ईश्वर की हिदायत।

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             वास्तव में ईश्वर की हिदायत प्राप्त होगा अथवा नहीं, यह ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है। वह सभी गुमराह लोगों मे से जिसको चाहता है मार्गदर्शन (हिदायत) दे देता है।  परंतु ईश्वर यह भी कहता है कि “जो भी हमारी रह मे प्रयास करेगा। हम उन्हें निश्चय ही सत्य की राह समझा देंगें”। [कु०-२९:६९]

             ईश्वर की और ध्यान लगाने के रास्ते  “आदि पवित्र ग्रंथों”  में भी उपलब्ध हैं। तथा “पवित्र कुरान” मे सविस्तार वर्णित  है। जिसकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व स्वयं ईश्वर के पास है।

              ईश्वर ने क़ुरआन का वर्णन इस तरह से किया है कि सच्चाई की तलाश करने वालों के लिए स्पष्ट रास्ते हैं, और जो लोग घमंडी और पथभ्रष्ट हैं, उनके लिए उनका धोखा सुंदर दिखता है। [अर्थात, वे और भटक जाते हैं] [कु०-१३:३३, १७:८२]

प्रश्न यह उठते हैं कि!

  1. जब ईश्वर की इच्छा से ही ईश्वर की हिदायत (मार्गदर्शन) मिलती है तो ईश्वर सारी मानव जाति को सत्य के मार्ग पर चलने का हिदायत (मार्गदर्शन) क्यों नहीं करता?
  2. अगर स्वयं ईश्वर ने हमें या हमारे पूर्वजों को हिदायत (मार्गदर्शन) नहीं दी। और हम पूर्वजों के मार्ग पर चल रहें हैं तो इसमे हमारा क्या दोष?

{प्रश्न न० २ का उत्तर हम इनशाल्लाह क़ुरान अध्याय के The Religion of the Ancestors मे ढूंढने की कोशिश करेंगे।}

प्रश्न न०१ के उत्तर मे ईश्वर कहता है कि!

              “अगर एक बात का अनुबंध नहीं होता तो हम सारी मानव जाति को एक जैसा बना देते”। (अथार्त सभी को फरिश्तों की तरह हिदायत याफ़्ता बना देते)।[Q-32:13]

               “और क्या मनुष्य पहले एक ही जाति (अर्थात् आदम या नूह की जाति) नहीं थे। परन्तु वे आपस में असहमत होने लगे। और यदि तुम्हारे रब की ओर से पहले एक वचन (समझौता) न किया गया होता। तो इनके मध्य उस बात मे निर्णय कर दिया जाता, जिस में ये मतभेद कर रहे हैं। [Q-10:19].

               लेकिन फिर इंसान की आवश्यकता क्या थी। ईश्वर का मानव को बनाने का उद्देश्य यह था कि एक ऐसी जाति का निर्माण करे कि जिसमे पाप की उच्च प्रवर्ति हो। जिसके कारण वह अपने रचीयता को भी न पहचाने। दूसरी और सत्य की खोज की प्रवर्ति भी उच्चतम हो कि ईश्वर और मानव के मध्य दूरियाँ मीट जायें।

               शायद इसीलिए ईश्वर ने मानव को खनकती हुई मिट्टी के सड़े हुए गारे से बनाया {खनकना- शुद्धता का प्रतीक} {सड़ा हुआ- बुराई का प्रतीक}। और इबलीस के मन मे अहंकार डाल दिया। जिसके फलस्वरूप एक अनुबंध अस्तित्व मे आया।  

अनुबंध का वचन। 

समय :-                   प्रथम मानव ह० आदम (अलै०) के सृजन एवमं इबलीस का शैतान मे बदलने का समय।

उपस्थिति :-               स्वंय ईश्वर, इबलीस (एक जिन महागुरु), और बहुत से फ़रिश्ते, प्रथम मानव की प्रतिमा के लिये खनकती हुई मिट्टी का सड़ा हुआ गारा।

स्थान :-                 अज्ञात या आलम ए अरवाह।

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ईश्वर :-                  (फरिश्तों से कहता है कि)! मैं इस खनखनाते, सड़े हुए गारे से, एक मनुष्य उत्पन्न करने वाला हूँ। तो जब मैं उसे पूरा बना लूँ और उसमें अपनी आत्मा फूँक दूँ, तो उसके लिए सज्दे में गिर पड़ना।

[ईश्वर द्वारा आदम की प्रतिमा मे आत्मा फूँकने और आदम (अलै०) के जीवित होने पर इब्लीस के अतिरिक्त सब फ़रिश्तों ने सज्दा किया। तथा इबलीस ने सज्दा करने वालों का साथ देने से इन्कार कर दिया।]

ईश्वर :-                  हे इब्लीस! तुझे क्या हुआ कि सज्दा करने वालों का साथ नहीं दिया?

