2. अल्लाह और रसूल की आज्ञा का पालन।

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رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔

وَاَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَالرَّسُوۡلَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُوۡنَ‌ۚ ۩۔

[Q-03:132]

            अल्लाह और रसूल की आज्ञा का पालन करो। ताकि तुमपर दया की जाये।

            अल्लाह सर्वशक्तिमान अपने बंदों को उसकी और उसके दूत की आज्ञा का पालन करने का आदेश देता है। लेकिन दोनों आज्ञाकारिताओं के बीच आकाश और पृथ्वी का अंतर है। अल्लाह की आज्ञाकारिता का अर्थ है अल्लाह की दासता कूबूल करना। और रसूल की आज्ञाकारिता का अर्थ है रसूल का आदर और सम्मान करना और उस संदेश (कुरान) का पालन करना जो अल्लाह ने रसूल पर प्रकट किया। यह बात अल्लाह तआला ने निम्नलिखित आयत में कही है। . . .

اِتَّبِعُوۡا مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكُمۡ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ وَلَا تَتَّبِعُوۡا مِنۡ دُوۡنِهٖۤ اَوۡلِيَآءَ‌ ؕ قَلِيۡلًا مَّا تَذَكَّرُوۡنَ ۩۔

[Q-07:03]

             हे लोगों! जो कुछ (अथार्थ कुरान) तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित किया गया है, उसका पालन करो। और अल्लाह के सिवा दूसरे सन्तों के पीछे न चलो। लेकिन आप लोग बहुत कम शिक्षा लेते हो।


اِنَّاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ شَاهِدًا وَّمُبَشِّرًا وَّنَذِيۡرًا (۸) لِّـتُؤۡمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَ رَسُوۡلِهٖ وَتُعَزِّرُوۡهُ وَتُوَقِّرُوۡهُ ؕ وَتُسَبِّحُوۡهُ بُكۡرَةً وَّاَصِيۡلًا‏ ۩۔

[Q-48:8-9]

            वास्तव में, हमने तुम्हें गवाह और शुभ सूचना देने वाला और सचेत करने वाला बनाकर भेजा है  ताकि तुम लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसका समर्थन करो और उसका आदर और सम्मान करो। और सुबह और शाम [अल्लाह] की तसबीह करो।


وَاَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَاَطِيۡعُوا الرَّسُوۡلَ وَاحۡذَرُوۡا‌ ۚ فَاِنۡ تَوَلَّيۡتُمۡ فَاعۡلَمُوۡۤا اَنَّمَا عَلٰى رَسُوۡلِنَا الۡبَلٰغُ الۡمُبِيۡنُ ۩۔

[Q-05:92]

            अल्लाह की आज्ञा मानो और उसके रसूल की आज्ञा मानो और डरो। यदि तुम मुँह मोड़ोगे तो जान लो कि हमारा पैगम्बर केवल सन्देश को खुलेआम पहुँचाने के लिये उत्तरदायी है।


قُلۡ اِنۡ كُنۡتُمۡ تُحِبُّوۡنَ اللّٰهَ فَاتَّبِعُوۡنِىۡ يُحۡبِبۡكُمُ اللّٰهُ وَيَغۡفِرۡ لَـكُمۡ ذُنُوۡبَكُمۡؕ‌ وَاللّٰهُ غَفُوۡرٌ رَّحِيۡمٌ ۩۔ قُلۡ اَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَالرَّسُوۡلَ‌‌ ۚ فَاِنۡ تَوَلَّوۡا فَاِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الۡكٰفِرِيۡنَ ۩۔

[Q-03:31-32]

             (हे मुहम्मद) कहो! यदि आप ईश्वर से प्रेम करते हैं, तो मेरा अनुसरण करें। ईश्वर भी तुम्हें मित्र बनाकर रखेगा। और वह तुम्हारे पापों को क्षमा कर देगा, और ईश्वर क्षमा करने वाला, दयालु है। (31) कहो (हे मुहम्मद)! ईश्वर और उसके दूत कि आज्ञा का पालन करो। और यदि वे ईमान न लाएँ, तो ईश्वर भी काफ़िरों का मित्र नहीं बनाता। (32)


قُلۡ اِنَّمَاۤ اُمِرۡتُ اَنۡ اَعۡبُدَ اللّٰهَ وَلَاۤ اُشۡرِكَ بِهٖؕ اِلَيۡهِ اَدۡعُوۡا وَاِلَيۡهِ مَاٰبِ ۩۔

[Q-13:36]

             (हे मुहम्मद) कहो कि! मुझे केवल ईश्वर की आराधना करने का आदेश दिया गया है। और किसी को भी उसका साझी न बनाने का। उसी एक ईश्वर की तरफ मैं बुलाता हूं, और उसी की ओर मुझे भी लौटना है (36)।


اِنَّمَا كَانَ قَوۡلَ الۡمُؤۡمِنِيۡنَ اِذَا دُعُوۡۤا اِلَى اللّٰهِ وَرَسُوۡلِهٖ لِيَحۡكُمَ بَيۡنَهُمۡ اَنۡ يَّقُوۡلُوۡا سَمِعۡنَا وَاَطَعۡنَا‌ؕ وَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُفۡلِحُوۡنَ ۩۔ وَمَنۡ يُّطِعِ اللّٰهَ وَرَسُوۡلَهٗ وَيَخۡشَ اللّٰهَ وَيَتَّقۡهِ فَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡفَآٮِٕزُوۡنَ ۩۔

[Q-24:51-52]

             आस्तिक (momin) वो हैं। कि जब उन्हें ईश्वर और उसके दूत (पैग़ंबर) की ओर बुलाया जाता है ताकि उनके बीच फैसला कर दे। तो ये कहें! कि हमने (आदेश) सुना और उसका पालन किया। और यही लोग सफल होंगे (51) और जो कोई ईश्वर और उसके दूत का आज्ञापालन करेगा और उससे डरेगा, ऐसे लोग लक्ष्य तक पहुंचेंगे (52)।


وَاَقِيۡمُوا الصَّلٰوةَ وَ اٰ تُوا الزَّكٰوةَ وَاَطِيۡـعُوا الرَّسُوۡلَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُوۡنَ ۩۔

[Q-24:56]

             और नमाज़ पढ़ते रहो और दान करते रहो, और ईश्वर के दूत (पैग़ंबर) की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुम पर दया की जाए (56)।

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अल्लाह इसी सुसमाचार को बाइबिल में यीशु के माध्यम से कहता है। . . . .

