2. ईश्वरीय सुन्नत, हदीस और क़ुरान

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رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔ 

सभी स्वर्गीय पुस्तकों में दो प्रकार की आदेश हैं।

  1. पैग़ंबरों और उनके समुदायों के लिए विभिन्न आदेश और नियम (शरीयत )।
  2. प्रत्येक पैग़ंबर और उनके समुदायों के लिए एक समान आदेश (शब्द एकेश्वरवाद/ ईश्वरीय सुन्नत)।

 

Contents

1. पैगंबरों और उनके समुदायों के लिए विभिन्न आदेश और नियम (शरीयत)।

وَمَا كَانَ لِرَسُوۡلٍ اَنۡ يَّاۡتِىَ بِاٰيَةٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰهِ‌ ؕ لِكُلِّ اَجَلٍ كِتَابٌ‏ (۳۸)  يَمۡحُوۡا اللّٰهُ مَا يَشَآءُ وَيُثۡبِتُ ‌ۖ ‌ۚ وَعِنۡدَهٗۤ اُمُّ الۡكِتٰبِ‏ ﴿۳۹﴾۔

[Q-13:38-39]

               (अल्लाह सभी नबियों के लिए प्रकट की गई पुस्तकों और शास्त्रों के लिए फरमाता है)! और किसी रसूल के बस में नहीं था कि अल्लाह की अनुमति के बिना कोई निशानी ले आये। तथा हर समय व काल  के लिए एक निर्धारित पुस्तक है। ईश्वर/अल्लाह जिस (आदेश) को चाहता है, मिटा देता है और जिस (आदेश) को चाहता है, शेष (साबित) रखता है। उसी के पास मूल पुस्तक “लौह़े मह़फ़ूज़” (दिव्य ग्रंथ) है।

              ईश्वर ने सभी पैगंबरों को एक आदेश यानी सच्चे रब का शब्द (एकेश्वर, जिस का कोई साझी नहीं) पर स्थिर रखने के साथ, समय व काल और जरूरतों के अनुसार शरीयत (नियम और क़ानून) को अपडेट किया, अत: सर्वशक्तिमान ईश्वर को जब आवश्यकता महसूस हुई, तो उसने पैग़ंबरों पर नये नियम और क़ानून के साथ शास्त्रों और पुस्तकों को अवतरित किया। यहाँ यह देखने वाली बात है कि प्रत्येक पैग़म्बर को शास्त्र या पुस्तक नहीं मिली, अपितु जब समयानुसार आवश्यकता पड़ी।

             समय के साथ आवश्यकतायें बदलती रहती है। लोगों के अपराध और अपराध के पैटर्न बदलते रहते हैं। दंड भी बदलते रहते हैं। नये-नये कानून बनते हैं। और इस सब के मध्य! आदि से अंत तक निर्णय करने का अधिकार न्यायालय (ईश्वर) के पास ही होता है। अंततः जो परिवर्तन को स्वीकार करता है वही सफल होता है अन्यथा उसका अस्तित्व मिट जाता है।

             अब यह स्पष्ट हो जाता है, कि प्रथम पैग़म्बर आदम (अ०स०) से लेकर अंतिम पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ तक के पैग़म्बरों की उम्मतों (समुदायों) पर अनिवार्य हैं कि ईश्वर की नई शरीयत (जो उस समय के अनुसार है) को खुशी-खुशी स्वीकार कर सफल गंतव्य प्राप्त करें। अन्यथा उस काल (ज़माने) से पहले पैग़म्बर पर अवतरित (नाज़िल) क़ानून, जो समय के साथ असहाय हो गया है, उन्हें ईश्वर के रास्ते से दूर कर देगा।

हालाँकि, अल्लाह फरमाता है कि!

          यदि पूर्व के समुदाय एकेश्वरवाद (ईश्वरीय सुन्नत) के साथ अपने समय की शरीयत (कानून व्यवस्था) का ईमानदारी के साथ पालन करते हैं, और अच्छे कर्म करते हैं। तो अंतिम अदालत के दिन उनका निर्णय उनकी शरीयत के अनुसार होगा।

اِنَّ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَالَّذِيۡنَ هَادُوۡا وَالصَّابِـُٔـوۡنَ وَالنَّصٰرٰى مَنۡ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَالۡيَوۡمِ الۡاٰخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًـا فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُوۡنَ‏ ﴿۶۹﴾۔

[Q-05:69]

                नि:संदेह, जो ईमान लाये (मुस्लिम), तथा जो यहूदी या साबी तथा ईसाई हैं, जो भी अल्लाह तथा अन्तिम दिन पर ईमान लायेगा (ईश्वरीय सुन्नत) तथा सत्कर्म करेगा (शरीयत), तो उनके लिए कोई डर नहीं और न वे उदासीन होंगे।


اِنَّ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَالَّذِيۡنَ هَادُوۡا وَالنَّصٰرٰى وَالصّٰبِـِٕـيۡنَ مَنۡ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَالۡيَوۡمِ الۡاٰخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًـا فَلَهُمۡ اَجۡرُهُمۡ عِنۡدَ رَبِّهِمۡ ۚ  وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُوۡنَ‏ ﴿۶۲﴾۔

[Q-02:62]

             वस्तुतः, जो ईमान लाये (मुस्लिम) तथा जो यहूदी हुए और नसारा (ईसाई) तथा साबी हैं, (अथार्थ दिव्य पुस्तकों पर आधारित धर्म) जो भी अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लायेगा और सत्कर्म करेगा, उनका प्रतिफल उनके पालनहार के पास है और उन्हें कोई डर नहीं होगा और न ही वे उदासीन होंगे।

              लेकिन शर्त यह है कि किताब वालों ने किसी को अल्लाह का साझीदार नहीं बनाया हो। यानी यह लोग कुफ़्र नहीं करते हों।


اِنَّ اللّٰهَ لَا يَغۡفِرُ اَنۡ يُّشۡرَكَ بِهٖ وَيَغۡفِرُ مَا دُوۡنَ ذٰ لِكَ لِمَنۡ يَّشَآءُ‌ ؕ وَمَنۡ يُّشۡرِكۡ بِاللّٰهِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلٰلًاۢ بَعِيۡدًا‏ ﴿۱۱۶﴾۔

[Q-04:116]

             निःसंदेह, अल्लाह उसे क्षमा नहीं करेगा कि जिसने किसी अन्य को उसका साझी बनाया। और इसके अतिरिक्त जिसे चाहेगा, क्षमा कर देगा तथा जो अल्लाह का साझी बनाता है, वह (दरअसल) कुपथ में बहुत दूर चला गया।

            अल्लाह फरमाता है कि! जिन्होंने हमारी राह में प्रयास किया, तो हम अवश्य उन्हें अपनी राह दिखा देंगे”। (क़ु-29:69)।

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2. प्रत्येक पैग़ंबर और उनके समुदायों के लिए एक समान आदेश (शब्द एकेश्वरवाद/ईश्वरीय सुन्नत)।

            “सभी नबियों को प्राप्त एक समान आदेश शब्द एकेश्वरवाद (ला-इलाहा ईल-लललाह) है। अथार्थ नहीं है कोई! ईश्वर (अल्लाह) के अतिरिक्त”। अल्लाह तक पहुँचने का रास्ता, पवित्र किताबों में दिए गए उन आदेशों और नियमों से होकर गुजरता है, जो नबियों को रहस्योद्घाटन (वहयी) के माध्यम से बताए गए थे। और उनमें से सबसे नवीनतम संस्करण कुरान है। जिसे परमात्मा ने आखिरी नबी हजरत मुहम्मद (ﷺ) पर प्रकट किया, “और जिसे परमात्मा ने पूरी दुनिया के लिए नसीहत (हिदायत) का स्रोत घोषित किया”। (क़ु-68: 52)। “और जिसमें परमात्मा ने आशीर्वाद रखा है।” (क़ु-6:155)।

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मोहम्मद ﷺ और अन्य पैग़ंबरों को एकसमान आदेश।

مَا يُقَالُ لَـكَ اِلَّا مَا قَدۡ قِيۡلَ لِلرُّسُلِ مِنۡ قَبۡلِكَ ‌ؕ ﴿۴۳﴾۔

[Q-41:43]

         “आपसे भी वही कहा जा रहा है, जो आपसे पूर्व रसूलों से कहा गया था”।

             नि:संदेह, अल्लाह ने मुहम्मद ﷺ और उनके पहले के सभी रसूलों को जो एक समान आदेश वहीय किया। वह एकेश्वरवाद का आदेश है। बहुदेववादी हों या पाखंडी या नास्तिक सब जानते हैं। कि अल्लाह, ईश्वर, गॉड, भगवान, चाहे किसी भी नाम से बुलाओ, लेकिन वह एक ही है। इस ब्रह्मांड का निर्माता भी वही है। संसार के सभी मनुष्य एक ही माता-पिता की सन्तान हैं।

             लेकिन मानव! जिसे ईश्वर ने बुद्धि दी। कि वह ईश्वर की रचनाओं को देखकर, पहचानकर और समझकर चिंतन करता और उसकी पूजा करने का विचार करता। परंतु इंसान ने ईश्वर को विभाजित कर दिया। मुख से कहता है कि रचीयता एक है। लेकिन मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों और अन्य पूजा स्थलों में बैठकर, वह आपके भगवान और मेरे भगवान का आविष्कार करता है। “खुदाया खैर”

           दुनिया में जितने भी पैगम्बर आये, भले ही वे किसी भी देश से हों।  उनका सन्देश एक ही था, कि. . . . . ..

وَهُوَ اللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ؕ لَـهُ الۡحَمۡدُ فِى الۡاُوۡلٰى وَالۡاٰخِرَةِ وَلَـهُ الۡحُكۡمُ وَاِلَيۡهِ تُرۡجَعُوۡنَ‏ ﴿۷۰﴾۔

[Q-28:70]

            तथा वही एक अल्लाह  (परमात्मा) है, उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है लोक तथा परलोक में उसी के लिए सब प्रशंसा है और उसी के लिए शासन है और तुम उसी की ओर लोटाये जाओगो।


وَمَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ قَبۡلِكَ مِنۡ رَّسُوۡلٍ اِلَّا نُوۡحِىۡۤ اِلَيۡهِ اَنَّهٗ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّاۤ اَنَا فَاعۡبُدُوۡنِ‏ ﴿۲۵﴾۔

[Q-21:25]

             और हमने आपसे पहले ऐसा कोई भी रसूल नहीं भेजा, कि जिस कि ओर यह वह़्यी (प्रकाशना) न की हो कि मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है। अतः मेरी ही इबादत (वंदना) करो।


وَمَا خَلَقۡتُ الۡجِنَّ وَالۡاِنۡسَ اِلَّا لِيَعۡبُدُوۡنِ‏ ﴿۵۶﴾۔

[Q-51:56]

            और मैंने जिन्न तथा मनुष्य को उत्पन्न किया, ताकि वह मेरी ही इबादत करें।


قُلۡ اِنَّمَاۤ اُمِرۡتُ اَنۡ اَعۡبُدَ اللّٰهَ وَلَاۤ اُشۡرِكَ بِهٖؕ اِلَيۡهِ اَدۡعُوۡا وَاِلَيۡهِ مَاٰبِ‏ ﴿۳۶﴾۔

[Q-13:36]

          आप ﷺ कह दें कि मुझे आदेश दिया गया है कि अल्लाह की इबादत (वंदना) करूँ। और किसी को उसका साझी न बनाऊँ। मैं उसी की ओर बुलाता हूँ और उसी की ओर मुझे जाना है।

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           ईसा मसीह ने शैतान पर लानत भेजी, और कहा! “क्योंकि (तोरात में) लिखा है, कि तू सिर्फ अपने खुदा को सज़्दा कर। और उसी की पूजा (वंदना) कर”। (मत्ती कि इंजील 4:10),

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धर्म कैसे अस्तित्व में आये?

