क़ुरान का पालन

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            अल्लाह कहता है। इससे पहले कि तुम पर यातना आ जाए और तुम को खबर भी न हो। इस सर्वोत्तम क़ुरान का पालन करो। जो तुम्हारी तरफ तुम्हारे रब की तरफ से अवतरित किया गया है। अल्लाह नबी से कहता है कि इस क़ुरान का उपदेश देने से आप के मन में कोई संकोच नहीं होना चाहिये। ईमान वालों के लिये यह मार्गदर्शन है, इसमे सूझ की बातें हैं, द्या है और अँधेरों से निकालकर रब की तरफ ले जाने का रास्ता है।

               अल्लाह ने तमाम नबियों और पेगम्बरों को उन पर की जाने वली वह्यी और अगली किताबों का पालन करने वाला बनाकर भेजा था। आप मुहम्मद (सल्ल अ० वसलम) और दूसरे किसी भी नबी को अनुमति नहीं थी कि वोह पवित्र पुस्तकों और उन पर प्रकट होने वाली वह्यी से हटकर रास्ता चुनें। (कु०-०६:५०,१०६)

              लेकिन लोगों ने थोड़े से संसारिक लाभ के लिये स्वयं पुस्तकें गढ़ लीं।और अल्लाह की पुस्तकों को पीछे धकेल दिया। जल्दी ही अल्लाह हिसाब लेने वाला है।

             अल्लाह के नज़दीक वही मुस्लिम है जो क़ुरान का पालन करते हैं अगली पुस्तकों में भी विश्वास रखते हैं और धर्मनिष्ट कार्य (नेक अम्ल) करते हैं। (कु०-४७:०२)  

رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔

सरल क़ुरान। 

وَلَقَدۡ ضَرَبۡنَا لِلنَّاسِ فِىۡ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ مِنۡ كُلِّ مَثَلٍ‌ؕ وَلَٮِٕنۡ جِئۡتَهُمۡ بِاٰيَةٍ لَّيَقُوۡلَنَّ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡۤا اِنۡ اَنۡتُمۡ اِلَّا مُبۡطِلُوۡنَ‏ ﴿۵۸﴾ كَذٰلِكَ يَطۡبَعُ اللّٰهُ عَلٰى قُلُوۡبِ الَّذِيۡنَ لَا يَعۡلَمُوۡنَ‏ ﴿۵۹﴾  فَاصۡبِرۡ اِنَّ وَعۡدَ اللّٰهِ حَقٌّ‌ وَّلَا يَسۡتَخِفَّنَّكَ الَّذِيۡنَ لَا يُوۡقِنُوۡنَ‏ ﴿۶۰﴾۔

 [Q-30:58-60]

         और हमने इस क़ुर्आन में लोगों के लिए  प्रत्येक उदाहरण को वर्णन कर दिया है। और यदि आप उनके पास कोई निशानी ले आयें, तो भी! जो काफ़िर हो गये हैं अवश्य कह देंगे, कि तुम तो केवल झूठ बनाते हो।(58) इसी प्रकार, अल्लाह उनके दिलों पर मुहर लगा देता है जो समझ नहीं रखते।(59) तो आप सहन करें, वास्तव में, अल्लाह का वचन सत्य है और कदापि वो मनुष्य जो विश्वास नहीं रखते, आप को हल्का न पायें।(60)
            अन्तिम आयत में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को धैर्य तथा साहस रखने का आदेश दिया गया है।


وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا لِلنَّاسِ فِىۡ هٰذَا الۡقُرۡاٰنِ مِنۡ كُلِّ مَثَلٍ فَاَبٰٓى اَكۡثَرُ النَّاسِ اِلَّا كُفُوۡرًا‏ ﴿۸۹﴾۔

[Q-17:89]

        और हमने लोगों के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण विविध शैली में वर्णित किया है, फिर भी अधिक्तर लोगों ने कुफ़्र किया और स्वीकार नही किया।(89)

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क़ुरान का पालन करें।

قُلْ لَّاۤ اَسۡــَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ اَجۡرًا‌ ؕ اِنۡ هُوَ اِلَّا ذِكۡرٰى لِلۡعٰلَمِيۡنَ ﴿۹۰﴾۔

[Q-06:90]

            (हे नबी!) आप कह दें कि मैं इस (क़ुरान के उपदेश) पर तुमसे कोई प्रतिदान (मुआवज़ा) नहीं माँगता। ये तो केवल संसार वासियों के लिए एक शिक्षा है।(90)