             जो मुझ से, ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। [मैथ्यू कि बाइबिल – 07:21]।

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Contents

ईश्वर के आदेशानुसार, मुहम्मद (सल्ल.) उपदेश देते हैं।

الٓرٰ‌ ࣞ  كِتٰبٌ اُحۡكِمَتۡ اٰيٰـتُهٗ ثُمَّ فُصِّلَتۡ مِنۡ لَّدُنۡ حَكِيۡمٍ خَبِيۡرٍۙ‏ (۱)  اَلَّا تَعۡبُدُوۡۤا اِلَّا اللّٰهَ‌ ؕ اِنَّنِىۡ لَـكُمۡ مِّنۡهُ نَذِيۡرٌ وَّبَشِيۡرٌ ۙ‏ (۲)  وَّاَنِ اسۡتَغۡفِرُوۡا رَبَّكُمۡ ثُمَّ تُوۡبُوۡۤا اِلَيۡهِ يُمَتِّعۡكُمۡ مَّتَاعًا حَسَنًا اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّى وَ يُؤۡتِ كُلَّ ذِىۡ فَضۡلٍ فَضۡلَهٗ ‌ؕ وَاِنۡ تَوَلَّوۡا فَاِنِّىۡۤ اَخَافُ عَلَيۡكُمۡ عَذَابَ يَوۡمٍ كَبِيۡرٍ‏ ۩۔

[Q-11:1-3]

            अलिफ लाम रा! ये वोह पुस्तक है, जिसकी आयतें सुदृढ़ की गयीं, और उन्हें तत्वज्ञ, सर्वसूचित ईश्वर द्वारा विस्तार से समझाया गया है। (1) कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो, और मैं (मुहम्मद) अल्लाह की ओर से तुम्हें सचेत करने वाला और शुभ सूचना देने वाला हूँ।) (2) और तुम अपने रब से क्षमा चाहते हो, तो उसी की ओर फिरो, ताकि वह तुम्हें एक निश्चित अवधि के लिए अच्छा लाभ पहुंचाए। और जिसने अधिक अच्छे काम किए हैं उसे अधिक पुरस्कृत करें, और यदि तुम ईमान से फिरे, तो मैं तुम्हारे लिये बड़े दिन की यातना से डरता हूं। (3)

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अल्लाह मुहम्मद ﷺ के दूतत्व का साक्ष्य देता है।  

مَاۤ اَصَابَكَ مِنۡ حَسَنَةٍ فَمِنَ اللّٰهِ‌ؗ وَمَاۤ اَصَابَكَ مِنۡ سَيِّئَةٍ فَمِنۡ نَّـفۡسِكَ‌ ؕ وَاَرۡسَلۡنٰكَ لِلنَّاسِ رَسُوۡلًا‌ ؕ وَكَفٰى بِاللّٰهِ شَهِيۡدًا‏ ۩۔ مَنۡ يُّطِعِ الرَّسُوۡلَ فَقَدۡ اَطَاعَ اللّٰهَ ‌ۚ وَمَنۡ تَوَلّٰى فَمَاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ عَلَيۡهِمۡ حَفِيۡظًا ؕ‏ ۩۔

[Q-04:79-80]

              (सच तो यह है) कि तुम्हें जो भी ख़ुशी मिलती है वह अल्लाह की ओर से होती है और जो भी तुम्हें हानि पहुँचती है वह तुम्हारे अपने कर्मों के कारण होती है। और हमने तुम्हें तमाम इंसानों के लिए रसूल बनाकर भेजा है। और (आपके रसूल होने पर) अल्लाह का साक्ष्य ही बहुत है। जिसने रसूल का हुक्म माना, उसने अल्लाह का हुक्म माना, और जिसने मुँह मोड़ा! तो हमने तुम्हें उन पर संरक्षक बनाकर नहीं भेजा (80)।

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मोहम्मद ﷺ को भी क़ुरान का पालन करने का आदेश।

يٰۤـاَيُّهَا النَّبِىُّ اتَّقِ اللّٰهَ وَلَا تُطِعِ الۡكٰفِرِيۡنَ وَالۡمُنٰفِقِيۡنَ‌ ؕ اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلِيۡمًا حَكِيۡمًا ۙ‏ ۩۔ وَّاتَّبِعۡ مَا يُوۡحٰٓى اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ‌ ؕ اِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُوۡنَ خَبِيۡرًا ۙ‏ ۩۔

[Q-33:1-2]

             हे पैगम्बर, ईश्वर से डरो और काफिरों और पाखंडियों की बातें मत मानो। वास्तव में, ईश्वर तत्वज्ञ और सर्वज्ञ है (1)। और जो (कुरान) तुम्हारे रब की ओर से तुम पर नाज़िल हुआ है, उसका पालन करो। वास्तव में, ईश्वर आपके सभी कार्यों से अवगत है (2)


