُمۡ بِمَا كَانُوۡا يَفۡعَلُوۡنَ‏ ﴿۱۵۹﴾۔

[Q-6:159]

            यक़ीनन जिन लोगों ने अपने मजहब को फिरकों में बाँट दिया, और फिरकों में बदल गये। तुम्हें उनसे कोई लेना-देना नहीं है, उनका मामला अल्लाह के पास है।’ फिर वह (अल्लाह) उन्हें बताएगा कि वे क्या करते थे” (कु-06:159)।

            वास्तव में, जिन लोगों ने अपने धर्म को गुटों में बाँट दिया, और गुटों में बदल गये। तुम्हें उनसे कोई लेना-देना नहीं है, उनका मामला अल्लाह के अधिकार मे  है।’ फिर वह (अल्लाह) उन्हें बताएगा कि वे क्या करते थे” (कुरान-06:159)।


         अब एक बात सौ फीसदी कही जा सकती है कि कुरान फिरके नहीं सिखाता। इस्लाम केवल इस्लाम है जो कुरान का पालन करने पर आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। फिरकों (संप्रदायों) में वे ही लोग आस्था रखते हैं। जो आज के आलिमों की सुन्नत और हदीस में विस्वास रखते हैं, ठीक उसी तरह जैसे अगले नबियों की मुस्लिम उम्मत उस ज़माने के आलिमों और विक्रत किताबों में विस्वास कर लेती थी।

         वास्तव में, कुरान सब कुछ स्पष्ट रूप से बताता व सिखाता है, लेकिन निर्णय लेने का अधिकार आपका अपना है,

         क्योंकि अल्लाह फरमाता है। “और जिन लोगों ने हमारे लिए कोशिश की! हम उन्हें अपना रास्ता जरूर (अवश्य) समझा देंगे” (कु०-29:69।

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प्रश्न-4 क्या शिक्षक की सहायता के बिना कुरान पढ़ सकते हैं?

هُوَ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلَ عَلَيۡكَ الۡكِتٰبَ مِنۡهُ اٰيٰتٌ مُّحۡكَمٰتٌ هُنَّ اُمُّ الۡكِتٰبِ وَاُخَرُ مُتَشٰبِهٰتٌ‌ؕ فَاَمَّا الَّذِيۡنَ فِىۡ قُلُوۡبِهِمۡ زَيۡغٌ فَيَتَّبِعُوۡنَ مَا تَشَابَهَ مِنۡهُ ابۡتِغَآءَ الۡفِتۡنَةِ وَابۡتِغَآءَ تَاۡوِيۡلِهٖ ۚ وَمَا يَعۡلَمُ تَاۡوِيۡلَهٗۤ اِلَّا اللّٰهُ ‌ۘ  وَالرّٰسِخُوۡنَ فِى الۡعِلۡمِ يَقُوۡلُوۡنَ اٰمَنَّا بِهٖۙ كُلٌّ مِّنۡ عِنۡدِ رَبِّنَا ‌ۚ وَمَا يَذَّكَّرُ اِلَّاۤ اُولُوا الۡاَلۡبَابِ‏ ﴿۷﴾۔

[Q-03:07]

            उसी (अल्लाह) ने आप पर ये किताब (क़ुर्आन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुहकम (जिन के अर्थ वाज़ह) हैं। और यही उम्मुल किताब (असल किताब) है। तथा कुछ दूसरी आयतें मुतशाबिह हैं (वे आयतें जिन्हें समझना मुश्किल है या जिनके कई अर्थ हैं)। तो जिनके दिलों में कजी (यानी टेढ़ापन) है, वे फ़ितना की तलाश तथा मनमाने मायनी निकालने के लिए, मुतशाबिहात के पीछे पड़ जाते हैं। जबकि उनके असल मायनी अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता। और जो इल्म में पुख्ता हैं, वे कहते हैं कि हम इस पर ईमान लाए, यह सब हमारे रब की  तरफ से है। और अक्लमंद लोग ही नसीहत कूबूल करते हैं।