              जब अल्लाह ने इस दुनिया में पहला आदमी भेजा तो धर्म नाम की कोई चीज नहीं थी। उस व्यक्ति ने जीवन की अनिवार्यताएं पूरी करने के साथ परमेश्वर का धन्यवाद किया। और बस। लेकिन समय के साथ, जब परिवार बढ़ता है, तब शैतान मनुष्य के विचारों में हस्तक्षेप करता है। फलस्वरूप अपराध उत्पन्न होते हैं। परमेश्वर यह देखकर अपने जलाल में आता है। और शास्त्रों के रूप में संविधान वह्ई (प्रकट) करता है। और भविष्य वक्ताओं (देवदूतों) की श्रृंखला स्थापित हो जाती है।

             अब समय बीतने के साथ जनसंख्या में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप लोगों के विरोधी विचारों में वृद्धि होती है। लोग ईश्वर को धन्यवाद देना बंद कर देते हैं और अविश्वास (कुफ्र) करने लगते हैं। फिर ईश्वर / अल्लाह, एक नये रसूल (देवदूत) के साथ एक नया संविधान प्रकट करता है। यहीं से धर्म अस्तित्व में आता है। क्योंकि लोग अल्लाह के नये संविधान को स्वीकार नहीं करते हैं, अपितु बहुत कम लोग। और यहां जो नया धर्म अस्तित्व में आता है, वह उस समय के पुराने संविधान के विपरीत 100% सत्य के पथ पर होता है।

             दुनिया जानती है कि समय और प्रगति का दामन चौली का साथ है। लेकिन यह संसार आदिकाल से ही धार्मिक मामलों में प्रगतिशील नहीं रहा है, जबकि मनुष्य को चाहिये! कि वह इस ब्रह्मांड में संकेतों पर ध्यान करे, तत्पश्चात (ईश्वर का) अनुसरण करे।

            अल्लाह फरमाता है कि! जिन्होंने हमारी राह में प्रयास किया, तो हम अवश्य उन्हें अपनी राह दिखा देंगे”। (क़ु-29:69)।

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सुन्नत।

             इस शब्द “सुन्नत” में बड़ी जटिलता उत्पन्न हो गई है। सुन्नत अर्बिक शब्द है। जिसका मूल अर्थ ‘तरीका, संविधान, प्रथा या कानून’ है। लेकिन सामान्य तौर पर, जब सुन्नत शब्द बोला जाता है, तो यह अल्लाह के रसूल ﷺ के लिए जिम्मेदार कथनों और कार्यों को संदर्भित करता है।

  1. शब्दकोश के अनुसार सुन्नत का अर्थ। “वह तरीका कि जिसका! अल्लाह के रसूल मुहम्मद (ﷺ) और उनके खलीफाओं व साथियों ने पालन किया”।
  2. आज के विद्वानों और आम लोगों की नज़र में ‘सुन्नत’ का अर्थ। “जिस तरीक़े से अल्लाह के रसूल मुहम्मद (ﷺ) ने अपना जीवन व्यतीत किया या जीवन के मामलों को अंजाम दिया”।

            दोनों इच्छित अर्थों में बाल बराबर अंतर प्रतीत होता है। लेकिन यह अंतर फुलसीरात (वह पतली पगडंडी कि जिस के दोनों और गहरी खाई हो) पर चलने के बराबर है। मतलब अगर आप गिरे तो सीधे बिना दरवाजे के नर्क में जाएंगे। सुन्नत और हदीस में बड़ी संख्या में मुसलमान भ्रमित हैं।

  1. कुरान के अनुसार ‘सुन्नत’ का अर्थ कुछ इस प्रकार है . . . . .

سُنَّةَ مَنۡ قَدۡ اَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ مِنۡ رُّسُلِنَا‌ وَلَا تَجِدُ لِسُنَّتِنَا تَحۡوِيۡلًا‏ ﴿۷۷﴾۔

[Q-17:77]

           आप (ﷺ) से पहले के रसूलों के साथ भी हमारी सुन्नत यही थी। और आप हमारी सुन्नत में कोई परिवर्तन नहीं पायेंगे। (क़ु-17: 77)।


مَا كَانَ عَلَى النَّبِىِّ مِنۡ حَرَجٍ فِيۡمَا فَرَضَ اللّٰهُ لهٗ ؕ سُنَّةَ اللّٰهِ فِى الَّذِيۡنَ خَلَوۡا مِنۡ قَبۡلُ ؕ وَكَانَ اَمۡرُ اللّٰهِ قَدَرًا مَّقۡدُوۡرَا  ۙ‏ ﴿۳۸﴾ ۔

[Q-33:38]

         नबी पर उस बात मे कोई तंगी नहीं है कि जिसका अल्लाह ने उन्हे आदेश दिया है। उन नबियों में जो आपसे पहले हुए हैं। ईश्वरीय सुन्नत (एकेश्वरवाद) यही रही है। तथा अल्लाह का निश्चित किया आदेश पूरा होना ही है।


سُنَّةَ اللّٰهِ فِى الَّذِيۡنَ خَلَوۡا مِنۡ قَبۡلُۚ وَلَنۡ تَجِدَ لِسُنَّةِ اللّٰهِ تَبۡدِيۡلًا‏ ﴿۶۲﴾۔

[Q-33:62] 

         जो आपसे पूर्व हुए उनके लिए भी अल्लाह कि सुन्नत यही रही है। और आप ईश्वरीय सुन्नत (एकेश्वरवाद) मे कदापि कोई परिवर्तन नहीं पायेंगे।


سُنَّةَ اللّٰهِ الَّتِىۡ قَدۡ خَلَتۡ مِنۡ قَبۡلُ ۖۚ وَلَنۡ تَجِدَ لِسُنَّةِ اللّٰهِ تَبۡدِيۡلًا‏ ﴿۲۳﴾۔

[Q-48:23]

            ये ईश्वरीय सुन्नत है जो पहले से चली आ रही है। और तुम अल्लाह की सुन्नत में कदापि परिवर्तन नहीं पाओगे। 

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ईश्वरीय सुन्नत का अर्थ।

             ईश्वरीय सुन्नत का अर्थ है ईश्वरीय कानून अथवा ईश्वरीय पथ (रास्ता) अथवा ईश्वरीय तरीक़ा अथवा ईश्वरीय संविधान। और वो है “ला-इलाहा ईल लल लाह” (नहीं है कोई पूजा/इबादत के योग्य ईश्वर के अतिरिक्त) 

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मुहम्मद ﷺ ने अपने अंतिम हज के एतिहासिक उपदेश में वसीयत की है कि ! . . . .

           “और मैं तुम्हारे मध्य ऐसी चीज छोड़ जाता हूं, कि यदि तुम उस पर स्थिर रहे, तो फिर कभी न भटकोगे! और वोह अल्लाह की किताब कुरान और सुन्नते नबवी है।

             यहाँ, पैगंबर की सुन्नत नबवी का तात्पर्य एकेश्वरवाद / ईश्वरीय सुन्नत है। और इसी सुन्नत का  सारे संसार को उपदेश देने का आदेश हुआ। और स्वयं पैगम्बर को भी इसी सुन्नत पर चलने का आदेश दिया गया।


كَذٰلِكَ اَرۡسَلۡنٰكَ فِىۡۤ اُمَّةٍ قَدۡ خَلَتۡ مِنۡ قَبۡلِهَاۤ اُمَمٌ لِّـتَتۡلُوَا۟ عَلَيۡهِمُ الَّذِىۡۤ اَوۡحَيۡنَاۤ اِلَيۡكَ ؕ ﴿۳۰﴾۔

[Q-13:30]

              इसी प्रकार, हमने आपको एक समुदाय में जिससे पहले बहुत-से समुदाय गुज़र चुके हैं रसूल बनाकर भेजा है, ताकि आप उन्हें वो संदेश सुनाएँ, जो हमने आपकी ओर वह़्यी द्वारा भेजा है।

             पैगंबर के समय में अल्लाह सर्वशक्तिमान ने जो कुछ भी प्रकट किया वह सब कुरान नहीं है क्योंकि उस समय हर दिन नई कठिनाइयाँ थीं। लोगों और उनके पूर्वजों द्वारा पालन की जाने वाली शैतानी परंपराओं को तब तक बदलना संभव नहीं था, जब तक कि उनके दिल विश्वास के प्रकाश से पूरी तरह प्रकाशित न हो जायें। इस कारण से, अल्लाह एक उपयुक्त आदेश भेजता। जो कुछ समय के लिए आरक्षित था। इसके बाद नया आदेश पहले के आदेश को निलंबित कर देता था।

परिणाम स्वरूप जो कुरान अस्तित्व में आया। उसके लिए अल्लाह फरमाता है;

وَلَقَدۡ جِئۡنٰهُمۡ بِكِتٰبٍ فَصَّلۡنٰهُ عَلٰى عِلۡمٍ هُدًى وَّرَحۡمَةً لِّـقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۵۲﴾۔

[Q-07:52]

         जबकि हमने उनके लिए एक ऐसी पुस्तक दी, जिसे हमने ज्ञान के आधार पर सविस्तार वर्णित कर दिया है, जो मार्गदर्शन तथा दया है, उन लोगों के लिए, जो ईमान (विश्वास) रखते हैं।

         दुनिया का हर बुद्धिमान व्यक्ति जिसने दुनिया के धर्मों के बारे में थोड़ा भी अध्ययन किया है वह जानता है कि प्रत्येक धर्म के पैगम्बरों ने एक ही ईश्वर की पूजा सिखाई है। लेकिन फिर भी, इन नबियों कि म्रत्यु के बाद, मूर्तिपूजा शुरू होने में देर नहीं लगी। उदाहरण के लिए, भूतकाल में यहूदियों में बुतपरस्ती, गिरजाघरों में यीशु की मूर्ति की उपस्थिति, भारत में आने वाले सभी पैगम्बरों की मूर्तिपूजा उदाहरण हैं।

         अब ऐसी स्थिति में अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ जो पूरी दुनिया के लिए रहमत बनकर आए। क्या वे ऐसा कह सकते थे? कि मेरे बाद मेरा अनुसरण करना। नाऊज़ू बिलाह (ईश्वर की स्तुति हो)। कभी नहीँ। खुदा के रसूल मुहम्मद साहब की तस्वीर का न होना इस बात का सबूत है, कि वह इस मसले पर कितने गंभीर थे। आज्ञाकारिता अल्लाह की है, और अल्लाह की उस किताब की है, जिसका अनुसरण स्वंम पैगंबर मुहम्मद ﷺ करते थे।

          हमारे भारत में एक कहावत है कि मूलधन से अधिक प्रिय ब्याज होता है। लेकिन यह उदाहरण काफिरों और अत्याचारियों का है। जबकि मोमिनों के लिए अल्लाह ने ब्याज को हराम ठहराया है। और इस्लाम का मूलधन क़ुरआन है। तथा क़ुरआन में अगर कुछ जोड़ा जाए तो वह ब्याज है।

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सुन्नते-नबवी।

              शब्दकोश के अनुसार सुन्नत का अर्थ सही है। “वह तरीका कि जिसका! अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ और उनके खलीफा व साथियों ने पालन किया”।

            वास्तव में, अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ और उनके खलीफा व साथियों और सभी नबियों ने लोगों को अज्ञानता और मूर्तिपूजा को छोड़कर एकेश्वरवाद (ईश्वर/परमात्मा के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है) का आमंत्रण दिया। और स्वंम भी अल्लाह की सुन्नतों (आदेशों) का अनुसरण किया। उद्देश्य यह है कि हम उस सुन्नते नबवी को थामे रहें! कि जिसको अल्लाह के रसूल ﷺ ने थामा हुआ था।

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प्रश्न?

जब किसी विषय विशेष पर चर्चा होती है तो प्रश्न भी जन्म लेते हैं।

  1. कुरान के अनुसार मोहम्मद ﷺ की जीवन शैली सबसे अच्छा उदाहरण है। तो क्यों न पैगंबर के जीवन का अनुसरण करें?
  2. कुरान में अल्लाह रसूल की बात मानने का हुक्म देता है। इस का अर्थ क्या है?
  3. हदीस क्या है? हदीस का पालन करना कैसा है?
  4. क्या शिक्षक की सहायता के बिना कुरान पढ़ सकते हैं, क्या कुरान समझना आसान है?

इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने से पहले, एक श्लोक (आयत) पर विचार करना आवश्यक है।

وَاِذَا قَرَاۡتَ الۡقُرۡاٰنَ جَعَلۡنَا بَيۡنَكَ وَبَيۡنَ الَّذِيۡنَ لَا يُؤۡمِنُوۡنَ بِالۡاٰخِرَةِ حِجَابًا مَّسۡتُوۡرًا ۙ‏ ﴿۴۵﴾ وَّجَعَلۡنَا عَلٰى قُلُوۡبِهِمۡ اَكِنَّةً اَنۡ يَّفۡقَهُوۡهُ وَفِىۡۤ اٰذَانِهِمۡ وَقۡرًا‌ ؕ وَاِذَا ذَكَرۡتَ رَبَّكَ فِى الۡقُرۡاٰنِ وَحۡدَهٗ وَلَّوۡا عَلٰٓى اَدۡبَارِهِمۡ نُفُوۡرًا‏ ﴿۴۶﴾ ۔

[Q-17:45-46]

            और जब आप क़ुर्आन पढ़ते हैं, तो हम आपके बीच और उनके बीच, जो आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं लाते, एक छुपा हुआ आवरण (पर्दा) बना देते हैं।(45) तथा उनके दिलों पर ऐसे खोल चढ़ा देते हैं कि इस (क़ुर्आन) को न समझें और उनके कानों में बोझ पैदा कर देते हैं। और जब आप अपने रब एकेश्वर की चर्चा क़ुर्आन से करते हैं, तो वह घृणा से मुँह फेर लेते हैं।(46)

            अर्थात प्रलोक (आखिरत) पर ईमान न लाने का यही स्वभाविक परिणाम है कि क़ुर्आन को समझने की योग्यता खो जाती है। अब आप सोचेंगे, कि परलोक पर तो सबको यकीन है, क्योंकि परलोक तो संसार के प्रत्येक धर्म का एक स्तंभ है।

             अगर ऐसा है तो बताएं? क्या परलोक पर यकीन होने का अर्थ ईश्वर के सामने हिसाब देना नहीं है। और अगर इंसान को परलोक के हिसाब का खौफ है, तो फिर! कैसे एक भाई दूसरे भाई की समृद्धि पर नज़र रखता है? कैसे झूटी गवाही देता है? कैसे चोरी कर लेता है? कैसे मापतोल मे गड़ बड़ कर लेता है? कैसे माँ बाप के हक भूल जाता है? कैसे हराम और हलाल के अंतर को भूल जाता है? क्यों बहन बेटियों को शर्मशार किया जाता है? क्यों इंसान गुनाह करने से पहले यह नहीं सोचता कि ईश्वर सब कुछ देख रहा है और फ़रिश्ते हमारे कर्मों को लिख रहे हैं।

            कुरआन एक ऐसी पवित्र किताब है जिसे अगर कोई व्यक्ति संतुलित मन मस्तिष्क से पढ़े तो उसे मार्गदर्शन मिलता है। और कुरआन को समझना आसान हो जाता है। (अल-हम्दू लिल्लाह। इस तुच्छ का भी यही अनुभव है)। और अगर कोई मन में बुराई रखकर पढ़ता है, तो उसे वही मिलता है जो वह चाहता है।

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प्रश्न-1 कुरान के अनुसार मोहम्मद ﷺ की जीवन शैली सबसे अच्छा उदाहरण है?

لَقَدۡ كَانَ لَكُمۡ فِىۡ رَسُوۡلِ اللّٰهِ اُسۡوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَنۡ كَانَ يَرۡجُوا اللّٰهَ وَالۡيَوۡمَ الۡاٰخِرَ وَذَكَرَ اللّٰهَ كَثِيۡرًا ؕ‏ ﴿۲۱﴾۔

[Q-33:21]

              तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में उत्तम आदर्श है, उसके लिए, जो आशा रखता हो अल्लाह और अन्तिम दिन (प्रलय) की, तथा अल्लाह को अत्यधिक याद करता हो।

             वास्तव में, मुहम्मद ﷺ का जीवन सारी दुनिया के लिए एक मिसाल है। क्योंकि उन्होंने अपना जीवन ईश्वरीय सुन्नत {एकेश्वरवाद} और कुरान के आदेशों के अनुसार व्यतीत किया। अमेरिकी लेखक माइकल एच. हार्ट की पुस्तक द 100: ए रैंकिंग ऑफ द मोस्ट इन्फ्लुएंशियल पर्सन्स इन हिस्ट्री में, मुहम्मद ﷺ को दुनिया में आने वाले पहले इंसान आदम (अ०स०) से वर्तमान तक सबसे प्रसिद्ध एंवम सफल लोगों में नंबर एक स्थान दिया गया। जबकि धार्मिक रूप से वह स्वंम ईसाई हैं।

            तो क्या! तमाम मुस्लिमों को भी ईश्वरीय सुन्नत और कुरान के आदेशों के अनुसार जीवन व्यतित नहीं करना चाहिए?


اِتَّبِعُوۡا مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكُمۡ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ وَلَا تَتَّبِعُوۡا مِنۡ دُوۡنِهٖۤ اَوۡلِيَآءَ‌ ؕ قَلِيۡلًا مَّا تَذَكَّرُوۡنَ ﴿۳﴾۔

[Q-07:03]

             (हे लोगो!) जो तुम्हारे पालनहार की ओर से तुमपर उतारा गया है, उस पर चलो, और उसके सिवा दूसरे सहायकों के पीछे न चलो। तुम बहुत थोड़ी शिक्षा लेते हो।

             अल्लाह सर्वशक्तिमान स्पष्ट रूप से आदेश देता है कि तुम उस बात का पालन करो। जो तुम्हारे रब की ओर से रसूलों के द्वारा तुम्हारी ओर पहुँचाई गई है। न कि! पहुँचाने वाले का पालन करो।

उदाहरणत:

          1- एक विनम्र और प्रतिष्ठित व्यक्ति शून्यता की भूमि से आपके लिए आपके किसी अपने का पत्र लाता है, तो बतायें? आपके लिए पत्र महत्वपूर्ण है या पत्र लाने वाला?? निसन्देह पत्र महत्वपूर्ण होगा। हाँ पत्र लाने वाला आदरणीय अवश्य होगा। इसीलिये अल्लाह पेग़म्बरों पर दुरूद भेजने और उनका सम्मान करने का हुक्म देता है।

         2-  हज़रत जिब्राइल (अ०स०) अल्लाह का पैगाम (वह्यी) तमाम पैग़ंबरों तक लाते रहे। स्वंम से प्रश्न करें कि पैग़ंबरों के लिए वह्यी महत्वपूर्ण थी या जिब्राइल (अ०स०)? उत्तर मिल जाएगा। 

             अब सवाल यह उठता है। कि जो लोग पैगंबर ﷺ के जीवन को आदर्श मानकर अपना जीवन जीना चाहते हैं। क्या उन लोगों के लिए यह अच्छा फैसला है? अथवा यह कि आप अपना जीवन ईश्वर के वचन, कुरान पर जींये, जिस पर स्वयं मुहम्मद ﷺ ने अपना जीवन व्यतीत किया। आप स्वयं निर्णय लें!

             क्या प्रकाश और छाया बराबर हो सकते हैं? कुरान पैगंबर से है या पैगंबर कुरान से? नि:संदेह, पैगंबर कुरान से हैं, क्योंकि अगर अल्लाह चाहता तो अवश्य किसी अन्य इंसान को कुरान नाज़िल करने के लिए चुन लेता। ऐसी कितनी ही घटनाएं हम आज देख रहे हैं। कि इस्लाम के दुश्मन कुरान पढ़ते हैं। परिणामस्वरूप, वे इस्लाम स्वीकार कर लेते हैं [यहां यह स्पष्ट होना चाहिए कि ये लोग कुरान पढ़ते हैं, हदीस नहीं، क्योंकि इनकी दुश्मनी 1400 साल से केवल कुरान से है]।  क्या किसी अन्य प्रमाणपत्र की आवश्यकता है? कुरान सब कुछ स्पष्ट रूप से बताता है, लेकिन निर्णय लेने का अधिकार आपका है क्योंकि अल्लाह कहता है।

وَالَّذِيۡنَ جَاهَدُوۡا فِيۡنَا لَنَهۡدِيَنَّهُمۡ سُبُلَنَا ؕ وَاِنَّ اللّٰهَ لَمَعَ الۡمُحۡسِنِيۡنَ‏ ﴿۶۹﴾۔

[Q-29:69]

             तथा जिन्होंने हमारी राह में प्रयास किया, तो हम अवश्य उन्हें अपनी राह दिखा देंगे। और निश्चय ही अल्लाह सदाचारियों के साथ है।

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प्रश्न-2 कुरान में अल्लाह रसूल की बात मानने का हुक्म देता है। इस का अर्थ क्या है?

وَاَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَالرَّسُوۡلَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُوۡنَ‌ۚ‏ ﴿۱۳۲﴾۔

[Q-03:132]

           “तथा अल्लाह और रसूल के आज्ञाकारी रहो, ताकि तुम पर दया की जाये”।


وَاَقِيۡمُوا الصَّلٰوةَ وَ اٰ تُوا الزَّكٰوةَ وَاَطِيۡـعُوا الرَّسُوۡلَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُوۡنَ‏ ﴿۵۶﴾۔

[Q-24:56]

          तथा नमाज़ की स्थापना करो, और ज़कात दो, तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाये।


وَمَا نُرۡسِلُ الۡمُرۡسَلِيۡنَ اِلَّا مُبَشِّرِيۡنَ وَمُنۡذِرِيۡنَ‌ ۚ ﴿۵۶﴾۔

[Q-18:56]

               तथा हम रसूलों को (किसी और उद्देश्य से) नहीं भेजते, परन्तु केवल शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले बनाकर (भेजते हैं)


مَنۡ يُّطِعِ الرَّسُوۡلَ فَقَدۡ اَطَاعَ اللّٰهَ ‌ۚ وَمَنۡ تَوَلّٰى فَمَاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ عَلَيۡهِمۡ حَفِيۡظًا ؕ‏ ﴿۸۰﴾۔

[Q-04:80]

        जिसने रसूल की आज्ञा का अनुपालन किया, (वास्तव में) उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया। तथा जिसने मुँह फेर लिया, तो (हे नबी!) हमने आपको उनका प्रहरी (रक्षक) बनाकर नहीं भेजा है।


وَاَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَاَطِيۡعُوا الرَّسُوۡلَ وَاحۡذَرُوۡا‌ ۚ فَاِنۡ تَوَلَّيۡتُمۡ فَاعۡلَمُوۡۤا اَنَّمَا عَلٰى رَسُوۡلِنَا الۡبَلٰغُ الۡمُبِيۡنُ‏ ﴿۹۲﴾۔

[Q-05:92]

               तथा अल्लाह के आज्ञाकारी रहो, उसके रसूल के आज्ञाकारी रहो तथा सावधान रहो। यदि तुम विमुख (विरुद्ध) हुए, तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल खुला उपदेश पहुँचा देना है।


قُلۡ اَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَاَطِيۡعُوا الرَّسُوۡلَ‌ۚ فَاِنۡ تَوَلَّوۡا فَاِنَّمَا عَلَيۡهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَيۡكُمۡ مَّا حُمِّلۡتُمۡ‌ؕ وَاِنۡ تُطِيۡعُوۡهُ تَهۡتَدُوۡا‌ؕ وَمَا عَلَى الرَّسُوۡلِ اِلَّا الۡبَلٰغُ الۡمُبِيۡنُ‏ ﴿۵۴﴾۔

[Q-24:54]

               (हे नबी!) आप कह दें कि अल्लाह की आज्ञा का पालन करो तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो और यदि वे विमुख (विरुद्ध) हों, तो आपका कर्तव्य केवल वही है, जिसका भार आपपर रखा गया है और तुम्हारा वह है, जिसका भार तुमपर रखा गया है और रसूल का दायित्व केवल खुला आदेश पहुँचा देना है।


كَمَآ اَرۡسَلۡنَا فِيۡکُمۡ رَسُوۡلًا مِّنۡکُمۡ يَتۡلُوۡا عَلَيۡكُمۡ اٰيٰتِنَا وَيُزَكِّيۡکُمۡ وَيُعَلِّمُکُمُ الۡكِتٰبَ وَالۡحِکۡمَةَ وَيُعَلِّمُكُمۡ مَّا لَمۡ تَكُوۡنُوۡا تَعۡلَمُوۡنَ ؕ‌ۛ‏ ﴿۱۵۱﴾۔

[Q-02:151]

             जिस प्रकार हमने तुम्हारे लिए तुम्हीं में से एक रसूल भेजा, जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता है। तथा तुम्हें शुध्द आज्ञाकारी बनाता है और तुम्हें पुस्तक (कुर्आन) तथा ह़िक्मत (बुद्धिमत्ता) सिखाता है तथा तुम्हें वो बातें सिखाता है, जो तुम नहीं जानते थे।


يٰۤاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡۤا اٰمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَرَسُوۡلِهٖ وَالۡكِتٰبِ الَّذِىۡ نَزَّلَ عَلٰى رَسُوۡلِهٖ وَالۡكِتٰبِ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلَ مِنۡ قَبۡلُ‌ؕ وَمَنۡ يَّكۡفُرۡ بِاللّٰهِ وَمَلٰٓٮِٕكَتِهٖ وَكُتُبِهٖ وَرُسُلِهٖ وَالۡيَوۡمِ الۡاٰخِرِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلٰلًاۢ بَعِيۡدًا‏ ﴿۱۳۶﴾۔

[Q-04:136]

                हे ईमान वालो! अल्लाह, और उसके रसूल तथा उस पुस्तक (क़ुर्आन) पर, जो उसने अपने रसूल पर उतारी है। तथा उन पुस्तकों पर, जो इससे पहले उतारी हैं, ईमान लाओ। जो अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी पुस्तकों और अंतिम दिवस (प्रलय) को अस्वीकार करेगा, वह कुपथ में बहुत दूर जा पड़ेगा।