قُلْ لَّاۤ اَقُوۡلُ لَـكُمۡ عِنۡدِىۡ خَزَآٮِٕنُ اللّٰهِ وَلَاۤ اَعۡلَمُ الۡغَيۡبَ وَلَاۤ اَقُوۡلُ لَـكُمۡ اِنِّىۡ مَلَكٌ ۚ اِنۡ اَتَّبِعُ اِلَّا مَا يُوۡحٰٓى اِلَىَّ ؕ  قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِى الۡاَعۡمٰى وَالۡبَصِيۡرُ ؕ  اَفَلَا تَتَفَكَّرُوۡنَ ۩۔

[Q-06:50]

              ऐ नबी कह दो! मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं। और न मैं ग़ैब का इल्म रखता हूँ और न मैं ऐसा कहता हूँ! कि मैं फरिश्ता हूं।  मैं केवल उस रहस्योद्घाटन (वह्यी) का पालन करता हूं जो मुझ पर प्रकट होती है। और कह दो कि! क्या अंधे और आँखों वाले बराबर हो सकते हैं (कदापि नहीं)। क्या आप सोच-विचार नहीं करते (50)?


اِتَّبِعۡ مَاۤ اُوۡحِىَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ‌‌ۚ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ۚ وَاَعۡرِضۡ عَنِ الۡمُشۡرِكِيۡنَ‏ ۩۔ وَلَوۡ شَآءَ اللّٰهُ مَاۤ اَشۡرَكُوۡا ‌ؕ وَمَا جَعَلۡنٰكَ عَلَيۡهِمۡ حَفِيۡظًا‌ ۚ وَمَاۤ اَنۡتَ عَلَيۡهِمۡ بِوَكِيۡلٍ ۩۔

[Q-06:106-107]

               हे पैगम्बर! जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर प्रकट किया गया है, उसका अनुसरण करो। उस ईश्वर के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है, और मुश्रिकों (कुफ़र करने वाले) से दूर हो जाओ। (106) और यदि अल्लाह चाहत, तो वे साझीदार नहीं बनाते, और हमने तुम्हें उनपर निरीक्षक नहीं बनाया है और न ही आप उनपर अधिकारी हैं। (107)

अंत: नबी का कर्तव्य केवल अल्लाह का संदेश पहुँचा देना होता है।

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कुरान के अनुसार रसूल ﷺ का जीवन सबसे अच्छा उदाहरण।

لَقَدۡ كَانَ لَكُمۡ فِىۡ رَسُوۡلِ اللّٰهِ اُسۡوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَنۡ كَانَ يَرۡجُوا اللّٰهَ وَالۡيَوۡمَ الۡاٰخِرَ وَذَكَرَ اللّٰهَ كَثِيۡرًا ؕ ۩۔

[Q-33:21]

              निस्संदेह, तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में एक उत्तम  आदर्श है, उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और प्रलय के दिन पर विश्वास रखता हो और अल्लाह को अत्यधिक याद करता हो (21)।

            दरअसल, पैगंबर का जीवन एक सच्चे आस्तिक का जीवन था। क्योंकि उनके जीवन की बुनियाद कुरान पर आधारित थी। और अगर हम भी कुरान को अपने जीवन का आधार बनाएं. तो हम भी सच्चे आस्तिक बन सकते हैं। और सर्वशक्तिमान रब ने वचन दिया है कि वह अपने वफादार सेवकों (बंदों) को लोक और परलोक दोनों स्थान पर सम्मान देगा।

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मानव जाति को क़ुरान की आज्ञाकारिता का आदेश।

يٰبَنِىۡۤ اٰدَمَ اِمَّا يَاۡتِيَنَّكُمۡ رُسُلٌ مِّنۡكُمۡ يَقُصُّوۡنَ عَلَيۡكُمۡ اٰيٰتِىۡ‌ۙ فَمَنِ اتَّقٰى وَاَصۡلَحَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُوۡنَ ۩۔

[Q-07:35]

              हे आदम के बच्चों! यदि तुम्हीं में से तुम्हारे पास पैग़ंबर आएं, जो तुम्हें मेरी आयतें सुनाएं। तो जो कोई डरेगा और अपने आप को सुधार लेगा, तो (प्रलय के दिन) ऐसे लोगों को कोई डर नहीं होगा, और न ही वे शोक करेंगे।


           كَمَآ اَرۡسَلۡنَا فِيۡکُمۡ رَسُوۡلًا مِّنۡکُمۡ يَتۡلُوۡا عَلَيۡكُمۡ اٰيٰتِنَا وَيُزَكِّيۡکُمۡ وَيُعَلِّمُکُمُ الۡكِتٰبَ وَالۡحِکۡمَةَ وَيُعَلِّمُكُمۡ مَّا لَمۡ تَكُوۡنُوۡا تَعۡلَمُوۡنَ ؕ‌ۛ‏ ۩۔

[Q-02:151].

              जैसे कि हमने तुम्हारे मध्य तुम्हीं में से एक रसूल भेजा, जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता है और तुम्हें पाक (शुध्द) कर देता है। और तुम्हें किताब (कुरान) और ज्ञान सिखाता है, और तुम्हें वह सिखाता है जो तुम नहीं जानते थे।


قَدۡ جَآءَكُمۡ بَصَآٮِٕرُ مِنۡ رَّبِّكُمۡ  ۚ  فَمَنۡ اَبۡصَرَ فَلِنَفۡسِهٖ‌ ۚ وَمَنۡ عَمِىَ فَعَلَيۡهَا‌ ؕ وَمَاۤ اَنَا عَلَيۡكُمۡ بِحَفِيۡظٍ ۩۔

[Q-06:104)

              हे मुहम्मद ﷺ कह दो कि! तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारे पास प्रमाण पहुँच चुके हैं। सो जो आत्मसात कर लेता है, वह अपने साथ भलाई करता है, और जो अंधा बना रहा। वह अपने साथ बुराई करता है। और मैं तुम्हारा संरक्षक नहीं हूँ।