           वही (परमेश्वर) है जिसने तुम पर किताब (क़ुर्आन) अवतरित की है; इसकी कुछ आयतें निर्णायक हैं [मुहकम- जिनके अर्थ स्पष्ट हैं], वे पुस्तक का आधार (उम्मुल किताब) हैं। और अन्य रूपक हैं [मुतशाबिहत- वे आयतें जिन्हें समझना मुश्किल है या जिनके कई अर्थ हैं]; फिर जिनके दिलों में कुटिलता है, वे उसके उस भाग का अनुसरण करते हैं जो रूपक है, गुमराह करना चाहते हैं या उसकी (अपनी) व्याख्या करना चाहते हैं। परन्तु अल्लाह के सिवा कोई उनकी व्याख्या नहीं जानता। और जो लोग ज्ञान में दृढ़ हैं, वे कहते हैं! हम इस पर ईमान लाए, यह सब हमारे रब की ओर से है; और सलाह केवल बुद्धिमानों द्वारा ही स्वीकार की जाती है।


             यह आयत कुरान को पढ़ने व पढ़ाने, समझने और समझाने की कुंजी है। इस आयत के अनुसार, कुरान हमें समय के तीन काल के विषय में सूचित करता है। अतीत, वर्तमान और भविष्य। जब कुरान अतीत और वर्तमान के विषय में बात करता है, तो ये मुहकम (निर्णायक) आयतें हैं। जो हमें आसानी से समझ में आ जाती हैं। अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है! कि यह जो सरलता से आपको समझ में आ रहा है। यह उम्मुल किताब है, यानी कुरान की आत्मा या कुरान का सार। उम्मी का अर्थ अरबी में मां है।

           और जो तुम नहीं समझते। वह मुतशाबिहात यानी भविष्य है। और भविष्य को परमेश्वर के सिवा कोई नहीं जानता। यहाँ तक कि ईश्वर के दूत मुहम्मद (ﷺ) भी नहीं जानते थे। हाँ! जितना ईश्वर ने चाहा। अब जो विद्वान (आलिम) इन मुतशाबिह छंदों (आयतों) की व्याख्या या व्याख्या करने का प्रयास करते हैं। वोह केवल और केवल अपने लालच को भड़काते हैं। क्योंकि इन श्लोकों (आयतों) की व्याख्या तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि ईश्वर की इच्छा न हो। और जब परमेश्वर किसी को मुतशाबिह श्लोक (आयत) की व्याख्या समझाना चाहता है, तो वह उस युग के अनुसार समझा देता है।

             विश्वास करें! यह नाचीज़ इस बात का गवाह है कि कई आयात की समझ मेरे रब ने ऐसे मेरे हृदय में प्रकट की। मानो प्रेरणा हो गई हो, और हृदय शांत हो गया, कि हां! केवल यही है यही है। और यह तब हुआ जब मैं न तो इबादत (पूजा) में था और न ही नींद में, बल्कि सांसारिक जरूरतों में लगा हुआ था। और बस अचानक ही सब कुछ हो गया।

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मुहकम (समझ में आने वाली) आयात।

             कुरान का पाठ करते समय, हमें मुहकम आयात (निर्णायक, समझ में आने वाली) आयात पर विचार करना चाहिए। क्योंकि यही उम्मी क़ुरआन है, रब के मार्गदर्शन व दया तथा नियम और आदेश इन्हीं आयात में स्पष्ट हैं।

هُوَ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلَ عَلَيۡكَ الۡكِتٰبَ مِنۡهُ اٰيٰتٌ مُّحۡكَمٰتٌ هُنَّ اُمُّ الۡكِتٰبِ ﴿۷﴾۔

[Q-03:07]

              उसी (अल्लाह) ने आप पर ये किताब (क़ुर्आन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुहकम हैं (जिन के अर्थ स्पष्ट हैं)। जो उम्मुल किताब (असल किताब) है

             उसी (ईश्वर) ने आप पर ये पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुहकम (सुदृढ़) हैं (जिन के अर्थ स्पष्ट हैं)। जो उम्मुल किताब (पुस्तक का मूल आधार) हैं।

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मुत्तशाबिहात आयात (भविष्य की धरोहर)। 

وَاُخَرُ مُتَشٰبِهٰتٌ‌ؕ فَاَمَّا الَّذِيۡنَ فِىۡ قُلُوۡبِهِمۡ ز%