لٰـكِنِ اللّٰهُ يَشۡهَدُ بِمَاۤ اَنۡزَلَ اِلَيۡكَ‌ اَنۡزَلَهٗ بِعِلۡمِهٖ‌ ۚ وَالۡمَلٰٓٮِٕكَةُ يَشۡهَدُوۡنَ‌ ؕ وَكَفٰى بِاللّٰهِ شَهِيۡدًا ؕ‏ (۱۶۶)۔

[Q-04:166]

       लेकिन अल्लाह ने जो (क़ुर्आन) आप पर उतारा है, उसके प्रति साक्ष्य (गवाही) देता है। की उसने इसे अपने ज्ञान के साथ उतारा है तथा फ़रिश्ते भी साक्ष्य देते हैं और अल्लाह का साक्ष्य ही बहुत है।(166)


وَهٰذَا كِتٰبٌ اَنۡزَلۡنٰهُ مُبٰرَكٌ فَاتَّبِعُوۡهُ وَاتَّقُوۡا لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُوۡنَۙ‏ )۱۵۵)۔

[Q-06:155]

          तथा  ये पुस्तक (क़ुर्आन) हमने अवतरित की है, ये बड़ी शुभकारी है, अतः इसपर चलो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुमपर दया की जाये।(155)


الۤمّۤصۤ‏ (۱)  كِتٰبٌ اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ فَلَا يَكُنۡ فِىۡ صَدۡرِكَ حَرَجٌ مِّنۡهُ لِتُنۡذِرَ بِهٖ وَذِكۡرٰى لِلۡمُؤۡمِنِيۡنَ‏ (۲)۔  

[Q-07:1-2]

           अलिफ़, लाम, मीम, साद। (1) ये पुस्तक है, जो आपकी ओर उतारी गयी है। ताकि आप इसके द्वारा सावधान करें। अतः (हे नबी!) आपके मन में इससे कोई संकोच न हो, और ईमान वालों के लिए यह उपदेश है। (2)


اِتَّبِعُوۡا مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكُمۡ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ وَلَا تَتَّبِعُوۡا مِنۡ دُوۡنِهٖۤ اَوۡلِيَآءَ‌ ؕ قَلِيۡلًا مَّا تَذَكَّرُوۡنَ‏ ﴿۳﴾۔

[Q-07:03]

              हे लोगों! उस की पैरवी करो, जो तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी तरफ नाज़िल किया गया है। और उसके सिवा दूसरे वलियों की पैरवी न करो। तुम बहुत कम नसीहत कूबूल करते हो।

             हे लोगों! जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित किया गया है, उसका पालन करो। और उसके अतिरिक्त दूसरे सन्तों का अनुसरण न करना। तुम बहुत कम मार्गदर्शन लेते हैं।


مَاۤ اَنۡزَلۡـنَا عَلَيۡكَ الۡـقُرۡاٰنَ لِتَشۡقٰٓى ۙ‏ ﴿۲﴾  اِلَّا تَذۡكِرَةً لِّمَنۡ يَّخۡشٰى ۙ‏ ﴿۳﴾  تَنۡزِيۡلًا مِّمَّنۡ خَلَقَ الۡاَرۡضَ وَالسَّمٰوٰتِ الۡعُلَى ؕ‏ ﴿۴﴾۔

[Q-20:2-4]

            (हे नबी) हमने आपपर क़ुर्आन इस लिए नहीं अवतरित किया है कि आप दुःखी हों। (2) अपितु ये उसकी शिक्षा के लिए है, जो डरता  हो।(3) इसका उतारा जाना उस की ओर से है, जिसने उत्पत्ति की है धरती तथा उच्च आकाशों की।


وَاتَّبِعُوۡۤا اَحۡسَنَ مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكُمۡ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ مِّنۡ قَبۡلِ اَنۡ يَّاۡتِيَكُمُ الۡعَذَابُ بَغۡتَةً وَّاَنۡتُمۡ لَا تَشۡعُرُوۡنَۙ‏ ﴿۵۵﴾۔

[Q-39:55]

       तथा  उस सर्वोत्तम क़ुरान का पालन करो। जो तुम्हारी और तुम्हारे रब की ओर से अवतरित किया गया है,  इससे पूर्व कि तुमपर अचानक यातना (अज़ाब) आ पड़े और तुम्हें ज्ञान भी न हो।(55)