يٰۤـاَيُّهَا النَّاسُ قَدۡ جَآءَكُمُ الرَّسُوۡلُ بِالۡحَـقِّ مِنۡ رَّبِّكُمۡ فَاٰمِنُوۡا خَيۡرًا لَّـكُمۡ ؕ ۩۔

[Q-04:170]

             हे लोगों! पैगम्बर तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से सत्य लेकर आये हैं। तो उन पर विश्वास करो। और यही तुम्हारे लिए अच्छा है।


   يٰۤاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡۤا اٰمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَرَسُوۡلِهٖ وَالۡكِتٰبِ الَّذِىۡ نَزَّلَ عَلٰى رَسُوۡلِهٖ وَالۡكِتٰبِ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلَ مِنۡ قَبۡلُ‌ؕ وَمَنۡ يَّكۡفُرۡ بِاللّٰهِ وَمَلٰٓٮِٕكَتِهٖ وَكُتُبِهٖ وَرُسُلِهٖ وَالۡيَوۡمِ الۡاٰخِرِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلٰلًاۢ بَعِيۡدًا‏ ۩۔

[Q-04:136].

            हे ईमान वालो! अल्लाह और उसके रसूल पर और उस किताब पर जो उसने अपने रसूल पर अवतरित की, और उन किताबों पर जो उसने पहले उतारी थीं, ईमान लाओ। और जिसने अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके पैग़म्बरों और क़यामत के दिन को झुठलाया, तो वह कुपथ में बहुत दूर तक भटक गया। 


اِتَّبِعُوۡا مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكُمۡ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ وَلَا تَتَّبِعُوۡا مِنۡ دُوۡنِهٖۤ اَوۡلِيَآءَ‌ ؕ قَلِيۡلًا مَّا تَذَكَّرُوۡنَ ۩۔

[Q-07:03]

             उस किताब का अनुसरण करो जो तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुई है। और दूसरे संतों को अल्लाह के साथ शरीक न करो। आप लोग बहुत कम सलाह लेते हैं।

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अल्लाह उम्मतों और पेगम्बरों दोनों से! पेग़ामे तौहीद के प्रति सवाल करेगा।

وَاِذۡ اَخَذۡنَا مِنَ النَّبِيّٖنَ مِيۡثَاقَهُمۡ وَمِنۡكَ وَمِنۡ نُّوۡحٍ وَّاِبۡرٰهِيۡمَ وَمُوۡسٰى وَعِيۡسَى ابۡنِ مَرۡيَمَ ࣕ وَاَخَذۡنَا مِنۡهُمۡ مِّيۡثاقًا غَلِيۡظًا ۙ ۩۔ لِّيَسۡئَلَ الصّٰدِقِيۡنَ عَنۡ صِدۡقِهِمۡ‌ۚ وَاَعَدَّ لِلۡكٰفِرِيۡنَ عَذَابًا اَ لِيۡمًا ۩۔

[Q-33:7-8]

              और जब हमने पैगम्बरों से vchn लिया। और [विशेषकर] तुम से, और नूह से, और इब्राहीम से, और मूसा से, और मरियम के बेटे यीशु से, और उनसे एक मजबूत अहद (वचन) लिया (7) ताकि [प्रलय के दिन] वह सच बोलने वालों पर उनकी सच्चाई साबित कर दे। और उसने काफ़िरों के लिए दुखद यातना तैयार कर रखी है।


فَلَنَسۡــَٔــلَنَّ الَّذِيۡنَ اُرۡسِلَ اِلَيۡهِمۡ وَلَـنَسۡـَٔـــلَنَّ الۡمُرۡسَلِيۡنَ ۙ ۩۔ فَلَنَقُصَّنَّ عَلَيۡهِمۡ بِعِلۡمٍ وَّمَا كُنَّا غَآٮِٕبِيۡنَ‏ ۩۔

[Q-07:6-7]

          हम उन लोगों से अवश्य पूछेंगे कि जिनके पास पैगम्बरों को भेजा गया था। और पैग़म्बरों से भी अवश्य पूछेंगे। फिर हम अपने ज्ञान के आधार पर उनकी स्थितियाँ स्पष्ट कर देंगे। और हम अनुपस्थित नहीं थे।

           न्याय के दिन जब सभी लोग पुनर्जीवित किये जायेंगे। तीन पंक्तियों में उपस्थित होंगे। पहली पंक्ति उच्च पद वाले मोमिनों की होगी और शायद पैग़म्बर भी इसी पंक्ति में मौजूद होंगे। क्योंकि क़यामत के दिन पैग़म्बरों की मौजूदगी कई आयतों से साबित होती है, लेकिन उनकी अलग से पंक्ति साबित नहीं है। हाँ, अल्लाह कुरान में एक जगह कहता है कि – – – –

           जो लोग अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करेंगे, वे पुनरुत्थान (प्रलय) के दिन पैगम्बरों, धर्मियों, शहीदों और अच्छे लोगों के साथी होंगे। (कु०-04:69-70).

            दूसरी पंक्ति आस्थावानों (मोमीनो) की होगी। और तीसरी पंक्ति काले रंग वाले पापियों की होगी. अब यहाँ, तीसरी पंक्ति प्रश्न उठाएगी, “कि है ईश्वर, निश्चित रूप से आप ईश्वर हैं। परन्तु संसार में हमें आपका सन्देश नहीं मिला? नहीं तो हम भी आप कि पूजा करते। इससे पैगंबरों के एकेश्वरवाद के संदेश के प्रसारण और उनके उद्देश्य पर प्रश्न चिह्न लग जाएगा। अथार्थ उनपर जो वह्यी (प्रकाशना) की गई वोह उन्होंने सच्चाई के साथ लोगों तक नहीं पहुंचाई।

उस दिन, अल्लाह तआला किसी को भी निराश नहीं करेगा। सभी को संतुष्ट किया जाएगा। किसी पर अत्याचार नहीं होगा। इसी लिए अल्लाह कहता है!