يٰبَنِىۡۤ اٰدَمَ اِمَّا يَاۡتِيَنَّكُمۡ رُسُلٌ مِّنۡكُمۡ يَقُصُّوۡنَ عَلَيۡكُمۡ اٰيٰتِىۡ‌ۙ فَمَنِ اتَّقٰى وَاَصۡلَحَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُوۡنَ‏ ﴿۳۵﴾۔

[Q-07:35]

               हे आदम के पुत्रो! जब तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल आ जायें। जो तुम्हें मेरी आयतें सुनायें, तो जो डरेगा और अपना सुधार कर लेगा, उसके लिए कोई डर नहीं होगा और न वे उदासीन होंगे।

             बेशक रसूलों का हुक्म अल्लाह का हुक्म होता है। क्योंकि संदेशवाहक (रसूल) वही प्रचार करता है जो ईश्वर उसे वह्यी के माध्यम से आदेश देता है। वे अपनी ओर से एक आयत भी नहीं ला सकते । अथार्थ, यह निर्धारित हुआ। कि रसूलों के आदेश का पालन करके, वास्तव में हम अल्लाह के आदेश का पालन करते हैं। क्योंकि रसूल लोगों के लिए केवल एक रसूल [संदेशवाहक] होता है। जैसे जिब्राइल (अ०स०) तमाम पैग़ंबरों के लिए रसूल [संदेशवाहक] हैं। और स्वंम रसूलों को भी उसी वह्यी के अनुपालन का आदेश होता है, कि जिसका वह उपदेश दे रहे हैं।


وَّاتَّبِعۡ مَا يُوۡحٰٓى اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ‌ ؕ اِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُوۡنَ خَبِيۡرًا ۙ‏ ﴿۲﴾۔

[Q-33: 2]

             और आप ﷺ को आपके रब कि और से जो वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है, उसका पालन करो।  निश्चय ही अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम कर रहे हो।


اِتَّبِعۡ مَاۤ اُوۡحِىَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ‌‌ۚ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ۚ وَاَعۡرِضۡ عَنِ الۡمُشۡرِكِيۡنَ‏ ﴿۱۰۶﴾۔

[Q-06:106]

            (हे नबी) आप उसपर चलें, जो आपपर आपके रब की ओर से वहयी की जा रही है। उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुश्रिकों की बातों पर ध्यान न दें।


قُلۡ هٰذِهٖ سَبِيۡلِىۡۤ اَدۡعُوۡۤا اِلَى اللّٰهِ  ࣞ عَلٰى بَصِيۡرَةٍ اَنَا وَمَنِ اتَّبَعَنِىۡ‌ؕ وَسُبۡحٰنَ اللّٰهِ وَمَاۤ اَنَا مِنَ الۡمُشۡرِكِيۡنَ‏ ﴿۱۰۸﴾۔

[Q-12:108]

             हे नबी आप कह दें! यही मेरी डगर है, कि मैं अल्लाह की ओर बुला रहा हूँ। मैं और जिसने मेरा अनुसरण किया पूरे विश्वास और सत्य पर हैं। तथा अल्लाह पवित्र है और मैं मुश्रिकों (मिश्रणवादियों) में से नहीं हूँ।

             जब कुरान कहता है, “अल्लाह और उसके रसूल का पालन करो।” तब अल्लाह / ईश्वर कहना चाहता है कि पालन करो अल्लाह का, और उस ईश्वरीय सुन्नत “ला इलाहा इल-लल लाह” का, जो हर नबी की विरासत है। और उन आदेशों (शरीयत) का जो अल्लाह तआला ने हमें अपने नबी के ज़रिये पहुँचाए।

            अल्लाह सर्वशक्तिमान कभी भी पैगंबर के जीवन का पालन करने का आदेश नहीं देता है। अपितु उसके जीवन का लक्ष्य अल्लाह के संदेश को लोगों तक पहुंचाना एंवम स्वंम उसे चरितार्थ कर दिखाना होता है। इसीलिए अल्लाह सर्वशक्तिमान कुरान में पैगंबर पर दुरूद व सलाम (आशीर्वाद और शांति) भेजने और उनका सम्मान करने का आदेश देता है।

اِنَّ اللّٰهَ وَمَلٰٓٮِٕكَتَهٗ يُصَلُّوۡنَ عَلَى النَّبِىِّ ؕ يٰۤـاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا صَلُّوۡا عَلَيۡهِ وَسَلِّمُوۡا تَسۡلِيۡمًا‏ ﴿۵۶﴾۔

[Q-33:56]

            निसंदेह, अल्लाह तथा उसके फ़रिश्ते नबी पर दरूद  भेजते हैं। हे ईमान वालो! तुम भी उनपर दरूद तथा दुआएं व सलाम भेजो।


اِنَّاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ شَاهِدًا وَّمُبَشِّرًا وَّنَذِيۡرًا (۸) لِّـتُؤۡمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَ رَسُوۡلِهٖ وَتُعَزِّرُوۡهُ وَتُوَقِّرُوۡهُ ؕ وَتُسَبِّحُوۡهُ بُكۡرَةً وَّاَصِيۡلًا‏ ﴿۹﴾۔

[Q-48:8-9]

             (हे नबी!) निश्चय ही हमने आपको गवाह बनाकर भेजा है, तथा शुभ सूचना देने एवं सावधान करने वाला बनाकर। ताकि तुम अल्लाह एवं उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसकी सहायता करो, तथा उनका आदर करो। तथा प्रातः व संध्या (सुबह व शाम) अल्लाह की पवित्रता का वर्णन (तसबीह) करते रहो।


 अल्लाह की इन बातों को समझने के लिए हम फिर से समीक्षा करते हैं।

  • तथा हम रसूलों को (किसी और उद्देश्य से) नहीं भेजते, परन्तु केवल शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले बनाकर (भेजते हैं)
  • रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाये।
  • जिसने रसूल की आज्ञा का अनुपालन किया, (वास्तव में) उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया। तथा जिसने मुँह फेर लिया, तो (हे नबी!) हमने आपको उनका प्रहरी (रक्षक) बनाकर नहीं भेजा है।
  • जान लो कि हमारे रसूल पर केवल खुला उपदेश पहुँचा देना है।
  • अगर रसूल की आज्ञाकारिता करोगे, तो हिदायत (सदमार्ग) पाओगे। और रसूल का दायित्व केवल खुला आदेश पहुँचा देना है।
  • और रसूल तुम्हें पुस्तक(कुर्आन) तथा ह़िक्मत (बुद्धिमत्ता) सिखाता है तथा तुम्हें वो बातें सिखाता है, जो तुम नहीं जानते थे।
  • हे ईमान वालो! अल्लाह, और उसके रसूल तथा उस पुस्तक (क़ुर्आन) पर, जो उसने अपने रसूल पर उतारी है।ईमान लाओ।
  • हे आदम के पुत्रो! जब तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल जायें। जो तुम्हें मेरी आयतें सुनायें, तो जो डरेगा और अपना सुधार कर लेगा, उसके लिए कोई डर नहीं होगा।
  • हे नबी! आपके रब की और से जो वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है, उसका पालन करो।  निश्चय ही अल्लाह उससे सूचित है। जो तुम कर रहे हो।
  • है नबी! आप उसपर चलें, जो आपपर आपके रब की ओर से वहयी की जा रही है। उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है।
  • हेनबी!निश्चय ही हमने आपको गवाह बनाकर भेजा है, तथा शुभ सूचना देने एवं सावधान करने वाला बनाकर। ताकि तुम अल्लाह एवं उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसकी सहायता करो, तथा उनका आदर करो।
  • नि:संदेह, अल्लाह तथा उसके फ़रिश्ते नबी पर दरूद भेजते हैं। हे ईमान वालो! तुम भी उनपर दरूद तथा बहुत सलाम भेजो।

             अब जबकि अल्लाह के रसूल हमारे मध्य नहीं है। कि हमें कुरान की शिक्षा दें। लेकिन अल्लाह का शुक्र है कि! हमारे पास कुरान अपने मूल रूप में उपलब्ध है जिसका पालन स्वंम अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ ने किया था। तो अब क्या करे?  निर्णय लेने का अधिकार आपका है।

           क्योंकि अल्लाह कहता है। तथा जिन्होंने हमारी राह में प्रयास किया, तो हम अवश्य उन्हें अपनी राह दिखा देंगे”। (क़ु-29:69)।

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प्रश्न-3 हदीस क्या है? हदीस का पालन करना कैसा है?

           शरिया शब्द में, हदीस अल्लाह के रसूल ﷺ के लिए जिम्मेदार कथनों और कार्यों को संदर्भित करता है, यह ऐसा है जैसे हदीस शब्द कुरान के सापेक्ष बोला गया हो, क्योंकि कुरान प्राचीन है और हदीस इसकी तुलना में आधुनिक।

          हदीस कुरान के अवतरित होने के लगभग 200 साल बाद लिखी गयीं थी। जो सुनी-सुनाई बातों पर निर्भर थीं।  जब से हदीसें लिखी गई हैं, कमजोर और मजबूत हदीसों की चर्चा आम रही है। हदीस की नींव का श्रेय संदर्भों (Reference) को दिया जाता है। उदाहरण के लिए, उक्त व्यक्ति ने अपने पिता या दादा या किसी मित्र को यह कहते सुना कि उसने अमुक व्यक्ति के पिता या दादा या मित्र को अल्लाह के रसूल से कहते सुना था कि . . . . . .

           हदीस का पालन करें या नहीं। उसके लिए प्रश्न संख्या 1 और प्रश्न संख्या 2 के विवरण को समझना आवश्यक है, साथ ही अल्लाह क्या कहता है। यह जानना भी जरूरी है।

اَللّٰہُ نَزَّلَ اَحۡسَنَ الۡحَدِیۡثِ کِتٰبًا مُّتَشَابِہًا مَّثَانِیَ ٭ۖ تَقۡشَعِرُّ مِنۡہُ جُلُوۡدُ الَّذِیۡنَ یَخۡشَوۡنَ رَبَّہُمۡ ۚ ثُمَّ تَلِیۡنُ جُلُوۡدُہُمۡ وَ قُلُوۡبُہُمۡ اِلٰی ذِکۡرِ اللّٰہِ ؕ ذٰلِکَ ہُدَی اللّٰہِ یَہۡدِیۡ بِہٖ مَنۡ یَّشَآءُ ؕ وَ مَنۡ یُّضۡلِلِ اللّٰہُ فَمَا لَہٗ مِنۡ ہَادٍ (۲۳)۔

[Q-39:23]

              अल्लाह ने सर्वोत्तम ह़दीस (क़ुर्आन) को अवतरित किया है। ऐसी पुस्तक, जिसकी आयतें (पहली पुस्तकों से) मिलती-जुलती हैं, बार-बार दुहराई जाने वाली हैं। जिसे (सुनकर) उनके रूँगटे खड़े हो जाते हैं जो खुदा से डरते हैं। फिर उनकी चमड़ी कोमल हो जाती हैं उनके दिल, अल्लाह के स्मरण की और आकर्षित होते हैं। यही कुरान अल्लाह का मार्गदर्शन (हिदायत) है, इसके द्वारा वह जिसे चाहता है संमार्ग अथार्थ सत्य के राह पर लगा देता है, और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो उसका कोई पथदर्शक नहीं है।


اَوَلَمۡ يَنۡظُرُوۡا فِىۡ مَلَـكُوۡتِ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ وَمَا خَلَقَ اللّٰهُ مِنۡ شَىۡءٍ ۙ وَّاَنۡ عَسٰٓى اَنۡ يَّكُوۡنَ قَدِ اقۡتَرَبَ اَجَلُهُمۡ‌ ۚ فَبِاَىِّ حَدِيۡثٍۢ بَعۡدَهٗ يُؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۱۸۵﴾۔

[Q-07:185]

            क्या उन्होंने आकाशों तथा धरती के राज्य को और जो कुछ अल्लाह ने पैदा किया है, उसे नहीं देखा? और (ये भी नहीं सोचा कि) हो सकता है कि उनका निर्धारित समय समीप आ गया हो? तो फिर इस हदीस के पश्चात् वह किस बात पर ईमान लायेंगे?