تِلۡكَ اٰيٰتُ الۡكِتٰبِ الۡحَكِيۡمِ ۙ ﴿۲﴾  هُدًى وَّرَحۡمَةً لِّلۡمُحۡسِنِيۡنَ ۙ ﴿۳﴾  الَّذِيۡنَ يُقِيۡمُوۡنَ الصَّلٰوةَ وَيُؤۡتُوۡنَ الزَّكٰوةَ وَهُمۡ بِالۡاٰخِرَةِ هُمۡ يُوۡقِنُوۡنَ ؕ ﴿۴﴾  اُولٰٓٮِٕكَ عَلٰى هُدًى مِّنۡ رَّبِّهِمۡ‌ وَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُفۡلِحُوۡنَ‏ ﴿۵﴾۔

[Q-31:2-5]

        ये आयतें ज्ञानपूर्ण पुस्तक की हैं।(2) उन सदाचारियों (नेक लोगों) के लिए मार्गदर्शन तथा दया है।(3) जो नमाज़ की स्थापना करते हैं, ज़कात देते हैं और परलोक पर (पूरा) विश्वास रखते हैं।(4) वही लोग, अपने पालनहार के सुपथों (हिदायत) पर हैं तथा वही लोग सफल होने वाले हैं।(5)


هٰذَا بَصَاٮِٕرُ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَّرَحۡمَةٌ لِّقَوۡمٍ يُّوۡقِنُوۡنَ‏ ﴿۲۰﴾۔

[Q-45:20]

       ये (क़ुरान) सब मनुष्यों के लिए सूझ की बातें हैं, तथा मार्गदर्शन (हिदायत) एवं दया (रहमत) है, उनके लिए, जो विश्वास करें।(20)


اَوَلَمۡ يَكۡفِهِمۡ اَنَّاۤ اَنۡزَلۡنَا عَلَيۡكَ الۡكِتٰبَ يُتۡلٰى عَلَيۡهِمۡ‌ؕ اِنَّ فِىۡ ذٰلِكَ لَرَحۡمَةً وَّذِكۡرٰى لِقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ (۵۱)۔

[Q-29:51]

        क्या उन्हें पर्याप्त नहीं कि हमने आप पर ये पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है जो उनपर पढ़ी जा रही है। वास्तव में, इसमें दया और शिक्षा है, उन लोगों के लिए जो ईमान लाते हैं।(51)


لٰـكِنِ الرّٰسِخُوۡنَ فِى الۡعِلۡمِ مِنۡهُمۡ وَالۡمُؤۡمِنُوۡنَ يُـؤۡمِنُوۡنَ بِمَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ وَمَاۤ اُنۡزِلَ مِنۡ قَبۡلِكَ‌ وَالۡمُقِيۡمِيۡنَ الصَّلٰوةَ‌ وَالۡمُؤۡتُوۡنَ الزَّكٰوةَ وَ الۡمُؤۡمِنُوۡنَ بِاللّٰهِ وَالۡيَوۡمِ الۡاٰخِرِ ؕ اُولٰٓٮِٕكَ سَنُؤۡتِيۡهِمۡ اَجۡرًا عَظِيۡمًا‏ (۱۶۲)۔

[Q-04:162]

         परन्तु जो लोग उनमें से ज्ञान में पक्के हैं तथा जो ईमान वाले हैं। वो आपकी ओर उतारी गयी उस (पुस्तक क़ुर्आन) पर तथा आपसे पूर्व उतारी गई उन (पुस्तकों) पर ईमान रखते हैं और जो नमाज़ की स्थापना करने वाले, ज़कात देने वाले और अल्लाह तथा अन्तिम दिन पर ईमान रखने वाले हैं, उन्हीं को हम बहुत बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे।(162)


وَلَـقَدۡ اٰتَيۡنَا مُوۡسٰى وَهٰرُوۡنَ الۡفُرۡقَانَ وَضِيَآءً وَّذِكۡرًا لِّـلۡمُتَّقِيۡنَۙ‏ ﴿۴۸﴾  الَّذِيۡنَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ بِالۡغَيۡبِ وَهُمۡ مِّنَ السَّاعَةِ مُشۡفِقُوۡنَ‏ ﴿۴۹﴾  وَهٰذَا ذِكۡرٌ مُّبٰرَكٌ اَنۡزَلۡنٰهُ‌ؕ اَفَاَنۡتُمۡ لَهٗ مُنۡكِرُوۡنَ‏ ﴿۵۰﴾۔

[Q-21:48-50]

         और हम मूसा तथा हारून को विवेक, प्रकाश और शिक्षाप्रद पुस्तक आज्ञाकारियों के लिए दे चुके हैं।(48)उन आज्ञाकारियों के लिए जो अपने रब से बिन देखे डरते हों और वे प्रलय से भी भयभीत हों।(49) और ये (क़ुर्आन) एक शुभ शिक्षा है, जिसे हमने उतारा है! तो क्या तुम इसके इन्कारी हो?(50)


 اِنَّ هٰذِهٖ تَذۡكِرَةٌ ‌ ۚ فَمَنۡ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰى رَبِّهٖ سَبِيۡلًا ﴿۱۹﴾۔

[Q-73:19].