             और फिर हम अपने ज्ञान के आधार पर उनकी स्थितियाँ स्पष्ट कर देंगे। और हम अनुपस्थित नहीं थे। (कु०-07:07)।

            और तब पैग़ंबर (भविष्यवक्ता) कहेंगे! है हमारे ईश्वर! हमने अपना कर्तव्य अच्छे से निभाया है, बाकी आप बेहतर जानते हैं।’ और फिर दूसरी और तीसरी पंक्ति गवाही देगी! निसन्देह! पैगम्बरों ने आपका सन्देश हम तक अवश्य पहुँचाया। हमने उन पर भरोसा किया और आपकी पूजा की। और ये ज़ालिम हम पर और नबियों पर ज़ुल्म (अत्याचार) करते रहे।

           इस विषय पर व्यापक जानकारी कुरान की रोशनी में इंशाअल्लाह भविष्य में उपलब्ध करने कि कोशिश करेंगे। आपकी दुआओं की आवश्यकता है।

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हमारी न्याय प्रणाली! अल्लाह और रसूल के नियमानुसार होनी चाहिये।

يٰۤـاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡۤا اَطِيۡـعُوا اللّٰهَ وَاَطِيۡـعُوا الرَّسُوۡلَ وَاُولِى الۡاَمۡرِ مِنۡكُمۡ‌ۚ فَاِنۡ تَنَازَعۡتُمۡ فِىۡ شَىۡءٍ فَرُدُّوۡهُ اِلَى اللّٰهِ وَالرَّسُوۡلِ اِنۡ كُنۡـتُمۡ تُؤۡمِنُوۡنَ بِاللّٰهِ وَالۡيَـوۡمِ الۡاٰخِرِ‌ ؕ ذٰ لِكَ خَيۡرٌ وَّاَحۡسَنُ تَاۡوِيۡلًا ۩۔

[Q-04:59]

             हे ईमान वालो! अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानो और उन लोगों की आज्ञा मानो जो तुम्हारे बीच सत्ता में हैं। और यदि तुम्हारे बीच किसी मामले में मतभेद हो जाये। और यदि तुम अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते हो, तो उस समस्या को अल्लाह और उसके रसूल की ओर संदर्भित करो। यह बहुत अच्छी बात है और इसका अंत भी अच्छा है।

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अल्लाह और रसूल के आदेश! हर ईमान वाले मर्द और औरत पर अनिवार्य।

وَمَا كَانَ لِمُؤۡمِنٍ وَّلَا مُؤۡمِنَةٍ اِذَا قَضَى اللّٰهُ وَرَسُوۡلُهٗۤ اَمۡرًا اَنۡ يَّكُوۡنَ لَهُمُ الۡخِيَرَةُ مِنۡ اَمۡرِهِمۡ ؕ وَمَنۡ يَّعۡصِ اللّٰهَ وَرَسُوۡلَهٗ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلٰلًا مُّبِيۡنًا‏ ۩۔

[Q-33:36]

          तथा किसी ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली स्त्री के लिए योग्य नहीं कि जब अल्लाह तथा उसके रसूल किसी बात का निर्णय कर दे, तो अपने विषय में उनके लिए कुछ अधिकार रह जाये। और जो अल्लाह एवं उसके रसूल की अवज्ञा करेगा, तो वह खुले कुपथ (गुमराही) में पड़ गया।(36)


قُلۡ اِنۡ كُنۡتُمۡ تُحِبُّوۡنَ اللّٰهَ فَاتَّبِعُوۡنِىۡ يُحۡبِبۡكُمُ اللّٰهُ وَيَغۡفِرۡ لَـكُمۡ ذُنُوۡبَكُمۡؕ‌ وَاللّٰهُ غَفُوۡرٌ رَّحِيۡمٌ‏ ۩۔ قُلۡ اَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَالرَّسُوۡلَ‌‌ ۚ  فَاِنۡ تَوَلَّوۡا فَاِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الۡكٰفِرِيۡنَ ۩۔

[Q-03:31-32]

            हे पैगंबर कह दो कि! यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो तो मेरे पीछे आओ। अल्लाह भी तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे पापों को क्षमा कर देगा और अल्लाह क्षमा करने वाला, दयावान है। कहो! अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो। यदि वे विश्वास नहीं करते, तो परमेश्वर अविश्वासियों को पसन्द नहीं करता।

             दरअसल, अल्लाह और उसके रसूल के आदेशों का पालन करना हर मोमिन का कर्तव्य है। अब तक के अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया है कि अल्लाह के दूत (नबी) का प्रत्येक कार्य एवंम निर्णय कुरान पर आधारित था। अब जब रसूल काफी समय से हमारे बीच नहीं हैं. तो मुझे बताओ? क्या हमें पैगंबर की सुन्नतों और हदीसों का पालन करना चाहिए, जहां मिश्रण की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है? या कुरान का पालन करना चाहिए. जिसकी हिफाजत की जिम्मेदारी खुद अल्लाह की है. अगले दो श्लोकों पर विचार करें।