इबलीस :-             मैं ऐसा नहीं हूँ (अहंकारी स्वर) कि एक मनुष्य को सज्दा करूँ, जिसे तूने खनखनाते, सड़े हुए गारे से पैदा किया है। जबकि मुझे आपने अग्नि की ज्वाला से पैदा किया है।

ईश्वर :-                 यहाँ से निकल जा, वास्तव में, तू धिक्कारा हुआ है। और तुझपर धिक्कार है, प्रतिकार (प्रलय) के दिन तक। (अथार्थ मेरे आदेश के उपरांत तेरा अपना क्या अस्तित्व और यहीं से इबलीस शैतान हुआ)

शैतान :-              मेरे पालनहार! तो तू फिर मुझे उस [प्रलय के] दिन तक जीवित रहने का अवसर दे, जब सभी पुनः जीवित किये जायेंगे।

ईश्वर :-                 तुझे अवसर दे दिया गया है। प्रलय के दिन तक के लिए।

शैतान :-              ऐ मेरे रब! जैसा तूने मुझे अपने रास्ते से अलग किया है। में भी धरती मे इस मानव की संतानों को तेरे रास्ते (हिदायत) से अलग करूंगा। केवल उनमे से थोड़े से लोगों के अतिरिक्त जो तेरे शुध्द भक्त होंगे।

ईश्वर :-                {अनुबंध का वचन}  मेरी तरफ आने का रास्ता बिल्कुल सीधा है। यहाँ से चला जा, इन मे से जो मनुष्य तेरी पैर्वी करेगें, वास्तव मे उन सब का बदला नरक की पूरी सज़ा है। अब तू जिसको बहका सके बहकाता रह, और उन पर अपनी फोजों को चढ़ाता रह, और उन के माल और औलाद मे शामिल होता रह, और उनसे वादे करता रह जो की वास्तव मे सब धोखा होंगे। तथा जो मेरे सच्चे भक्त होंगे, उन पर तेरा कोई अधिकार नहीं चलेगा, सिवाय उनके जो कुपथों (गुमराहों) में से तेरा अनुसरण करेगें। और वास्तव में, उन सबके लिए और तेरे लिये नरक का वचन है। (समाप्त)

[Q- 02:38-39, 07:11-18, 15:26-43, 17:61-65, 18:50]

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ईश्वर  ने हिदायत (मार्गदर्शन) के लिये दो रास्ते खोले हैं।

  • स्वयं ईश्वर जिस पर अपनी दया करे।
  • वह मनुष्य जो ईश्वर की तरफ रास्ते बनाने की कोशिश करे। ऐसे लोगों के लिये ईश्वर का वचन है “कि अवश्य ही हम उनको हिदायत (मार्गदर्शन) की राहें समझा देंगे”।[क़ु-29:69]

हे ईश्वर! दुनिया मे उपस्थित प्रत्येक जिन और मानव को, आप (ईश्वर) को जानने और समझने की कोशिश करने एवमं आपकी तरफ जाने के मार्ग, आपकी (ईश्वर) सच्ची वाणी “क़ुरान” से ढूंढने की सुबुद्धि दे। आमीन।


رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔

ईश्वर और शैतान के मध्य अनुबंध का उद्देश्य।

وَلَقَدۡ صَدَّقَ عَلَيۡهِمۡ اِبۡلِيۡسُ ظَنَّهٗ فَاتَّبَعُوۡهُ اِلَّا فَرِيۡقًا مِّنَ الۡمُؤۡمِنِيۡنَ‏ ﴿۲۰﴾  وَمَا كَانَ لَهٗ عَلَيۡهِمۡ مِّنۡ سُلۡطٰنٍ اِلَّا لِنَعۡلَمَ مَنۡ يُّـؤۡمِنُ بِالۡاٰخِرَةِ مِمَّنۡ هُوَ مِنۡهَا فِىۡ شَكٍّ ؕ وَ رَبُّكَ عَلٰى كُلِّ شَىۡءٍ حَفِيۡظٌ‏ ﴿۲۱﴾۔

[Q-34:20-21]

         तथा इब्लीस ने उनपर अपना  आंकलन सच कर दिया। और ईमान वालों के एक समुदाय को छोड़कर अन्य सभी ने उस (शैतान) का अनुसरण किया। और उस (शैतान) का उनपर कुछ अधिकार (दबाव) नहीं था , किन्तु, हमारा उद्देश्य यह था कि आख़िरत (परलोक) पर कौन ईमान रखता है, और कौन नहीं। हम जान लें और दोनों को अलग -अलग कर दें। तथा आपका पालनहार प्रत्येक चीज़ का निरीक्षक है।

हिदायत याफ़्ता लोगों की पहचान।  

اَللّٰہُ نَزَّلَ اَحۡسَنَ الۡحَدِیۡثِ کِتٰبًا مُّتَشَابِہًا مَّثَانِیَ  ۖ  تَقۡشَعِرُّ مِنۡہُ جُلُوۡدُ الَّذِیۡنَ یَخۡشَوۡنَ رَبَّہُمۡ ۚ ثُمَّ تَلِیۡنُ جُلُوۡدُہُمۡ وَ قُلُوۡبُہُمۡ اِلٰی ذِکۡرِ اللّٰہِ ؕ ذٰلِکَ ہُدَی اللّٰہِ یَہۡدِیۡ بِہٖ مَنۡ یَّشَآءُ ؕ وَ مَنۡ یُّضۡلِلِ اللّٰہُ فَمَا لَہٗ مِنۡ ہَادٍ ﴿۲۳﴾۔

[Q-39:23].