            वास्तव में, ये (आयतें) एक शिक्षा (नसीहत) हैं। तो जो चाहे [इन के द्वारा] अपने रब की ओर राह बना ले।(19)


فَمَنۡ اَظۡلَمُ مِمَّنۡ كَذَبَ عَلَى اللّٰهِ وَكَذَّبَ بِالصِّدۡقِ اِذۡ جَآءَهٗ‌ ؕ اَ لَيۡسَ فِىۡ جَهَنَّمَ مَثۡـوًى لِّـلۡـكٰفِرِيۡنَ‏ (۳۲)  وَالَّذِىۡ جَآءَ بِالصِّدۡقِ وَصَدَّقَ بِهٖۤ‌ اُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُتَّقُوۡنَ‏ (۳۳)  لَهُمۡ مَّا يَشَآءُوۡنَ عِنۡدَ رَبِّهِمۡ‌ ؕ ذٰ لِكَ جَزٰٓؤُ الۡمُحۡسِنِيۡنَ ۚ‏ (۳۴)  لِيُكَفِّرَ اللّٰهُ عَنۡهُمۡ اَسۡوَاَ الَّذِىۡ عَمِلُوۡا وَيَجۡزِيَهُمۡ اَجۡرَهُمۡ بِاَحۡسَنِ الَّذِىۡ كَانُوۡا يَعۡمَلُوۡنَ‏ (۳۵)۔

[Q-39:32-35].

               तो उससे बड़ा जालिम (अत्याचारी) कौन हो सकता है जो अल्लाह पर झूठ बोले तथा सच (कुरान) को झुठलाये, जब वो उसके पास आ गया।  तो क्या नरक में नहीं है, ऐसे काफ़िरों का स्थान? (32) तथा जो [मनुष्य] सत्य के साथ आया  और जिसने उसे सच माना, तो वही (यातना से) सुरक्षित रहने वाले (परहेज़गार) हैं।(33) उन्हीं के लिए है, जो वह चाहेंगे उनके पालनहार के यहाँ और यही सदाचारियों का प्रतिफल है।(34) ताकि अल्लाह उन्हे माफ (क्षमा) कर दे, उन बुराइयों के लिए जो उन्होंने की हैं तथा उन्हें उनके उन उत्तम कर्मों के बदले, प्रतिफल प्रदान करे। जो वे कर रहे थे। (35)


بِالۡبَيِّنٰتِ وَالزُّبُرِ‌ؕ وَاَنۡزَلۡنَاۤ اِلَيۡكَ الذِّكۡرَ لِتُبَيِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ اِلَيۡهِمۡ وَلَعَلَّهُمۡ يَتَفَكَّرُوۡنَ ﴿۴۴﴾۔‏ 

[Q-16:44]

             [और हमने रसूलों को] प्रत्यक्ष (खुले) प्रमाणों तथा पुस्तकों के साथ (भेजा) और आपकी ओर ये शिक्षा (क़ुर्आन) अवतरित की। तथा जो कुछ आप की ओर उतारा (नाज़िल किया) गया है, इसलिये कि! आप उसे सर्वमानव के लिए उजागर कर दें,  ताकि वे सोच-विचार करें।


وَاِذَا قِيۡلَ لَهُمُ اتَّبِعُوۡا مَآ اَنۡزَلَ اللّٰهُ قَالُوۡا بَلۡ نَـتَّبِعُ مَآ اَلۡفَيۡنَا عَلَيۡهِ اٰبَآءَنَا ؕ اَوَلَوۡ كَانَ اٰبَآؤُهُمۡ لَا يَعۡقِلُوۡنَ شَيۡـًٔـا وَّلَا يَهۡتَدُوۡنَ‏ (۱۷۰)  وَمَثَلُ الَّذِيۡنَ کَفَرُوۡا كَمَثَلِ الَّذِىۡ يَنۡعِقُ بِمَا لَا يَسۡمَعُ اِلَّا دُعَآءً وَّنِدَآءً ؕ صُمٌّۢ بُكۡمٌ عُمۡـىٌ فَهُمۡ لَا يَعۡقِلُوۡنَ‏ (۱۷۱)۔

[Q-02:170-171]