اَ لَّذِيۡنَ يَتَّبِعُوۡنَ الرَّسُوۡلَ النَّبِىَّ الۡاُمِّىَّ الَّذِىۡ يَجِدُوۡنَهٗ مَكۡتُوۡبًا عِنۡدَهُمۡ فِى التَّوۡرٰٮةِ وَالۡاِنۡجِيۡلِ ؗ  يَاۡمُرُهُمۡ بِالۡمَعۡرُوۡفِ وَيَنۡهٰٮهُمۡ عَنِ الۡمُنۡكَرِ وَيُحِلُّ لَهُمُ الطَّيِّبٰتِ وَيُحَرِّمُ عَلَيۡهِمُ الۡخَبٰۤٮِٕثَ وَيَضَعُ عَنۡهُمۡ اِصۡرَهُمۡ وَالۡاَغۡلٰلَ الَّتِىۡ كَانَتۡ عَلَيۡهِمۡ‌ ؕ فَالَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا بِهٖ وَعَزَّرُوۡهُ وَنَصَرُوۡهُ وَ اتَّبَـعُوا النُّوۡرَ الَّذِىۡۤ اُنۡزِلَ مَعَهٗ ۤ‌ ۙ اُولٰۤٮِٕكَ هُمُ الۡمُفۡلِحُوۡنَ ۩۔

[Q-07:157]

               जो लोग उस रसूल [मुहम्मद ] का अनुसरण करते हैं जो उम्मी पैगंबर हैं। जिसे वे उनके पास मौजूद तौरेत और बाइबिल में लिखा हुआ पाते हैं। और वोह उन्हें अच्छे कर्म करने का आदेश देते है और बुरे कर्म करने से रोकते है। और उनके लिए पाक चीज़ों को हलाल करते हैं, और नापाक चीज़ों को उनके लिए हराम करते हैं, और उनके बोझों को उनके सिरों से और उनकी गर्दनों से बेड़ियाँ उतारते हैं। तो जिन लोगों ने उन पर विश्वास किया, और उनका समर्थन किया, और उनकी मदद की। और उस प्रकाश [कुरान] का अनुसरण किया जो उनके साथ अवतरित हुआ। वे कल्याणकारी हैं।


قُلۡ يٰۤاَيُّهَا النَّاسُ اِنِّىۡ رَسُوۡلُ اللّٰهِ اِلَيۡكُمۡ جَمِيۡعَاْ ۨ الَّذِىۡ لَهٗ مُلۡكُ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ‌ۚ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ يُحۡىٖ وَيُمِيۡتُ ࣕ‌  فَاٰمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَرَسُوۡلِهِ النَّبِىِّ الۡاُمِّىِّ الَّذِىۡ يُؤۡمِنُ بِاللّٰهِ وَكَلِمٰتِهٖ وَاتَّبِعُوۡهُ لَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُوۡنَ ۩۔ 

[Q-07:158]

              कह दो! हे लोगों, मैं तुम सबके लिए ईश्वर का दूत हूं। जो आकाश और पृथ्वी का स्वामी है। उसके अलावा कोई ईश्वर नहीं है, वही जीवन देता है और वही मृत्यु देता है। इसलिए, विश्वास करो अल्लाह पर, और उसके दूत नबी उम्मी [मुहम्मद ] पर – जो अल्लाह और उसके कलाम (कुरान) पर विश्वास करते है। ऐसे नबी का अनुसरण करो, ताकि तुम मार्ग (हिदायत, नसीहत) पाओ।

             अल्लाह सर्वशक्तिमान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मुहम्मद भी कुरान में विश्वास करते हैं। और उसका अनुसरण करता है।

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अल्लाह और रसूल कि आज्ञा का पालन करने वाले लोग।

وَمَنۡ يُّطِعِ اللّٰهَ وَالرَّسُوۡلَ فَاُولٰٓٮِٕكَ مَعَ الَّذِيۡنَ اَنۡعَمَ اللّٰهُ عَلَيۡهِمۡ مِّنَ النَّبِيّٖنَ وَالصِّدِّيۡقِيۡنَ وَالشُّهَدَآءِ وَالصّٰلِحِيۡنَ‌ ۚ وَحَسُنَ اُولٰٓٮِٕكَ   رَفِيۡقًا ؕ ۩۔ ذٰ لِكَ الۡـفَضۡلُ مِنَ اللّٰهِ‌ ؕ وَكَفٰى بِاللّٰهِ عَلِيۡمًا ۩۔

[Q-04:69-70]

           और जो लोग अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद की आज्ञा मानते हैं। वे (पुनरुत्थान के दिन) उन लोगों के साथ होंगे जिन पर अल्लाह ने बड़ा उपकार किया है। अर्थात् पैगम्बर और सिद्दीक और शहीद और धर्मात्मा लोग। और ये अच्छे साथी हैं। यह अल्लाह की कृपा होगी। और अल्लाह जो सर्वज्ञ है, काफ़ी है।


وَالَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖۤ اُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الصِّدِّيۡقُوۡنَ ۚ  وَالشُّهَدَآءُ  عِنۡدَ رَبِّهِمۡؕ لَهُمۡ اَجۡرُهُمۡ وَنُوۡرُهُمۡ‌ؕ وَ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا وَكَذَّبُوۡا بِاٰيٰتِنَاۤ اُولٰٓٮِٕكَ اَصۡحٰبُ الۡجَحِيۡمِ ۩۔

[Q-57:19]

             और जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए। यही वे लोग हैं। जो रब कि नजर में सच्चे और गवाह हैं। अल्लाह के पास उनके लिए उनका बदला और उनकी रोशनी होगी। और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, यही लोग जहन्नम (नरक) वाले हैं। 

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अल्लाह और रसूल के विरोधी लोग।

وَمَنۡ يُّشَاقِقِ الرَّسُوۡلَ مِنۡۢ بَعۡدِ مَا تَبَيَّنَ لَـهُ الۡهُدٰى وَ يَـتَّبِعۡ غَيۡرَ سَبِيۡلِ الۡمُؤۡمِنِيۡنَ نُوَلِّهٖ مَا تَوَلّٰى وَنُصۡلِهٖ جَهَـنَّمَ‌ ؕ وَسَآءَتۡ مَصِيۡرًا ۩۔

[Q-04:115]