وَمِنَ النَّاسِ مَنۡ يَّشۡتَرِىۡ لَهۡوَ الۡحَدِيۡثِ لِيُضِلَّ عَنۡ سَبِيۡلِ اللّٰهِ بِغَيۡرِ عِلۡمٍ‌ۖ وَّيَتَّخِذَهَا هُزُوًا ‌ؕ اُولٰٓٮِٕكَ لَهُمۡ عَذَابٌ مُّهِيۡنٌ‏ ﴿۶﴾۔

[Q-31:06]

तथा लोगों में वो (भी) है, जो अशिष्ट हदीस खरीदते हैं। ताकि (लोगों को) बिना किसी ज्ञान के अल्लाह की राह (इस्लाम) से कुपथ करे। और उपहास बनाये। यही (वह लोग) हैं, जिनके लिए अपमानकारी यातना है।


لَـقَدۡ كَانَ فِىۡ قَصَصِهِمۡ عِبۡرَةٌ لِّاُولِى الۡاَلۡبَابِ‌ؕ مَا كَانَ حَدِيۡثًا يُّفۡتَـرٰى وَلٰـكِنۡ تَصۡدِيۡقَ الَّذِىۡ بَيۡنَ يَدَيۡهِ وَتَفۡصِيۡلَ كُلِّ شَىۡءٍ وَّهُدًى وَّرَحۡمَةً لِّـقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۱۱۱﴾۔

[Q-12:111]

वोह पहली कौमे (समुदाय) कि जिन पर दंड नाज़िल किया गया! उनकी कथाओं में, बुध्दिमानों के लिए बड़ी शिक्षा है, यह हदीस (क़ुर्आन) ऐसी बातों का संग्रह नहीं है, जिसे स्वयं बना लिया जाता हो, अपितु इससे पहले की पुस्तकों की सिध्दि और प्रत्येक वस्तु का विवरण (ब्योरा) है तथा उन लोगों के लिए मार्गदर्शन और दया है, जो ईमान (विश्वास) रखते हैं।


فَبِاَىِّ حَدِيۡثٍۢ بَعۡدَهٗ يُؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۵۰﴾۔

[Q-77:50]

               तो (अब) वे किस हदीस पर इस (क़ुर्आन) के पश्चात् ईमान  लायेंगे?


تِلۡكَ اٰيٰتُ اللّٰهِ نَـتۡلُوۡهَا عَلَيۡكَ بِالۡحَقِّ‌ ‌ۚ فَبِاَىِّ حَدِيۡثٍۢ بَعۡدَ اللّٰهِ وَاٰيٰتِهٖ يُؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۶﴾۔

[Q-45:06]

              ये अल्लाह की आयतें हैं, जो हम तुम्हें हक़ (सत्यता) के साथ सुना रहे हैं। अंत: अल्लाह तथा उसकी आयतों के पश्चात यह लोग किस हदीस पर ईमान लायेंगे?


وَمَا هُوَ اِلَّا ذِكۡرٌ لِّلۡعٰلَمِيۡنَ‏ ﴿۵۲﴾۔

[Q-68:52]

            जबकि ये क़ुर्आन पूरे संसार वासियों के लिए शिक्षा के अतिरिक्त कुछ नहीं।


بَلۡ هُوَ قُرۡاٰنٌ مَّجِيۡدٌ ۙ‏ ﴿۲۱﴾  فِىۡ لَوۡحٍ مَّحۡفُوۡظٍ ﴿۲۲﴾۔

[Q-85:21-22]

             बल्कि, यह गौरव वाला क़ुर्आन है। जो लौह़े मह़फ़ूज़ (दिव्य पुस्तक) में सुरक्षित है।


اِنَّ هٰذِهٖ تَذۡكِرَةٌ ‌ ۚ فَمَنۡ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰى رَۖبِّهٖ سَبِيۡلًا ﴿۱۹﴾۔

[Q-73:19]

            वास्तव में, ये (आयतें) एक शिक्षा हैं। तो जो चाहे, अपने रब की और राह बना ले।


وَالسَّمَآءِ ذَاتِ الرَّجۡعِۙ‏ ﴿۱۱﴾  وَالۡاَرۡضِ ذَاتِ الصَّدۡعِۙ‏ ﴿۱۲﴾   اِنَّهٗ لَقَوۡلٌ فَصۡلٌۙ‏ ﴿۱۳﴾۔

[Q-86:11-13]

              शपथ है आकाश की, जो बरसता है!  तथा फटने वाली धरती की। वास्तव में, ये (क़ुर्आन) सत्य और असत्य में दो-टूक निर्णय (फ़ैसला) करने वाला है।

فَمَا لَهُمۡ عَنِ التَّذۡكِرَةِ مُعۡرِضِيۡنَۙ‏ ﴿۴۹﴾  كَاَنَّهُمۡ حُمُرٌ مُّسۡتَنۡفِرَةٌ ۙ‏ ﴿۵۰﴾  فَرَّتۡ مِنۡ قَسۡوَرَةٍ  ؕ‏ ﴿۵۱﴾۔

[Q-74:49-51]

             उन्हें क्या हो गया है कि इस शिक्षा (क़ुर्आन) से मुँह फेर रहे हैं? मानो वे बिदके हुए (जंगली) गधे हैं, । मानो शिकारी शेर के डर से भाग रहे हों।

             अल्लाह सर्वशक्तिमान कहते हैं। कि बेहतरीन हदीस की किताब [क़ुरआन] है जिसके द्वारा वह जिसे चाहता है हिदायत देता है। और यह कि! कुरान पूरी दुनिया के लिए एक नसीहत है, और यह कि! यह महान है, यह लोह-ए-मफूज (वह पुस्तक जिसमें आदि से अंत तक का ज्ञान है) में संरक्षित है, और यह कि! प्रभु का द्वार खोलने वाली है, और यह कि! सच और झूठ को अलग करने वाली है,  और यह कि! जो लोग इस पुस्तक से दूरी बना लेते हैं, वे उन गधों के समान हैं, जो शिकारी सिंह से दूर भाग रहे हैं।

            कुरान में उपलब्ध कई आयात से यह सिद्ध है कि अल्लाह ने श्रेष्ट हदीस की किताब क़ुरआन नाज़िल की है, और दूसरी किताबों से इस्लाम सीखने और सिखाने की मनाही है। तो क्या इसके बाद भी दूसरी हदीसों पर ईमान लाओगे? अल्लाह हमें अपनी अमान में रखे। आमीन।


وَيَرَى الَّذِيۡنَ اُوۡتُوا الۡعِلۡمَ الَّذِىۡۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ هُوَ الۡحَـقَّ ۙ وَيَهۡدِىۡۤ اِلٰى صِرَاطِ الۡعَزِيۡزِ الۡحَمِيۡدِ‏ ﴿۶﴾۔

[Q-34:06] 

           तथा जिन्हें ज्ञान दिया गया है वे जानते हैं, कि जो (कुरान) आपके पालनहार की ओर से अवतरित किया गया है, वह सत्य है। तथा अति प्रभुत्वशाली, प्रशंसित रब का सुपथ दर्शाता है।


قُلْ لَّٮِٕنِ اجۡتَمَعَتِ الۡاِنۡسُ وَالۡجِنُّ عَلٰٓى اَنۡ يَّاۡتُوۡا بِمِثۡلِ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ لَا يَاۡتُوۡنَ بِمِثۡلِهٖ وَلَوۡ كَانَ بَعۡضُهُمۡ لِبَعۡضٍ ظَهِيۡرًا‏ ﴿۸۸﴾  وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا لِلنَّاسِ فِىۡ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ مِنۡ كُلِّ مَثَلٍ ؗ فَاَبٰٓى اَكۡثَرُ النَّاسِ اِلَّا كُفُوۡرًا‏ ﴿۸۹﴾۔

[Q-17:88-89]

             आप कह दें: यदि सब मनुष्य तथा जिन्न इस बात पर एकत्र हो जायें कि इस क़ुर्आन के समान ले आयेंगे, तो इसके समान नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे के समर्थक ही क्यों न हो जायें! और हमने लोगों के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण विविध शैली में वर्णित किया है, फिर भी अधिक्तर लोगों ने कुफ़्र के सिवा अस्वीकार ही किया है।


قُلۡ اِنَّمَاۤ اَتَّبِعُ مَا يُوۡحٰٓى اِلَىَّ مِنۡ رَّبِّىۡ ۚ  هٰذَا بَصَآٮِٕرُ مِنۡ رَّبِّكُمۡ وَهُدًى وَّ رَحۡمَةٌ لِّقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۲۰۳﴾۔

[Q-07:203]

             आप कह दें कि मैं केवल उसी का अनुसरण करता हूँ, जो मेरे रब की और से मेरी ओर वह़्यी की जाती है। ये तुम्हारे रब की ओर से सूझ की बातें हैं, तथा मार्गदर्शन और दया हैं, उन लोगों के लिए जो ईमान (विश्वास) रखते हों।


وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا لِلنَّاسِ فِىۡ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ مِنۡ كُلِّ مَثَلٍ فَاَبٰٓى اَكۡثَرُ النَّاسِ اِلَّا كُفُوۡرًا‏ ﴿۸۹﴾۔

[Q-17:89]

           और हमने लोगों के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण विविध शैली में वर्णित किया है, फिर भी अधिक्तर लोगों ने कुफ़्र कर अस्वीकार ही किया है।


وَاَنۡ اَتۡلُوَا الۡقُرۡاٰنَ‌ ۚ ﴿۹۲﴾۔

[Q-27:92]

             “और यह कि कुरान पढ़ा करो”।


وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا الۡقُرۡاٰنَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِنۡ مُّدَّكِرٍ‏ ﴿۱۷﴾۔

[Q-54:17/22/32/40]

           और हमने क़ुर्आन को शिक्षा के लिए सरल कर दिया है। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?


وَاتَّبِعُوۡۤا اَحۡسَنَ مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكُمۡ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ مِّنۡ قَبۡلِ اَنۡ يَّاۡتِيَكُمُ الۡعَذَابُ بَغۡتَةً وَّاَنۡتُمۡ لَا تَشۡعُرُوۡنَۙ‏ ﴿۵۵﴾۔

[Q-39:55]

             तथा पालन करो उस सर्वोत्तम (क़र्आन) का, जो अवतरित किया गया है तुम्हारी ओर तुम्हारे रब की ओर से, इससे पूर्व कि तुमपर यातना आ पड़े और तुम्हें ज्ञान भी न हो।


وَهٰذَا كِتٰبٌ اَنۡزَلۡنٰهُ مُبٰرَكٌ فَاتَّبِعُوۡهُ وَاتَّقُوۡا لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُوۡنَۙ‏ )۱۵۵)۔

[Q-06:155]

             तथा ये पुस्तक (क़ुर्आन) हमने अवतरित की है, ये बड़ी शुभकारी है, अतः इस का पालन करो, और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुमपर दया की जाये।


وَهٰذَا صِرَاطُ رَبِّكَ مُسۡتَقِيۡمًا‌  ؕ  قَدۡ فَصَّلۡنَا الۡاٰيٰتِ لِقَوۡمٍ يَّذَّكَّرُوۡنَ‏ ﴿۱۲۶﴾۔

[Q-06:126]

             और यही (कुरान) आपके पालनहार की सीधी राह है। उन लोगों के लिए, जो शिक्षा ग्रहण करते हैं, हमने अपनी आयतों की स्पष्ट व्याख्या कर दी है।


اَفَغَيۡرَ اللّٰهِ اَبۡتَغِىۡ حَكَمًا وَّهُوَ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلَ اِلَيۡكُمُ الۡـكِتٰبَ مُفَصَّلاً ؕ ﴿۱۱۴﴾۔

[Q-06:114]

           (हे नबी! उन लोगों से कहो कि)  कि क्या मैं अल्लाह के सिवा किसी दूसरे न्यायकारी की खोज करूँ। जबकि उसी (ईश्वर) ने तुम्हारी ओर ये पुस्तक नाज़िल की है। कि जिसमे विस्तार से वर्णन किया गया है।

           अल्लाह तआला फ़रमाता है कि तुम में से जो सच्चे विद्वान हैं वे जानते हैं कि यह क़ुरआन उनके रचीयता का भेज हुआ मार्गदर्शन है। और यदि सारे जिन्न व इंसान आपस मिल भी जाएँ तो भी वे इस किताब की प्रति (बदल) नहीं ला सकते। मुहम्मद ﷺ अल्लाह के आदेश से घोषणा करते हैं कि मैं भी उसी वहयी का पालन करता हूँ। जो अल्लाह मुझ पर उतारता है। जो समझ (बुद्धिमत्ता) के शब्द हैं और मार्गदर्शन और दया का मार्ग खोलते हैं।

            अल्लाह फरमाता है कि हमने क़ुरआन में हर अहम बात को अलग-अलग तरीके से बयान किया है ताकि तुम समझ सको। अतः क़ुरआन पढ़ो (अपनी भाषा में ताकि तुम समझ सको)। और फिर अल्लाह ऐलान करता है कि इससे पहले कि मौत तुम पर आ जाए। है कोई हिदायत पाने वाला? जो इस किताब का पालन करे। तथा परहेज़गारी )धर्मनिष्ठता) को पसन्द करे। ताकि मैं तुम पर रहम करूँ।

             अब जबकि अल्लाह ने तमाम तर्कों के साथ सब कुछ स्पष्ट कर दिया है। तो क्या अब भी कोई शक बाक़ी है? आइए अतीत में झांक कर देखें।