         और जब उनसे कहा जाता है कि जो (क़ुर्आन) अल्लाह ने उतारा है, उस क़ुरान का पालन करो।  तो कहते हैं कि हम तो उसी रीति पर चलेंगे, जिसपर अपने पूर्वजों को पाया है। क्या यदि उनके पूर्वज कुछ न समझते रहे तथा कुपथ पर रहे हों, (तब भी वे उन्हीं का अनुसरण करते रहेंगे) (170) उनकी दशा जो काफ़िर हो गये, उसके समान है, जो उसे (अर्थात पशु को) पुकारता है, जो हाँक-पुकार के सिवा कुछ  नहीं सुनता, ये (काफ़िर) बहरे, गूंगे तथा अंधे हैं। इसलिए कुछ नहीं समझते।(171)

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पैग़म्बर अपने समुदायों के जिम्मेदार नहीं होते।

قَدۡ جَآءَكُمۡ بَصَآٮِٕرُ مِنۡ رَّبِّكُمۡ  ۚ  فَمَنۡ اَبۡصَرَ فَلِنَفۡسِهٖ‌ ۚ وَمَنۡ عَمِىَ فَعَلَيۡهَا‌ ؕ وَمَاۤ اَنَا عَلَيۡكُمۡ بِحَفِيۡظٍ‏ (۱۰۴)۔

[Q-06:104)

           [हे नबी कह दो कि] तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ से निशानियाँ आ चुकी हैं। तो जिसने समझ-बूझ से काम लिया, उसका लाभ उसी के लिए है और जो अन्धा हो गया, तो उसकी हानि उसी पर है और मैं तुमपर संरक्षक नहीं हूँ।(104)


فَاِنَّكَ لَا تُسۡمِعُ الۡمَوۡتٰى وَلَا تُسۡمِعُ الصُّمَّ الدُّعَآءَ اِذَا وَلَّوۡا مُدۡبِرِيۡنَ‏ ﴿۵۲﴾  وَمَاۤ اَنۡتَ بِهٰدِ الۡعُمۡىِ عَنۡ ضَلٰلَتِهِمۡ‌ؕ اِنۡ تُسۡمِعُ اِلَّا مَنۡ يُّؤۡمِنُ بِاٰيٰتِنَا فَهُمۡ مُّسۡلِمُوۡنَ‏ ﴿۵۳﴾۔

[Q-30:52-53]

       

           तो (हे नबी!) आप नहीं सुना सकेंगे मुर्दों  को और नहीं सुना सकेंगे बहरों को पुकार, जब वे भाग रहे हों, पीठ फेरकर।(52)
                अर्थात जिन की अन्तरात्मा मर चुकी हो और सत्य सुनने के लिये तैयार न हों।

और आप अंधों को उनके कुपथ से सीधे मार्ग पर नहीं ला सकते। आप सुना सकेंगे उन्हींको, जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं, फिर वही मुस्लिम हैं।(53)

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मुहम्मद ﷺ को भी क़ुरान का पालन करने का आदेश। 

اِتَّبِعۡ مَاۤ اُوۡحِىَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ‌‌ۚ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ۚ وَاَعۡرِضۡ عَنِ الۡمُشۡرِكِيۡنَ‏ (۱۰۶)  وَلَوۡ شَآءَ اللّٰهُ مَاۤ اَشۡرَكُوۡا ‌ؕ وَمَا جَعَلۡنٰكَ عَلَيۡهِمۡ حَفِيۡظًا‌ ۚ وَمَاۤ اَنۡتَ عَلَيۡهِمۡ بِوَكِيۡلٍ‏ ﴿۱۰۷﴾۔

[Q-06:106-107]

         [हे नबी] आप उसपर चलें, जो आपपर आपके रब की ओर से वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है। उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुश्रिकों की बातों पर ध्यान न दें।(106) और यदि अल्लाह चाहता, तो वो लोग अल्लाह के अतिरिक्त किसी को साझी न बनाते और हमने आपको उनपर निरीक्षक नहीं बनाया है और न ही आप उनपर अधिकारी हैं।(107)


 

تَنۡزِيۡلُ الۡكِتٰبِ مِنَ اللّٰهِ الۡعَزِيۡزِ الۡحَكِيۡمِ‏ ﴿۱﴾  اِنَّاۤ اَنۡزَلۡنَاۤ اِلَيۡكَ الۡكِتٰبَ بِالۡحَقِّ فَاعۡبُدِ اللّٰهَ مُخۡلِصًا لَّهُ الدِّيۡنَ ؕ‏ ﴿۲﴾۔

[Q-39:1-2]