         अल्लाह ही है, जिसने सर्वोत्तम ह़दीस (क़ुर्आन) को अवतरित किया है। ऐसी पुस्तक, जो मिलती-जुलती है [पहली किताबों से] बार-बार दुहराई जाने वाली हैं। जिसे [सुनकर]  उनके रूँगटे खड़े हो जाते हैं, जो अपने रब से डरते हैं । फिर उनकी चमड़ी कोमल हो जाती है तथा दिल, अल्लाह के स्मरण की ओर लग जाता है। यही अल्लाह का मार्गदर्शन (हिदायत) है, इसके द्वारा जिसे चाहता है वह संमार्ग पर लगा देता है, और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो उसका कोई पथदर्शक नहीं है। (23)


اِنَّمَا يُؤۡمِنُ بِاٰيٰتِنَا الَّذِيۡنَ اِذَا ذُكِّرُوۡا بِهَا خَرُّوۡا سُجَّدًا وَّسَبَّحُوۡا بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡ وَهُمۡ لَا يَسۡتَكۡبِرُوۡنَ‏ ﴿۱۵﴾  تَتَجَافٰى جُنُوۡبُهُمۡ عَنِ الۡمَضَاجِعِ يَدۡعُوۡنَ رَبَّهُمۡ خَوۡفًا وَّطَمَعًا ؗ وَّمِمَّا رَزَقۡنٰهُمۡ يُنۡفِقُوۡنَ‏ ﴿۱۶﴾۔

[Q-32:15-16]

         हमारी आयतों पर बस वही हिदायत (मार्गदर्शन) पाते हैं, कि जब उनको समझाया जाता है, तो सजदों मे गिर जाते हैं। और अपने रब की पवित्रता का गान करते हैं, और अभिमान नहीं करते। (15) उनके पार्शव (पहलू) बिस्तर से अलग रहते हैं, वह अपने रब को भय तथा आशा रखते हुए पुकारते हैं तथा जो हमने उन्हें प्रदान किया है, उसमें से  दान करते रहते हैं। (16)


تِلۡكَ اٰيٰتُ الۡكِتٰبِ الۡحَكِيۡمِ ۙ ﴿۲﴾  هُدًى وَّرَحۡمَةً لِّلۡمُحۡسِنِيۡنَ ۙ ﴿۳﴾  الَّذِيۡنَ يُقِيۡمُوۡنَ الصَّلٰوةَ وَيُؤۡتُوۡنَ الزَّكٰوةَ وَهُمۡ بِالۡاٰخِرَةِ هُمۡ يُوۡقِنُوۡنَ ؕ ﴿۴﴾  اُولٰٓٮِٕكَ عَلٰى هُدًى مِّنۡ رَّبِّهِمۡ‌ وَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُفۡلِحُوۡنَ‏ ﴿۵﴾۔

[Q-31:2-5]

       ये आयतें ज्ञानपूर्ण पुस्तक की हैं।(2) सदाचारियों (नेक लोगों) के लिए हिदायत (मार्गदर्शन) तथा दया है।(3) जो नमाज़ की स्थापना करते हैं, ज़कात देते हैं और परलोक पर (पूरा) विश्वास रखते हैं।(4) वही लोग, अपने पालनहार के सुपथों (हिदायत) पर हैं तथा वही लोग सफल होने वाले हैं।(5)


طٰسٓ ࣞ  تِلۡكَ اٰيٰتُ الۡقُرۡاٰنِ وَكِتَابٍ مُّبِيۡنٍۙ‏ ﴿۱﴾  هُدًى وَّبُشۡرٰى لِلۡمُؤۡمِنِيۡنَۙ‏ ﴿۲﴾  الَّذِيۡنَ يُقِيۡمُوۡنَ الصَّلٰوةَ وَيُؤۡتُوۡنَ الزَّكٰوةَ وَ هُمۡ بِالۡاٰخِرَةِ هُمۡ يُوۡقِنُوۡنَ‏ ﴿۳﴾۔

[Q-27:01-03]

       ता, सीन। ये क़ुर्आन तथा प्रत्यक्ष पुस्तक की आयतें हैं।(1) उन ईमान वालों के लिए मार्गदर्शन (हिदायत) तथा शुभ सूचना है।(2) जो नमाज़ की स्थापना करते हैं तथा ज़कात देते हैं और जो अन्तिम दिन (परलोक) पर विश्वास रखते हैं।(3)

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हिदायत हासिल करने का रास्ता क़ुरान से।

هٰذَا بَيَانٌ لِّلنَّاسِ وَهُدًى وَّمَوۡعِظَةٌ لِّلۡمُتَّقِيۡنَ‏ ﴿۱۳۸﴾۔

[Q-03:138]

       ये (क़ुर्आन) लोगों के लिए एक वर्णन, और  (अल्लाह से)  डरने वालों के लिए मार्गदर्शन (हिदायत) और एक शिक्षा है।(138)