             आदम (अ०स०) से नूह (अ०स०) की जलप्रलय तक की यात्रा लगभग 1600 वर्ष की है। और इन 1600 वर्षों में, मनुष्य शैतानवाद की ओर इतना झुक चुका था, कि पैगंबर नूह (अ०स०) और उनके कुछ साथियों के अतिरिक्त पृथ्वी पर अविस्वासियों (काफिरों) का बोलबाला था। तथा अल्लाह को हज़रत नूह (अ०स०) की बददुआ (श्राप) के कारण पानी की प्रलय के माध्यम से सब कुछ मिटा देना पड़ा।

            नूह (अ०स०) की जल प्रलय और अब्राहम (अ०स०) के समय का अंतराल लगभग 350 वर्षों का है, और उन 350 वर्षों में अब्राहम के अलावा इस पृथ्वी पर कोई भी विश्वासी (ईमान वाला) नहीं था। परिणामस्वरूप, यहाँ से ब्रहंमाण्ड के परमेश्वर को इब्राहीम का परमेश्वर कहा गया और वह एक परिवार या एक गोत्र का परमेश्वर ठहरा।

           इब्राहीम (अ०स०) के इस परिवार के कनान से मिस्र में स्थानांतरण होने और मूसा (अ०स०) के मिस्र से प्रस्थान के बीच का अंतराल लगभग 430 वर्ष है। इस अवधि में, बनी इस्राइल! इब्राहीम, इसहाक और याकूब के परमेश्वर का दम तो भरते हैं। लेकिन हजरत मूसा (अ०स०) के तमाम चमत्कारों और खुदा की रहमत और मेहरबानी को अपनी आंखों से देखने के उपरांत भी विश्वास नहीं रखते। और समय-समय पर हज़रत मूसा (अ०स०) से झगड़ते रहते हैं।

            अति तब होती है जब हजरत मूसा (अ.स.) की केवल 40 दिनों की अनुपस्थिति में बनी इस्राइल सोने के बछड़े की पूजा करके काफिर बन जाते हैं। खुदा माफ करे! और उसके बाद परमेश्वर के नबियों का विरोध करना और उन्हें मार डालना एक प्रथा बन जाती है। हजरत याह्या और जीसस की मिसाल मोजूद है।

           इस काल में ईश्वर से प्राप्त पवित्र ग्रन्थों और आदेशों को विकृत करना विद्वानों और राजनीतिज्ञों का शौक बन गया। प्राचीन तोराह और ज़बूर को छोड़ भी दें, फिर भी! आधुनिक समय की बाइबल के 100 से अधिक विभिन्न संस्करण उपलब्ध हैं। इसी तरह कुरान की व्याख्या के नाम पर, कभी मुहम्मद ﷺ के नाम पर, कभी खलीफाओं और सहाबियों के नाम पर, कभी कमजोर और मजबूत के नाम पर, विभिन्न हदीसें इस्लाम के आगमन के 200 वर्ष बाद अस्तित्व में आयीं।

            इस चर्चा का उद्देश्य यह है कि मैं डॉ. मंसूरी पाठकों के समक्ष कुछ प्रश्न रखना चाहता हूँ। दुनिया के सभी मुस्लिम फिरकों को एक तरफ रखकर स्वंम से उत्तर माँगिये।

           जब खुदा ने एक ऐसी किताब (कुरआन) हमें दी है, जो आज भी अपनी मूल नकल पर आधारित है, और जिसकी सुरक्षा कि जिम्मेदारी स्वंम खुदा ने ली है (कुरान 6:115), जिसमें तमाम हुक्म साफ साफ और भिन्न भिन्न शैली में सूचीबद्ध हैं। (Q-7:52), और आदेश दिया कि इस दिन से, इस्लाम पूरे संसार के लिए सत्य धर्म ठहरा। (क्यू-3: 85)। तथा इस्लाम का पालन करने वालों पर कुरान का पालन करना अनिवार्य है (कुरान 7:52)। तो क्या हम अब भी उन हदीसों का पालन करेंगे? जबकि . . . . . . .

  • ये हदीसें इस्लाम के 200 वर्ष बाद अस्तित्व में आयीं।
  • इन हदीसों के अलग-अलग लेखक हैं और जो कि इंसान हैं।
  • क्या खुदा या मुहम्मद ﷺ ने भविष्यवाणी की थी कि इस्लाम के 200 साल बाद विद्वान (आलिम) हदीसें लिखेंगे। और तुम ईमान वालों उनका पालन करना।
  • क्या ईश्वर का वचन (क़ुरआन) पूर्ण नहीं है?
  • क्या अल्लाह सर्वशक्तिमान ने क़यामत के दिन तक क़ुरआन को मार्गदर्शन (हिदायत) का स्रोत नहीं बनाया है?
  • क्या यह हदीसें स्वंम आपस में बहस का मुद्दा नहीं हैं?
  • क्या इन सुन्नतों और हदीसों की रोशनी ने इस्लाम को सैकड़ों फिरकों में बाँट नहीं दिया?
  • क्या इस्लाम में संप्रदायों (फिरकों) का अस्तित्व वैध (हलाल) है? अल्लाह सर्वशक्तिमान कहता है।

اِنَّ الَّذِيۡنَ فَرَّقُوۡا دِيۡنَهُمۡ وَكَانُوۡا شِيَـعًا لَّسۡتَ مِنۡهُمۡ فِىۡ شَىۡءٍ‌ ؕ اِنَّمَاۤ اَمۡرُهُمۡ اِلَى اللّٰهِ ثُمَّ يُنَـبِّـئُـهُمۡ بِمَا كَانُوۡا يَفۡعَلُوۡنَ‏ ﴿۱۵۹﴾۔

[Q-6:159]

         “जिन्होंने अपने धर्म में (कई) रास्ते बना लिए हैं और कई संप्रदाय (फिरके) बन गए हैं, उनसे आपको कोई लेना-देना नहीं है, उनका काम अल्लाह पर छोड़ दें। फिर वोह (अल्लाह) उन्हें बताएगा कि वे क्या करते रहे हैं” (क़ुरआन 6:159)।


         अब एक बात सौ फीसदी कही जा सकती है कि कुरान फिरके नहीं सिखाता। इस्लाम केवल इस्लाम है जो कुरान का पालन करने पर आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। फिरकों (संप्रदायों) में वे ही लोग आस्था रखते हैं। जो आज के आलिमों की सुन्नत और हदीस में विस्वास रखते हैं, ठीक उसी तरह जैसे अगले नबियों की मुस्लिम उम्मत उस ज़माने के आलिमों और विक्रत किताबों में विस्वास कर लेती थी।

         वास्तव में, कुरान सब कुछ स्पष्ट रूप से बताता व सिखाता है, लेकिन निर्णय लेने का अधिकार आपका अपना है,

         क्योंकि अल्लाह फरमाता है। “और जिन लोगों ने हमारे लिए कोशिश की! हम उन्हें अपना रास्ता जरूर (अवश्य) समझा देंगे” (क्यू-29:69।

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प्रश्न-4 क्या शिक्षक की सहायता के बिना कुरान पढ़ सकते हैं?

هُوَ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلَ عَلَيۡكَ الۡكِتٰبَ مِنۡهُ اٰيٰتٌ مُّحۡكَمٰتٌ هُنَّ اُمُّ الۡكِتٰبِ وَاُخَرُ مُتَشٰبِهٰتٌ‌ؕ فَاَمَّا الَّذِيۡنَ فِىۡ قُلُوۡبِهِمۡ زَيۡغٌ فَيَتَّبِعُوۡنَ مَا تَشَابَهَ مِنۡهُ ابۡتِغَآءَ الۡفِتۡنَةِ وَابۡتِغَآءَ تَاۡوِيۡلِهٖ ۚ وَمَا يَعۡلَمُ تَاۡوِيۡلَهٗۤ اِلَّا اللّٰهُ ‌ۘ  وَالرّٰسِخُوۡنَ فِى الۡعِلۡمِ يَقُوۡلُوۡنَ اٰمَنَّا بِهٖۙ كُلٌّ مِّنۡ عِنۡدِ رَبِّنَا ‌ۚ وَمَا يَذَّكَّرُ اِلَّاۤ اُولُوا الۡاَلۡبَابِ‏ ﴿۷﴾۔

[Q-03:07]

            उसी (अल्लाह) ने आप पर ये पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुहकम (सुदृढ़) हैं (जिन के अर्थ स्पष्ट हैं)। जो पुस्तक का मूल आधार हैं। तथा कुछ दूसरी आयतें मुतशाबिह (संदिग्ध) हैं (वे आयतें जिन्हें समझना मुश्किल है या जिनके कई अर्थ हैं)। तो जिनके दिलों में कुटिलता है, वे उपद्रव की खोज तथा मनमाना अर्थ करने के लिए, संदिग्ध के पीछे पड़ जाते हैं। जबकि उनका वास्तविक अर्थ, अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता तथा जो ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं कि सब, हमारे रब की  तरफ से है और बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।


             यह आयत कुरान को पढ़ने व पढ़ाने, समझने और समझाने की कुंजी है। इस आयत के अनुसार, कुरान हमें समय के तीन काल के विषय में सूचित करता है। अतीत, वर्तमान और भविष्य। जब कुरान अतीत और वर्तमान के विषय में बात करता है, तो ये मुहकम (निर्णायक) आयतें हैं। जो हमें आसानी से समझ में आ जाती हैं। अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है! कि यह जो सरलता से आपको समझ में आ रहा है। यह उम्मी कुरान है, यानी कुरान की आत्मा या कुरान का सार। उम्मी का अर्थ अरबी में मां है।

           और जो तुम नहीं समझते। वह मुतशाबिहात यानी भविष्य है। और भविष्य को परमेश्वर के सिवा कोई नहीं जानता। यहाँ तक कि ईश्वर के दूत मुहम्मद (ﷺ) भी नहीं जानते थे। हाँ! जितना ईश्वर ने चाहा। अब जो विद्वान (आलिम) इन मुतशाबिह छंदों (आयतों) की व्याख्या या व्याख्या करने का प्रयास करते हैं। वोह केवल और केवल अपने लालच को भड़काते हैं। क्योंकि इन श्लोकों (आयतों) की व्याख्या तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि ईश्वर की इच्छा न हो। और जब परमेश्वर किसी को मुतशाबिह श्लोक (आयत) की व्याख्या समझाना चाहता है, तो वह उस युग के अनुसार समझा देता है।

             विश्वास करें! यह नाचीज़ इस बात का गवाह है कि कई आयात की समझ मेरे रब ने ऐसे मेरे हृदय में प्रकट की। मानो प्रेरणा हो गई हो, और हृदय शांत हो गया, कि हां! केवल यही है यही है। और यह तब हुआ जब मैं न तो इबादत (पूजा) में था और न ही नींद में, बल्कि सांसारिक जरूरतों में लगा हुआ था। और बस अचानक ही सब कुछ हो गया।

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मुहकम (समझ में आने वाली) आयात।

             कुरान का पाठ करते समय, हमें मुहकम आयात (निर्णायक, समझ में आने वाली) आयात पर विचार करना चाहिए। क्योंकि यही उम्मी क़ुरआन है, रब के मार्गदर्शन व दया तथा नियम और आदेश इन्हीं आयात में स्पष्ट हैं।

هُوَ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلَ عَلَيۡكَ الۡكِتٰبَ مِنۡهُ اٰيٰتٌ مُّحۡكَمٰتٌ هُنَّ اُمُّ الۡكِتٰبِ ﴿۷﴾۔

[Q-03:07]

              उसी (अल्लाह) ने आप पर ये पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुहकम (सुदृढ़) हैं (जिन के अर्थ स्पष्ट हैं)। जो पुस्तक का मूल आधार हैं।

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मुत्तशाबिहात आयात (भविष्य की धरोहर)। 

وَاُخَرُ مُتَشٰبِهٰتٌ‌ؕ فَاَمَّا الَّذِيۡنَ فِىۡ قُلُوۡبِهِمۡ زَيۡغٌ فَيَتَّبِعُوۡنَ مَا تَشَابَهَ مِنۡهُ ابۡتِغَآءَ الۡفِتۡنَةِ وَابۡتِغَآءَ تَاۡوِيۡلِهٖۚؔ وَمَا يَعۡلَمُ تَاۡوِيۡلَهٗۤ اِلَّا اللّٰهُ ؔ‌ۘ ﴿۷﴾۔

[Q-03:07]

             और कुछ श्लोक मुतश्बह (भविष्य की धरोहर) हैं, इसलिये जिनके हृदय कुटिल हैं, वे प्रलोभन (फ़ितने) उत्पन्न करने के लिये इन मुतशाबिहात श्लोक का अनुसरण करते हैं। और वास्तविक अर्थ जानने का प्रयास करते हैं। हालाँकि, ईश्वर के अलावा इनका मतलब कोई नहीं जानता।