        इस पुस्तक का अवतरित होना अल्लाह की ओर से है जो अति प्रभावशाली, तत्वज्ञ है।(1) [है नबी]  हमने आपकी ओर ये पुस्तक सत्य के साथ अवतरित की है। अतः, इबादत (वंदना) करो अल्लाह की उसके लिए धर्म को शुध्द करते हुए।(2)


قُلْ لَّاۤ اَقُوۡلُ لَـكُمۡ عِنۡدِىۡ خَزَآٮِٕنُ اللّٰهِ وَلَاۤ اَعۡلَمُ الۡغَيۡبَ وَلَاۤ اَقُوۡلُ لَـكُمۡ اِنِّىۡ مَلَكٌ‌ ۚ اِنۡ اَتَّبِعُ اِلَّا مَا يُوۡحٰٓى اِلَىَّ‌ ؕ قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِى الۡاَعۡمٰى وَالۡبَصِيۡرُ‌ ؕ اَفَلَا تَتَفَكَّرُوۡنَ (۵۰)۔

[Q-06:50]

        (हे नबी!) आप कह दें कि मेरे पास अल्लाह का कोष (खज़ाना) नहीं है, न मैं परोक्ष (ग़ैब) का ज्ञान रखता हूँ और न मैं ये कहता हूँ कि मैं कोई फ़रिश्ता हूँ। मैं तो केवल उसी क़ुरान का पालन कर रहा हूँ, जो मेरी ओर वह़्यी (प्रकाशना) किया जा रहा  है। आप ﷺ कहें कि क्या अंधा तथा आँख वाला बराबर हो जायेंगे? क्या तुम सोच विचार नहीं करते?

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पेग़म्बरों का लक्ष्य केवल अल्लाह का संदेश पहुँचाना है।

يٰۤـاَيُّهَا النَّاسُ قَدۡ جَآءَكُمُ الرَّسُوۡلُ بِالۡحَـقِّ مِنۡ رَّبِّكُمۡ فَاٰمِنُوۡا خَيۡرًا لَّـكُمۡ ؕ (۱۷۰)

[Q-04:170]

         हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से रसूल सत्य लेकर आ गये हैं। अतः, उनपर ईमान लाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है।(170)


وَمَا نُرۡسِلُ الۡمُرۡسَلِيۡنَ اِلَّا مُبَشِّرِيۡنَ وَمُنۡذِرِيۡنَ ۚ ﴿۵۶﴾۔    

[Q-18:56]

           तथा हम रसूलों को केवल शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले बनाकर भेजते हैं। (56)


الٓرٰ‌ ࣞ  كِتٰبٌ اُحۡكِمَتۡ اٰيٰـتُهٗ ثُمَّ فُصِّلَتۡ مِنۡ لَّدُنۡ حَكِيۡمٍ خَبِيۡرٍۙ‏ (۱)  اَلَّا تَعۡبُدُوۡۤا اِلَّا اللّٰهَ‌ ؕ اِنَّنِىۡ لَـكُمۡ مِّنۡهُ نَذِيۡرٌ وَّبَشِيۡرٌ ۙ‏ (۲)  وَّاَنِ اسۡتَغۡفِرُوۡا رَبَّكُمۡ ثُمَّ تُوۡبُوۡۤا اِلَيۡهِ يُمَتِّعۡكُمۡ مَّتَاعًا حَسَنًا اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّى وَ يُؤۡتِ كُلَّ ذِىۡ فَضۡلٍ فَضۡلَهٗ ‌ؕ وَاِنۡ تَوَلَّوۡا فَاِنِّىۡۤ اَخَافُ عَلَيۡكُمۡ عَذَابَ يَوۡمٍ كَبِيۡرٍ‏ (۳)۔

[Q-11:1-3]

            अलिफ, लाम, रा। ये पुस्तक है, जिसकी आयतें सुदृढ़ की गयीं, फिर सविस्तार वर्णित की गयी हैं, उसकी ओर से, जो तत्वज्ञ, सर्वसूचित है।(1) कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करो। वास्तव में, मैं उसकी ओर से तुम्हें सचेत करने वाला तथा शुभ सूचना देने वाला हूँ।(2) और ये है कि अपने पालनहार से क्षमा याचना करो, फिर उसी की ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वह तुम्हें एक निर्धारित अवधि तक अच्छा लाभ पहुँचाएगा और प्रत्येक श्रेष्ठ को उसकी श्रेष्ठता प्रदान करेगा और यदि तुम मुँह फेरोगे, तो मैं तुमपर एक बड़े दिन की यातना से डरता हूँ।(3)