               और जो व्यक्ति मार्गदर्शन (हिदायत) का मार्ग [कुरान का मार्ग] जानने के बाद (ईश्वर के) दूत (पैग़ंबर) का विरोध करता है और ईमान वालों के मार्ग के अतिरिक्त अन्य मार्ग चुनता है। तो वह जहां भी जाएगा, हम उसे जाने देंगे। और नरक में प्रवेश देंगे। और वह बहुत बुरी जगह है।


اِنَّ الَّذِيۡنَ يُحَآدُّوۡنَ اللّٰهَ وَرَسُوۡلَهٗ كُبِتُوۡا كَمَا كُبِتَ الَّذِيۡنَ مِنۡ قَبۡلِهِمۡ‌ وَقَدۡ اَنۡزَلۡنَاۤ اٰيٰتٍۢ بَيِّنٰتٍ‌ ؕ وَ لِلۡكٰفِرِيۡنَ عَذَابٌ مُّهِيۡنٌ‌ ۚ‏ ﴿۵﴾۔

[Q-58:5]

             वास्तव में, जो लोग अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करते हैं। जबकि हमने स्पष्ट आयतें उतारीं। ऐसे लोग अपमानित होंगे। जिस प्रकार अपमानित किया गया, उन लोगों को जो उनसे पहले हुआ करते थे। और काफ़िरों के लिए अपमानजनक यातना होगी।

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कुरान ही इस्लाम का सही मार्ग है।

وَالَّذِىۡ جَآءَ بِالصِّدۡقِ وَصَدَّقَ بِهٖۤ‌ اُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُتَّقُوۡنَ‏ ۩۔ لَهُمۡ مَّا يَشَآءُوۡنَ عِنۡدَ رَبِّهِمۡ‌ ؕ ذٰ لِكَ جَزٰٓؤُ الۡمُحۡسِنِيۡنَ ۚ‏ ۩۔

[Q-39:33-34]

              और [मुहम्मद ] जो सत्य वचन (अथार्थ कुरान) लाए। और जो (लोग) इसकी पुष्टि करते हैं, वे पवित्र हैं।  उनके लिए सब कुछ उनके पालनहार के पास होगा, जो कुछ वे चाहेंगे। यही नेक लोगों का इनाम है।


وَاَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَاَطِيۡعُوا الرَّسُوۡلَ‌ۚ فَاِنۡ تَوَلَّيۡتُمۡ فَاِنَّمَا عَلٰى رَسُوۡلِنَا الۡبَلٰغُ الۡمُبِيۡنُ ۩۔ اَللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ؕ وَعَلَى اللّٰهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ الۡمُؤۡمِنُوۡنَ‏ ۩۔

[Q-64:12-13]

           और अल्लाह के आदेश (अर्थात् कुरान) का पालन करो। और रसूल के आदेश (अर्थात् कुरान) का पालन करो, फिर यदि तुम मुँह मोड़ोगे। तो जन लो, कि हमारे रसूल पर केवल संदेश का पहुंचा देना है। यह कि, अल्लाह ही एकमात्र ईश्वर है जिसके अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। और ईमानवालों को अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए।


يٰۤاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡۤا اَطِيۡعُوا اللّٰهَ وَاَطِيۡعُوا الرَّسُوۡلَ وَلَا تُبۡطِلُوۡۤا اَعۡمَالَـكُمۡ‏ ۩۔

[Q-47:33]

            हे ईमान वालो, अल्लाह के आदेशों (अर्थात कुरान) का पालन करो। और उसके रसूल (अर्थात क़ुरआन) के आदेशों का पालन करो। और अपने कर्मों को व्यर्थ न करो।


اِنَّ هٰذِهٖ تَذۡكِرَةٌ ‌ ۚ فَمَنۡ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰى رَبِّهٖ سَبِيۡلًا ۩۔

[Q-73:19]

            वास्तव में, यह (कुरान) एक अनुस्मारक (नसीहत, शिक्षा) है। अतः इसके माध्यम से जो चाहे अपने पालनहार कि ओर मार्ग बनाले।


وَالَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَاٰمَنُوۡا بِمَا نُزِّلَ عَلٰى مُحَمَّدٍ وَّهُوَ الۡحَقُّ مِنۡ رَّبِّهِمۡ‌ۙ كَفَّرَ عَنۡهُمۡ سَيِّاٰتِهِمۡ وَاَصۡلَحَ بَالَهُمۡ‏ ۩۔

[Q-47:2]

            जो लोग ईमान लाये और अच्छे कर्म किये। और जो (पुस्तक) मुहम्मद () पर प्रकट हुई उस पर विश्वास करते रहे, जो कि उनके रब की ओर से सत्य है। तो वह उन (लोगों) से उनके पाप दूर कर देगा, और उनकी स्थिति भी सुधार देगा (2)।


فَاٰمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَرَسُوۡلِهٖ وَالنُّوۡرِ الَّذِىۡۤ اَنۡزَلۡنَا‌ؕ وَاللّٰهُ بِمَا تَعۡمَلُوۡنَ خَبِيۡرٌ‏ ۩۔ يَوۡمَ يَجۡمَعُكُمۡ لِيَوۡمِ الۡجَمۡعِ‌ ذٰ لِكَ يَوۡمُ التَّغَابُنِ‌ ؕ وَمَنۡ يُّؤۡمِنۡۢ بِاللّٰهِ وَيَعۡمَلۡ صَالِحًـا يُّكَفِّرۡ عَنۡهُ سَيِّاٰتِهٖ وَيُدۡخِلۡهُ جَنّٰتٍ تَجۡرِىۡ مِنۡ تَحۡتِهَا الۡاَنۡهٰرُ خٰلِدِيۡنَ فِيۡهَاۤ اَبَدًا‌ ؕ ذٰ لِكَ الۡفَوۡزُ الۡعَظِیْمُ‏ ۩۔