فَمَا لَهُمۡ عَنِ التَّذۡكِرَةِ مُعۡرِضِيۡنَۙ‏ ﴿۴۹﴾  كَاَنَّهُمۡ حُمُرٌ مُّسۡتَنۡفِرَةٌ ۙ‏ ﴿۵۰﴾  فَرَّتۡ مِنۡ قَسۡوَرَةٍ ؕ‏ ﴿۵۱﴾  بَلۡ يُرِيۡدُ كُلُّ امۡرِىٴٍ مِّنۡهُمۡ اَنۡ يُّؤۡتٰى صُحُفًا مُّنَشَّرَةً ۙ‏ ﴿۵۲﴾  كَلَّا ؕ  بَلۡ لَّا يَخَافُوۡنَ الۡاٰخِرَةَ ؕ‏ ﴿۵۳﴾  كَلَّاۤ اِنَّهٗ تَذۡكِرَةٌ ۚ‏ ﴿۵۴﴾  فَمَنۡ شَآءَ ذَكَرَهٗ ؕ‏ ﴿۵۵﴾۔

[Q-74:49-55]

         तो उन्हें क्या हो गया है कि इस शिक्षा (क़ुर्आन) से मुँह फेर रहे हैं? (49)  मानो वे  बिदकाये हुए (जंगली) गधे हैं।(50) जो शिकारी से भागे हैं।(51) बल्कि उनमें से प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे खुली  पुस्तक दी जाये।(52)  कदापि ये नहीं [हो सकता] बल्कि वे आख़िरत (परलोक) से नहीं डरते हैं।(53) निश्चय ही ये [क़ुर्आन] तो एक शिक्षा (हिदायत) है। (54) अब जो चाहे, शिक्षा ग्रहण करे।(55)


وَهٰذَا صِرَاطُ رَبِّكَ مُسۡتَقِيۡمًا‌   ؕ  قَدۡ فَصَّلۡنَا الۡاٰيٰتِ لِقَوۡمٍ يَّذَّكَّرُوۡنَ‏ ﴿۱۲۶﴾  لَهُمۡ دَارُ السَّلٰمِ عِنۡدَ رَبِّهِمۡ‌ وَهُوَ وَلِيُّهُمۡ بِمَا كَانُوۡا يَعۡمَلُوۡنَ‏ ﴿۱۲۷﴾۔

[Q-06:126-127]

       और यही [क़ुरान] आपके रब की सीधी राह है। जो शिक्षा (हिदायत) ग्रहण करने वाले हैं हमने उन लोगों के लिए [क़ुरान की] आयतें खोलखोल पेश की हैं। (126) उन्हीं के लिए आपके रब के पास शान्ति का घर (स्वर्ग) है और वही उनके सुकर्मों के कारण उनका सहायक होगा।(127)


هٰذَا بَصَاٮِٕرُ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَّرَحۡمَةٌ لِّقَوۡمٍ يُّوۡقِنُوۡنَ‏ (۲۰)۔

[Q-45:20]

      ये [क़ुर्आन]  सब मनुष्यों के लिए सूझ की बातें हैं, तथा उन लोगों के लिये मार्गदर्शन (हिदायत) एवं दया है, जो विश्वास करें।(20)


وَلَقَدۡ جِئۡنٰهُمۡ بِكِتٰبٍ فَصَّلۡنٰهُ عَلٰى عِلۡمٍ هُدًى وَّرَحۡمَةً لِّـقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۵۲﴾۔

[Q-07:52]

       और हमने उनके लिए एक ऐसी पुस्तक लाये, जिसे हमने ज्ञान के आधार पर सविस्तार वर्णित कर दिया है, जो हिदायत (मार्गदर्शन) तथा दया है, उन लोगों के लिए, जो ईमान (विश्वास) रखते हैं। (52)


قُلۡ نَزَّلَهٗ رُوۡحُ الۡقُدُسِ مِنۡ رَّبِّكَ بِالۡحَـقِّ لِيُثَبِّتَ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَهُدًى وَّبُشۡرٰى لِلۡمُسۡلِمِيۡنَ‏ ﴿۱۰۲﴾۔

[Q-16:102]

       आप कह दें कि इस [क़ुरान] को रूह़ुल कुदुस (हo जिब्राइल) ने आपके रब की ओर से सत्य के साथ क्रमशः उतारा है, ताकि  जो ईमान लाये हैं उन्हें सुदृढ़ (मजबूत) कर दे, तथा यह [क़ुरान] आज्ञाकारियों के लिए मार्गदर्शन (हिदायत) और शुभ सूचना है।(102)


قُلۡ اِنَّمَاۤ اَتَّبِعُ مَا يُوۡحٰٓى اِلَىَّ مِنۡ رَّبِّىۡ ۚ  هٰذَا بَصَآٮِٕرُ مِنۡ رَّبِّكُمۡ وَهُدًى وَّ رَحۡمَةٌ لِّقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۲۰۳﴾۔

[Q-07:203]

        आप कह दें कि मैं केवल उसी का अनुसरण करता हूँ, जो मेरे रब के पास से मेरी ओर वह़्यी की जाती है। ये तुम्हारे रब की ओर से सूझ की बातें हैं, तथा हिदायत (मार्गदर्शन) और दया हैं, उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हों।(203)


اِنَّ هٰذِهٖ تَذۡكِرَةٌ ۚ  فَمَنۡ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰى رَبِّهٖ سَبِيۡلًا‏ ﴿۱۹﴾۔

[Q-73:19]