الۤرٰ ࣞ كِتٰبٌ اَنۡزَلۡنٰهُ اِلَيۡكَ لِـتُخۡرِجَ النَّاسَ مِنَ الظُّلُمٰتِ اِلَى النُّوۡرِ ۙ  بِاِذۡنِ رَبِّهِمۡ اِلٰى صِرَاطِ الۡعَزِيۡزِ الۡحَمِيۡدِۙ‏ (۱)  اللّٰهِ الَّذِىۡ لَهٗ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الۡاَرۡضِ‌ؕ (۲)۔

[Q-14:1-2]

         अलिफ़, लाम, रा। ये (क़ुर्आन) एक पुस्तक है, इस हमने आपकी ओर अवतरित (नाज़िल) किया है, ताकि आप लोगों को अंधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर लायें। उनके रब की अनुमति से, उस रब की राह की ओर, जो बड़ा प्रबल सराहा हुआ है।(1)वह रब जिसके अधिकार में आकाश और धरती का सब कुछ है (2)


قُلۡ سُبۡحَانَ رَبِّىۡ هَلۡ كُنۡتُ اِلَّا بَشَرًا رَّسُوۡلًا‏ (۹۳)  وَمَا مَنَعَ النَّاسَ اَنۡ يُّؤۡمِنُوۡۤا اِذۡ جَآءَهُمُ الۡهُدٰٓى اِلَّاۤ اَنۡ قَالُـوۡۤا اَبَعَثَ اللّٰهُ بَشَرًا رَّسُوۡلًا‏ ﴿۹۴﴾  قُلْ لَّوۡ كَانَ فِى الۡاَرۡضِ مَلٰۤٮِٕكَةٌ يَّمۡشُوۡنَ مُطۡمَٮِٕنِّيۡنَ لَـنَزَّلۡنَا عَلَيۡهِمۡ مِّنَ السَّمَآءِ مَلَـكًا رَّسُوۡلًا‏ (۹۵)۔ 

[Q-17:93-95]

        आप कह दें कि मेरा पालनहार पवित्र है, मैं तो बस एक संदेशवाहक मनुष्य हूँ।(93) और जब कि लोगों के पास मार्गदर्शन (क़ुरान) आ गया, तो उनको ईमान लाने मे कुछ नहीं सुझा तो [अहंकार मे] कहाः क्या अल्लाह ने एक मनुष्य को रसूल बनाकर भेजा है?(94) (हे नबी!) आप कह दें कि यदि धरती में फ़रिश्ते निश्चिन्त होकर चलते-फिरते होते, तो हम अवश्य उनपर आकाश से कोई फ़रिश्ता रसूल बनाकर उतारते। (95)


وَكَذَّبَ بِهٖ قَوۡمُكَ وَهُوَ الۡحَـقُّ‌ ؕ قُلْ لَّسۡتُ عَلَيۡكُمۡ بِوَكِيۡلٍؕ‏ (۶۶)۔

[Q-06:66]

         और (हे नबी!) आपकी क़ोम ने इस (क़ुर्आन) को झुठला दिया, जबकि वह सत्य है और आप कह दें कि मैं तुमपर अधिकारी नहीं  हूँ।(66)

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क़ुरान पर न चलने वालों का परीणाम।

وَالَّذِيۡنَ كَذَّبُوۡا بِاٰيٰتِنَا يَمَسُّهُمُ الۡعَذَابُ بِمَا كَانُوۡا يَفۡسُقُوۡنَ‏ (۴۹)۔

[Q-06:49]

         और जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, उन्हें अपनी अवज्ञा के कारण यातना अवश्य मिलेगी।(49)


اِنَّاۤ اَرۡسَلۡنَاۤ اِلَيۡكُمۡ رَسُوۡلًا ۙ شَاهِدًا عَلَيۡكُمۡ كَمَاۤ اَرۡسَلۡنَاۤ اِلٰى فِرۡعَوۡنَ رَسُوۡلًا ؕ‏ (۱۵) فَعَصٰى فِرۡعَوۡنُ الرَّسُوۡلَ فَاَخَذۡنٰهُ اَخۡذًا وَّبِيۡلًا‏ ﴿۱۶﴾  فَكَيۡفَ تَتَّقُوۡنَ اِنۡ كَفَرۡتُمۡ يَوۡمًا يَّجۡعَلُ الۡوِلۡدَانَ شِيۡبَا  ۖ‏ ﴿۱۷﴾  اۨلسَّمَآءُ مُنۡفَطِرٌ ۢ بِهٖ‌ؕ كَانَ وَعۡدُهٗ مَفۡعُوۡلًا‏ ﴿۱۸﴾  اِنَّ هٰذِهٖ تَذۡكِرَةٌ ‌ ۚ فَمَنۡ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰى رَبِّهٖ سَبِيۡلًا ﴿۱۹﴾۔

[Q-73:15-19].