             क़ुरआन पढ़ते समय जब ऐसी आयतें हमारे सामने आएं, जिनसे भ्रम की स्थिति पैदा होती हो, या मन में विद्रोह जन्म लेता हो, तो समझ लें कि ये आयतें मुतशाबिहात (भविष्य कि अमानत) हैं। इन स्थितियों में सच्चे विश्वासियों के दिल और विचार कैसे हैं? अल्लाह कहता है। 

وَ الرّٰسِخُوۡنَ فِى الۡعِلۡمِ يَقُوۡلُوۡنَ اٰمَنَّا بِهٖۙ كُلٌّ مِّنۡ عِنۡدِ رَبِّنَا ‌ۚ وَمَا يَذَّكَّرُ اِلَّاۤ اُولُوا الۡاَلۡبَابِ‏ ﴿۷﴾۔  رَبَّنَا لَا تُزِغۡ قُلُوۡبَنَا بَعۡدَ اِذۡ هَدَيۡتَنَا وَهَبۡ لَنَا مِنۡ لَّدُنۡكَ رَحۡمَةً ‌ ۚ اِنَّكَ اَنۡتَ الۡوَهَّابُ‏ ﴿۸﴾۔

[Q-03:07-8]

        और जो लोग ज्ञान में निपुण हैं, वे कहते हैं कि हम इन पर ईमान लाए, यह सब हमारे रब की ओर से है। अल्लाह कहता है कि! बुद्धिमान ही सलाह कुबूल करते हैं (7) और ये लोग कहते हैं। हे ईश्वर, जब आपने हमें हिदायत (मार्गदर्शन) दी है, तो उसके बाद हमारे दिलों में विकृति पैदा न करना। और हमें आशीर्वाद दीजियो। आप महान उपहार देने वाले हैं (8)।

(अ) अब, यदि आप उन्हें सकारात्मक रूप से देख रहे हैं, तो अल्लाह आपको जितना चाहेगा, समझा देगा।

             इस बात को अल्लाह यूँ फरमाता है . . . . .

وَمَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ قَبۡلِكَ مِنۡ رَّسُوۡلٍ وَّلَا نَبِىٍّ اِلَّاۤ اِذَا تَمَنّٰٓى اَلۡقَى الشَّيۡطٰنُ فِىۡۤ اُمۡنِيَّتِهٖ ‌ۚ فَيَنۡسَخُ اللّٰهُ مَا يُلۡقِى الشَّيۡطٰنُ ثُمَّ يُحۡكِمُ اللّٰهُ اٰيٰتِهٖ‌ ؕ وَاللّٰهُ عَلِيۡمٌ حَكِيۡمٌ ۙ‏ ﴿۵۲﴾۔

[Q-22:52]

             और (हे नबी!) हमने आपसे पूर्व कोई भी ऐसा रसूल या नबी नहीं भेजा, कि जब, उन्होंने कोई तमन्ना की हो और शैतान ने उनकी तमन्ना में संशय न डाल दिया हो। मगर अल्लाह शैतान के संशय को दूर करके अपनी आयतों को सुदृढ़ कर देता है। अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वज्ञ है।


وَّلِيَـعۡلَمَ الَّذِيۡنَ اُوۡتُوا الۡعِلۡمَ اَنَّهُ الۡحَـقُّ مِنۡ رَّبِّكَ فَيُؤۡمِنُوۡا بِهٖ فَـتُخۡبِتَ لَهٗ قُلُوۡبُهُمۡ‌ ؕ وَاِنَّ اللّٰهَ لَهَادِ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡۤا اِلٰى صِرَاطٍ مُّسۡتَقِيۡمٍ‏ ﴿۵۴﴾۔

[Q-22:54]

             और इसलिए (भी) ताकि ज्ञानियों को (मुतशाबिहात पर) विश्वास हो जाये, कि ये (मुतशाबिह क़ुर्आन) आपके रब की ओर से सत्य है। और इसपर ईमान ले आयें। और उनके दिल इसके लिए झुक जायें, और निःसंदेह अल्लाह ही उनका पथ प्रदर्शक है, जो सुपथ की ओर ईमान लायें।


(ब) और अगर तुम नकारात्मक सोच रखते हो तो समझ लो! कि तुम मोह (परीक्षा) में पड़ गए हो।

             इस बात को अल्लाह यूँ फरमाता है . . . . .

لِّيَجۡعَلَ مَا يُلۡقِى الشَّيۡطٰنُ فِتۡـنَةً لِّـلَّذِيۡنَ فِىۡ قُلُوۡبِهِمۡ مَّرَضٌ وَّالۡقَاسِيَةِ قُلُوۡبُهُمۡ‌ ۚ وَ اِنَّ الظّٰلِمِيۡنَ لَفِىۡ شِقَاقٍۭ بَعِيۡدٍۙ‏ ﴿۵۳﴾۔

[Q-22:53]

              ये इसलिए, ताकि अल्लाह शैतानी संशय को उनके लिए परीक्षा बना दे, जिनके दिलों में रोग (द्विधा) है और जिनके दिल कड़े हैं और नि:संदेह, ये अत्याचारी विरोध में बहुत दूर चले गये हैं।


وَلَا يَزَالُ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا فِىۡ مِرۡيَةٍ مِّنۡهُ حَتّٰى تَاۡتِيَهُمُ السَّاعَةُ بَغۡتَةً اَوۡ يَاۡتِيَهُمۡ عَذَابُ يَوۡمٍ عَقِيۡمٍ‏ ﴿۵۵﴾۔

[Q-22:55]

              तथा जो काफ़िर हो गये, तो वे सदैव इस (क़ुर्आन) से संदेह में नहीं रहेंगे, हाँ जब तक कि! उनके पास सहसा प्रलय आ जाये अथवा उनके पास अंतिम अदालत के दिन की यातना आ जाये।


وَالَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا وَ كَذَّبُوۡا بِاٰيٰتِنَا فَاُولٰٓٮِٕكَ لَهُمۡ عَذَابٌ مُّهِيۡنٌ ﴿۵۷﴾۔

[Q-22:57]

               “और जो काफ़िर हो गये और हमारी आयतों को झुठलाया, उन्हीं के लिए अपमानकारी यातना है”।


और इस परीक्षा से निकलने का रास्ता भी अल्लाह तआला ने बता दिया। अलहमदू-लिल्लाह।

وَاِمَّا يَنۡزَغَنَّكَ مِنَ الشَّيۡطٰنِ نَزۡغٌ فَاسۡتَعِذۡ بِاللّٰهِ‌ؕ اِنَّهٗ هُوَ السَّمِيۡعُ الۡعَلِيۡمُ‏ ﴿۳۶﴾۔

[Q-41:36]

             और यदि आपको शैतान की ओर से कोई संशय हो, तो अल्लाह की शरण लें। नि:संदेह , वही सब कुछ सुनने व जानने वाला है।


अल्लाह की शरण लेने का तरीक़ा। माशाअल्लाह।  

رَّبِّ اَعُوۡذُ بِكَ مِنۡ هَمَزٰتِ الشَّيٰطِيۡنِۙ‏ (۹۷)  وَاَعُوۡذُ بِكَ رَبِّ اَنۡ يَّحۡضُرُوۡنِ‏ (۹۸) ۔

[Q-23:97-98]

               हे, मेरे रब! मैं शैतानों की शंकाओं से तेरी शरण माँगता हूँ। तथा हे मेरे रब! मैं तेरी शरण माँगता हूँ इससे कि वो मेरे पास आयें।


प्रश्न?

अब एक प्रश्न ओर उठता है। क्या इन मुतशाबिहात को समझना कभी आसान होगा?

              नि:संदेह होगा! हर गुजरता दिन भविष्य को वर्तमान में बदल देता है। गौर करने वाली बात यह है कि जितना कुरान को हम आज समझते हैं, क्या उतना ही कुरान के अवतरण के समय समझते थे? जवाब है नहीं। इसे साबित करने के लिए एक उदाहरण यह है कि वर्तमान समय में जब हम कुरान को विज्ञान के प्रकाश में पढ़ते हैं, तो हम पाते हैं कि यह कुरान में पहले से ही लिखा हुआ है। यानी विज्ञान से जुड़ी आयतें जब अल्लाह ने इंसान के ज़रिए साबित कीं, तो वो आयात (श्लोक) अपनी संपूर्ण व्याख्या के साथ हमारे सामने हैं। जबकि उससे पहले उन श्लोकों की न जाने क्या क्या स्पष्टीकरण और व्याख्या की जा रही थी।


एक और उदाहरण यह है कि फिरऔन के समुन्द्र में डूबने पर अल्लाह फरमाता है।

فَالۡيَوۡمَ نُـنَجِّيۡكَ بِبَدَنِكَ لِتَكُوۡنَ لِمَنۡ خَلۡفَكَ اٰيَةً  ؕ﴿۹۲﴾۔

[Q-10:92]

            “आज के दिन हम तुमको तुम्हारे शरीर के साथ (सांसारिक मोह से) मुक्ति देंगें,  ताकि तू उनके लिए, जो तेरे पश्चात होंगे, एक (शिक्षाप्रद) निशानी बन जाये”।

             लगभग 1300 वर्षों तक इस श्लोक का अर्थ यह था कि ! अल्लाह तआला ने फिरऔन  को मौत देकर उसके पापी शरीर को सांसारिक मोह से मुक्त किया। और उसे उसकी पूरी सेना समेत समुद्र में डुबाकर आनेवाली नस्लों के लिये उदाहरण का चिन्ह बना दिया और इस कहानी को जीवित रखने के लिये ईश्वर ने पवित्र ग्रन्थों में इसका उल्लेख किया। ताकि लोग विचार करें और ज़ुल्म और कुफ़्र से तौबा करें।

              लेकिन आज लगभग 3500 साल बाद जब फिरौन का शव मिला है। तो इस श्लोक का अर्थ थोड़ा भिन्न है। . . .

           “तो आज के दिन हम तुमको [अथार्थ फिरऔन के नाम को) तुम्हारे शरीर के साथ सुरक्षित (महफ़ूज) कर देंगे, ताकि तू उनके लिए, जो तेरे पश्चात होंगे, एक (शिक्षाप्रद) निशानी बन जाये” (कु-10:92)।

            1891 में जब फिरौन (जो 3500 साल पहले पानी में डूब कर मरा था) की प्राकृतिक ममी उपलब्ध हो गई, तो अल्लाह सर्वशक्तिमान ने साबित कर दिया कि कुरान भी सत्य है और अल्लाह के पैगंबर मुहम्मद ﷺ भी एक सच्चे पैगंबर हैं। ताकि लोग विचार करें। साथ ही यह सिद्ध किया कि मुतशबिहात आयात का अर्थ समय के साथ बदलता रहता है। तथा भविष्य काल के वर्तमान काल में बदल जाने पर आयत की व्याख्या स्पष्ट हो जाती है। तथा यह प्रक्रिया न्याय के दिन (प्रलय के दिन) तक जारी रहेगी। लेकिन लोग फिर भी विचार नहीं करते। इसी आयत के दूसरे भाग में अल्लाह फ़रमाता है!