       वास्तव में, ये [आयतें] एक शिक्षा हैं। तो जो चाहे, अपने पालनहार की ओर राह बना ले।(19)


اَوَلَمۡ يَكۡفِهِمۡ اَنَّاۤ اَنۡزَلۡنَا عَلَيۡكَ الۡكِتٰبَ يُتۡلٰى عَلَيۡهِمۡ‌ؕ اِنَّ فِىۡ ذٰلِكَ لَرَحۡمَةً وَّذِكۡرٰى لِقَوۡمٍ يُّؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۵۱﴾۔

[Q-29:51]

       क्या उन्हें पर्याप्त नहीं कि हमने आप पर ये पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है जो उनपर पढ़ी जा रही है । वास्तव में, उन लोगों के लिए जो ईमान लाते हैं इसमें दया और शिक्षा (हिदायत) है।(51)

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क़ुरान ही ईमान की चिकित्सा की पोथी।

قُلۡ هُوَ لِلَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا هُدًى وَشِفَآءٌ ؕ ﴿۴۴﴾۔

[Q-41-44].

       आप ﷺ कह दें कि यह [कुरान] ईमान वालों के लिये हिदायत (मार्गदर्शन) तथा शिफ़ा (आरोग्यकर) है।(44)

[अथार्त ईमान की कमजोरियों को दूर करने की पोथी है] 


وَنُنَزِّلُ مِنَ الۡـقُرۡاٰنِ مَا هُوَ شِفَآءٌ وَّرَحۡمَةٌ لِّـلۡمُؤۡمِنِيۡنَ‌ۙ وَلَا يَزِيۡدُ الظّٰلِمِيۡنَ اِلَّا خَسَارًا‏ ﴿۸۲﴾۔

[Q-17:82]

         और हम क़ुर्आन में  ऐसी चीज़ें उतार रहे हैं, जो ईमान वालों के लिए आरोग्य तथा दया है, और अत्याचारियों को इससे और अधिक क्षति (नुक़सान) पहुंचता है।(82)

         अथार्त अल्लाह के जो हुक्म ईमान वालों के दिलों में सुकून देते हैं वही हुक्म काफिरों को गुस्सा दिलाते हैं।

 


لِيُثَبِّتَ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَهُدًى وَّبُشۡرٰى لِلۡمُسۡلِمِيۡنَ‏ ﴿۱۰۲﴾۔

[Q-16:102]

       ताकि  जो ईमान लाये हैं उन्हें सुदृढ़ (मजबूत) कर दे, तथा यह [क़ुरान] आज्ञाकारियों के लिए मार्गदर्शन (हिदायत) और शुभ सूचना है।(102)

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अल्लाह लोगों को शिक्षा के लिये क़ुरान की तरफ बुलाता है।

وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا الۡقُرۡاٰنَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِنۡ مُّدَّكِرٍ‏ ﴿۱۷﴾۔

[Q-54:17/22/32/40]

       और हमने क़ुर्आन को शिक्षा के लिए सरल कर दिया है। तो क्या  है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?(17)

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अल्लाह काफिरों को समझाने के लिये उदाहरण देता है। 

قُلۡ اَنَدۡعُوۡا مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ مَا لَا يَنۡفَعُنَا وَلَا يَضُرُّنَا وَنُرَدُّ عَلٰٓى اَعۡقَابِنَا بَعۡدَ اِذۡ هَدٰٮنَا اللّٰهُ كَالَّذِى اسۡتَهۡوَتۡهُ الشَّيٰطِيۡنُ فِى الۡاَرۡضِ حَيۡرَانَ ࣕ  لَـهٗۤ اَصۡحٰبٌ يَّدۡعُوۡنَهٗۤ اِلَى الۡهُدَى ائۡتِنَا ؕ قُلۡ اِنَّ هُدَى اللّٰهِ هُوَ الۡهُدٰى ؕ  وَاُمِرۡنَا لِنُسۡلِمَ لِرَبِّ الۡعٰلَمِيۡنَۙ ﴿۷۱﴾۔

[Q-06:71]

       (हे नबी!) उनसे कहिए कि क्या हम अल्लाह के सिवा उनकी वंदना करें, जो हमें कोई लाभ या हानि नहीं पहुँचा सकते? जबकि अल्लाह ने हमें हिदायत [क़ुरान] दे दी है, फिर भी हम एड़ियों के बल फिर जायेँ। [इसके पश्चात तो हमारा उदाहरण ऐसा हो] जैसे किसी को शैतानों ने जंगल मे रास्ता (पथ) भूला दिया हो, और वह आश्चर्यचकित हो! उसके सच्चे साथी उसे सीधी राह की ओर पुकार रहे हों कि हमारे पास आ जाओ? आप कह दें कि मार्गदर्शन (हिदायत) तो वास्तव में वही है, जो अल्लाह का मार्गदर्शन (क़ुरान) है। और हमें तो, यही आदेश दिया गया है कि हम ब्रह्माण्ड के रब के आज्ञाकारी हो जायेँ।(71)

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वोह लोग जिनको अल्लाह हिदायत देता है।