[Q-64:8-9]

             इसलिए अल्लाह और उसके रसूल पर और इस रोशनी (यानी कुरान) पर विश्वास करो, जो हमने (पैगंबर पर) अवतरित किया है। और अल्लाह को ख़बर है जो कुछ तुम करते हो।  क़यामत के दिन! जब तुम्हें जमा किया जाएगा। वह विजय और हानि (हिसाब) का दिन है, और जो कोई अल्लाह पर विश्वास करेगा और अच्छे कर्म करेगा, (प्रलय के दिन) अल्लाह उससे उसके पाप दूर कर देगा, और उसे स्वर्ग में प्रवेश देगा, जिसके नीचे नदियाँ बहेंगी। ये लोग हमेशा इसमें रहेंगे, ये एक बड़ी सफलता है (9)।


  اِنَّاۤ اَنۡزَلۡنَا عَلَيۡكَ الۡكِتٰبَ لِلنَّاسِ بِالۡحَقِّ‌ ۚ فَمَنِ اهۡتَدٰى فَلِنَفۡسِهٖ‌ ۚ وَمَنۡ ضَلَّ فَاِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيۡهَا‌ ۚ وَمَاۤ اَنۡتَ عَلَيۡهِمۡ بِوَكِيۡلٍ‏ ۩۔

[Q-39:41]

               निस्संदेह, हमने तुम पर यह किताब सत्य के साथ अवतरित की है। फिर जो मार्गदर्शन पर आया, वह अपने लिए आया। और जो कोई भटका, वह अपने बुरे के लिये भटका। और आप उनके लिए ज़िम्मेदार (वकील) नहीं हैं।


نَحۡنُ اَعۡلَمُ بِمَا يَقُوۡلُوۡنَ‌ وَمَاۤ اَنۡتَ عَلَيۡهِمۡ بِجَـبَّارٍ  ࣞ‌ فَذَكِّرۡ بِالۡقُرۡاٰنِ مَنۡ يَّخَافُ وَعِيۡدِ ۩۔

[Q-50:45]

             हम जानते हैं! कि वे क्या कहते हैं। और आपको उन पर दबाव डालने का कोई अधिकार नहीं है. तुम्हें क़ुरआन से केवल उसी को सलाह देनी चाहिए, जो मेरी सज़ा से डरता हो।

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अल्लाह नबी को अपना पक्ष रखने का आदेश देता है।

قُلۡ سُبۡحَانَ رَبِّىۡ هَلۡ كُنۡتُ اِلَّا بَشَرًا رَّسُوۡلًا‏ ۩۔ وَمَا مَنَعَ النَّاسَ اَنۡ يُّؤۡمِنُوۡۤا اِذۡ جَآءَهُمُ الۡهُدٰٓى اِلَّاۤ اَنۡ قَالُـوۡۤا اَبَعَثَ اللّٰهُ بَشَرًا رَّسُوۡلًا ۩۔ قُلْ لَّوۡ كَانَ فِى الۡاَرۡضِ مَلٰۤٮِٕكَةٌ يَّمۡشُوۡنَ مُطۡمَٮِٕنِّيۡنَ لَـنَزَّلۡنَا عَلَيۡهِمۡ مِّنَ السَّمَآءِ مَلَـكًا رَّسُوۡلًا ۩۔

[Q-17:93-95]

             आप कह दें कि! मेरा रब पवित्र है, मैं तो बस एक रसूल (संदेशवाहक) मनुष्य हूँ। (93) और लोगों को ईमान लाने से किसने रोका है, जबकि मार्गदर्शन की कुंजी (कुरान) उनके पास आ गई है? उन्होंने कहा, क्या अल्लाह ने किसी मनुष्य को रसूल बनाकर भेजा है? कहो! यदि पृथ्वी स्वर्गदूतों (फरिश्तों) का निवास होती। तो हम उनके पास आसमान से फ़रिश्ते को ही रसूल बनाकर भेजते।


وَاَنۡ اَتۡلُوَا الۡقُرۡاٰنَ‌ۚ فَمَنِ اهۡتَدٰى فَاِنَّمَا يَهۡتَدِىۡ لِنَفۡسِهٖ‌ۚ وَمَنۡ ضَلَّ فَقُلۡ اِنَّمَاۤ اَنَا مِنَ الۡمُنۡذِرِيۡنَ ۩۔

[Q-27:92]

           और कह दो कि! कुरान पढ़ो। जो मनुष्य सही रास्ता अपनाता है, वह अपने फायदे के लिए ही अपनाता है। और जो कोई भटका रहता है, तो कहो! मैं सिर्फ सलाह देने वाला हूं।


فَاِنَّكَ لَا تُسۡمِعُ الۡمَوۡتٰى وَلَا تُسۡمِعُ الصُّمَّ الدُّعَآءَ اِذَا وَلَّوۡا مُدۡبِرِيۡنَ ۩۔ وَمَاۤ اَنۡتَ بِهٰدِ الۡعُمۡىِ عَنۡ ضَلٰلَتِهِمۡ‌ؕ اِنۡ تُسۡمِعُ اِلَّا مَنۡ يُّؤۡمِنُ بِاٰيٰتِنَا فَهُمۡ مُّسۡلِمُوۡنَ ۩۔

[Q-30:52-53]

              वास्तव में, आप () न तो मुर्दों को सुना सकते हो, और न बहरों को, जो पीठ फेर लेते हों।  और न तुम उन (आँखों वाले) अंधों को मार्ग दिखा सकते हो, जो भटक ​​गए हों। आप केवल उन्हीं लोगों को सुना सकते हैं जो हमारी आयतों पर विश्वास करते हैं। तो वही मुसलमान हैं।


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