              (इसके बावजूद)! “बेशक बहुत से लोग हमारी आयतों से ग़ाफ़िल हैं।” (कु-10:92)।

               निष्कर्ष यह है कि जब कुरान का पाठ किया जाये, तो खुद को मुश्किल में नहीं डालना चाहिए। और न ही अपने दिल में तनाव रखना चाहिए। अपितु जितना समझ में आए, उस पर सकारात्मक विचार करना चाहिए। और जो समझ में न आए, उसे भविष्य की धरोहर मानकर नकारात्मक विचारों से परेशान नहीं होना चाहिए। बाकी ईश्वर जितना चाहेंगे, आपके समय के हिसाब से आपको समझा देंगे। वह सबसे बड़ा जानने वाला और दयालु है।

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कुरान को समझना आसान है।

اِنَّاۤ اَنۡزَلۡنٰهُ قُرۡءٰنًا عَرَبِيًّا لَّعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُوۡنَ‏ ﴿۲﴾۔

[Q-12:02]

           हमने इस क़ुर्आन को अरबी में उतारा है, ताकि तुम समझ सको।


فَاِنَّمَا يَسَّرۡنٰهُ بِلِسَانِكَ لَعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُوۡنَ‏ ﴿۵۸﴾۔

[Q-44:58]

              तो हमने इस (क़ुर्आन) को आपकी भाषा में सरल कर दिया, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।


وَلَقَدۡ ضَرَبۡنَا لِلنَّاسِ فِىۡ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ مِنۡ كُلِّ مَثَلٍ‌ؕ وَلَٮِٕنۡ جِئۡتَهُمۡ بِاٰيَةٍ لَّيَقُوۡلَنَّ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡۤا اِنۡ اَنۡتُمۡ اِلَّا مُبۡطِلُوۡنَ‏ ﴿۵۸﴾۔

[Q-30:58]

              और हमने लोगों के (समझाने के) लिए इस क़ुर्आन में कई प्रकार के उदाहरणों का वर्णन किया है। और यदि आप उनके पास कोई निशानी (चमत्कार) भी लें आयें, तो भी यह काफ़िर अवश्य कह देंगे, कि तुम तो केवल झूठ बनाते हो।


وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا لِلنَّاسِ فِىۡ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ مِنۡ كُلِّ مَثَلٍ فَاَبٰٓى اَكۡثَرُ النَّاسِ اِلَّا كُفُوۡرًا‏ ﴿۸۹﴾۔

[Q-17:89]

             और हमने लोगों के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण को विविध शैली में वर्णित किया है, फिर भी अधिक्तर लोगों ने कुफ़्र किया। और अस्वीकार ही किया।


           नि:संदेह! कुरान को समझना आसान है, लेकिन यह आवश्यक है कि आप इसे उस भाषा में समझने की कोशिश करें जिसमें आप कुशल हैं। कुरान अरबी भाषा में अरबों के लिए प्रकट हुआ था। ताकि वे आसानी से समझ सकें। बाद में इसे पूरे संसार के लिए मार्गदर्शन (हिदायत) का स्रोत बना दिया गया। अब क्योंकि संसार के सब लोगों की भाषा अरबी नहीं है, इसलिए इसे समझने के लिए आपको इसके अनुवाद को उस भाषा में पढ़ना चाहिए, जिसमें आपको कौशल (महारत) प्राप्त हो। इसके लिए किसी विद्वान (आलिम) की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अल्लाह तआला ने कुरान को विभिन्न प्रकार के उदाहरण देकर समझाया है।

              उदाहरण के लिए, जब एक गैर-मुस्लिम कुरान पढ़ता है, तो वह कुरान का अर्थ अपनी भाषा में पढ़ता है, अरबी कुरान नहीं! परिणाम स्वरूप, सच्चाई उसके दिल में उतर जाती है। फिर जिन्हें अल्लाह अनुमति देता है। वे इस्लाम को घोषणात्मक रूप से स्वीकार करते हैं। और जिन्हें अल्लाह अनुमति नहीं देता, उनके दिल कठोर हो जाते हैं।

               दूसरी ओर, पैदायशी (जन्म से) मुसलमान हैं जो कुरान तो पढ़ते हैं, लेकिन वे क्या पढ़ते हैं, 99% (गैर अरबी) मुसलमान बेहतर जानते हैं। विद्वानों (आलिमों) का भी कहना है कि कुरान को समझ के साथ पढ़ो, लेकिन क्या किसी ने किसी सार्वजनिक मदरसे में ऐसा आलिम देखा है जो समझकर या समझा कर कुरान पढ़ना सिखाता हो?

            अंतत: यह कि! वोह जन्मजात मुसलमान जो अपनी भाषा में कुरान (का अनुवाद) नहीं पढ़ते हैं, वे शुद्ध आस्तिक नहीं हो सकते, क्योंकि वे नहीं जानते कि इस्लाम और उसके आदेश क्या हैं। हां, ये पैदाइशी मुसलमान फितने पैदा करने में बहुत माहिर हैं। परिणाम स्वरूप, ये मुसलमान अवज्ञाकारी बनी इस्राइल की तुलना में बराबर प्रतीत होते हैं। अल्लाह सर्वशक्तिमान हम मुसलमानों को कुरान पढ़ने, सिखाने, समझने और समझाने की क्षमता प्रदान करे। आमीन!

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ईश्वर ने पूरे संसार के लिए कुरान को पसंद किया।

اِنَّ الَّذِيۡنَ يَتۡلُوۡنَ كِتٰبَ اللّٰهِ وَاَقَامُوا الصَّلٰوةَ وَاَنۡفَقُوۡا مِمَّا رَزَقۡنٰهُمۡ سِرًّا وَّعَلَانِيَةً يَّرۡجُوۡنَ تِجَارَةً لَّنۡ تَبُوۡرَۙ‏ (۲۹) ۔

[Q-35:29]

             वास्तव में, जो अल्लाह की पुस्तक (क़ुर्आन) पढ़ते हैं , और नमाज़ की स्थापना करते हैं, एवं जो हमने उन्हें प्रदान किया है उसमें से खुले तथा छुपे दान करते हैं, तो वही ऐसे व्यापार की आशा रखने योग्य हैं, जो कदापि हानिकारक नहीं होगा।


قُلۡ نَزَّلَهٗ رُوۡحُ الۡقُدُسِ مِنۡ رَّبِّكَ بِالۡحَـقِّ لِيُثَبِّتَ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَهُدًى وَّبُشۡرٰى لِلۡمُسۡلِمِيۡنَ‏ ﴿۱۰۲﴾۔

[Q-16:102]

             आप कह दें कि इस (कुरान) को रूह़ुल कुदुस (जिब्राइल फरिश्ता) आपके पालनहार की ओर से सत्य के साथ लेकर आए हैं। ताकि उन्हें सुदृढ़ (मजबूत) कर दे जो ईमान लाये हैं। तथा आज्ञाकारियों के लिए यह मार्गदर्शन और शुभ सूचना है।


هٰذَا بَصَاٮِٕرُ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَّرَحۡمَةٌ لِّقَوۡمٍ يُّوۡقِنُوۡنَ‏ (۲۰) ۔

[Q-45:20]

                ये (क़ुर्आन) सूझ की बातें हैं, जो लोग विश्वास करते हैं – उनके लिए मार्गदर्शन एवं दया है।

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कुरान को समझने और उसका पालन करने वाला ही मुस्लिम है।

وَهٰذَا صِرَاطُ رَبِّكَ مُسۡتَقِيۡمًا‌  ؕ  قَدۡ فَصَّلۡنَا الۡاٰيٰتِ لِقَوۡمٍ يَّذَّكَّرُوۡنَ‏ ﴿۱۲۶﴾۔

[Q-06:126]

            और यही (इस्लाम) आपके रब का सीधा रास्ता है। हमने उन लोगों के लिए जो शिक्षा ग्रहण करते हों, उनके लिए कुरान कि आयात में विस्तार से व्याख्या की गई है। ।


وَلَقَدۡ جِئۡنٰهُمۡ بِكِتٰبٍ فَصَّلۡنٰهُ عَلٰى عِلۡمٍ هُدًى وَّرَحۡمَةً لِّـقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۵۲﴾۔

[Q-07:52]

             जबकि हमने उनके लिए एक ऐसी पुस्तक दी, जिसे हमने ज्ञान के आधार पर सविस्तार वर्णित कर दिया है, जो मार्गदर्शन (हिदायत) तथा दया है, उन लोगों के लिए, जो ईमान (विश्वास) रखते हैं।


وَالَّذِىۡ جَآءَ بِالصِّدۡقِ وَصَدَّقَ بِهٖۤ‌ اُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُتَّقُوۡنَ‏ ﴿۳۳﴾  لَهُمۡ مَّا يَشَآءُوۡنَ عِنۡدَ رَبِّهِمۡ‌ ؕ ذٰ لِكَ جَزٰٓؤُ الۡمُحۡسِنِيۡنَ ۚ‏ ﴿۳۴﴾۔

[Q-39:33-34]

          तथा (मोहम्मद ) जो सत्य लाये (अथार्थ कुरान) और जिन लोगों ने उसे सच माना, तो वही मुत्तक़ी अथार्थ सीधे रास्ते पर हैं। उनके लिए उनके रब के यहाँ वोह सब उपलब्ध होगा जो कि वोह चाहेंगे। सदाचारियों (ईमान वाले) लोगों का यही प्रतिफल है।


تِلۡكَ اٰيٰتُ الۡكِتٰبِ الۡحَكِيۡمِ ۙ ﴿۲﴾  هُدًى وَّرَحۡمَةً لِّلۡمُحۡسِنِيۡنَ ۙ ﴿۳﴾  الَّذِيۡنَ يُقِيۡمُوۡنَ الصَّلٰوةَ وَيُؤۡتُوۡنَ الزَّكٰوةَ وَهُمۡ بِالۡاٰخِرَةِ هُمۡ يُوۡقِنُوۡنَ ؕ ﴿۴﴾  اُولٰٓٮِٕكَ عَلٰى هُدًى مِّنۡ رَّبِّهِمۡ‌ وَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُفۡلِحُوۡنَ‏ ﴿۵﴾۔

[Q-31:2-5]

            ये ज्ञान से पूर्ण पुस्तक की आयतें हैं। उन सदाचारियों के लिए मार्गदर्शन तथा दया है, जो नमाज़ की स्थापना करते हैं, ज़कात देते हैं और परलोक पर (पूरा) विश्वास रखते हैं। वही लोग! अपने रब के मार्गदर्शन (हिदायत) पर हैं तथा वही लोग सफल होने वाले हैं।


الٓمّٓۚ‏ ﴿۱﴾  ذٰ لِكَ الۡڪِتٰبُ لَا رَيۡبَ ۚ فِيۡهِ ۚ هُدًى لِّلۡمُتَّقِيۡنَۙ‏ ﴿۲﴾  الَّذِيۡنَ يُؤۡمِنُوۡنَ بِالۡغَيۡبِ وَ يُقِيۡمُوۡنَ الصَّلٰوةَ وَمِمَّا رَزَقۡنٰهُمۡ يُنۡفِقُوۡنَۙ‏ ﴿۳﴾  وَالَّذِيۡنَ يُؤۡمِنُوۡنَ بِمَۤا اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ وَمَاۤ اُنۡزِلَ مِنۡ قَبۡلِكَۚ وَبِالۡاٰخِرَةِ هُمۡ يُوۡقِنُوۡنَؕ‏ ﴿۴﴾  اُولٰٓٮِٕكَ عَلٰى هُدًى مِّنۡ رَّبِّهِمۡ‌ وَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُفۡلِحُوۡنَ‏ ﴿۵﴾۔

[Q-02:2-5]

              ये पुस्तक (कुर्आन) है, इसमें कोई संदेह नहीं कि यह उन लोगों को सत्य का मार्ग दर्शाती है।

             जो (अल्लाहसे) डरते हैं। और जो ग़ैब [परोक्ष] पर ईमान (विश्वास) रखते हैं तथा नमाज़ की स्थापना करते हैं। और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से दान करते हैं। जो उस पुस्तक (कुर्आन) पर जो तुझ पर उतारी गई है, और उन पुस्तकों पर भी, जो तुझ से पहले पेग़म्बरों  पर उतारी गई थीं, विश्वास करते हैं। और वे न्याय के दिन (प्रलय के पश्चात होने वाले हिसाब के दिन) में विश्वास करते हैं।

यही लोग अपने पालनहार की बताई सीधी डगर पर हैं और यही सफल होने वाले हैं।


وَمَنۡ اَحۡسَنُ دِيۡنًا مِّمَّنۡ اَسۡلَمَ وَجۡهَهٗ لِلّٰهِ وَهُوَ مُحۡسِنٌ وَّاتَّبَعَ مِلَّةَ اِبۡرٰهِيۡمَ حَنِيۡفًا‌ ؕ وَاتَّخَذَ اللّٰهُ اِبۡرٰهِيۡمَ خَلِيۡلًا‏ ﴿۱۲۵﴾۔

[Q-04:125]

             तथा उस व्यक्ति से अच्छा किसका धर्म हो सकता है, जिसने सतकर्म (नेक कर्म) करते हुए स्वयं को अल्लाह के लिए झुका दिया हो। और एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म का अनुसरण कर रहा हो? और अल्लाह ने इब्राहीम को अपना विशुध्द मित्र बना लिया था।


             हे पैदाईशी मुस्लिम लोगों कुरान पढ़ो। अपनी ज़बान में पढ़ो। अल्लाह से अपने प्रश्न करो, और प्रश्नों के उत्तर भी प्राप्त करो। इस ब्रह्म्मांड की शुरुआत से अन्त तक कोई ऐसा प्रश्न नहीं, कि जिसका उत्तर नहीं। इंसान के निर्माण का उद्देश्य जानो, इंसानियत और क़ानून जानो, ताकि अमल करके अपने रब को राज़ी कर सको। मोमिन बन सको। रोज़े महसर (अंतिम अदालत) के दिन रब के सामने खड़े हो सको। नबी करीम की शफ़ाअत (हिमायत) पाने वालों की सूची में सूचीबद्ध हो सको।

             मेरा रब तमाम मुस्लिमों को नबी करीम मोहम्मद और तमाम नबीयों का सम्मान करने और उनपर दुरूद व सलाम भेजने और मेरे रब की किताब कुरान को समझकर पढ़ने और उस पर अमल करने की तोफीक़ दे। आमीन।     

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