وَيَقُوۡلُ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا لَوۡلَاۤ اُنۡزِلَ عَلَيۡهِ اٰيَةٌ مِّنۡ رَّبِّهٖؕ قُلۡ اِنَّ اللّٰهَ يُضِلُّ مَنۡ يَّشَآءُ وَيَهۡدِىۡۤ اِلَيۡهِ مَنۡ اَنَابَ ۚ ﴿۲۷﴾۔ اَلَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَتَطۡمَٮِٕنُّ قُلُوۡبُهُمۡ بِذِكۡرِ اللّٰهِ‌  ؕ اَلَا بِذِكۡرِ اللّٰهِ تَطۡمَٮِٕنُّ الۡقُلُوۡبُ‏ ؕ ﴿۲۸﴾۔

[Q-13:27-28]

       और काफ़िर कहते हैः कि इस (नबी ﷺ) पर इसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतारी गयी? (हे नबी!) आप कह दें कि वास्तव में अल्लाह जिसे चाहे, गुमराह (कुपथ) करता है और अपनी ओर उसी को राह दिखाता है, जो उसकी ओर ध्यानमग्न हों।(27) (अर्थात वे) लोग जो ईमान लाए तथा जिनके दिल अल्लाह के स्मरण से संतुष्ट होते हैं। सुन लो! अल्लाह के स्मरण ही से दिलों को संतोष होता है।(28)


هُوَ الَّذِىۡ يُرِيۡكُمۡ اٰيٰتِهٖ وَيُنَزِّلُ لَـكُمۡ مِّنَ السَّمَآءِ رِزۡقًا ؕ وَمَا يَتَذَكَّرُ اِلَّا مَنۡ يُّنِيۡبُ‏ ﴿۱۳﴾  فَادۡعُوا اللّٰهَ مُخۡلِصِيۡنَ لَهُ الدِّيۡنَ وَلَوۡ كَرِهَ الۡـكٰفِرُوۡنَ‏ ﴿۱۴﴾۔

[Q-40:13-14]

     वही दिखाता है तुम्हें अपनी निशानियाँ तथा तुम्हारे लिए आकाश से जीविका उतारता है और हिदायत (मार्गदर्शन) तो वही ग्रहण करता है, जो [उसकी ओर] ध्यान करता है।(13) तो तुम पुकारो अल्लाह को उसके लिए धर्म को शुध्द करके, यद्यपि काफ़िरों को बुरा लगे।(14)

It is He who shows you His signs and sends down to you from the sky, provision. But none will remember except he who turns back [in repentance]. (13) So invoke Allah , [being] sincere to Him in religion, although the disbelievers dislike it. (14)


وَالَّذِيۡنَ جَاهَدُوۡا فِيۡنَا لَنَهۡدِيَنَّهُمۡ سُبُلَنَا ؕ وَاِنَّ اللّٰهَ لَمَعَ الۡمُحۡسِنِيۡنَ‏ ﴿۶۹﴾۔

[Q-29:69]

       तथा जिन लोगों ने हमारे लिये प्रयास किया, तो हम अवश्य उन्हें अपनी राहें दिखा  देंगे, और निश्चय ही अल्लाह सदाचारियों के साथ है।(69)


مَاۤ اَصَابَ مِنۡ مُّصِيۡبَةٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰهِ‌ؕ وَمَنۡ يُّؤۡمِنۡۢ بِاللّٰهِ يَهۡدِ قَلۡبَهٗ‌ؕ وَاللّٰهُ بِكُلِّ شَىۡءٍ عَلِيۡمٌ‏ ﴿۱۱﴾۔

[Q-64:11]

       जो आपदा आती है, वह अल्लाह ही की अनुमति से आती है तथा जो अल्लाह पर ईमान लाये, तो वह उसके ह्रदय (दिल) को हिदायत (मार्गदर्शन) देता  है अल्लाह प्रत्येक चीज़ को जानता है।(11)

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वोह लोग जिनको अल्लाह हिदायत नहीं देता है।

اِنَّ الَّذِيۡنَ لَا يُؤۡمِنُوۡنَ بِالۡاٰخِرَةِ زَيَّـنَّا لَهُمۡ اَعۡمَالَهُمۡ فَهُمۡ يَعۡمَهُوۡنَ ؕ ﴿۴﴾  اُولٰٓٮِٕكَ الَّذِيۡنَ لَهُمۡ سُوۡٓءُ الۡعَذَابِ وَهُمۡ فِى الۡاٰخِرَةِ هُمُ الۡاَخۡسَرُوۡنَ‏ ﴿۵﴾۔

[Q-27:04-05]

       वास्तव में, जो लोग परलोक पर विश्वास नहीं करते, हमने उनके कर्मों को उनके लिये शोभनीय (सुन्दर) बना दिया है, इसलिए वे बहके जा रहे हैं।(4) यही लोग हैं, जिनके लिए बुरी यातना है तथा परलोक में यही सर्वाधिक क्षतिग्रस्त (नुकसान मे) रहने वाले हैं।(5)


بَلۡ زُيِّنَ لِلَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا مَكۡرُهُمۡ وَصُدُّوۡا عَنِ السَّبِيۡلِ‌ؕ وَمَنۡ يُّضۡلِلِ اللّٰهُ فَمَا لَهٗ مِنۡ هَادٍ‏ ﴿۳۳﴾۔