           हमने भेजा है तुम्हारी ओर एक रसूल [मुहम्मदﷺ] तुमपर गवाह (साक्षी) बनाकर, जैसे फ़िरऔन की ओर एक रसूल (मूसा) को भेजा था।(15) तो फ़िरऔन ने उस रसूल की अवज्ञा की, और हमने उसे सख्त पकड़ मे जकड़ लिया।(16) यदि तुम ने भी [रसूल को न सुनकर] कुफ़्र किया, तो उस दिन से कैसे बचोगे जो बच्चों को बूढ़ा कर देगा? (17) उस दिन आकाश फट जायेगा। उसका वचन है जो पूरा होकर रहेगा।(18) वास्तव में, ये (आयतें) एक शिक्षा (नसीहत) हैं। तो जो चाहे [इन के द्वारा] अपने रब की ओर राह बना ले।(19)


وَاِذَا قِيۡلَ لَهُمُ اتَّبِعُوۡا مَآ اَنۡزَلَ اللّٰهُ قَالُوۡا بَلۡ نَـتَّبِعُ مَآ اَلۡفَيۡنَا عَلَيۡهِ اٰبَآءَنَا ؕ اَوَلَوۡ كَانَ اٰبَآؤُهُمۡ لَا يَعۡقِلُوۡنَ شَيۡـًٔـا وَّلَا يَهۡتَدُوۡنَ‏ (۱۷۰)  وَمَثَلُ الَّذِيۡنَ کَفَرُوۡا كَمَثَلِ الَّذِىۡ يَنۡعِقُ بِمَا لَا يَسۡمَعُ اِلَّا دُعَآءً وَّنِدَآءً ؕ صُمٌّۢ بُكۡمٌ عُمۡـىٌ فَهُمۡ لَا يَعۡقِلُوۡنَ‏ (۱۷۱)۔

[Q-02:170-171]

         और जब उनसे कहा जाता है कि जो (क़ुर्आन) अल्लाह ने उतारा है, उस क़ुरान का पालन करो, तो कहते हैं कि हम तो उसी रीति पर चलेंगे, जिसपर अपने पूर्वजों को पाया है। क्या यदि उनके पूर्वज कुछ समझते रहे तथा कुपथ पर रहे हों, (तब भी वे उन्हीं का अनुसरण करते रहेंगे) (170) उनकी दशा जो काफ़िर हो गये, उसके समान है, जो उसे (अर्थात पशु को) पुकारता है, जो हाँक-पुकार के सिवा कुछ  नहीं सुनता, ये (काफ़िर) बहरे, गूंगे तथा अंधे हैं। इसलिए कुछ नहीं समझते।(171)


اِنَّ الَّذِيۡنَ يُحَآدُّوۡنَ اللّٰهَ وَرَسُوۡلَهٗ كُبِتُوۡا كَمَا كُبِتَ الَّذِيۡنَ مِنۡ قَبۡلِهِمۡ‌ وَقَدۡ اَنۡزَلۡنَاۤ اٰيٰتٍۢ بَيِّنٰتٍ‌ ؕ وَ لِلۡكٰفِرِيۡنَ عَذَابٌ مُّهِيۡنٌ‌ ۚ‏ (۵)۔

[Q-58:5]

         वास्तव में, जो विरोध करते हैं अल्लाह तथा उसके रसूल का, वे अपमानित कर दिये जायेंगे, जैसे अपमानित कर दिये गये वोह लोग, जो इनसे पूर्व हुए। और हमने स्पष्ट आयतें नाज़िल की हैं और काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना (ज़िल्लत का अज़ाब) है।(5)

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क़ुरान का पालन करने वालों को इनाम। 

وَالَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَاٰمَنُوۡا بِمَا نُزِّلَ عَلٰى مُحَمَّدٍ وَّهُوَ الۡحَقُّ مِنۡ رَّبِّهِمۡ ‌ۙ كَفَّرَ عَنۡهُمۡ سَيِّاٰتِهِمۡ وَاَصۡلَحَ بَالَهُمۡ‏ ﴿۲﴾۔

[Q-47:02]

         तथा जो ईमान लाये और सदाचार (नेक काम) किये तथा उस (क़ुर्आन) पर ईमान लाये, जो मुह़म्मद पर उतारा गया है और (दरअसल) वह उनके पालनहार की ओर से हक (सच) भी है। तो दूर कर दिये उनसे, उनके पापों को तथा सुधार दिया उनकी दशा को।


 

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