[Q-13:33]

       बल्कि काफ़िरों के लिए उनके छल सुशोभित (गोरान्वित) मालूम होते हैं और वोह सीधी राह (हिदायत) से रोक दिये गये हैं और जिसे अल्लाह कुपथ (गुमराह) कर दे, तो उसे कोई राह (हिदायत) दिखाने वाला नहीं।(33)


فَمَنۡ يُّرِدِ اللّٰهُ اَنۡ يَّهۡدِيَهٗ يَشۡرَحۡ صَدۡرَهٗ لِلۡاِسۡلَامِ‌ ۚ وَمَنۡ يُّرِدۡ اَنۡ يُّضِلَّهٗ يَجۡعَلۡ صَدۡرَهٗ ضَيِّقًا حَرَجًا كَاَنَّمَا يَصَّعَّدُ فِى السَّمَآءِ ؕ  كَذٰلِكَ يَجۡعَلُ اللّٰهُ الرِّجۡسَ عَلَى الَّذِيۡنَ لَا يُؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۱۲۵﴾۔

[Q-06:125]

       तो जिसे अल्लाह मार्ग दिखाना चाहता है, उसका सीना (वक्ष) इस्लाम के लिए खोल देता है और जिसे कुपथ करना चाहता है, उसका सीना संकीर्ण (तंग) कर देता है। जैसे वह बड़ी कठिनाई से आकाश पर चढ़ रहा हो। इस प्रकार, अल्लाह उनपर यातना (अज़ाब) भेज देता है, जो ईमान नहीं लाते।(125)


اِنۡ تَحۡرِصۡ عَلٰى هُدٰٮهُمۡ فَاِنَّ اللّٰهَ لَا يَهۡدِىۡ مَنۡ يُّضِلُّ‌ وَمَا لَهُمۡ مِّنۡ نّٰصِرِيۡنَ‏ ﴿۳۷﴾۔

[Q-16:37]

     (हे नबी!) अगर आप ऐसे [काफिर] लोगों को सुपथ दिखाने पर लोलुप हों, तो भी अल्लाह जिसे कुपथ कर दे उसे सुपथ नहीं दिखायेगा और न उनका कोई सहायक होगा।(37)


وَ لَوۡ شِئۡنَا لَاٰتَيۡنَا كُلَّ نَفۡسٍ هُدٰٮهَا وَلٰـكِنۡ حَقَّ الۡقَوۡلُ مِنِّىۡ لَاَمۡلَئَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ الۡجِنَّةِ وَالنَّاسِ اَجۡمَعِيۡنَ ﴿۱۳﴾۔

[Q-32:13]

 

और यदि हम चाहते, तो प्रत्येक प्राणी को  हिदायत (मार्गदर्शन) प्रदान कर देते । परन्तु, मेरी ये बात सत्य होकर रहेगी, कि मैं नरक को जिन्नों तथा मानवों से भरूँगा। (13)


وَلَوۡ شَآءَ اللّٰهُ لَجَـعَلَكُمۡ اُمَّةً وَّاحِدَةً وَّلٰـكِنۡ يُّضِلُّ مَنۡ يَّشَآءُ وَيَهۡدِىۡ مَنۡ يَّشَآءُ ؕ وَلَـتُسۡـــَٔلُنَّ عَمَّا كُنۡتُمۡ تَعۡمَلُوۡنَ‏ ﴿۹۳﴾۔

[Q-16:93]

           और यदि अल्लाह चाहता, तो तुम्हें एक समुदाय बना देता। परन्तु वह जिसे चाहता है, कुपथ (गुमराह) कर देता है और जिसे चाहता है, सुपथ (हिदायत) देता है और जो तुम कर रहे थे [हिसाब के दिन] तुमसे उसके बारे में अवश्य पूछा जायेगा, ।(93)

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जब काफिर कहेंगे! काश: अल्लाह मुझे भी हिदायत (सुपथ) देता।

اَوۡ تَقُوۡلَ لَوۡ اَنَّ اللّٰهَ هَدٰٮنِىۡ لَكُنۡتُ مِنَ الۡمُتَّقِيۡنَۙ‏ ﴿۵۷﴾  اَوۡ تَقُوۡلَ حِيۡنَ تَرَى الۡعَذَابَ لَوۡ اَنَّ لِىۡ كَرَّةً فَاَكُوۡنَ مِنَ الۡمُحۡسِنِيۡنَ‏ ﴿۵۸﴾  بَلٰى قَدۡ جَآءَتۡكَ اٰيٰتِىۡ فَكَذَّبۡتَ بِهَا وَاسۡتَكۡبَرۡتَ وَكُنۡتَ مِنَ الۡكٰفِرِيۡنَ‏ ﴿۵۹﴾۔

[Q-39:57-59]

         अथवा कहे कि यदि अल्लाह मुझे सुपथ (हिदायत) दिखाता, तो मैं डरने वालों में से हो जाता।(57)  अथवा जब यातना (अज़ाब) देख ले तब कहे कि यदि मुझे [संसार में]  फिरकर जाने का अवसर हो जाये, तो मैं अवश्य सदाचारियों (मोमीनो) में से हो जाऊँगा।(58) [अल्लाह कहेगा]  हाँ, मेरी निशानियाँ तुम्हारे पास पहुँच गई थी  तो तुमने उन्हें झुठला दिया और अभिमान किया तथा तुम थे ही काफ़िरों में से।(59)


 وَمَنۡ اَظۡلَمُ مِمَّنۡ ذُكِّرَ بِاٰيٰتِ رَبِّهٖ ثُمَّ اَعۡرَضَ عَنۡهَا‌ؕ اِنَّا مِنَ الۡمُجۡرِمِيۡنَ مُنۡتَقِمُوۡنَ‏ ﴿۲۲﴾۔

[Q-32:22]

         और उससे अधिक अत्याचारी कौन है, जिसे उसके रब की आयतों द्वारा शिक्षा दी जाये, फिर भी वह् उनसे विमुख हो जाये?  वास्तव में, हम अपराधियों से बदला लेने वाले हैं।(22)


اَفَلَا يَتَدَبَّرُوۡنَ الۡقُرۡاٰنَ اَمۡ عَلٰى قُلُوۡبٍ اَ قۡفَالُهَا‏ ﴿۲۴﴾  اِنَّ الَّذِيۡنَ ارۡتَدُّوۡا عَلٰٓى اَدۡبَارِهِمۡ مِّنۡۢ بَعۡدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمُ الۡهُدَى‌ۙ الشَّيۡطٰنُ سَوَّلَ لَهُمۡ ؕ وَاَمۡلٰى لَهُمۡ‏ ﴿۲۵﴾۔

[Q-47:24-25]

       तो क्या लोग क़ुरान में सोच-विचार नहीं करते या उनके दिलों पर ताले लगे हुए हैं?(24) वास्तव में, जो लोग फिर गये पीछे (ईमान से फिर गये), इसके पश्चात् कि उजागर (ज़ाहिर) हो गई उनपर हिदायत (मार्गदर्शन)।  मगर शौतान ने [उनके पापों को] उनके लिए सुन्दर बना दिया,  तथा उन्हें बड़ी आशा दिलायी है।(25)

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गुमराह लोगों का अंजाम।  

وَمَنۡ يَّهۡدِ اللّٰهُ فَهُوَ الۡمُهۡتَدِ ۚ وَمَنۡ يُّضۡلِلۡ فَلَنۡ تَجِدَ لَهُمۡ اَوۡلِيَآءَ مِنۡ دُوۡنِهٖ ؕ   وَنَحۡشُرُهُمۡ يَوۡمَ الۡقِيٰمَةِ عَلٰى وُجُوۡهِهِمۡ عُمۡيًا وَّبُكۡمًا وَّصُمًّا ؕ مَاۡوٰٮهُمۡ جَهَـنَّمُ ؕ كُلَّمَا خَبَتۡ زِدۡنٰهُمۡ سَعِيۡرًا‏ ﴿۹۷﴾  ذٰلِكَ جَزَآؤُهُمۡ بِاَنَّهُمۡ كَفَرُوۡا بِاٰيٰتِنَا ﴿۹۸﴾۔

[Q-17:97-98]

         जिसे अल्लाह सुपथ (हिदायत) दिखा दे, वही सुपथगामी (हिदायतयाब) है और जिसे कुपथ (गुमराह) कर दे, तो आप उनके लिए अल्लाह के सिवा कोई सहायक कदापि नहीं पायेंगे, और हम उन्हें प्रलय के दिन उनके मुखों के बल, अंधे, गूँगे और बहरे बनाकर एकत्र करेंगे और उनका स्थान नरक है, जब भी वह बुझने लगेगी, तो हम उसे और भड़का देंगे।(97) यही उनका प्रतिकार (बदला) है, इसलिए कि उन्होंने हमारी आयतों के साथ कुफ़्र किया।(98)


وَاَمَّا الَّذِيۡنَ فَسَقُوۡا فَمَاۡوٰٮهُمُ النَّارُ‌ؕ كُلَّمَاۤ اَرَادُوۡۤا اَنۡ يَّخۡرُجُوۡا مِنۡهَاۤ اُعِيۡدُوۡا فِيۡهَا وَ قِيۡلَ لَهُمۡ ذُوۡقُوۡا عَذَابَ النَّارِ الَّذِىۡ كُنۡتُمۡ بِهٖ تُكَذِّبُوۡنَ‏ ﴿۲۰﴾  وَلَنـــُذِيۡقَنَّهُمۡ مِّنَ الۡعَذَابِ الۡاَدۡنٰى دُوۡنَ الۡعَذَابِ الۡاَكۡبَرِ لَعَلَّهُمۡ يَرۡجِعُوۡنَ‏ ﴿۲۱﴾۔

[Q-32; 20-21]

          और जो ईमान नहीं लाए, उनका आवास नरक है। जब-जब वे उसमें से निकलना चाहेंगे, तो उन्हे वापस उसी मे लोटा दिया जाएगा। तथा उनसे कहा जायेगा कि चखो उस अग्नि (नरक) की यातना, जिसे तुम झुठला रहे थे।(20)  और हम उनको नरक की बड़ी यातना से पूर्व सांसारिक यातना भी चखायेंगे, ताकि वे फिर  [हमारी तरफ] लोट आयें।(21)


 

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